सचिन

आदरणीय सचिन,

जब एक से एक घोटालेबाज़ पार्टियों के नेताओं को ख़त लिखते वक्त उनके नाम के आगे आदरणीय लिखा है तो आपको आदरणीय कहने में संकोच कैसा । आप उन सबसे ज़्यादा हक़दार हैं । 

मैं आपके खेल के किस तरफ़ हूँ ठीक से नहीं जानता । पर पता नहीं क्यों आज बेहद अफ़सोस हो रहा है कि मैंने आपको किसी स्टेडियम में अपनी आँखों से खेलते नहीं देखा । देखना चाहिए था । आप जब छोटे थे शायद हमारी उम्र के आस पास तब हमने आपकी और कांबली की शतकीय साझेदारी वाली कामयाबी को कापी के किसी पन्ने पर ध्यान से लिखा था कि शायद कहीं ये किसी इम्तिहान में काम आ जाए । पर किसी इम्तिहान में बैठा नहीं और आप मेरे काम आते आते रह गए । पर आपकी तस्वीर को बंगाल के पुरुलिया ज़िले की एक बियाबान पहाड़ी पर बनी एक झोपड़ी में देखा तब समझा कि आप क्या हैं । उस झोंपड़ी के भीतर कुछ भी नहीं था, बाहर से ग़रीबी रेखा भी नहीं गुज़र रही थी मगर भीतर आपकी तस्वीर । सचिन सर्वत्र विराजयेत । ग़लत संस्कृत हो तब भी यह देखने में बिल्कुल ठीक लगता है । वजह आप हैं । 

आपके खेल को टीवी पर ज़रूर देखा है । नाख़ून चबाते हुए और धड़कनों को गिनते हुए कि आपका ही बल्ला मुझे एक परास्त भारत की किसी हीन ग्रंथी से बाहर निकाल सकता है । जैसे तिरासी के साल कपिल की टीम ने और बयासी के साल पी टी ऊषा में निकाला था । जब पी टी ऊषा एशियाड में जीती थीं तब उनके असर में हम चार बजे सुबह पटना के गांधी मैदान में दौड़ने जाने लगे । उस अंधेरे में खुद को पी टी ऊषा समझ कर भागने का प्रयास किया मगर लगा कि मुँह से झाग निकल आएगा । गांधी मैदान के बीच में स्थित गांधी जी की मूर्ति के नीचे जाकर बैठ गए । कहने का मतलब है आप लोगों की कामयाबी लोगों पर असर करती है । जब आपकी तरह बल्ला आज़माने का वक्त आया तब तक ज़िंदगी के वे लम्हे नज़दीक़ आने लगे थे जिसमें खुद के लिए कोई रास्ता चुनना था । आपकी तरह बनने के लिए किसी अंधेरे में नहीं जागा ।

लेकिन आपको टीवी पर देखते हुए बहुत अच्छा लगता था ।  आप खेलते थे और हम क्रिकेट को समझते थे । हर शाट को जानने लगे । गेंदबाज़ की घबराहट को और बल्लेबाज़ के आत्मविश्वास को । हम क्रिकेट को स्कोर बोर्ड से बाहर भी समझने लगे । उससे पहले लगता था कि पड़ोस वाले चाचा जी को ही क्रिकेट आती है । मेरे पिताजी नया नया क्रिकेट सीख रहे थे । गावस्कर के हर चौके पर पड़ोस वाले चाचाजी से पूछते िक अब इंडिया जीत जाएगा । चाचा जी डाँट देते और कहते कि चुप रहिए । नहीं बुझाता है तो काहे टोक देते हैं । क्रिकेट सिर्फ चौका छक्का का खेल नहीं है । पिताजी चुप हो जाते लेकिन जब इंडिया हार जाता तब चाचाजी पर खुंदक निकालने लगते । अरे इ सब जीतता नहीं है आप फालतूए टाइम बर्बाद करते हैं । क्रिकेट पर चाचाजी की कापीराइट होती थी । दोनों अब इस दुनिया में नहीं हैं पर हिन्दुस्तान ने ऐसे ही क्रिकेट को टटोल टटोल कर देखना समझना सीखा है । आपके आने के बाद सब तेज़ी से बदल गया । प्रभाष जोशी तो आपके बारे में लिख कर रूला ही देते थे । मालूम नहीं हिन्दी के इस पत्रकार को आप जानते हैं या नहीं । फिर भी सचिन आपको जानना क्रिकेट को जानना हो गया । 

जब मैच फ़िक्सिंग का दौर आया तो मैं क्रिकेट से दूर हो गया । इंडिया टुडे का वो संस्करण याद है जिसमें आपके शरीर के हर अंग को तीर के सहारे बताया गया कि यहाँ से ये पावर निकलता है वहाँ से वो पावर । फिर आपकी कामयाबी को कचकड़े के डिब्बे में मीडिया पैक करने लगा । मैंने कम देखा आपको । आज लग रहा है मुझे आपको जी भर के देख लेना चाहिए था । पर आपके लिए हमेशा सम्मान बना रहा । 

आज आपने संयास की घोषणा की है । चैनलों पर आपके रिकार्ड ऐसे चल रहे हैं जैसे इलेक्ट्रानिक टाइपराइटर के पीछे से काग़ज़ की रिम निकलती जा रही हो । आपने क्रिकेट को बहुत अच्छी यादें दी हैं और हम जैसे कम देखने वालों को न देखने का अफ़सोस । आपने अपने नाम को न सिर्फ कमाया बल्कि उसे अपने आचरण से बनाए भी रखा ।  दरअसल आप कभी बड़े हुए ही नहीं । दर्शकों ने आपको बच्चे की तरह ही देखा है । आप क्रिकेट में कृष्ण के बाल रूप हैं । जिसकी अनेक लीला़यें हैं । 

आपके खेल को समझना हिन्दी चैनलों के बस की बात नहीं हैं । शुक्र है आपने इनके लिए बहुत आँकड़े बना रखे हैं । आज की रिकार्डिंग मँगा लीजियेगा । कभी ज़िंदगी में आराम से देखियेगा । आपकी विदाई को कितने ख़राब तरीके से विश्लेषित किया गया है । हिन्दी सिनेमा के गानों पर आपके शाट्स चढ़ाकर उन्हें रोड साइड बैंड बारात में बदल दिया है । मैं क्रिकेट का ज्ञानी नहीं हूँ ,खुद भी क्रिकेट पर ख़राब शो करता हूँ मगर क्या करूँ करना ही पड़ता है । लेकिन जो लोग दिन रात क्रिकेट करते हैं उनके पास आपके लिए कोई अच्छा विश्लेषण नहीं है । यही ख़ालीपन सही समय होता है चुपचाप चले जाने का । आपके क्रिकेट के मैदान से जाने की ख़बर सुनकर मैं भावुक हूँ । आप हम सबकी शान रहे हैं । आपको ऐसे कैसे जाने देंगे एक ख़त तो लिखेंगे न । खुद ही पढ़ने के लिए । 

आपका 
रवीश कुमार 'एंकर' 

48 comments:

  1. रविश कुमार 'एंकर' ने भयंकर लिखा :))

    ReplyDelete
  2. Sir apka blog padhane ke liye nahi balki mahshoosh karne wala hota hai

    ReplyDelete
  3. प्रभाष जी के बाद सचिन की विदाई लिखना आप के ही बूते की बात है।

    ReplyDelete
  4. अच्छा लिखा है भाई रवीश कुमार जी, आज कुछ दिल भारी भारी लग रहा है.

    ReplyDelete
  5. SUperb....superb...mast ....badhiya..excellent ...jabarjast ...

    दरअसल आप कभी बड़े हुए ही नहीं ~

    He is the 5-6 years younger than my father...than also Me and my father both watch him as A school boy :)

    ReplyDelete
  6. bhai ravish sachin ki mahanta khel ke parti samman h....sachin wo khiladi h jisne khel bhawna par khabi daag nahi lagne diya....aur rahi baat sachin ko ek bache ki tarah dekhne ki to aap 16 aane sach h kyuki jo nischal bhav sachin me h khel ke prati wo sirf ek saaf man mai hi ho sakta h jiska sabse sundar praman bache hi h...

    ReplyDelete
  7. Same regret here, Sir. Kai baar avsar tha par asal me Sachin ko khelte na dekh paane ka afsos hamesha rahega ab. Long Live Sachin. Long Live Ravish.

    ReplyDelete
  8. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  9. yaad आता है १९८९ का वोह दिन jab अंतिम पीरियड में एक dost भागता हुआ आता है Sachin के बैटिंग के बारें में बताता है और मै भी क्लास छोड़कर मैच देखने भाग लेता हु सचिन सिक्सेर मारना सुरु करते है तो Pakistani कमेंटेटर कहता की मुस्ताक की बाल पर सिक्सेर मार दिया लेकिन कादिर के बल पर सिक्सेर मारना आसान नहीं है सचिन उनके बाल पर भी तीन सिक्सेर मारते है. अनंत कथा. हाँ थोडा पैसा कम कमाते तो अभी तक भारत रत्न दे diya गया होता. प्रभास जोशी के बारे में के गयी tiपdee काबिले गौर है.

    ReplyDelete
  10. winter आ रहा है कहके डरा क्यूँ रहे हो ravishji ? P T Usha तो अभी भी 10-15 Km तहलके आ जाये!
    सच में-inspiring तो होते ही है ये लोग 'खिलाडी' जो है। :)
    आप का PT आया तभी से मुझे तो लगा था अब देश को एक नया 'युवा' नेता मिलने वाला है। :-p

    ReplyDelete
  11. Shayad apne aap mein iklaute khiladi honge Sachin ....jinko 4-5 generation ne na sirf khelte dekha balki unka murid ban gaya...Aur Prabhas Joshi ji jinki mrityu uss raat hui thi jis din Sachin ne Australia ke khilaf Aithihasik shatkia paaari kheli par durbhagyawash india haar gaya unke bade prasanakon mein se ek the...Wo bhi print media ke Sachin hi the..aur meri jankari ke mutabik wo Sachin se kai baar presonally mile hain..

    ReplyDelete
  12. sachin ko TV pe hi dekha h..lekin aisa lagta h k chota bhai h..ye bat alag h k vo mujhse 9 sal bada h..aisi kami Jo puri nahi ho sakti..miss u sachin.. kabhi ravish jee k prime time me aana..

    achchhe aadmi h..bina laag lapet k bolte h..ar likhte b h..

    ReplyDelete
  13. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  14. आप क्रिकेट में कृष्ण के बाल रूप हैं । जिसकी अनेक लीला़यें हैं..............Great Line...

    ReplyDelete
  15. लेकिन सर DD न्यूज़ बाकि न्यूज़ चैनल्स से थोडा अलग है |

    सचिन ने भारत के ताज में हज़ारों रत्न जड़े है उन्हें कम से कम एक भारत रत्न ज़रूर मिले |

    ReplyDelete
  16. पोस्ट का हैडिंग पढ़कर "यूँ मेरे ख़त का जवाब आया" टाइप बैकग्राउंड म्यूजिक बजने लगा । "आदरणीय" पढ़ते ही समझ आ गया कि ये रॉंग नंबर वाली रिंगटोन है। जान गया कि कौन से सचिन की बात होने वाली है । खैर, इस विषय या इस नाम से जुड़ा, मेरे पास बस एक नास्टैल्जिया का थैला है। छोटा सा। उसके अलावा कुछ भी नहीं। कभी क्रिकेट को समझकर या मन लगाकर नहीं देखा। पर इनके जाने की खबर सुनकर, कुछ ही देर के लिए सही, जाने बुरा क्यों लगा ?
    अभी एक और बात पर ध्यान गया। सचिन को गूगल किया तो पूरा स्क्रीन एक ही शब्द से भर गया - "सन्यास"! किसी खिलाडी के आगे न खेलने की घोषणा को, "सन्यास" लेना क्यों कहते है ? क्या नौकरीपेशा के वीआरएस लेने को भी सन्यास कहना चाहिए? अक्सर लोग संन्यास लेकर तपस्या करने निकल पड़ते है? अगर खेल खेलना तपस्या है, तो सन्यास लेने के बाद कौन सी तपस्या करनी बची है ? सन्यास में एक विरक्ति का भाव है। सन्यास लेने के बाद फिर कई खिलाड़ी वापस कमेन्ट्री बॉक्स या बिग बॉस में क्यों दिख जाते हैं ? सचिन के लिए नहीं कह रहा. बस इस शब्द का इस्तमाल कुछ दिलचस्प लगा।

    ReplyDelete
    Replies
    1. अगर खेल खेलना तपस्या है...तो नौकरी करना भी तपस्या ही है। परम तप :)

      Delete
  17. इस ब्लॉग पोस्ट का टाइटल सबसे ज्यादा पसंद आया :)
    बाकी सब आपका लिखा हुआ है, इसलिए पसंद आना ही था :))

    ReplyDelete
  18. "मंगनी के लहंगा पर चलेलू उतान गोरी"... सचिन ने हमें कुछ इसी तरह के इतराने वाले क्षण दिए है। प्रभाष जोशी वाली टिपण्णी बहुत खूब सर ....

    ReplyDelete
  19. छोटे भाई को चिढाने के लिए सचिन के लिए भला बुरा कहती थी ...और जब वो सचिन कि तारीफों के पुल बांधता था तो मन ही मन बहुत खुश होती थी ...कोई आपकी तारीफ कर के खुश होता था और कोई सुन कर...क्रिकेट को बहुत याद करेगा ये देश ...

    ReplyDelete
  20. क्रिकेट का यह युग सचिन युग के नाम से जाना जायेगा. मैं अपने आपको खुशकिश्मत मानता हूँ कि मैंने सचिन को on ground खेलते देखा है. रवीश जी को इस ख़त के लिए एक बार पुनः बहुत बहुत धन्यवाद.

    ReplyDelete
  21. सचिन के टेस्ट क्रिकेट को भी अलविदा कहने को मीडिया ने जिस तरह से प्रस्तुत किया वो खटकने वाला ही है । मुझे भी खटका । असल में भाषा पर पकड़ बनाना या सही शब्दों भावों का चयन करना बड़ी तपस्या से आता है ।
    इतना सब करके अगर टी आर पी का भय दिखाई दे तो रचनाधर्मिता की तो ऐसी तैसी होगी ही ।
    बहरहाल बधाई इस पत्र को सार्वजनिक करने के लिए ।

    ReplyDelete
  22. सचिन - एक बेहतरीन खिलाडी
    सचिन - मीडिया और मार्किट का बनाया हुआ भगवान! जिसके नाम से कुछ भी बिक सकता है उसे इसी लिए भगवान् बनाया गया है!
    ऐसे ही दुसरे भगवान है अमिताभ है!

    ReplyDelete
  23. सचिन - एक बेहतरीन खिलाडी
    सचिन - मीडिया और मार्किट का बनाया हुआ भगवान! जिसके नाम से कुछ भी बिक सकता है उसे इसी लिए भगवान् बनाया गया है!
    ऐसे ही दुसरे भगवान है अमिताभ है!

    ReplyDelete
  24. सचिन!! अपने आप मे यह बहुत बड़ा शब्द हैं किसी ऐसे के बारे मे क्या लिखा जाए जिसने अपने कार्यक्षेत्र से बड़ा अपना नाम कर लिया हो,

    ReplyDelete
  25. आंकड़ों से परे और सीधे छूने वाला आलेख जिसे आलेख भी नहीं कहा जा सकता क्योंकि यह तो एक लाज़वाब पत्र है एक ऐसे शख्स के नाम जिसने समस्त भारत के लिए विश्वभर में खेलकर देश का नाम और गौरव बढ़ाया है.
    इस से बेहतर आलेख.. ओह! माफ़ कीजियेगा, इस से बेहतर पत्र मैंने कभी कसी प्रशंसक का नहीं पढ़ा. दरअसल यह उन सभी देशवासियों का भी प्रतिनधित्व करता है जिन्होंने सचिन को खेलते हुए ज्यादा नहीं देखा.

    काश कि सचिन इसे कभी पढ़ें... :)

    ReplyDelete
  26. जिस तरह से सचिन का खेल कम देखने वालों को अफसोस है उसी तरह से मुझे अफसोस है कि सचिन इस ख़त को नहीं पढ़ पायेंगे..बेहतरीन लिखा है सर आपके हर आलेख की तरह....

    ReplyDelete
  27. बहुत ही भावुकता समेटे हुए है आपके शब्द,सर......

    ReplyDelete
  28. prabhas ji aur sachin ek dusre ko jante the,sir.prabhasji ke nidhan par sachin ne shok vyakt bhi kiya tha.

    ReplyDelete
  29. लगता है पुरा कलेजा निकाल कर रख दिये हैं। ओ-सम

    ReplyDelete
  30. सच कितना कड़वा होता हैं आपके (सच), अलविदा कहने पर पता चला !!! हमें अभिमान है की हम उस काल और राष्ट्र में पैदा हुये जन्हा आप अवतरित हुये !!!

    ReplyDelete
  31. sir laxamanpur bathe par ek debate kijiye

    ReplyDelete
  32. कहीं पड़ा था कि "ज़रा देखें तो ये जहां मुझे कोई मकाम देता है या मैं देता हूँ इस जहां को मकाम कोई" सचिन ने कि्केट को एक नया मकाम दिया है।हर वो शख्स जो कि्केट को समझना चाहता है उसे बेट बाॅल के साथ कहीं ना कहीं सचिन को भी समझना पड़ेगा। यही बात सिनेमा की बात करें तो दिलीप साहब पर लागू होती है।

    ReplyDelete
  33. Sachin shocked at Prabash Joshi's Death
    :-)

    Sir aapko bhi dekhke shareef aur saada (Simple) banne ko mann karta hai..

    Samman
    Devendra

    ReplyDelete
  34. Sachin shocked at Prabash Joshi's Death
    :-)

    Sir aapko bhi dekhke shareef aur saada (Simple) banne ko mann karta hai..

    Samman
    Devendra

    ReplyDelete
  35. आपने तो अपना कलेजा ही निकाल कर रख दिया। यह उन्हें जरूर पढ़ना च‌ििहए जो सिर्फ आलोचना करना जानते हैं

    ReplyDelete
  36. Bahut badiya ravishji.patr padker laga hazaronlakhon deshvashiyon ka pratinidhitiv karte hue Ye patr Aapne Sachin ko likha hai.pakka vishvas hai Sachin ise jaroor padhenge.sadhuvaad .

    ReplyDelete
  37. ऑस्ट्रेलिया के साथ हुआ मुझे एक मैच याद है जब सचिन और काम्बली क्रीज़ पर थे और सचिन आउट होते है बाद में काम्बली शेन वार्न की धुलाई करता है और एक ओवर में २८ रन भारत के खाते में जोड़ता है / स्टेडियम में बैठे गावस्कर के चेहरे पर मायूसी आती है / कोई प्रभाष जोशी भी काम्बली की पारी सराहने सामने नहीं आते / मैंने उस वक़्त से क्रिकेट देखना बंद कर दिया / अगर कोई पत्रकार उस मैच की क्लिप जनता के सामने लाता है तो यहाँ की पत्रकारिता का असली चेहरा सामने आएगा /

    ReplyDelete
  38. पत्रकारों का सिर्फ यह बताना बाकि रहा की सचिन सुबह कितने बजे नींद से जागते है, उनकी सुबह की विधि कैसी होती
    है, सुबह के विधि की रिकॉर्ड और खिलाडियों के तुलना में कैसे है और ..........?

    ReplyDelete
  39. sir aapki twitter pe kami mehsus ho rahi hai.... aakiri twitt june me kiya tha, so plz aaap vha bhi aaya kijijye.... or dil se dhanayad is nayab khat ke liye,is khat ko padne ke baad lagta hai hume bhi Test mach dekhne se sanyas le lena chahiye..

    ReplyDelete
  40. "उस झोंपड़ी के भीतर कुछ भी नहीं था, बाहर से ग़रीबी रेखा भी नहीं गुज़र रही थी"

    What a line ! shayd yahi baate hai jo yaha khinch layi hai aapko dundhte hue..aur aagaz bhi kya khub hua hai..pehle hi jo post padhi..usse dil khush ho gya. aapko jub primetime me kuch suphiyane comment karte hue sunta tha tabhi se talash thi aapki jo aaj puri hui. Lagbhag 4-5 saal se TV news dekhna band kar dia tha..magar 2 mahine pehle ek dost ki farmaish par dekha tha aapka show. Aur bahot achha laga. tab se regular dekh raha hu. Aap ko sunkar lagta hai k koi to hai to dhung se band bajana janta hai. mere niji rai me aap shayd kisi political party se belong nahi karte aur ek tatsth anchor ki bhumika ada kar rahe hai. Achhe logo ko dekhkar ek himmat si aati hai...! shukriya himmat badhane k lie...
    Kabhi aapse baat karne ka mauka mila to achha lagega.
    Salaam !

    ReplyDelete
  41. सचिन के संन्यास की घोषणा के बाद से उस विषय पर अच्छी कॉपी ढूंढ रहा था, पढ़ने के लिये। एक अंगरेजी में मिली क्रिक इन्फो पर। एक अमेरिकन पत्रकार की कॉपी जिसे क्रिकेट का क पता नहीं था। शानदार थी। अब आपकी यह कॉपी। बेहतरीन। हिंदी में इससे बेहतर तो नहीं छपी।

    ReplyDelete
  42. बहुत बढ़िया रवीश जी...ज्यादा कुछ नहीं तो फेसबुक पर शेयर कर रहा हूँ, सचिन को टैग भी करूँगा शायद वो भी पढ़ लें. धन्यवाद - प्रीतम

    ReplyDelete