(1)
चार कदमों से दो लोग आगे बढ़ते जा रहे हैं। दो हाथ बंधे हैं और दो खुले। पांव के नीचे की सड़क चल रही है और सर से आसमान गुज़र रहा है। हिन्दू कालेज की दीवारों के साथ गिरे पड़े पत्तों पर फ्रूटी के टेट्रा पैक फेंकने की धप्प आवाज़ से नींद टूट गई थी। हम दीवारों के साये में क्यों चल रहे हैं समर। इस तरफ से क्यों नहीं जिस तरफ़ खुली सड़क है। ऐसा होता नहीं है मेरी दोस्त। इश्क में जिस तरफ से भी चलो तुम दीवारों के साये से घिर ही जाओगी। ये जो आसमान है जिसे तुम्हें लगता है कि एक खुला सा साया है दरअसल पहरा है। तो समर मैं तुम्हारी निगाह में हूं या कायनात की। ऐसा नहीं है...मेरी निगाह में तो हो तुम लेकिन दीवारों की निगाह से बचके नहीं। कम से कम तुम मेरा नाम लेकर तो बुला सकते थे...या कोई सुन भी रहा है.....
(2)
दिल्ली की बसें कितनी बदल गईं है न। हां लेलैंड से मार्कोपोलो हो गईं हैं। चलती कम है भटकाती ज्यादा हैं। तुम हमेशा इतने निगेटिव कैसे हो जाते हैं। अरे नहीं इस शहर में यही तो पोज़िटिव है । क्या? मार्कोपोलो। ये बस न होती तो तुम कहां भटकती है, हम कहां मिलते। सरोजिनी नगर में सीसीटीवी कैमरे लगे हैं। लाजपत नगर का यही हाल है। शहर का हर उजाला कैमरे में कैद है। मार्कोपोलो का भटकना हमारे लिए अच्छा है दोस्त। बस का नाम लेते हो और मेरा नाम क्यों नहीं समर.....। हम बस में हैं...और कोई सुन लेगा।
रोचक..बस में हैं।
ReplyDeleteनई सड़क के किनारे बसे कस्बे में चूने की दीवारों पर गेरू से जो तुम लिख देते हो। उसे पढ़कर माथा झनझना जाता है। रोज़ ऐसे ही कुछ लिख के छोड़ दिया करो।
ReplyDeleteEnjoyed the story. Very nicely written. You've conveyed a lot in a very few words. -- Anish Dave
ReplyDeleteमेरी निगाह में तो हो तुम लेकिन दीवारों की निगाह से बचके नहीं। कम से कम तुम मेरा नाम लेकर तो बुला सकते थे...या कोई सुन भी रहा है.....
ReplyDelete:)
bahut se matlab nikal sakte hain in 2 lines me ..
:) सुंदर बिम्ब ...
ReplyDeleteसरजी आपका सीनेमन कहा खौ गया है!!!!!!!!!!
ReplyDelete"इश्क में जिस तरफ से भी चलो तुम दीवारों के साये से घिर ही जाओगी।"
ReplyDeleteजरा सम्हल के दीवारों के भी कान होते हैं, ऐ मेरे दोस्त।:)
प्रेम कहानी,ये आप के शहर की कहानी लगती हैं
ReplyDeleteबहुत ही रोचक कहानी, आभार.
ReplyDeleteसुन्दर
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