वर्किंग स्कूल- मोबाइल मास्टर
जब ऑन रोड अंग्रेज़ी सीखी जा सकती है तो वर्किंग स्कूल भी होना चाहिए। काम छुड़ा कर इन बाल कामगारों को, जैसा की तस्वीर से प्रतीत होता है कि यह लड़की किसी की मज़दूरी नहीं कर रही है, स्कूल ले जाने का आंदोलन पूरी तरह से सफल नहीं हो सका है। हरियाणा के करनाल में भी देखा था कि वजीफा और सुविधा के बाद भी ढाई सौ बच्चे अपने मां बाप के साथ फेरी लगाने चले जाते हैं और औपचारिक व तकनीकी शिक्षा से वंचित रह जाते हैं। कई शहरों में मैंने ऐसी तस्वीर देखी है कि लड़की दुकान पर बैठी है मगर ध्यान किताबों में हैं। ऐसी ही एक तस्वीर ओरछा में ली थी। पांच मिनट तक क्लिक करता रहा लेकिन लड़की की नज़र ही नहीं उठी। भागलपुर में भी ऐसा ही हुआ। इस लड़की को पता ही नहीं चला कि कोई ब्लॉगर बेवकूफ फोटू खींच रहा है। शायद वो यही समझ रही होगी कि यथावत समस्याओं के इस देश में तुम खींचो,ब्लॉगर तुम फोटू खींचो, हम यहीं हैं। हम कल भी यहीं रहेंगे।
तो दोस्तों ये कल वहीं तो रहें लेकिन पढ़ाई में ध्यान लगाने का जो जज़्बा है उसे थोड़ी सी मदद मिल जाए। मोबाइल मास्टर जी बना दिया जाए जो घूम-घूम कर पढ़ाता फिरे। हर शहर में पचास मोबाइल मास्टर हों। यह इंतज़ाम सांसद फंड से भी हो सकता है, नागरिक फंड से और सरकार से भी। मोबाइल मास्टर विषयों के दिन तय कर दे। गणित,अंग्रेजी और साइंस के हिसाब से। वो जाए और पढ़ा आए बजाए इसके कि कोई केंद्रीय कानून का रिजस्टर दिखाया, इसका झोंटा पकड़ा और क्लास रूम में पटक दिया लो अब दर्ज हो जाए। सर्व शिक्षा अभियान में। कुछ करो दोस्तों। आखिर की दोनों तस्वीरें ओरछा की हैं। सबसे आखिर में जो लड़की है वो अंग्रेज़ी में गांधी पर लेख लिख रही थी।
यदि वे शिक्षा तक नहीं पहुँच पा रहे हैं तो शिक्षा उन तक पहुँचे।
ReplyDeleteआशा है अपनी परिस्थितियों के साथ इन बच्चों का सर्वश्रेष्ठ सामने आएगा.
ReplyDeleteye hain original 2020 ka INDIA ,agar kuch saal aur ye haalat rahe to ye bhi durlabh ho jayega aur kanoon banate hain Rights to Equction act.
ReplyDeleteपहले तो आपको इस खुबसूरत पोस्ट पर बहुत बहुत बधाई दोस्त !
ReplyDeleteऔर आपकी पोस्ट पड़ कर एक बात याद आई की जिस चीज़ से इन्सान को जितनी दूर किया जाता है न.... वो उस तरफ उतनी तलीनता से बढता जाता है ! शायद ये इन्सान मै हर चीज़ को महसूस करने की चाह और एक ज़िद है ! की देखे तो सही ये है क्या ? और मै इसे क्यु हासिल नहीं कर सकती और किसी अच्छी चीज़ को पाने की जिद तो सच मै अच्छी होती है !
नव वर्ष की बहुत बहुत बधाई दोस्त !
जब I I M में मोबाइल प्रोफेसर हो सकते हैं तो इन बच्चों के लिए क्यों नहीं ?
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति. सच बहुत ही सार्थक सोंच......
ReplyDeleteनूतन वर्ष २०११ की हार्दिक शुभकामनाएं ..
बहुत बहुत अच्छी पोस्ट।
ReplyDeleteबधाई हो।
पढ़ना तो है मगर पापी पेट का सवाल है सर। अगर वो सवाल सोल्व तो समजो काफी कुछ सोल्व।
हाँ, टीचिंग सिस्टिम पर काफी कुछ सवाल है, इसका भी को सोल्यूशन आना चाहिए।
सवजी चौधरी, अहमदाबाद- ९९९८० ४३२३८.
भाईसाहब, इसीलिए कहते है कि उत्तर भारत के कुए से निकल कर थोडा मध्य भारत में तैर आये | मोबाइल मास्टर का funda बहुत पहले स्टार्ट हो चूका है :)...
ReplyDeleteभाईसाहब, इसीलिए कहते है कि उत्तर भारत के कुए से निकल कर थोडा मध्य भारत में तैर आये | मोबाइल मास्टर का funda बहुत पहले स्टार्ट हो चूका है :)...
ReplyDeleteकमला नगर में अक्सर बच्चे वेइंग मशीन रखकर किताबें पढ़ते या होमवर्क करते मिल जाते हैं. इस पोस्ट के लिए धन्यवाद !
ReplyDeleteनमस्कार!
ReplyDeleteशिक्षा उन तक भी नहीं पहुँच पा रही है जो स्कूल जाते हैं.
जब मैं प्राइमरी पाठशाला में पढ़ता था तो पेंड के नीचे और मैदान में पढाई होती थी. हर कक्षा के अलग अलग अध्यापक थे. अब तो अध्यापक ही नहीं हैं. एकल अध्यापक स्कूलों की भरमार है.
अध्यापक छात्र अनुपात की बात तो अलग है.
अधापक जी कितनी देर विद्यालय में रहते हैं. इसपर चर्चा करना हाड़ी के छाती में हाथ डालने के समान है.
वैसे मोबाइल मास्टर की बात भी ठीक ही है. अगर उसके अभिभावक को रोजगार का अवसर हो तो उसे विद्यालय जाने का अवसर मिल जाएगा .
नव वर्ष की शुभकामनाओं के साथ.