अयोध्या के एक पुजारी की व्यथा-कथा
आवाज़ की तल्ख़ी और बुलंदी ने मटमैली धोती में लिपटे चंद्र प्रसाद पाठक का दीवाना बना दिया। चंद्र प्रसाद पाठक अयोध्या के हनुमानगढ़ी के पास ही ऊंचाई पर रामद्वार मंदिर के पुजारी हैं। इनके बच्चे नौकरी करते हैं। रामद्वार मंदिर हनुमान गढ़ी से भी ऊंचा है लेकिन वीरान पड़ा है। जब से खास मंदिरों की हैसियत बढ़ी है,अयोध्या के साढ़े सात हज़ार से भी अधिक मंदिरों की दुर्दशा भी बढ़ी है। मेरी रिपोर्ट में पुजारी जी की सारी बातें नहीं आ सकीं इसलिए कोशिश कर रहा हूं कि उनके जवाब को एक लेख के रूप में पढ़ सकते हैं। बस आप पढ़ते वक्त कल्पना करते रहिएगा कि दांत दबाकर,गले को खींचकर और आंखों को जलाकर पाठक जी बोल रहे हैं। तभी उनकी बातों का असर होगा। अक्सर हमारे इंटरव्यू का एक टुकड़ा ही रिपोर्ट में लग पाता है और बाकी हमेशा के लिए मिटा दिया जाता है। मैं उन्हें कापी पर उतारता तो हूं लेकिन समय की कमी के कारण ब्लॉग पर नहीं डाल पाता। इस बार कोशिश कर रहा हूं। आप भी देखिये कि इंटरव्यू के जिस हिस्से को मैंने अपनी रिपोर्ट में लगाया है वो ठीक है या नहीं। रवीश की रिपोर्ट आज भी यानी रविवार को देख सकते हैं। दिन के वक्त 11:28 बजे,रात के वक्त 11:28 बजे और सोमवार को सुबह 11:28 बजे। लीजिए पढ़िये और सुनिये चंद्र प्रसाद पाठक जी को।
अयोध्या में साधु और बंदर दो की ही आबादी ज़्यादा है। जो गृहस्थ है वो भी साधु है। जिनका जन्म अयोध्या में हुआ वो भी साधु है। सारे मंदिरों पर काई है। जिसकी व्यवस्था नहीं है वहां काई तो होगी ही। ऐसा है अब वो समय नहीं रह गया। जब से अयोध्या में कुछ घटनाएं हुई हैं तब से अयोध्या की रौनक़ समाप्त हो गई है। कुछ पलायन कर गए हैं। जिनका मंदिर था, वो भी पलायन कर गए हैं। उस मंदिर को पुजारी के सहारे छोड़ दिया। पुजारी के पास आय नहीं है जो अपने मंदिरों का जीर्णोद्धार करा सकें। विवाद से अयोध्या को क्या मिला है। यही है जब विवाद खड़ा होता है तो दो-तार दिनों की परेशानियां खड़ी हो जाती हैं। यहां के रहने वालों को। उसके बाद फिर से अमन-चैन हो जाता है।
घर का जोगी जोगड़ा, आन गांव का सिद्ध। अयोध्या के बड़े-बड़े मठाधीश को यहां कोई नहीं पूछता। बाहर जाते हैं तो खूब पूजा-पाठ होता है। मान-सम्मान होता है उनका। यहां के मंदिरों के लिए कौन करता है। इतने राम मंदिर पड़े हैं। लोगों से इतना पैसा इकट्ठा हुआ है कि उससे सारे राम मंदिरों का जीर्णोद्धार हो जाए। इस पर तो कोई ध्यान नहीं देगा। शासन की तरफ से व्यवस्था की जाती है लेकिन उसका उपयोग नहीं होता है। वरना अयोध्या तो अब तक अयोध्या हो जाती। इतना पैसा मिलता है अयोध्या के लिए। अयोध्या अयोध्या हो जाती। खाने वाले खा जाते हैं। अब अयोध्या के लिए कुछ नहीं बचता। सड़कों पर गंदगी है। जलभराव है। कितना रुपया इसी सावन के झूले में आ गया होगा। अयोध्या से प्यार सबको है लेकिन कोई कुछ करना नहीं चाहता। बस ही एक प्यार है कि राम मंदिर बने। एक ही प्यार है कि चलो। अठारह बीस साल से यही देख रहा हूं. चलो और कुछ नहीं। सड़कें टूटी पड़ी हैं। इसकी कोई व्यवस्था नहीं है।एक ही तरफ सबका दिमाग़ है। चलो। बस वहीं चलो। बनाओ राम मंदिर। हमको तो इस बात की तकलीफ है कि इतना पैसा राम मंदिर के लिए आता है,उसी पैसे से बाकी मंदिरों का उद्धार करा दिया गया होता। उसमें भी तो वही राम रहते हैं। वही दशरथ पुत्र राम हैं। इस मंदिर में दूसरे राम तो नहीं रहते हैं।
यहां के साधु संत आनंद ले रहे हैं। पेपर में कुछ छपता है तो खंडन करने लगते हैं। कि देखो बहुत ग़लत हो रहा है। सब राजनीति है। तुलसीदास कह गए हैं कि कलयुग में वही साधु संत पूजे जायेंगे जिनकी जटायें बड़ी-बड़ी होंगी। जो देखने में मोटा तगड़ा होगा। यहां तो साधु वही है जो कार में चलता है।
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ReplyDeleteहमें तो एक साहब मिले थे .जिक्र छेड़ते ही भड़क गए .........कहने लगे भाई तुम रख लो उस जगह को .....हमें बख्श दो ....हमारे शहर को भी......
ReplyDeletekal hi aapki report dekhi thi..bahut sahi keha 'इतना पैसा राम मंदिर के लिए आता है,उसी पैसे से बाकी मंदिरों का उद्धार करा दिया गया होता। उसमें भी तो वही राम रहते हैं। वही दशरथ पुत्र राम हैं। इस मंदिर में दूसरे राम तो नहीं रहते हैं।'shayad samjdari bas isi mein hai ki sab nasamjh ban rahe!
ReplyDeleteKash Aapki tarah sabhi soch pate.
ReplyDeleteaaoka prayas sahraniye hai
Shubhkamnayen
bahut sahi baat likhi.
ReplyDeleteAapki report dekhi. Bahut hi badiya thi. Ek alag chehra dikhaya aapne Ayodhya ka
सामाजिक संरचना की ही तरह साधुओं की भी यहाँ त्रि-स्तरीय संरचना है. जिसका ज़िक्र यहाँ किया गया है वह ग़रीबी रेखा के नीचे रहने वाला साधु है. अभिजात साधुओं की भी ठीक-ठीक संख्या है जिनके पास मोटा बैंक बैलेंस है और महँगी गाड़ियाँ हैं. लेकिन साधुओं का एक ऐसा भी वर्ग तैयार हुआ है जिसने जमीन कब्ज़ा करने,ड्रग्स का बाज़ार तैयार करने,हथियारों का ज़खीरा खड़ा करने और भाड़े पर दबंग लोगों को उपलब्ध कराने का पेशेवर काम भी अपने हाथों में लेना शुरू किया है. चीजें अभी चिंताजनक स्तर पर नहीं पहुंची हैं तो केवल इसलिए कि सुरक्षा व्यवस्था का भारी प्रबंध इस वर्ग को एक सीमित दायरे में रहकर काम करने को मजबूर करता है और दूसरी बात यह भी है कि कम संपन्न लेकिन विद्वान संतों का एक प्रभुत्वशाली वर्ग अयोध्या में अभी मौजूद है ; जो वास्तव में अयोध्या का प्रायः ऊपरी चेहरा बन जाता है.
ReplyDeleteयदि जानना हो की क्यूँ अयोध्या में राम मंदिर नहीं बन पायेगा तो शायद आपको उत्तर ढूंढना होगा कि ब्रह्मा-विष्णु-महेश को त्रैयम्बकेश्वर भगवान् मानते हुए भी क्यूँ किसी समय प्राचीन हिन्दुओं ने ब्रह्मा के मंदिर बनाने छोड़ दिए,,,जिस कारण केवल पश्चिम में, जिस दिशा में सूरज डूबता है, पुष्कर राजस्थान में नमूने समान एक ब्रह्मा का मंदिर शेष है और पूर्व में सूरज का एक, कोणार्क में?
ReplyDeleteऔर इसके लिए गहराई में जाना होगा पौराणिक कहानियों के माध्यम से,,,जिसमें आप पाएंगे अर्जुन को द्वापर में और राम को त्रेता काल में 'धनुर्धर' दर्शाया गया है और मानव को ब्रह्माण्ड का मॉडल...और आज हम जानते हैं कि सूर्य से किरणें धनुष से निकले तीर समान सब दिशाओं में दूर तक फ़ैलती हैं और इस कारण पृथ्वी पर भी पहुँच शक्ति और प्रकाश का मुख्य स्रोत बनती हैं - जिसके कारण पृथ्वी पर जीवन संभव हो पाया है,,, जिसमें मानव रूप में प्राणी सर्वश्रेष्ठ है, यद्यपि सम्पूर्ण ज्ञान की उसमें आज कमी नज़र आती है, किन्तु साथ-साथ इसका भी एहसास होता है कि किसी समय 'हिन्दू' ज्ञान के सर्वोच्च शिखर पर पहुँच पाए थे, और कि उनके अनुसार मानव कि कार्य क्षमता सतयुग से कलियुग तक १००%-७५% से २५%-०% पहुँच जाती है...जिससे अनुमान लगाया जा सकता है कि 'ब्रह्मा' सूर्य के सतयुग के मॉडल जाने गए, जो सर्वशक्तिमान विष्णु के नाभि से जुड़े तो हैं किन्तु दूर आकाश में स्तिथ हैं और अस्थाई प्राणी समान डूबते और उगते रहते हैं, यानि विष्णु/ शिव समान अनंत नहीं हैं...
ब्लॉग का रंग अब सही है।
ReplyDeleteबड़ा ही जोरदार लिखा है आपने........समाज के कुछ कुंठित लोगो का अवदान है ये अयोध्या विवाद ...सही कहा आपने
ReplyDeleteaapne to wahi repeat kar diya yaha jo report me tha...kuch naya to nahi hai...khair...Pathak ji ko bolna ki Ram lala 4 ghar baju me Dashrath ji ke ghar paida hue the, Pathakji aapke yaha nahi...ab aap padosi ke famous bete ki photo ghar me lagao aur bolo ki uske happy bday par humare ghar bhi gift do to kaise chalega...
ReplyDeleteसही बात है नकली का जमाना है असल का कोई पूछ नहीं ,नकली पत्रकार टीवी चेनल का मालिक बन बैठा है ,असल पत्रकार दो वक्त की रोटी के लिए जूझ रहा है ,नकली कांग्रेस देश चला रहा है ,असली कांग्रेसियों को कोई पूछने वाला नहीं ,नकली सरकार दलाल बनकर पूरे देश को लूट रही है ,असल सरकार(जनता) भूखे मर रही है ,नकली साधू कार,अप्सरायें,सुरा पान कर रहें हैं ,असल साधू भीख मांगने को मजबूर हैं ---यही है हमारे विकाश करते मनमोहन सिंह जी का भारत और इस देश का दुर्भाग्य...
ReplyDeleteit is really true.i wacthed ur programme it nice.most of the peoples r not aware about the ground reality
ReplyDeleteफैज़ाबाद मेरी ननिहाल रही है ,यह किस्से इस तरह पढ़ रहा हूँ जैसे माँ से सुनता था ।
ReplyDeleteसच है. जिस जगह के नाम से प्रमुख संतों के आश्रम फाइव स्टार होते हैं, प्रभु की उस नगरी की कीच साफ करने में वे लोग एक पाई और एक पल भी नहीं लगाते।
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