भारत एक संदेश प्रधान देश है। संदेश देने में हमारा जवाब नहीं। हर तरफ दीवारों पर चुनवा दिए गए संदेश आपको झटके देते रहे हैं। ऐसा कोई मार्ग नहीं जिससे गुज़रें और किसी संदेश पर नज़र न पड़े। दुकानदार भी संदेश देता है। गारंटी वाला माल। मोलभाव नहीं होता। उसकी दीवारों पर आज नगद कल उधार टाइप के संदेश जाने कब से उधारवाद को लानत भेज रहे हैं। उधार प्रेम की कैंची हैं। इसके बाद भी प्यारे मनमोहन सिंह उधारवादी उदार अर्थव्यवस्था ले आए। सब लोन लो और प्रेम को कैंची से काट कर होम लोड ले लो।
आज एक दफ्तर में गया। कई संदेश चिपकाए गए थे। तभी एक और थ्योरी दिमाग में घूमी। हाथ से लिखे संदेश कम होते हैं। ज़्यादातर संदेश स्टीकर पर होते हैं। कुछ संदेश अनाम पेंटर लिखते रहते हैं। लक्ष्मीनगर के उनके दफ्तर में एक संदेश लिखा था। जिसके मुताबिक कुसंगति से सब कुछ नष्ट हो जाता है। बाहर एक दुकान पर लिखा था कि बिका हुआ माल न तो वापस होगा न बदला जाएगा। बाप रे। कब संदेश फरमान हो जाते हैं पता नहीं चलता।
पंजाब की ट्रकों पर लिखा होता है जलो मत रीस करो। किसी से पूछा तो पता चला कि रीस का मतलब बराबरी करना होता है।
अगर किसी ने होंडा सिटी खरीदी तो जलो मत। तुम भी मेहनत करो और कमा कर होंडा सिटी करो। यानी बराबरी करो। यानी रीस करो। बुरी नज़र वाले तेरा मुंह काला टाइप के संदेश कम हो रहे हैं। कुछ ट्रकों पर जाने क्यों लिखा होता है कि कोशिश करेंगे वायदा नहीं। सराय ने इन संदेशों पर एक शोध भी किया है।
लेकिन श्लोक वाक्य बोलकर लगता है कि हमने कोई सूत्र दे दिया। अब जीवन ऐसे ही जीया जाएगा। श्मशान घाटों पर तो ऐसे ऐसे संदेश लिखे होते हैं कि मन ही नहीं करता कि वहां से वापस हुआ जाए। बाहर ज़िंदगी इतनी गई गुज़री है तो वही धुनी रमाओ भाई। इस विषय पर पहले भी लिख चुका हूं। फिर लिखने का मन किया है।
एक ट्रक पर मैंने भी बहुत साल पहले यह पढ़ा था ---
ReplyDeleteचलती है गाड़ी तो उड़ती है धूल,
हसीनों की ज़ुल्फ़ों में चमेली का फूल।
कुछ सार्वजनिक वाहनों पर बहुत इमोशनल से मैसेज भी लिखे रहते हैं ---
पापा जल्दी आ जाना।
अच्छा लगता है कुछ भी पढ़ना इस तरह रास्ते में जाते हुये।
रवीश जी, दीवार पर जब इस तरह की चीज़ें लिखी दिखती हैं तो हम उसे ग्रैफिटि कहते हैं, ये जो वाहनों आदि पर दिखता है उसे क्या कहें ? कोई शब्द सुझायें।
मुंबई के गोरेगांव में एक ऑटो रिक्शा के मिरर के पास ही एक स्टिकर लगा था....
ReplyDeleteक्यूं हसती है पगली
ऑटोवाले से पूछने पर बताने लगा कि ये मैंने नहीं नाईट वाले ने लगाया है और कल से आज तक छे या सात लोग मुझसे पूछ चुके हैं कि इसका क्या मतलब है - क्यूं हसती है पगली
आज नाईट वाले से ही पूछूंगा कि क्यों लगाया।
तब से न मैं उस ऑटो वाले से दुबारा मिला और न इस स्टिकर का मतलब पता चला :)
कई बार तो फन्नी केस देखने मिलता है। ऐसी गाडियां, जिन्हें कई बार लोग कंपनीयों में किराये पर लगा देते हैं उन गाडियों के पीछे एक चेतावनी स्टीकर लिखा होता है कि
If u find this driver for rush driving, please inform on below number......
उसके साथ ही एक इश्वरीय संदेश वाला स्टीकर होता है -
भिउ नको...मी तुझ्या पाठीशी आहे
( डरना मत मैं तुम्हारे पीछे हूँ )
इसे शायद भारतीयों की अभिव्यक्ति की भूख से भी जोड़कर देखा जा सकता है...
ReplyDeleteअभिव्यक्ति के बाद के ड़रों से भी...
व्यापारीय सूचनाओं और निर्देशॊं को छोड़कर....
सब के पास कहने को कुछ है, पर...
तो ऐसे तरीकों से काम तो चल ही जाता है...
कहीं ना कहीं ये मनोदशाओं को reflect कर ही रहे होते हैं...
रविश जी हमारे राजस्थान में तो रीस का मतलब क्रोध करना होता है | किसी राजस्थानी के आगे ये सन्देश आया तो वो तो यही मतलब निकलेगा कि जलो मत क्रोध करो |
ReplyDeleteवैसे सन्देश से तो भारत की दीवारे अटी पड़ी है जब जिसका जी चाहा दीवार पर लिख दिया सन्देश | प्राथमिक विद्यालय में पढ़ते वक्त हमारे एक अध्यापक जी ने भी पुरे गांव की दीवारों पर सन्देश लिखवाये थे : अनुशासन ही देश को महान बनता है , शिक्षा का प्रसार करे , जल ही जीवन है इसे बचाएँ आदि आदि |
बार रे बार अभय। पहली ही कहानी में चारों खाना चित्त कर दिया। मैंने भास्कर में कहानी नहीं पढ़ी थी और न ही आपके ब्लॉग पर। फुरसत ही नहीं मिली। आज जब ऑफिस से लौटी तो सोचकर ही आई थी कि अभय की कहानी पढ़नी है, लेकिन मुझसे एक गलती हो गई। मैंने हाथ में खाने की थाली ली (अब मेरे जीवन में खाने का भी बड़ा रोमांस है क्योंकि खाना कम ही नसीब होता है)और लगी पढ़ने। हे भगवान, यही मुहूर्त मिला था मुझे ये कहानी पढ़ने के लिए। हाथ में खाने की थाली और पंडित जी का महान कर्म। सपने में भी खाना खाते वक्त मैं ऐसी कल्पना से चीखने लगती हूं। ये तो सपना भी नहीं था। अब देखना ये है कि मेरे इस खाने का क्या होता? कहीं रात पंडित जी की आत्मा न सवार हो जाए मुझ पर। राम राम राम............
ReplyDeleteवैसे हैं तो आप खासे लिक्खाड़। कहानी बहुत अच्छी है। और लिखें, लेकिन अगली कहानी पढ़ने का देश-काल-समय मुझे पहले से ही बता दीजिएगा।
ReplyDeleteसॉरी रवीश। तुम कमेंट देखकर घबरा मत जाना। अभय के यहां करना था, तुम्हारे यहां कर दिया। जाने दिमाग कहां है। कहीं मुझे प्यार तो नहीं हो!
ReplyDeleteबदलाव तो प्रकृति का नियम है। संदेश भी बदल रहे हैं।
ReplyDelete@ Ratan ji,
ReplyDeleteहमारे राजस्थान में तो रीस का मतलब क्रोध करना होता है |
रतन जी, रीस का मतलब भोजपुरी और अवधी में भी क्रोध ही होता है । वास्तव में ये सभी भाषाएं थोडी बहुत बदलाव के साथ हिंदी पट्टी में बोली जाती हैं।
अच्छा है! ऐसे ही मन करते रहना चाहिये। रीस का मतलब मेरी समझ में भी गुस्सा ही होता है लेकिन अब जब कह दिया तो कह दिया। मनीषा का कमेंट पढ़कर मजा आया। :)
ReplyDeletesachin kumar
ReplyDeleteइस तरह के संदेशों से कुछ याद आया। 2002 के आस-पास बैंकिंग की तैयारी कर रहा था। एक दिन मैं सड़क से जा रहा था सामने मेरे कोचिंग के सर दिख गए। मैंने उन्हे नमस्कार कहा...उन्होने कहा 73 गुणा 7= 511. कुछ देर बात हुई फिर अंत में मैने पूछा कि ये 511 वाली बात क्या थी। उन्होने कहा राह चलते आप क्या करते है। कुछ जवाब नहीं सूझ रहा था। फिर उन्होने बताया मैं 73 का पहाड़ा याद कर रहा था। उसके आगे दिन से मैं सड़कों पर चलते वक्त गाड़ी का नंबर देखा करता था। जैसे-5678 मैं उसको multiply करता ये 1680 हो जाएगा पहले 5 की तरफ से गुणा करता फिर अंत की तरफ से...इस बीच कोई दूसरी गाड़ी दिख जाती और कब कहा से कहा पहुंच जाता। इससे मेरी calculation speed बढ़ गयी थी। मैं 200 के set में 180 avg score करने लगा था अभ्यास में 188 तक पहुंचा था...लेकिन ‘भला’ हो तब के वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा का जिन्होने बैंकिंग भर्ती बोर्ड ही भंग कर दी। खैर लेकिन ऐसे संदेश बड़े काम के होते है।
sachin kumar
ReplyDeleteइस तरह के संदेशों से कुछ याद आया। 2002 के आस-पास बैंकिंग की तैयारी कर रहा था। एक दिन मैं सड़क से जा रहा था सामने मेरे कोचिंग के सर दिख गए। मैंने उन्हे नमस्कार कहा...उन्होने कहा 73 गुणा 7= 511. कुछ देर बात हुई फिर अंत में मैने पूछा कि ये 511 वाली बात क्या थी। उन्होने कहा राह चलते आप क्या करते है। कुछ जवाब नहीं सूझ रहा था। फिर उन्होने बताया मैं 73 का पहाड़ा याद कर रहा था। उसके आगे दिन से मैं सड़कों पर चलते वक्त गाड़ी का नंबर देखा करता था। जैसे-5678 मैं उसको multiply करता ये 1680 हो जाएगा पहले 5 की तरफ से गुणा करता फिर अंत की तरफ से...इस बीच कोई दूसरी गाड़ी दिख जाती और कब कहा से कहा पहुंच जाता। इससे मेरी calculation speed बढ़ गयी थी। मैं 200 के set में 180 avg score करने लगा था अभ्यास में 188 तक पहुंचा था...लेकिन ‘भला’ हो तब के वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा का जिन्होने बैंकिंग भर्ती बोर्ड ही भंग कर दी। खैर लेकिन ऐसे संदेश बड़े काम के होते है।
रवीश जी एक कहावत है की समझधार के लिए इशारा ही काफी है.यह सन्देश भी इसी तरह के इशारे की तरफ संकेत करता है. उधारण के लिए अगर दूकानदार को उधारियो से बचना है तो वो स्टीकर लगा लेता है की "आज नगद कल उधार". टेंपो वाले किराया सम्मान से लेने के लिए स्टीकर लागतें है की "किराया न देना भीख मांगने के बराबर है". इस तरह के अनेको उधारण मिल जायेंगे.
ReplyDeleteनमस्कार!
कृपया मेरा ब्लॉग भी पढ़े और अपने कमेन्ट दें.
http://neemtola.blogspot.com
हम तो अपनी मास्टरी दिमाग से इत्ता समझ पाए!
ReplyDeleteजलो मत रेस करो!!
वाकई रवीश जी, हर जगह गजब के संदेश लिखे मिलते हैं। अभी कुछ दिन पहले मैंने भी (एक समझदार शहरी का) संदेश अपने ब्लाग पर चस्पा किया था।
ReplyDeleteAngreji mein yehi antar ('jalan' aur 'rees') 'jealous' aur 'envious' shabdon dwara darshaya jaata hai - jalan aapki sehat ke liye khatrab hai jabki 'rees' aapko barabari karne ki prerna dene ka kaam karega...
ReplyDeleteएक बार हरियाणा से दिल्ली हाई वे पे हमने एक ट्रक के पीछे लिखा देखा था ".आपां तो ऐसे ही चलेगे " हाय बड़ा क्यूट सा लगा था .जैसे एम् टी वी कहता है "वी आर लाइक दिस ओनली ".....अमूमन सरकारी अस्पतालों ओर स्कूलों में ज्यादा होते है पर बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी के बिडला मंदिर में जायेगे तो वहां पथ्थरो पे बड़े खूबसूरत मेसेज है .जो आप पर भी अच्छा प्रभाव छोड़ देते है .....
ReplyDeleteमुझे लगता है कि संदेश केवल ट्रकों पर ही सही लिखे होते हैं, क्योंकि उनकी किसी के प्रति कोई जवाबदेही नहीं होती। सन्न्न्..से आपके पास से ऑवरटेक कर चुपके से आपको "फिर मिलेंगें" कहते हुए चला जाता है। कोई ज्यादा हॉर्न दे रहा होता है तो "हट पीछे" या फिर सिर झुकाए स्त्री किसी की याद में खोई हुई से बैठी है और ऊपर लिखा है "तुस्सी कद्दों आणगें"...ट्रक ड्राईवरों की जिंदगी की सच्चाई को बयां करती है औऱ दुख को भी। किसी कवि की "गुलाबी चूड़ियां" कविता भी याद आ गई। जिसमें बस का ड्राईवर अपनी सीट के सामनें के शीशे पर छोटी-छोटी गुलाबी चूड़ियां टांगें है, जो उसकी बेटी की हैं। वो उसे याद करा रही है कि गति नियंत्रित रहे औऱ पप्पा जल्दी आ जाना। दुकानों पर चिपके संदेश तो बेचारे उसी तरह होते हैं जैसे कि पनवाड़ी की दुकान पर धुम्रपान न करनें का संदेश चस्पा किया होता है।
ReplyDelete"फिर मिलेगें"
आप लोगों ने अनेक तरह के संदेश बताये, पढ़ कर अच्छा लगा, एक खूबसूरत सा संदेश एक कारपोरेट आफिस मे लगा देखा :
ReplyDelete"Speech is silver then silence is gold"
कई बार इसका उपयोग भी किया और कई बार इसे इग्नोर भी किया। जैसा मौका था, परन्तु संदेश अच्छा लगा ।
bihar me tractors pe likha milta hai.....
ReplyDeleteLATAKALE TO GAILE BETA
(LATKE TO GAYE)
लेकिन एक संदेश है बिलकुल असली, चैबीस कैरेट का, सौ टंच खरा । मूल शायर मिल जाएं तो मेरी बधाई ज़रुर पहंुचाईएगा:-
ReplyDeleteसौ में से निन्यानवें बेईमान/
फ़िर भी मेरा भारत महान //
हां सराय का वह शोध लाजवाब है, ओटो रिक्शा के पीछे क्या है। हमारे यहां भी रिक्शो के पीछे तमाम तरह के संदेस और चित्र गुदे होते हैं.।
ReplyDeleteगांधी जी का जन्मदिन गया है तो ट्रक के पीछे लिखा हुआ एक स्वच्छ संदेश है---बुरी नज़र वाले तेरा.......भी भला,
ReplyDeleteबहुत ही सही संदेश दिया है आपने, "जलो मत, बराबरी करो".
ReplyDeleteमुझे अपने बचपन के दिन याद आ गये.. जब संयोग से कभी किसी के मेरे से ज़्यादा अंक आ जाते थे (जो कि बहुत कम ही होता था) और मैं अपने पिताजी को बताता था,"मेरे तो 87 आए, अब उसके 89 आ गये तो मैं क्या कर सकता हूँ.." पिताजी जवाब देते,"अगर तुम्हारे 100 आते तो कोई तुमसे ज़्यादा तो नही ला पाता" वो संदेश मुझे आज भी याद है,"be perfect and no one can beat you"
bahut khoob
ReplyDeleteरवीशजी मराठी में "रीस" का मतलब घृणा, देसी भाषा में जिसे हम घिन कहते है होता है... राजस्थानी में रीस का मतलब क्रोध होता है ...तो क्या ये समझे की जलो मत हमसे घिन करों...या हमसे क्रोध करो..जो भी भारत कीय ही खासियत है ... यहां हर चार कोस पर वाणी बदलती है और कोस-कोस पर पानी"
ReplyDeleteमारुति नू की चलाणा ओ ता साबणदानी है
ReplyDeleteबसां नू की चलाणा ओ ता खुद जनानी है
ट्रकां नू चलाणा ही मरदां दी निशानी है
इसका अर्थ हुआ कि मारुति को क्या चलाएं वो तो साबुनदानी जैसी छोटी सी है... बस को क्या चलाएं वो तो जनानी (औरत) है क्योंकि बस चलता नहीं चलती है। इसलिए ट्क को चलाना ही मर्दों की पहचान है।
हिमाचल प्रदेश में बरमाणा सिमेंट फैक्ट्री के बाहर मैंने एक ट्रक के पीछे इसे पढ़ा था।
Pichle saal udaipur gaya tha. Ek auto ricksaw ke peche likha tha "bada hokar truck banoonga"kaisee rahee.
ReplyDeleteIn one of the newspapers in good old days it was reported how the messages, such as "OK Tata", conveyed that the concerned transport authorities' palms had been duly greased and the truck may be allowed passage without let and hinderance!
ReplyDeleteBharat is mahan!
बड़ा होकर ट्रक बनूंगा। बहुत खूब। कल मेरे मित्र अपने मोबाइल से ली गई एक तस्वीर दिखा रहे थे।
ReplyDeleteलिखा था- लेट मैं नहीं आप हैं। सराय मीडिया इस विषय पर शोध भी करा रहा है। दीवान में लेख भी छपे हैं। मज़ेदार है इन्हें पढ़ना।
theek hai, lekin kahin kahin aap likhte wakt dhila jate hain,koshish kariye samhal kar likhne kee......
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