यह तस्वीर भी गाज़ियाबाद के लाइसेंस दफ्तर के सामने की है। अर्जेंट शब्द को अपना कर इन भाई साहब ने कमाल कर दिया है। हेडलाइन की तरह इस्तमाल किया है। बिना किसी संपादक से पूछे।
britishers ki bhasha ka naya ayaam sirf bharat may he dikhta hai or safal bhi hai. or sach may shayad omni/maruti ke engineeron ne bhi omni ka itna upyog nahi socha hoga. shayad.
सही कहा आपने..हिंदी की चिंता क्यों हो किसी को..मर जाए तो मर जाए..हिंदी मर गई तो हिंदी के सारे विज़नरी पत्रकार अंग्रेज़ी के चैनलों में काम करने लगेंगे नहीं तो हिंदी चैनल ही अंग्रेज़ी का हो जाएगा..क्या फ़र्क पड़ता है शब्दों से और मात्राओं से,..सही कहा आपने...जितना और जीतना में अंतर थोड़े ही है..कुछ ही लगा दो..कई बार सोचा है कि अपने बचपन और किशोरावस्था में ठीक ठाक भाषाई अख़बार नहीं पढ़े होते तो आज भाषा और पत्रकारिता के नाम पर रोटी कहां से खा पाते..
वैसे भी जितना विस्तृत ह्रदय होने का आह्वान हिंदी भाषी लोगों से किया जाता है उतना कभी बंगाली, तमिल, तेलगु, मलयाली या मराठी समाज से नहीं होता..शायद इतने विज़नरी लोग हिंदी समाज में ही ज़्यादा पाए जाते हैं...बाक़ी यूरोपीय देश, भिन्न भिन्न भाषाओं वाले देशों की डिक्शनरी भी हर साल हज़ारों नए शब्दों को आत्मसात करती हैं ऐसा भी नहीं है..वहां पर भी जीवन के सभी काम हो रहे हैं..लेकिन असल अंतर तो टीवी पत्रकारिता का है..यहां यानि भारत की टीवी पत्रकारिता बाज़ारू भाषा की है..
जो चलता है वही बिकता है का मोह त्यागिए...सोचिए कि जो बिकता है वही चलाया जाता है..सब समझ में आ जाएगा..ये अर्जेन्ट फ़ोटो,,ये फ़ोटोस्टेट वाले सबको पता है ये बिकेगा इसलिए लिख रहे हैं, चला रहे हैं..यही टीवी वालों को पता है..इसलिए भाषा को बाज़ारू बना रहे हैं और जो उनके मत से, विचार से राज़ी न हो...उन्हें पता ही नहीं असल में..उनमें विज़न ही कहां है...
रविश जी ये कमाल उस गुलामी है जो रह रह कर हमारे अंदर से निकलकर आती है। जिस तरह अंग्रेज़ गलत हिंदी बोलकर हमें शर्मिंदा करते थे उसी तरह अबकी हमारी बारी है छोड़ेंगें नहीं उनकी भाषा को टांगे तोड़ देंगे....
hindi me urdu aai farsi aai turki aai afgani aai arabi aai tab hangama nahi huva to fir english ke ghusne par chhati pitna bekar hai. hindi ke dushman vo log hain jo iski shuddhata ka bahana kar iski khalis aam pakad khatam karne me jute hain ravish bhai main aapka bahut bada wala pankha hun nam yaad rakhiyega.fir milenge.
रविश भाई दोनो शब्दों में कोई भी हिन्दी नहीं है ,न अर्जेंन्ट और न हीं फोटो फिर आपत्ति किस बात की--ये तो अंग्रेजी ही है जिसे हिन्दी में लिखा गया है,हिन्दी होती तो होता तत्काल तस्वीर
रवीश जी आपने एक ऐसी तस्वीर उठाई जो अपने आप में ही सबकुछ कह गई....बताने की ज़रूरत ही नहीं कि कितनी गुलाम हो चुकी है हमारी भाषा। या यूं कहें कि अंग्रेज़ियत को ढोते-ढोते हमारी भाषा 'हिंदी में अंग्रेज़ी' हो गई है।
britishers ki bhasha ka naya ayaam sirf bharat may he dikhta hai or safal bhi hai. or sach may shayad omni/maruti ke engineeron ne bhi omni ka itna upyog nahi socha hoga. shayad.
ReplyDeleteये हमारा बेचारापन है कि हम शुद्ध हिंदी बोलना ही नहीं जानते!
ReplyDeleteyahan bhi HINDI ka rona????? RONA to RO NA.
ReplyDeleteसही कहा आपने..हिंदी की चिंता क्यों हो किसी को..मर जाए तो मर जाए..हिंदी मर गई तो हिंदी के सारे विज़नरी पत्रकार अंग्रेज़ी के चैनलों में काम करने लगेंगे नहीं तो हिंदी चैनल ही अंग्रेज़ी का हो जाएगा..क्या फ़र्क पड़ता है शब्दों से और मात्राओं से,..सही कहा आपने...जितना और जीतना में अंतर थोड़े ही है..कुछ ही लगा दो..कई बार सोचा है कि अपने बचपन और किशोरावस्था में ठीक ठाक भाषाई अख़बार नहीं पढ़े होते तो आज भाषा और पत्रकारिता के नाम पर रोटी कहां से खा पाते..
ReplyDeleteवैसे भी जितना विस्तृत ह्रदय होने का आह्वान हिंदी भाषी लोगों से किया जाता है उतना कभी बंगाली, तमिल, तेलगु, मलयाली या मराठी समाज से नहीं होता..शायद इतने विज़नरी लोग हिंदी समाज में ही ज़्यादा पाए जाते हैं...बाक़ी यूरोपीय देश, भिन्न भिन्न भाषाओं वाले देशों की डिक्शनरी भी हर साल हज़ारों नए शब्दों को आत्मसात करती हैं ऐसा भी नहीं है..वहां पर भी जीवन के सभी काम हो रहे हैं..लेकिन असल अंतर तो टीवी पत्रकारिता का है..यहां यानि भारत की टीवी पत्रकारिता बाज़ारू भाषा की है..
जो चलता है वही बिकता है का मोह त्यागिए...सोचिए कि जो बिकता है वही चलाया जाता है..सब समझ में आ जाएगा..ये अर्जेन्ट फ़ोटो,,ये फ़ोटोस्टेट वाले सबको पता है ये बिकेगा इसलिए लिख रहे हैं, चला रहे हैं..यही टीवी वालों को पता है..इसलिए भाषा को बाज़ारू बना रहे हैं और जो उनके मत से, विचार से राज़ी न हो...उन्हें पता ही नहीं असल में..उनमें विज़न ही कहां है...
रविश जी ये कमाल उस गुलामी है जो रह रह कर हमारे अंदर से निकलकर आती है। जिस तरह अंग्रेज़ गलत हिंदी बोलकर हमें शर्मिंदा करते थे उसी तरह अबकी हमारी बारी है छोड़ेंगें नहीं उनकी भाषा को टांगे तोड़ देंगे....
ReplyDeleteraveesh ji yah hai hamari aam bol chal ki hindi.........
ReplyDeleteraveesh ji yah hai hamari aam bol chal ki hindi.........
ReplyDeletehindi me urdu aai farsi aai turki aai afgani aai arabi aai tab hangama nahi huva to fir english ke ghusne par chhati pitna bekar hai.
ReplyDeletehindi ke dushman vo log hain jo iski shuddhata ka bahana kar iski khalis aam pakad khatam karne me jute hain ravish bhai main aapka bahut bada wala pankha hun nam yaad rakhiyega.fir milenge.
रविश भाई दोनो शब्दों में कोई भी हिन्दी नहीं है ,न अर्जेंन्ट और न हीं फोटो फिर आपत्ति किस बात की--ये तो अंग्रेजी ही है जिसे हिन्दी में लिखा गया है,हिन्दी होती तो होता तत्काल तस्वीर
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ReplyDeleteरवीश जी आपने एक ऐसी तस्वीर उठाई जो अपने आप में ही सबकुछ कह गई....बताने की ज़रूरत ही नहीं कि कितनी गुलाम हो चुकी है हमारी भाषा। या यूं कहें कि अंग्रेज़ियत को ढोते-ढोते हमारी भाषा 'हिंदी में अंग्रेज़ी' हो गई है।
ReplyDeleteYeh 'Hindi' nahin - 'Hinglish' hai. Matlab kam chalane se hai...
ReplyDeletegood aisha aksar hota sir ...........india ki normal baaten hai ya sab......
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