राजनीति और अपनी पार्टी में पतन की एक शानदार कथा हैं जॉर्ज फर्नांडिस। राजनीति में जिसकी जवानी हीरो की तरह रही हो, उसका बुढ़ापा ऐसे कटेगा, भारत के हर बुज़ुर्ग को अंदेशा तो रहता ही है, जॉर्ज को ये अंदेशा क्यों नहीं रहा। जॉर्ज फर्नांडिस घर से निकाल दिए गए उस बुज़ुर्ग की तरह हैं जिसके बच्चों पर कोई उंगली नहीं उठा रहा। सब बुजुर्ग को गाली दे रहे हैं। बच्चा कलेक्टर है तो उसकी बुराई तो कोई नहीं कहेगा क्योंकि उसके पास सत्ता है, पद है और नाम है। रही बात धकिया कर निकाले गए बाप जॉर्ज की तो उससे सहानुभूति जताने वाले ठोक बजा ले रहे हैं कि कहीं कलेक्टर बेटा देख न लें। बिहार में यही हो रहा है। कोई जॉर्ज फर्नांडिस की चर्चा नहीं कर रहा। बेचारे सिंगल कॉलम में भी जगह नहीं पा सके हैं। क्या पता उदारमना नीतीश के राज में मीडिया नीतीशमना हो रहा हो या फिर पत्रकारों के लिए जॉर्ज अब स्टोरी नहीं रहे। राष्ट्रीय मीडिया में तो जॉर्ज पर चर्चा भी हुई लेकिन बिहार की मीडिया जॉर्जविमुख हो चुकी है।
युवा वोटरों और युवा नेताओं की खोज के इस दौर में राजनीति में किसी बुज़ुर्ग नेता को लतिया देने की ऐसी मिसाल कहीं नहीं मिलेगी। भला हो बीजेपी का। कम से कम हर पोस्टर पर अटल जी अब भी जवान दिखते हैं। पार्टी अटल के अतीत से आगे निकल गई है लेकिन अटल को छोड़ नहीं सकी है। इन्हीं अटल को प्रधानमंत्री बनाने के लिए जॉर्ज जिस तरह से तमाम दलों के बीच संयोजन का काम करते रहे, अपने लिए एक भी ऐसा दल नहीं ढूंढ पाए जो कम से कम उन्हें नेता तो मानती। समाजवादी जॉर्ज नरेंद्र मोदी के राज में हुए दंगों के बाद भी अपने बागी तेवरों को म्यान में रखे रह गए। एक बागी और तेवर वाला नेता संयोजक बन गया। मीडिएटर। बिचौलिया। सबको एकजुट रखने वाला। कभी ममता को मनाता तो कभी नायडू को समझाता। उसके घर से तहलका के तार निकल गए। रक्षा सौदे में घोटाले का कथित आरोप लगा।
लेकिन तब तक जॉर्ज ने अपनी हैसियत बना ली थी। टिके रहे। अटल बिहारी वाजपेयी हटा नहीं सके। लेकिन जॉर्ज अपने ही घर में लतियाए जाने का संकेत न देख सके। नीतीश ने उन्हें खत लिखा कि आपको राज्य सभा भेज देंगे। आप बीमार हैं। नीतीश या शरद जॉर्ज के घर भी जा सकते थे। पता नहीं गए या नहीं। बाद में जॉर्ज नहीं माने तो अब कह दिया है कि वे पार्टी से बाहर हैं। जॉर्ज ने निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला किया है।
समाजवादियों से बड़ा कोई समझौतावादी नहीं रहा। जातिवादी नहीं होते तो समाजवाद की ढिबरी कब की बुझ गई होती। अपनी तमाम राजनीतिक संभावनाओं और कामयाबियों की कहानी के बाद भी समाजवादी एक विचित्र किस्म के राजनीतिक प्राणी बने रहे। मेरे लिए समाजवादियों का मतलब जनता दल या लोकदल टाइप दलों तक ही सीमित है। समाजवाद के नाम पर इनकी हैसियत जात पर ही टिकी रही। जार्ज बेजात रहे। फिर भी मुज़फ्फरपुर से जीतते रहे। वो सही मायने में समाजवादी नेता था। उनके जीतने के कारणों में जातिगत समीकरणों की चर्चा कम ही हुई है। नीतीश या लालू ऐसी जगह से लड़ के दिखा दें जहां उनकी जाति के वोट सबसे कम हों।
नीतीश ने जार्ज को निकाल दिया। कोई नीतीश का कुछ बिगाड़ नहीं सकता। देवीलाल ने कहा था कि लोक राज लोक लाज से चलता है। लेकिन गुजरात के बाद से यह खत्म हो गया। दंगा होने दो और अच्छी सड़कों को बनने दो। नेता कहने वालों की कमी न होगी। नीतीश भी इसी तरह की राह पर हैं। दिग्विजय सिंह तो जवान थे फिर उन्हें क्यों चलता कर दिया। जॉर्ज बूढ़े हो गए हैं तो मना लेते। बुढ़ापे में कोई भी सिर्फ सम्मान का मोहताज़ होता है। उन्हें मिला या नहीं भगवान जाने।
जॉर्ज फर्नांडिस एनडीए के संयोजक तो अब भी है। उन्हीं के पीछे कार्यकारी संयोजक बने हुए हैं शरद यादव। पहले भी नीतीश और लालू मिलकर जॉर्ज को संसदीय दल के नेता पद से हटवा चुके हैं। तब शरद यादव ही नेता बनाए गए थे। इस बार तो एनडीए ने भी नहीं रोया जॉर्ज के लिए। जिस एनडीए को वे बिचौलिया बनकर संयोजित करते रहे वहां भी जार्ज के लिए कोई नहीं बचा। किस्मत को मानने वालों को जॉर्ज को अभागा कहना चाहिए और नीतीश को कहना चाहिए कि वक्त किसी का नहीं होता। ये एनडीए का चरित्र है। अपने नेता को मक्खी की तरह निकाल कर फेंक दिया।
मीडिया के डार्लिंग रहे जार्ज यहां भी बेगाने हो चुके हैं। जॉर्ज ने अपना पतन तो किया ही, उससे ज़्यादा उनके चेलों ने भी जॉर्ज की कोई कसर नहीं छोड़ी। कांग्रेस या एक पार्टी की सत्ता को अकेले दम पर चुनौती देने वाले महान समाजवादियों की विरासत का यही हाल होना था। अब समाजवादी खेमे में वही प्रासंगिक है जो लोहिया का नाम लेता हो मगर लोहिया की जात का न हो। लोहिया की जात का होंगे तो बिहार में एक सीट नहीं जीत पायेंगे। जॉर्ज न तो जवान है न ही उनकी कोई जात है। घर से निकाले गए बुज़ुर्गों पर आंसू बहाने वाला कोई नहीं है। जॉर्ज फर्नांडिस के लिए बीजेपी भी नहीं रो रही। नीतीश क्यों रोएंगे, उन्हें तो हर दिन पेपर में चाल कॉलम मिल ही रहा है। जॉर्ज तो सिंगल कॉलम के ख़बर भी नहीं रहे।
जिस तरह से आज कल अमर सिंह और संजय दत्त कालम नहीं बल्कि फुल पेज के समाचार बने हुए हैं टी वी चैनल्स पर उनको देख कर इसमे ताज्जुब नहीं हो रही है | सब का अपना अपना सेटिंग होती है भाई | जिस तरह से केंद्र के सरकार ने राष्ट्रीय स्तर के समाचार चैनल्स में अपना पैठ (अब चाहे जैसे भी हो ) बना रखा है वैसे ही नीतिश जी कर रहे हैं तो इसमे कोई गलती नहीं है | वैसे जॉर्ज साहब के ऊपर लिख कर आपने भी अच्छा किया | वैसे थे बड़े अच्चे इन्सान |
ReplyDeleteजय हो !
जार्ज बहुत अच्छे नेता रहे हैं। अपनी उम्र और खराब स्वास्थ्य को देखते हुए उन्हें स्वयं ही सन्यस्त हो जाना चाहिये था।
ReplyDeleteरही बात मिडिया की; मिडिया तो बिकाउ है। मिडिया का अपना एजेण्दा है। मिडिया भी किसी से कम भ्रष्ट नहीं है। एनडीटीवी को ही देखिये ना; कितना पक्षपाती है?
मस्तिष्क के ऑपरेशन के बाद उनके स्वास्थ्य में गिरावट आई है। इसलिए उन्हें अधिक जिम्मेदारी वाला काम नहीं सौंपा जा रहा। चूंकि वो एक वरिष्ठ नेता हैं इसलिए एनडीए उनसे किनारा नहीं कर सकता।
ReplyDeleteGeorge ki dharohar ya jamaapoonji yahi hai ke kai log aaj bhi unhe unke pre-BJP wale roop mein yaad kar lete hai. George jaise "asli" netaa ki ye gat dekh kar siway daya-bhav ke aur koi bhaav nahi ubharata. George and pity!!?? What a pity!!
ReplyDeleteVidambana nahi to or kya hai ki joerge jaisa dhakad neta ticket ke liye Nitish or Sharad ka muh joha rahe hain,we apne liye ticket tak ka jugad nahi kar paye jabaki sadhuoan,rajoan,Munna shuklaoan,mukhataroan etc. ko sadar ticket pesh kiya ja raha hai. joerge ke pas koi jatiya vote nahi hai so bichare jateeya gherabandi bhi nahi kar sakta.Apne Nitish to kafi vinamra mane jate hain kam se kam we hi apane is purania ka laz rajhate.
ReplyDeleteएक पैर कब्र में और एक केले के छिलके पर लेकिन इस नकली समाजवादी ( नकली इसलिए की भाजपा से हाथ मिलाने के बाद काहे का समाजवाद और काहे का समाजवादी ) का संसद में बैठने का मोह नहीं छूट रहा है.....क्या पता कि चुनाव में ही विकेट गिर जाए.............
ReplyDeleteरविशजी
ReplyDeleteजॉर्ज साहब पर लेख के लिए मेरी बधाई स्वीकार करें.
जॉर्ज राजनीति में अक्सरहां निर्णायक भूमिका में रहे. लोकतंत्र के लडाई में सदा अग्रणी रहे.
बिहार के बदहाल लोगों ने जॉर्ज साहब को भरपूर प्यार दिया . आज भी नालंदा के उनके पुराने क्षेत्र में उन्हें लोग जॉर्ज साहब हीं कहते हैं.
लेकिन हाय रे नियती , बुढापे में उस जुझारू जॉर्ज को यह सब देखना पड़ रहा है.
मैं जॉर्ज के जुझारू जज्बे को आपके साथ सलाम करता हूँ और जो लोग भी उनके साथ ऐसा कर रहें हैं उनकी भ्रत्सना करता हूँ. इंसा अल्लाह मुजफ्फर पुर , नालंदा और बिहार की जनता भविष्य में भी नए जौर्जों को पैदा करते रहे .
जॉर्ज साहब इस उम्र में हम सब की इज्जत और सम्मान के हकदार हैं.जिस सम्बेदना और लगन से आपने इस मुद्दे को उठाया , मैं एक बार फिर बधाई देता हूँ.
सादर
sabse pehle aapko badhai. prabhat joshi ne aapki tarif ki hai. bhagwan kare aap patrakarita ke wajood ko zinda rakhe. dhero sari subhkamnaye.
ReplyDeleteधारदार एनालिसिस!
ReplyDeletesahi aur sateek vishleshan
ReplyDelete'Is desh mein Ganga behti hai...' aur wo nadi aaj maili ho gayi hai aur Saraswati (gyan ki devi?) ke saman lupt hone ke kagar per hai...George ab doobte sooraj saman hain (Brahma ke sone ke samay) jise koi namaskar nahin karta...Brahma ka bhi ab kewal ek hi mandir Pushkar mein rah gaya hai, aur sooraj ka ek Bhubaneshwar Orissa mein...NDA/ UPA ab kewal shabd ke roop mein hi rah gaye hain...
ReplyDeleteBharat Mata ki jai!
ख़त्म हो गया लोकतंत्र ,अब नोटतंत्र की बारी है
ReplyDeleteरंगमहल से इस संसद में ,नोट छापने की तैयारी है
पहले था आगाज़ कमल का , अब पंजे की बारी है
ख़त्म हो गया लोकतंत्र अब ,नोटतंत्र की बारी है
दे दिया समर्थन मुलायम ने ,अब सोनिया की बारी है
ख़त्म हो गया लोकतंत्र ,अब नोटतंत्र की बारी है
रंगमहल से इस संसद में ,हर तरफ ही मारा मारी है
ख़त्म हो गया लोकतंत्र ,अब नोटतंत्र की बारी है
मिल कल्याण कर दिया आगाज़ मुलायम ने
तो माया ने भी दिल्ली जाने की करली तैयारी है
माया, मोदी ,लालू और पवार ने भी अब पी.एम् की कुर्सी पर नजर मारी है
ख़त्म हो गया लोकतंत्र ,अब नोटतंत्र की बारी है
संसद बन गयी है फिल्मी दुनिया ,मोहरे फ़िल्मी सितारे है
अक्के देश की व्हाट लगाने की अब पूरी तैयारी है
ख़त्म हो गया लोकतंत्र अब नोटतंत्र की बारी है
अभिनेता बन गए है नेता तो राजतंत्र को चौपट करने की बारी है
फिल्म बनेंगी अब संसद में
नेताओ ने देश में अब कैबरे करवाने की करली तैयारी है
राजनीति के इस दंगल में खासी मारा मारी है
ख़त्म हो गया लोकतंत्र अब नोटतंत्र की बारी है !
ऑरकुट पर भेजी गई इस कविता को प्रकाशित करने से अच्चा कुछ नहीं हैं
चुनाव में यही सब हो रहा हैं जो इस गुमनाम कवि ने अपनी कलम से लिखा हैं
समय समय की बात है।
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तस्लीम
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन
खाटी समाजवादियों की इस नई श्रेणी में जयप्रकाश और लोहिया सिर्फ तस्वीरों में दिखते हैं, लालू प्रसाद ने एक दफ़ा संसद में कहा था कि 'क्या जार्ज बाबू आपने तो हमें समाजवाद का पाठ पढ़ाया था आप आज इन लोगों के साथ बैठे सब चुपचाप देखते रहतें हैं'जिस कांग्रेस को जीवन भर सत्ता से दूर रखनें के लिए जार्ज बाबू ने अपना पूरा जीवन लगा दिया,सांप्रदायिक दलों का साथ भी दिया,
ReplyDeleteआज उनके चेले अलग-अलग धड़ों में अपनी-अपनी खिचड़ी सीज रहें है, पर आज के समाजवादियों की भूमिका में शायद अमर सिंह, संजय दत्त, पप्पू यादव, शाहबुद्दीन, सूरजभान सिंह, आनंद मोहन जैसे लोगों की मांग है...अब जार्ज बाबू में इन सभी गुणी लोगों में कहां खड़े हो पाते भला...
raveesh ji aapka kya kahna ? bahut achchi se poora vishlesan is sundar post me kar dala hai....
ReplyDeleteNetaaon ko apne ek age declare kar dene chahiye main is umra ke baad politics se retire ho jaunga. George sahab patna ke press confrence main apne aap bol nahi pa rahe the bagal wala jo bol raha tha woh wahi bol rahe the. Akhir woh ab politics se kya pana chahtey hain.Jeorge sahab ka Ek jamana tha. May, 1974 kee rail strike main bahen kee shadi main pitaji bombay se antim train se allahabad pahunche the.Woh train na mele hoti to shadi bhi cancel ho jati.Hindustan ke woh sabse achche defence minister the. kal arjun singh balia main ro rahe the. isliye ki unke putra aur putri ko loksabha ka ticked nahi mila. Ab congress main yeh hasiyat ho gayi hai. Indira ji aur Rajiv ji ki kitnee seva ki. MP ke CM elect huye rajiv ji ka turant adesh aaya ki Punjab ka governer ban jao,khushi khushi ban gaye longowal ji se milkar punjab agreement hua.Aaj yeh hal hai ki rone ke liye delhi se balia jana padta hai. yehi to politics hai.
ReplyDeleteराजनीति मे मुगलई रवैया कोई नई बात नही लेकिन फिर भी जार्ज के लिए मन भर आता है
ReplyDeleteआप लोगों से जोर्ज फर्नांडिस की तारीफ़ सुन थोडा विचलित हुआ हूँ...हो सकता है आप लोग मुझसे ज्यादा करीब से जॉर्ज को जानते हों, उनके पड़ोस वडोस में भी रहे होंगे,साथ में समाजवादी चाय भी पी होगी,भई हमने तो जो देखा है वही कहेंगे.
ReplyDeleteभई हम तो सन ८५ की पैदाईश हैं,राजनीतिक समझ सन ९७ तक विकसित हुई...इसलिए हमने समाजवादी जोर्ज को तो देखा ही नही....जब भी पाया नंगा ही पाया.
ये बीजेपी के साथ गए तो समाजवादी आवरण की होली जल गयी, रक्षा मंत्री थे अमेरिका के एयरपोर्ट में नंगे किये गए, घर आये तो ताबूत घोटाले और तहलका ने अधोवस्त्र हर लिए, चुनाव पूर्व नीतीश ने टिकेट न देकर बची खुची लज्जा भी हर ली और चुनाव बाद जनता ने तो चमड़ी भी उतार ली.