मोदी की जीत

दिल्ली से आने वाले हर फोन में यही बेचैनी थी। मोदी की जीत कहीं पक्की तो नहीं है। सब एक दूसरे से अपनी तसल्ली के लिए पूछ रहे थे। लेकिन ज़मीन पर हकीकत कुछ और कह रही थी। कई जगहों पर गया। कहीं भी मोदी को लेकर लोगों में कोई शंका नहीं थी। इन लोगों से मतलब हिंदू गुजराती से है। मोदी की विकासवादी सांप्रदायिकता के आलोचक सिर्फ मुसलमान नज़र आते हैं। कुछ एनजीओ। कुछ मीडिया के लोग और इन सबके सहारे कांग्रेस।


भावनगर से मिलने आए एक सज्जन ने मुझसे कहा कि मोदी के विरोध या समर्थन में तर्कों की कमी नहीं। हमारी जनता हिंसक शासकों से नफरत नहीं करती है। इतिहास में कई ऐसे राजा हुए जिन्होंने कुआं खुदवाने और पानी लाने के लिए गरीबों की बेटियों की बलि दे दी। जब पानी आया तो लोगों ने राजा के गुनगान में कई गीत रचे। किसी ने मारी गई बेटी और उसके परिवार पर शोक गीत नहीं लिखा। गुजरात में भी नरेंद्र मोदी को इसी मानसिकता से समर्थन मिल रहा है। भावनगर वाले सज्जन बताए जा रहे थे कि लोग कहते हैं कि दंगों में जो मरे सो मरे लेकिन राजा ने गुजरात का भला तो कर दिया। यह कोई मामूली बात नहीं है। सज्जन की बातों से मुझे वो सब जवाब मिलने लगे जिन्हें ढूंढ रहा था।

चुनावी राजनीति में राजनेता को घेरने के कुछ ठोस पैमाने चाहिए। टूटी सड़कें, गायब बिजली और पानी, खराब सरकारी व्यवस्था आदि आदि। गुजरात में यह सब नहीं है। ऐसी बात नहीं है कि पानी की समस्या नहीं हैं और सभी सड़के शानदार हैं। मगर हालत इतनी भी खराब नहीं लगती कि आप बिजली सड़क पानी को मुद्दा बना सकें। अभी भी कई लोग हैं जिनके आधार पर मोदीवादी विकास को चुनौती दी जा सकती है। लेकिन विकास की कमी को लेकर लोग इतने भी परेशान नहीं कि मोदी के खिलाफ लामबंद होने लगे हों। कम से कम सतही तौर पर तो यही लगता है। कई लोगों से मिला। किसी ने नहीं कहा कि मोदी को हरा कर रहेंगे। कांग्रेस से यह सवाल कीजिए तो जवाब मिलता है कि उम्मीद तो है कि मोदी हारेंगे क्योंकि कई विधायक बागी हो गए हैं। सब किसी न किसी बाह्य कारणों से मोदी के हार जाने का ख्वाब देख रहे हैं।

मान लीजिए कि मोदी हार ही जाते हैं। तो क्या हो जाएगा। क्या यह सांप्रदायिकता के खिलाफ जनादेश होगा? जबकि कांग्रेस यह मुद्दा ही नहीं उठा रही है और कई लोग हमें भी राय देते हैं कि आप गुजरात में हैं तो मुसलमानों पर स्टोरी मत कीजिएगा,इससे मोदी को लाभ हो जाएगा। हद है ऐसी सोच की। क्या कोई इस चुनाव में नरेंद्र मोदी को सांप्रदायिकता के सवाल पर चुनौती दे रहा है? २००२ में गुजरात की जनता ने मोदी के पक्ष में जनादेश दिया था। तो फिर मोदी के हारने या न हारने से सांप्रदायिकता का सवाल कहां उठता है? क्या सिर्फ मोदी के कारण ही वहां सांप्रदायिकता का ज़हर फैला हुआ है। सिर्फ मोदी को हरा कर सांप्रदायिकता को नहीं हरा सकते। इसलिए जीत का लक्ष्य कुछ और होना चाहिए। उनमें से एक मोदी की हार भी होनी चाहिए न कि मोदी की हार से धर्मनिरपेक्षता की जीत का लक्ष्य।

ज़मीन पर गुजरात एक बेहतर राज्य लगता है। कई लोग कहते हैं कि गुजरात हमेशा से अच्छा रहा है। तो क्या यही कम नहीं कि मोदी ने इसे बिगड़ने नहीं दिया। ये लोग नरेंद्र मोदी को श्रेय देने से इसलिए डरते हैं कि कहीं कोई यह न कह दे कि आप मोदी की तारीफ कर रहे हैं। सांप्रदायिकता का साथ दे रहे हैं। तो क्या करें। बतौर रिपोर्टर वह कहे जो वहां के लोग कह रहे हैं या वो कहें जो मैं कहना चाहता हूं। दरअसल यह मुसीबत आई है धर्मनिरपेक्षवादी ताकतों की खोखली लड़ाई से। सांप्रदायिकता से सीधे नहीं लड़ते। यही लोग कहते रहे कि आम आदमी को रोज़ी रोटी चाहिए। सांप्रदायिकता नहीं। एक विकल्प पेश कर रहे थे। उसे खत्म नहीं कर रहे थे। मोदी ने सड़क बिजली और पानी का बंदोबस्त कर दिया। और सांप्रदायिक मानसिकता भी बनी रही। धर्मनिरपेक्षवादी विकास के सवालों से सांप्रदायिकता से लड़ रहे थे। वो यह नहीं कह रहे थे कि अच्छी सड़क और पानी के व्यापक इंतज़ाम के बावजूद सांप्रदायिकता खतरा है। यूपीए की सरकार के घटक दलों ने कितनी जनचेतना रैली सांप्रदायिकता के खिलाफ की है। क्या वो कोई जनजागरण कर रहे हैं?

रही बात गुजरात की तो वहां की सड़को को देखिये। शानदार हैं। राज्य परिवहन की बसें समय पर चलती हैं और बेहतर सेवा है। किसान कहते हैं कि बिजली जाती भी है तो आ जाती है। व्यापारी कहते हैं कि निगम वाले अफसर परेशान नहीं करते। मीडिया मोदी जी को बदनाम करती है। लेकिन हम मोदी जी के साथ है। इसी भरोसे मोदी ने कई विधायकों के टिकट काट दिये क्योंकि लोग इनसे नाराज़ थे। यहां एक विचित्र फर्क दिखता है। लोग स्थानीय विधायकों से तो नाराज़ मिल जाते हैं लेकिन मोदी से नाराज नहीं मिलते। मैं शत प्रतिशत की बात नहीं कर रहा हूं लेकिन सापेक्षिक तौर पर ऐसे लोग मिलते हैं जिनसे अंदाज़ा हो जाता है कि मोदी के खिलाफ कोई लहर नहीं है। हां चाहूं तो गरीब किसानों को ढूंढ सकता हूं, वैसे खेत अभी भी हैं जहां पानी नहीं पहुंचा और वैसे अस्पताल भी हैं जहां कोई डाक्टर नहीं है। लेकिन इनके गुस्से से राजनीति का ऐसा कोई मानस बनता नहीं दिखता जिससे मोदी की हार दिखाई देती हो। यह ज़मीनी हालात हैं। अब यह हो सकता है कि लोगों ने मोदी को हराने का मन बना लिया हो लेकिन ज़ाहिर नहीं करना चाहते। वो मतदान के दिन ही फैसला करेंगे। तब तो अलग बात है। लोगों के ऐसे गुस्से का अंदाज़ा नहीं हुआ। राजनीतिक जानकार इस बात पर मगजमारी कर रहे हैं कि सीटें कम हो जाएंगी। फर्क क्या पड़ता है? सरकार बनाने के लिए जितनी चाहिएं अगर उतनी आ रहीं हैं तो मोदी की वापसी ही कहेंगे न।

17 comments:

  1. गुजरात में कांग्रेस के पास एक भी ऐसा नेता नहीं है जो मोदी को पटखनी दे सके...ऐसे में मोदी का वापस आना तय है. और एक बार फिर मोदी को यह कहने का मौका मिल जाएगा कि उन्हें साढे पांच करोन गुजरातियों का समर्थन हैं.

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  2. एक पत्रकार का ऐसी जमीनी सच्चाई बयान करना आश्चर्य जगाता है. साधूवाद.

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  3. सही है..
    ऐसी ही असुविधाजनक, पेचिदगियों से भरी मगर जो सच और सामने है उससे क्‍यों बचें वाले नज़रिये से रिपोर्टिंग होनी चाहिए! अगर मोदी जीतते हैं तो उन्‍हें हराना चाहते हैं, उन्‍हें पहले और ज्‍यादा तैयारी के साथ सोचना चाहिए था.. महज़ एंटी-मुस्लिम प्‍लैंक, और वह भी एक ऐसे राज्‍य में जहां मुस्लिम वोटों का चुनीवी नतीजों पर कोई प्रभावी असर न हो, थोड़ा जेन्‍युनली हास्‍यास्‍पद है..
    और लिखें, और खूब-खूब लिखें!

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  4. सरजी, सज्जन ने उस एंगिल से कभी सोचा नहीं कि बिना बलि के भी विकास संभव है,उन्हे तो लगता है कि विकास हो गया न बाकी चीजें भाड़ में जाए

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  5. विनीत जी
    सज्जन लोगों की बातें कर रहे थे। उनकी सोच नहीं थी। उन्होंने लोगों की बातों के हवाले से बताने की कोशिश की आखिर लोग मोदी से नाराज क्यों नहीं हैं? खासकर सांप्रदायिकता के सवाल

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  6. रवीश जी,
    बढ़िया लेख... समस्या तब शुरू होती है, जब हम पाते हैं कि सांप्रदायिकता का जो विकल्प है , वो हैं लालू जी का बिहार, मुलायम जी का UP या वामपन्थिओं का WB... सांप्रदायिकता एक ऐसी चीज है जो हर ५-१० साल मे एक बार अपना वीभत्स रूप दिखाती है पर बेरोजगारी, भूख, बिजली पानी सड़क ये सारी चीजें रोज ही हमें परेशान करती हैं... हालांकि विकल्प और भी हैं जैसा कि South के राज्यों ने दिखाया है... जो बिना सांप्रदायिक हुए विकसित हो रहें हैं.... काश ऐसा ही एक विकल्प हमे भी मिल पाता....
    मनोज

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  7. रवीश भाई,
    मेरे समझ के हिसाब से, एक और चीज़ खंगाला जा सकता है ... हिन्दुओं को परेशानी नहीं हो सकती है की मोदी सांप्रदायिक हैं क्योंकि मोदी विकास का काम कर रहे हैं... पर मोदी के विकास के कार्यों पर मुसलमानो की राय हिन्दुओं से मेल खाती है?
    या, विकास का भी दायरा सांप्रदायिक है... बीजेपी के एक सांसद हुआ करते थे मदन जायसवाल बेतिया से उनका विकास का कार्यक्रम भी सांप्रदायिक था ... सड़क बनी थी पर हिन्दुओं के घर के सामने मुसलमानों के घरों के सामने सड़क का नामोनिसन नही था ....

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  8. मुसलमानों के नाम पर जो कल्पित दिक्कतें बनाई गई हैं उनके प्रति सिर्फ तथाकथित राजनेता ही बहुत चिंतित हैं. आम मुसलमान भी शायद यह मानने के लिए तैयार न हो कि उसे ऎसी कोई परेशानी है. सही खबर देने के लिए धन्यवाद.

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  9. सांकृत्यायन जी
    मैंने कोई सही खबर नहीं दी है। जो लगा बता रहा हूं। मुसलमानों के लिए परेशानी है। उनके मोहल्लों की सड़के नहीं बनीं हैं। वहां विकास कम नजर आता है। अच्छी बात है कि मुसलमान हार कर नहीं बैठा है। वह भी जैसे तैसे अपने दम पर बहुत कुछ कर रहा है। अपने भीतर के समाज से लड़ रहा है और बाहर के राज से लड़ने की हिम्मत जुटा रहा है। गुजरात का मुसलमान मोदी से नहीं लड़ रहा है। वह जानता है कि सत्ता लेकर मोदी कोई देवता नहीं बना है। बल्कि उन्हें परेशान ही कर रहा है। लेकिन गुजरात का मुसलमान खुद लड़ रहा है। वो हिंदुओं से मिलकर कारोबार कर रहा है। उनके स्कूल में अपने बच्चों को भेज रहा है। अपने स्कूल में हिंदुओं के बच्चों को पढा रहा है। वो कहता है कि सामाजिक संबंध अब हम अपने स्तर पर बनायेंगे ताकि नेताओं को इसका फायदा न मिले।

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  10. Ravish bhai,
    Itna Andazaa nahi tha ki jo aap bolte hain wahi Aaap likhte bhi hain. What i mean is that i did not expect u to be cent percent honest! Its amazing.. ye article padh kar bahut acha laga....

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  11. कतई कोई शक नहीं है कि स्टोरी पहले से सोच कर तय एंगल पर ही बनती है, आप हालात पर बना रहे हैं तो अच्छी बात है, मैनेजमेंट आपका सहयोग करे एसी दुआ है,,,,,,,आमीन

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  12. ये सच है कि आम जनता सिर्फ उसे वोट देगी जो काम करेगा। लेकिन जनता को ये समझना जरूरी है कि जो काम कर रहा है वो सिर्फ एक समुदाय विशेष तक सीमित है। अब मुद्दा ये है कि ये बात उन्हे बतायेगा कौन?

    दीप्ति।

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  13. आपने मेरी समस्या का समाधान कर दिया.साधूवाद.आपकी बेबाकी के लिये...
    "ये लोग नरेंद्र मोदी को श्रेय देने से इसलिए डरते हैं कि कहीं कोई यह न कह दे कि आप मोदी की तारीफ कर रहे हैं। सांप्रदायिकता का साथ दे रहे हैं। तो क्या करें। बतौर रिपोर्टर वह कहे जो वहां के लोग कह रहे हैं या वो कहें जो मैं कहना चाहता हूं।"

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  14. Ravish ji, Aap ko kitni bhi badi tadad main badhai kyo na mil jaye, ki aap ne modi k liye aacha likha hai lakin main aap ko visvas k sath keh raha hu ki gujarat main modi ka jitna mushkil hai (main congressi nahi hu), Aap ki likhi bato se ye lagta hai ki aap sirf sahar main ghume hai lakin dur darraj k gav ki halat kuch aur hai, Mailn gujarat k us ilake se hu jaha aaj bhi kahi aase gav hai jaha BIJLI,PANI,SADAK ki suvidha nahi hai, aap ne likha hai ki privahan suvidha sahi chal rahi hai lakin aap ko kaie aase gav dikha sakta hu jaha aaj bhi pedal jana padta hai, kaie aase gav jaha koi bimar pad jaye to mariz ko janaje ki tarha jolhi main uthakar 20-25 km tak pratmik sarvar k liye le jana padta hai, MODI ji baat to vikas ki kar rahe hai ki itne MOU hu a ye yojna vo yojna, kitne MOU pe kam huva ye aap hi aa k sarkar se puche, VAN BANDHU,SAGAR KHADU ye sab yojna k bare main carodo ki bate, sarkar k hi CS ne RTI main javab diya hai ki 1 bhi Rs. Ka pravdhan nahi huva hai, MODI ji ne aapni add k liye 750 caror sarkar ki tijori se khrch kar diye….MODI ji bate karne main bahut hi shakti Sali hai, logo ko bevkuf banane main un ko koi parhej nahi hai…..un ki bate likne javuga to pura page bhi kam padega…sab log paresan hai….sahar main khub aacha dikhta hai lakin gav main halat kuch aur hi hai…(main congressi nahi hu) Aap ne phone par sak kiya tha ki ap kahi congress se to jude nahi ho is liye keh raha hu…..MODI ki sarkar jayegi , jaha tak mene study kiya hai tab tak koi sav hi khada nahi hota, aase aadmiko satta ki lagam nahi di ja sakti….23 dec 07 ko result aayega BJP hare to aap muje call karna aur jite to main aap ko karuga……(Dsre charan main hum aap ko Gujarat ki sahi hakikat se ru b ru karane ki kosis karege)

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  15. प्रवीण
    मैं ग्रामीण इलाकों में नहीं गया हूं। बिल्कुल शहरी और वो भी दो तीन शहर में कुछ लोगों से हुई बातचीत के आधार पर लिखा है। अहमदाबाद के दौरान तुमसे बात हुई थी। गांवों की हकीकत के बारे में। मेरे यहां के भी कई सहयोगी रिपोर्टर ने गांवों की बदहाल तस्वीर दिखाई है। वो मैं मान सकता हूं और जानना भी चाहूंगा। लेकिन क्या ऐसे गांवों की हकीकत इतनी अधिक हैं कि वो मोदी के विरोध में व्यापक मानस बना रहे हों। या फिर वो उन लोगों में से है जो पांच हजार वोट से हारने वाले उम्मीदवार के पक्ष में वोट डालेंगे। बात जीत की हो रही है। मोदी की हार विकास के मुद्दे पर हो जाए इससे बड़ी बात क्या हो सकती है। मुझे तो अच्छा ही लगेगा। लेकिन यह जनता भी तो कहती है कि विकास हो रहा है। गुजरात की सांप्रदायिक अस्मिता के खिलाफ मुझे कोई नया गुजरात नहीं दिख रहा है।

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  16. Ji sir, un ki tadat itni badi jarur hai...jin tadad ki rai le kar aap ne ye likha hai...aur ha modi ki har vikas ko laker nahi hogi lakin vikas ke dambh se hogi...sirf saher ki janta keh rahi hogi ki vikas huva hai...aur vo log is bat se assvasan lete hoge jo log jante hai ki modi ka hindutva ab nahi chalega...

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