आए दिन होने लगा है। तमाम पत्रिकाएं सर्वे कर रही हैं। सेक्स सर्वेयर न जाने किस घर में जाकर किससे ऐसी गहरी बातचीत कर आता है। कब जाता है यह भी एक सवाल है। क्या तब जाता है जब घर में सिर्फ पत्नी हो या तब जाता है जब मियां बीबी दोनों हों। क्या आप ऐसे किसी को घर में आने देंगे जो कहे कि हम फलां पत्रिका की तरफ से सेक्स सर्वे करने आए हैं या फिर वो यह कह कर ड्राइंग रूम में आ जाता होगा कि हम हेल्थ सर्वे करने आए हैं। एक ग्लास पानी पीने के बाद मिसेज शर्मा को सेक्स सर्वे वाला सवाल दे देता होगा। मिसेज शर्मा भी चुपचाप बिना खी खी किए सवालों के खांचे में टिक कर देती होंगी। और सर्वेयर यह कह कर उठ जाता होगा कि जी हम आपका नाम गुप्त रखेंगे। सिर्फ आपकी बातें सार्वजनिक होंगी। मिसेज शर्मा कहती होंगी कोई नहीं जी। नाम न दीजिए। पड़ोसी क्या कहेंगे। सर्वेयर कहता होगा डोंट वरी...पड़ोसी ने भी सर्वे में जवाब दिए हैं। मिसेज शर्मा कहती होंगी...हां....आप तो...चलिए जाइये।
ज़रूरी नहीं कि ऐसा ही होता हो। मैं तो बस कल्पना कर रहा हूं। सर्वे में शामिल समाज को समझने की कोशिश कर रहा हूं। क्या हमारा समाज हर दिन सेक्स पर किसी अजनबी से बात करने के लिए तैयार हो गया है। हर तीन महीने में सेक्स का सर्वे आता है। औरत क्या चाहती है? मर्द क्या चाहता है? क्या औरत पराई मर्द भी चाहती है? क्या मर्द हरजाई हो गया है? क्या शादी एक समझौता है जिसमें एक से अधिक मर्दो या औरतों के साथ सेक्स की अनुमति है? क्या सेक्स को लेकर संबंधों में इतनी तेजी से बदलाव आ रहे हैं कि हर दिन किसी न किसी पत्रिका में सर्वे आता है?
हो सकता है कि ऐसा होने लगा हो। लोग नाम न छापने की शर्त पर अपनी सेक्स ज़रूरतों पर खुल कर बात करते हों। समाज खुल रहा है। सेक्स संबंधों को लेकर लोग लोकतांत्रिक हो रहे हैं। क्या सेक्स संबंधों में लोकतांत्रिक होने से औरत मर्द के संबंध लोकतांत्रिक हो जाते हैं? या फिर यह संबंध वैसा ही है जैसा सौ साल पहले था। सिर्फ सर्वे वाला नया आ गया है। सर्वे वाला टीन सेक्स सर्वे भी कर रहा है। लड़के लड़कियों से पूछ आता है कि वो अब कौमार्य को नहीं मानते। शादी से पहले सेक्स से गुरेज़ नहीं। शादी के बाद भी नहीं। सेक्स सर्वे संडे को ही छपते हैं। सोमवार को नहीं। क्या इस दिन सेक्स सर्वे को ज़्यादा पढ़ा जाता है।
आज के टाइम्स आफ इंडिया में भी एक कहानी आई है। नाम न छापने की शर्त पर कुछ लड़के लड़कियों ने बताया है कि वो शादी संबंध के बाहर सिर्फ सेक्स के लिए कुछ मित्र बनाते हैं। फन के बाद मन का रिश्ता नहीं रखते। सीधे घर आ जाते हैं। इस कहानी में यही नहीं लिखा है। जब पति पत्नी को पता ही होता है कि उनके बीच दो और लोग हैं। तो सेक्स कहां होता होगा। घर में? इसकी जानकारी नहीं है। सिर्फ कहानी है। ऐसी कि आप नंदीग्राम छोड़ सेक्सग्राम की खबरें पढ़ ही लेंगे। सेक्स संबंधों में बदलाव तो आता है। आ रहा है। हमारा समाज बहुत बदल गया है। लेकिन वो सर्वे में आकर सार्वजनिक घोषणा करने की भी हिम्मत रखता है तो सवाल यही उठता है कि वो अपना नाम क्यों छुपाता है। क्या सिर्फ २००७ के साल में ही लोग शादी से बाहर सेक्स संबंध बना रहे हैं? उससे पहले कभी नहीं हुआ? इतिहास में कभी नहीं? अगली बार कुछ सवालों का सैंपल बनाकर मित्रों के बीच ही सर्वे करने की कोशिश कीजिएगा। पता चलेगा कि कितने लोग जवाब देते हैं। या नहीं तो किसी बरिस्ता में बैठे जोड़ों से पूछ आइयेगा। जवाब मिल गया तो मैं गलत। अगर मार पड़ी तो अस्पताल का बिल खुद दीजिएगा।
13 comments:
इसमे कोई शक नही, कि समाज मे सेक्स सम्बंधित धारणाए बदल रही है। ऐसा नही कि यह बदलाव सिर्फ़ बड़े शहरों तक सीमित हो, छोटे शहरों मे भी बदलाव देखे जा सकते है। शादीशुदा लोगो के लिए मूल कारण है, डबल इंकम नो सेक्स/किड्स। पति पत्नी दोनो अपने अपने कैरियर मे इतने बिजी है कि एक दूसरे के लिए वक्त नही निकाल पाते, घर से ज्यादा समय अपने आफिस/ट्रिप मे बिताते है। कैरियर की चाह मे, घर-परिवार पीछे छूटा जा रहा है।नतीजतन दोनो ही किसी ना किसी रुप मे अपने आफिस के किसी साथी से अपनत्व बना बैठते है, जो स्थायी तो नही होता, लेकिन कुछ समय के लिए इमोशनल और शायद फिजीकल सपोर्ट भी देता है। सीधा सीधा डिमांड एन्ड सप्लाई का रुप एप्लाई होता है।
युवाओं मे कॉल सेंटर के बढते अवसरों से अमरीकी सभ्यता का असर बढता जा रहा है, वे आधे भारतीय और आधे अमरीकी हो रहे है। इसलिए सोच भी अमरीकी होती जा रही है, मौज और मस्ती की नयी परिभाषाएं गढी जा रही है, किसी भी चीज से गुरेज नही। कुल मिलाकर देखा जाए तो भारत मे काफी तेजी से पश्चिमी सभ्यता का असर बढ रहा है।
जब किसी समाज में विकास होता है तो पहले समाज टूटता है और बाद में संस्कृति. ये सेक्स सर्वे मेरी इस बात को पुष्ट कर देती है
मैं जो कहने जा रहा हूँ उसे पढ़ कर ये न समझिएगा की में आपसे शादी करवाना चाहता हूँ (आजकल कुछ भी मुमकिन है न) पर कहे बिना रहा नही जाता, "हमारे और आपके विछार काफी मिलते हैं जी"... मैंने ही उस दिन SMS भेजा था आईडिया की रिपोर्ट देख कर.. 'Thanks भेजने के लिए "thanks'
धारणायें बदल रही है और समाज को देखने और दिखाने का तरीका भी। संडे के पेपर और टीवी चैनलों के कार्यक्रमों मे वोही पढाया दिखाया जाता है, जो बिकता है।
कई सेक्स सर्वे के आंकडों एवं तरीकों की जांच (पिछले 20 सालों मे) करने के बाद मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूँ कि अधिकतर सर्वे छद्म-जानकारी पर आधारित है. शायद उनमें 10% सत्य, 40% कल्पना, एवं शेष सिर्फ हवा है -- शास्त्री
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है.
इस काम के लिये मेरा और आपका योगदान कितना है?
सेक्स सर्वे फर्जी होते हैं। इसमें मुझे तो कोई संदेह नहीं है। लेकिन, इतनी सटीक और तीखी टिप्पणी इस पर पहली बार देखी। शनिवार को नाम नहीं नंबर वाली आपकी स्टोरी देखी। बहुत अच्छे से की आपने। मैंने इसी विज्ञापन से जोड़कर विज्ञापनों की दुनिया पर 30 अक्टूबर को एक ऐसा ही लेख लिखा था। विचार आगे बढ़ा, बहुत बढ़िया लगा।
http://batangad.blogspot.com/2007/10/blog-post_6072.html
सवाल काफी गूढ़ है, एक दो शब्दों की टिप्पणी मे सिर्फ़ चर्चा को आगे ले जाया जा सकता है, ना की किसी निष्कर्ष की आशा की जा सकती है. बात की गंभीरता और गरिमा बनाए रखने के लिए बधाई
करीब ५ साल क्बल एक ऐसे ही सर्वे से रु-ब-रु होने का मौका मिला था. मेरे एक परिचित इंडिया टुडे के लिए सर्वे कर रहे थे. हमसे कहिन की ये लो ४० पेपर हैं, इनमे मनमाना भर दो. मैं ताजा-तरीन समस्तीपुर से आया था सो विवाह-पूर्व संबंधों वाले कालम में "ना" ही भर दिया, ४० के ४० में. सोचा दिल्ली में भी लोग मेरे जैसे ही सोचते होंगे. बाद में पूछा की टोटल सैम्पल कितना था तो बोले १२००. अब बताईये ४० फर्जी तो केवल मैं ने भरे थे. बाकी भी होंगे मुझ जैसे. तो ये रहा आपका सर्वे. आज पत्रकार बन गया हूँ एक अंग्रेज़ी पत्रिका में तो इसको और करीब से देख रहा हूँ. छलावा अभी भी जारी है
इस देश में सबसे ज्यादा खुल कर बात राजनीति पर की जाती है. जब राजनीतिक सर्वे की विश्वसनीयता सवालों के घेरे में हो तब इतने नितांत निजी विषय पर किये जाने वाले सर्वे का भरोसा कैसे किया जा सकता है. बहुत सही लिखा आपने. ........
आप के विचार से मै कुछ सहमत हू कि आज भी हमारे हिन्दुस्तान में एक निन्तात गोपनीय विषय में कोई महिला इस तरह से प्रश्न के उत्तर दे सकती है । हम आज भी इतने ज्यादा पश्चिमी नही हुये है कि खुल कर बात कर सके । आप स्वंम् मीडिया कर्मी है । येसी रिपोर्ट की असलियत भली भांती जानते है । ऐसी रिपोर्ट को शायद आफिस के एक कमरे में बैठकर लिखनी होती है । विषय ऊपर से बताये जाते है कि इस पर रिपोर्ट करनी है । सुबह की मीटिंगं मे दिशा निर्देश दे दिये जाते है कि आज इस विषय की स्टोरी करनी है । डेली रूटिन के साथ एक एक्सक्लूसिव भी देनी है । तो इनकी असलियत आप और हम जानते ही है ।
शशिकान्त अवस्थी
कानपुर ।
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