tag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post951795006028939793..comments2024-03-22T11:14:13.300+05:00Comments on कस्बा qasba: कटी हुई कलाई और फटी हुई पत्रकारिताravish kumarhttp://www.blogger.com/profile/04814587957935118030noreply@blogger.comBlogger20125tag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-17708764489843472332007-05-09T15:39:00.000+06:002007-05-09T15:39:00.000+06:00sir ji main abhi patrkarta mai ek dum naya hu abhi...sir ji main abhi patrkarta mai ek dum naya hu abhi main ek atchi naukri k liye sangrsh kar rah hu lekin aap ke is artical ko padh kar tassali hu ki chalo anndhi o ke bich main koi chirag liye khada to hai aur is chirag ko jalye rakhna sir ji hum sab aap ke sath hai....<BR/>DILIP SiNGhदिलीप सिंहhttps://www.blogger.com/profile/03635950349476608978noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-6275487488370046342007-04-30T09:17:00.000+06:002007-04-30T09:17:00.000+06:00अमित कुमार जीयह मान कर चलिये कि पत्रकारिता में बहु...अमित कुमार जी<BR/>यह मान कर चलिये कि पत्रकारिता में बहुत अच्छे लोग हैं । वो अच्छा काम भी कर रहे हैं । यह सब कुछ टीआरपी के पैमाने से हो रहा है । वर्ना जो कर रहा है उसे भी अच्छा नहीं लगता । उसके पास विक्लप हैं मगर साहस नहीं । क्योंकि जोखिम उठाने के लिए आपको कम से कम एक महीने का समय चाहिए । तब तक टीआरपी का मीटर आपको बाज़ार से बाहर कर देगा । फिर होगा क्या । यही होगा कि प्रयोग करने वाला वापस अपने ढर्रे पर लौट आएगा । टीवी इतना भी खराब नहीं हैं । हां टीवी लोकतांत्रिक है । इसलिए इसे लेकर सब बहस करते हैं । आपने अखबार की किसी टिप्पणी पर कभी बहस की है । सुनी है कि क्या खबरें छापता है । टीवी का अच्छा समय आ रहा है । टीवी अपनी आलोचनाओं को स्वीकार भी करता है । आप किसी भी संपादक से बात कर देखिये । अहसास हो जाएगा ।ravish kumarhttps://www.blogger.com/profile/04814587957935118030noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-26497241604989269382007-04-30T00:13:00.000+06:002007-04-30T00:13:00.000+06:00रविश जी.. आप के कुछ विचारों से मै सहमत हूं लेकिन क...रविश जी.. आप के कुछ विचारों से मै सहमत हूं लेकिन कुछ से असहमत... असहमत इस लिए हूं कि किसी भी विचार को रखना अलग बात है, लेकिन उसे साकार रूप देना अलग बात। लेकिन आप की बातों पर कई बार विश्वास करने को मन करता है। लेकिन कहीं न कहीं हम भी इस फटी पत्रकारिता के लिए जिम्मेदार है। दोषी है। इस फटी पत्रकारिता को भी हम ही दोष मुख्त कर सकते है। जिसका समय है और समय की मांग भी। वर्ना कहीं ये भी उस गाने के बोल की तरह ना हो जाए । बातें है बातों का क्या...Amit k sharmahttps://www.blogger.com/profile/03763252372818196813noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-63819969266579384412007-04-29T21:54:00.000+06:002007-04-29T21:54:00.000+06:00धीरज जीआवश्यक नहीं है कि लिखने वाले के हाथ में बदल...धीरज जी<BR/>आवश्यक नहीं है कि लिखने वाले के हाथ में बदलने की कमान दे दी जाए । लिखा या कहा इसलिए जाता है ताकि जो कर रहा है उसे कुछ बताया जा सके । वह एक धुन करता चला जाता है । जिसे आप चैनल हेड कहते हैं । गलतियां होती होंगी । मगर सारा काम वह गलत सोच कर ही करता होगा मैं नहीं मानता । हर लेखक को प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री या संपादक बना देने से समस्या खत्म हो जाएगी इसके उदाहरण नहीं मिलते हैं । लिखने का मतलब अपने विचार को दूसरों के सामने रख कर परखना । हां लिखे हुए के प्रभाव से बहुत चीजे बदलती रहती हैं । पर लेखक हैं इसलिए बदलने का अधिकार भी हो ठीक नहीं । यह तो लेखन के जरिये महत्वकांझा को साधना हो जाएगा । हां अध्यापन की कसक तो है मगर पढ़ाने की पर्याप्त जानकारी नहीं । जो लिख रहा हूं वो सिर्फ अनुभव हैं । इन्हें बांटा जा सकता है । पढ़ाया नहीं जाना चाहिएravishndtvhttps://www.blogger.com/profile/02492102662853444219noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-77420303706988831792007-04-29T15:41:00.000+06:002007-04-29T15:41:00.000+06:00रवीश जी,आपके विचार बड़े उत्तम हैं। आप कहां फंसे है...रवीश जी,<BR/>आपके विचार बड़े उत्तम हैं। आप कहां फंसे हैं पत्रकारिता में। आपको तो अध्यापन में आना चाहिए। बच्चों के लिए आप भगवान साबित हो सकते हैं। इन्हीं बच्चों में से कल फिर से कोई फर्जी पत्रकार बन जाएगा। ऐसे में आपको फिर से 'कटी हुई कलम और फटी हुई पत्रकारिकता' जैसे लेख लिखने पड़ेंगे। <BR/>कहते हैं पेट भरा होता है तो अच्छे अच्छे ख्याल आते हैं। जैसे ही निबाले पर संकट आता है हालात बदलने लगते हैं। संभव है आपके जैसे प्रबुद्ध पत्रकार ब्लाग्स चलाकर जी लेंगे। लेकिन सब तो ऐसे नहीं हो सकते। ईश्वर से कामना है कि आप भी चैनल हेड बनें और इस विचार को कायम रखें। <BR/>आखिर में एक बात कहना चाहता हूं ग्लोबलाइजेशन और उत्तर आधुनिकता के दौर में मैनेजर अहम भूमिका निभाते हैं। अब समाज मैनेजर चलाते हैं। ऐसे में चैनल की ज़रूरतें पूरी करने के लिए विचार के साथ साथ पैसे की भी ज़रूरत पड़ती है। लेकिन सिर्फ ज्ञान से चैनल नहीं चलता। एनडीटीवी को छोड़कर<BR/><BR/>सार्थकखुली किताबhttps://www.blogger.com/profile/05118754600349237212noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-70411450686318554092007-04-28T16:16:00.000+06:002007-04-28T16:16:00.000+06:00इलेक्टरोनिक मीडिया का सच दिखाने के लिए शुक्रियाइलेक्टरोनिक मीडिया का सच दिखाने के लिए शुक्रियाराजू सजवानhttps://www.blogger.com/profile/10986593864045199769noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-19989449046186173022007-04-24T15:53:00.000+06:002007-04-24T15:53:00.000+06:00कौन कहता है कि न्यूज़ चैनल अपनी ज़िम्मेदारी नहीं न...कौन कहता है कि न्यूज़ चैनल अपनी ज़िम्मेदारी नहीं निभा रहे हैं. जागरूकता फैलाना पुराने ज़माने की बात थी. आजकल हुक्म चलाने का दौर है. समाज सुधार का वक्त है. उंगली उठाने का नहीं उंगली करने का वक्त है. बाकियों का पता नहीं पर कभी भी IBN 7 लगा कर देख लें आपको हर वक्त ये पंक्तियां पढ़ने को मिल जाएंगीं- " अब तो शर्म करो". " अब तो होश में आओ." वगैरह वगैरह.<BR/>कहीं दंगा हो तो खबर ये नहीं है कि दंगा हुआ बल्कि पुलिस क्या कर रही थी ? अगर रोक रही थी-लाठी भाँज रही थी तो "दरिंदा है पुलिस". अगर लाठी नहीं भाँज रही थी तो " नाकारा है पुलिस".<BR/>न्यूज़ चैनल आज ( बगैर अपने गिरेबान में झांके ) देश की पुलिस सुधार रहे हैं . उन्हे कह रहे हैं कि " अब तो शर्म करो". " अब तो होश में आओ. और आप कहते हैं कि पत्रकारिता खत्म हो गई....नितिन सुखीजाhttps://www.blogger.com/profile/04393345492707847786noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-42137554552970073142007-04-24T10:22:00.000+06:002007-04-24T10:22:00.000+06:00अजय जीहमारे चैनल ने सबसे ज़्यादा दिखाया । जबकि वही...अजय जी<BR/>हमारे चैनल ने सबसे ज़्यादा दिखाया । जबकि वहीं अंग्रेजी चैनल पर बिल्कुल नहीं दिखाया गया । संपादक के साथ बहस भी हुई । उसी के आधार पर बारह बजे के बाद एनडीटीवी इंडिया से खबर उतार दी गई । तब तक देर हो चुकी थी । जमकर बहस हुई कि क्यों चल रहा है और क्यों नहीं चल रहा है ? दोनों तरह की दलीलें रखी गईं । मैंने यह लेख अपने या अपने चैनल को अलग कर नहीं लिखा है । फिर भी शर्म तो आती ही है ।ravishndtvhttps://www.blogger.com/profile/02492102662853444219noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-63343316436387768202007-04-24T03:53:00.000+06:002007-04-24T03:53:00.000+06:00Ravish ji aapne blog padne se pehle salah di ke um...Ravish ji aapne blog padne se pehle salah di ke uma ke blog pehle padna... sahi khisyae hai kisi ek par...khabar to sabhi ne diakhai thi..aap logo ne bhi...samay tha subah ka 5.45 ka achanak aap logo ne or uma jin par khisyae un logo ne break kiya..sabhi ne dikhaya... kya aap logo ne apne sampadko ko nahi samjhaya tha ki vo talli hai..na dikhaye...blog to gine chune hi padte hai..channel bahout log dekte hai...khair chodiye tassalli hai ki ham logo ne nahi dikhaya...<BR/><BR/>accha likha... ye samay aapki special report ke liye maakool hai...bismillah kijiye..अजय रोहिलाhttps://www.blogger.com/profile/00352786684484652468noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-8361826443422374502007-04-23T22:50:00.000+06:002007-04-23T22:50:00.000+06:00रवीश आपका ये कहना कि " लोग अब शिल्पा, जाह्नवी की ख...रवीश आपका ये कहना कि " लोग अब शिल्पा, जाह्नवी की खबरों का विरोध कर रहे हैं तो उम्मीद रखनी चाहिए । हालात बदलेंगे " सही आंकलन है। शिल्पा और जाह्नवी की ख़बरों को पेश करने के तरीके को लेकर कुछ न्यूज़ चैनलों को पत्रकारों ने भी अपने संस्थानो में आपत्ती दर्ज की और उनकी बात सुनी भी गयी। मुझे लगता है कि तर्कों के सहारे असहमति जताने वालों को बात सुनने वाले संपादक अभी टीवी की दुनिया से खऱत्म नहीं हुए हैं।iqbalhttps://www.blogger.com/profile/10833884276907196484noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-31462134806184465902007-04-23T19:07:00.000+06:002007-04-23T19:07:00.000+06:00एक बात रह गई सोचा वो भी लिख ही डालता हुँ..वो ये.. ...एक बात रह गई सोचा वो भी लिख ही डालता हुँ..<BR/>वो ये.. कि मेरा मत है पत्रकार को निरपेक्ष होना चाहिये.. लेकिन ये "फटी हुई पत्रकारिता" आजकल खुद ही मामले कि सुनवाई कर फैसला भी सुना देते है.. लगता है अदालतों कि जरुरत ही नहीं.. <BR/><BR/>पत्रकार का काम तथ्यों को सामने लाना है. बिना Judgemental हुए..रंजन (Ranjan)https://www.blogger.com/profile/04299961494103397424noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-31811882166783029612007-04-23T16:50:00.000+06:002007-04-23T16:50:00.000+06:00अच्छी स्टोरी लाने की ज़िम्मेदारी रिपोर्टर की है । ...अच्छी स्टोरी लाने की ज़िम्मेदारी रिपोर्टर की है । अगर रिपोर्टर इसमें चूकेगा तो संपादक डेस्क की मदद से इसी तरह की बकवास चीज़ों से अपना काम चलायेगा । यह पतन भी इसलिए आया कि रिपोर्टिंग में गिरावट आई ।<BR/><BR/>....शानदार टिप्पणी है. मैं खुद अपने संस्थान में इसे महसूस करता हूं. मगर इसे सिर्फ टीवी के लिए न माना जाय. तमाम अखबारों के अलावा मीडिया के सभी स्वरूप जो इसे ध्यान में न रखेंगे. पतन की ओर बढ़ेंगे.Pankaj Visheshhttps://www.blogger.com/profile/05387419560440803114noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-38576849906196260702007-04-23T14:17:00.000+06:002007-04-23T14:17:00.000+06:00रविश जी, शुक्रिया... न्युज चैनलो के लिए यह भावना आ...रविश जी, <BR/>शुक्रिया... <BR/><BR/>न्युज चैनलो के लिए यह भावना आज हर वर्ग मे है.. कंही तो लकीर खेचनी होगी.. हालत ये है कि आज तमाम तरह कि प्रतिबन्धित सामग्री समाचार के नाम पर दिखाई जाती है. हद तो ये है कि घंटो इनका प्रसारण होता है.. इन पर विशेष कार्यक्रम बनाये जाते है.. और इन कार्यक्रमों के ’टाइटल’ भी चुन - चुन के रखे जाते है. B grade या C grade कि फिल्मों कि तरह.<BR/><BR/>मल्लीका का डान्स हो या गेर का kiss हमने न्युज चैनलो पर ही देखा.. बार बार देखा.. <BR/><BR/>समझ से परे .. <BR/><BR/>कभी लगता है इनकी भी सेन्सरशीप होनी चाहिये. 'A', 'AU'..आदि certificate मिलना चाहिये.. कार्यक्रम से पहले लिखना चाहिये "सिर्फ व्यस्कों के लिये"..<BR/><BR/>एक कार्यक्रम को शायद कभी न भूल पाऊ वो है."आज मरुंगा मैं" सभी ने दिखाया MP के किसी गांव मे एक ज्योतिशी ने अपने मरने कि भविष्य्वाणी कि और सभी ने कई घण्टे live telecast किया...<BR/><BR/>एसे कई उदाहरण है..<BR/><BR/>न्युज चैनल आज क्या - क्या नहीं दिखाता.. <BR/>बस न्युज ही नहीं दिखाता..रंजन (Ranjan)https://www.blogger.com/profile/04299961494103397424noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-49223552614686300692007-04-23T14:12:00.000+06:002007-04-23T14:12:00.000+06:00अच्छा! रवीश ढंग की बाते करना भी जानते हैअच्छा! रवीश ढंग की बाते करना भी जानते हैArun Arorahttps://www.blogger.com/profile/14008981410776905608noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-54472424684171979802007-04-23T13:21:00.000+06:002007-04-23T13:21:00.000+06:00बढ़ई.. बढ़िया.. बढ़हा!बढ़ई.. बढ़िया.. बढ़हा!azdakhttps://www.blogger.com/profile/11952815871710931417noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-38584125675279833742007-04-23T13:07:00.000+06:002007-04-23T13:07:00.000+06:00जीतू भाई और काकेश जीब्लाग पर ज़िम्मेदारी तो है । ल...जीतू भाई और काकेश जी<BR/>ब्लाग पर ज़िम्मेदारी तो है । लेकिन इसे न्यूज के रूप में बनाना होगा । ब्लाग जितना लोकप्रिय हो सके होने दीजिए । और अपनी दुनिया के आस पास की चीज़ों को खबर की तरह पेश कीजिए । इसे रोकना मुश्किल होगा । लोगों का पत्रकारों पर जब भरोसा कम होगा तो लोग खुद यह काम करने लगेंगे । ब्लाग को विकल्प बनना ही होगा । हमारे पेशे में हमारे लिए ही जगह नहीं बची । तभी तो दिन रात ब्लागिंग कर रहे हैंravishndtvhttps://www.blogger.com/profile/02492102662853444219noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-64672209345310757272007-04-23T12:11:00.000+06:002007-04-23T12:11:00.000+06:00भई आवश्यकता अविष्कार की जननी है। लोग अखबार से उकता...भई आवश्यकता अविष्कार की जननी है। लोग अखबार से उकताए, तो टीवी पत्रकारिता और खोजी पत्रकारिता की तरफ़ मुड़े। वहाँ लोगो ने अश्लीलता और बकवास परोसनी शुरु कर दी तो, लोग ब्लॉग की तरफ़ मुड़े। अब ब्लॉगर्स की जिम्मेदारी है कि एक समानांतर मंच प्रदान करें। विभिन्न मुद्दों पर अपनी राय रखें। बिना किसी पूर्वाग्रह के। <BR/><BR/>ब्लॉग्स को अपनी राहें तलाशनी है, सफ़र तय करना है और मंजिले पानी है। अभी तो कई मुकाम आएंगे, कई बाधाएं और शायद ढेर सारे विवाद भी। लेकिन इन सब से ऊपर उठकर, ब्लॉगिंग को समानांतर मीडिया बनाने के उद्देश्य पर ही ध्यान केंद्रित किया जाए तो बेहतर होगा।Jitendra Chaudharyhttps://www.blogger.com/profile/09573786385391773022noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-67061342530484517862007-04-23T11:45:00.000+06:002007-04-23T11:45:00.000+06:00ऊपर वाले कमेंट्स में'कोई गंभीरता ठीक की नहीं 'को'क...ऊपर वाले कमेंट्स में<BR/><BR/>'कोई गंभीरता ठीक की नहीं '<BR/>को<BR/>'कोई गंभीरता थी की नहीं' <BR/>पढ़ा जायकाकेशhttps://www.blogger.com/profile/12211852020131151179noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-43322504700572412952007-04-23T11:43:00.000+06:002007-04-23T11:43:00.000+06:00कल कोई कह रहा था कि आत्मालोचना करनी चाहिये ..उस आत...कल कोई कह रहा था कि आत्मालोचना करनी चाहिये ..उस आत्मालोचना में कोई गंभीरता ठीक की नहीं ये तो नहीं मालूम लेकिन इस लेख में लग रहा है कि उस ज्वलंत मुद्दे को बखूबी उठाया गया है. ये चिंता एक गंभीर चिंता है. लेकिन शुकून की बात है कि अमेरीका में लोग पेपर छोड़ ब्लोग पढ़ रहे हैं ये भविष्य का संकेत भी है और ब्लौगर पर एक बड़ी जिम्मेवारी का बोध भी .<BR/><BR/>आप जैसे ब्लौगर ये जिम्मेवारी ठीक तरह से निभा सकते हैंकाकेशhttps://www.blogger.com/profile/12211852020131151179noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-87128083592392258162007-04-23T10:30:00.000+06:002007-04-23T10:30:00.000+06:00शुक्रिया ।शुक्रिया ।अफ़लातूनhttps://www.blogger.com/profile/08027328950261133052noreply@blogger.com