tag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post8285701307022151176..comments2024-03-22T11:14:13.300+05:00Comments on कस्बा qasba: दिल्ली के आसमान में चांदravish kumarhttp://www.blogger.com/profile/04814587957935118030noreply@blogger.comBlogger10125tag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-48449240048452779912009-12-19T00:09:43.177+05:002009-12-19T00:09:43.177+05:00बहुत प्यारी लाइंस हैं रविश जी ...
manojeet singhबहुत प्यारी लाइंस हैं रविश जी ...<br /><br />manojeet singhManoj Rautelahttps://www.blogger.com/profile/11921453035705662742noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-32053379748653052872009-12-18T14:16:44.710+05:002009-12-18T14:16:44.710+05:00आपको क्या पता कसबे में आने से क्या मिलता है ?आपको क्या पता कसबे में आने से क्या मिलता है ?Navin rangiyalhttps://www.blogger.com/profile/14472010320875454612noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-54184305662100037922009-12-17T12:57:20.939+05:002009-12-17T12:57:20.939+05:00लाइट से चकमा और जाम में फंसने की बात समझ से बाहर ह...लाइट से चकमा और जाम में फंसने की बात समझ से बाहर है। बाकी चीज़ें अच्छी हैं। ज़माने के मुताबिक।मधुकर राजपूतhttps://www.blogger.com/profile/18175900220847414275noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-82322875266170902472009-12-17T11:50:02.875+05:002009-12-17T11:50:02.875+05:00bahut he umda kism ki kavita likhi aapne........pa...bahut he umda kism ki kavita likhi aapne........padh kar achha laga <br /><br />please visit my blog lakshya4may.blogspot.comlakshya kharehttps://www.blogger.com/profile/03439152067097383556noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-2765189254997353832009-12-17T07:36:05.187+05:002009-12-17T07:36:05.187+05:00जहां तकियों के नीचे छुपाकर चेहरा
रची जाने लगी थीं...जहां तकियों के नीचे छुपाकर चेहरा <br />रची जाने लगी थीं इश्क की कल्पनाएं <br />आवारा लग रहा था चांद <br />दिल्ली के आसमान में .....<br /><br />बेहद ही खूबसूरत रचना.....अमृत कुमार तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/00404648697774307768noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-56551088692612002872009-12-17T06:10:57.127+05:002009-12-17T06:10:57.127+05:00"इक चाँद तो रहता है नभ पर
दूजा उतर आया धरती प..."इक चाँद तो रहता है नभ पर<br />दूजा उतर आया धरती पर,"<br /><br />इंजीनियरिंग कॉलेज में यह पंक्ति मेरे एक दोस्त के मुंह से अक्सर सुनाई पड़ती थी जब कोई चाँद पास से गुजर जाता था :)<br /><br />जब हम बच्चे थे तो चाँद जब पूरा होता था पूर्णमासी में तो अंगेज़ नारी की याद दिलाता था. और भारतीय नयी नवेली बहू अमावस्या के चाँद समान - पूरा चेहरा ढका. और 'मुंह दिखाई' में आई सब स्त्रियाँ, वर की रिश्तेदार का एक एक कर घूँघट उठा चेहरा देख उसे कुछ रुपये आदि गिफ्ट देने का रिवाज़ एक जिज्ञासा उत्पन्न करता था इस प्रथा के चलन के स्रोत का...<br />वो अब समझ में आया कि यह तो चाँद ही है माया का कारण तभी तो प्राचीन भारतीय 'हिन्दू' कहलाया - चाँद को इन्दू कहा जाता है संस्कृत में, और 'प्राचीन हिन्दू' किन्तु पहुंचे हुवे खगोलशास्त्री ही थे जिन्होंने चन्द्रमा के चक्र के आधार पर कैलेंडर यानि पंचांग रचा...आज भी क्षत्रिय हिन्दू नारी करवा चौथ मनाती हैं, और सत्य को कटु यानि 'कडवा' कहा जाता है :) <br />जिस पर एक अंग्रेजी चुटकुला याद आ गया कि कैसे एक बाप अपने बेटे के साथ कडवी दारू के साथ कडवा ओलिव फल खा रहे थे. लड़का पहली बार खा-पी रहा था, इस लिए कुछ देर बाद पिताजी से बोला "पिताजी यह कमाल है कि मेरे पास कडवे ओलिव ही आ रहे हैं जबकि आपके पास सब मीठे :) .JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-58359016368491761962009-12-16T22:09:37.369+05:002009-12-16T22:09:37.369+05:00शुक्र है रवीश जी कम से कम आपको दिल्ली में चाँद तो ...शुक्र है रवीश जी कम से कम आपको दिल्ली में चाँद तो देखने को मिल जाता है. यहाँ तो दिल्ली में रहते हुए महीनो हो जाते हैं आसमान की ओर देखे हुए. अब ये फ्लैट में आपको पता ही है, इन बिल्डिंगों के जंगल में आसमान की ओर देखने का मौका ही कहाँ मिलता है. और रास्ते, यहाँ ख़ुद को बचाएँ या चाँद देंखे.nadeemhttps://www.blogger.com/profile/02876217379889434662noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-3789796298950086442009-12-16T19:38:33.192+05:002009-12-16T19:38:33.192+05:00जब भी आप को पढ़ती हूं तो ऐसा लगता है कि एक प्रसिद्...जब भी आप को पढ़ती हूं तो ऐसा लगता है कि एक प्रसिद्ध पत्रकार के पीछे रहने वाला इंसान खुद को ही कहीं ढूंढ रहा है <br />कविता हमेशा की तरह आप के मन से निकलकर पाठको के मन का छूती हैअति Randomhttps://www.blogger.com/profile/04443001003779463643noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-77322161048426964882009-12-16T19:17:26.716+05:002009-12-16T19:17:26.716+05:00गोल ही अच्छा लगता है चांद
भोला सा
जैसे निकल आया ...गोल ही अच्छा लगता है चांद <br />भोला सा <br />जैसे निकल आया हो मेरे गांव से <br />दिल्ली के आसमान में <br />बिना बताये <br />बाबूजी और मुखिया जी को <br />आवारा लग रहा था <br />दिल्ली के आसमान में -----<br /><br />रवीश जी ,<br />बहुत अच्छी लगी आपकी यह कविता।सचमुच दिल्ली के आसमान में इन दिनों चांद दिखने की कल्पना ही नहीं हो सकती----निकलता भी होगा तो धूल धुयें और धुंध का गुबार उसे दिखने नहीं देगा---बाबू जी और मुखिया जी का नाम पढ़ते ही आपकी बाबू जी---वाली कविता याद आ गयी---वह एक बेहतरीन संवेदनात्मक कविता है----<br />हेमन्त कुमारडा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumarhttps://www.blogger.com/profile/03899926393197441540noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-68689207963170635072009-12-16T19:11:58.268+05:002009-12-16T19:11:58.268+05:00कैसे खा गया था रेड लाईट से चकमा
रूक रूक के निकलना...कैसे खा गया था रेड लाईट से चकमा <br />रूक रूक के निकलना पड़ा था चांद को <br />लौटने से पहले अपने गांव <br />घंटों फंसे रहना पड़ा था जाम में <br />आपकी कविता पढ़ने पर ऐसा लगा कि आप बहुत सूक्ष्मता से एक अलग धरातल पर चीज़ों को देखते हैं। इस कविता में बहुत बेहतर, बहुत गहरे स्तर पर एक बहुत ही छुपी हुई करुणा और गम्भीरता है।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.com