tag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post3668600678792657263..comments2024-03-22T11:14:13.300+05:00Comments on कस्बा qasba: मुज़फ़्फ़रनगर में दंगा, दलों का दंगलravish kumarhttp://www.blogger.com/profile/04814587957935118030noreply@blogger.comBlogger49125tag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-86230162546079878582013-09-15T13:37:00.358+05:002013-09-15T13:37:00.358+05:00अब तक, तो मोदी जी मजबूरी थे, अब जरूरी हो गए हैं अब तक, तो मोदी जी मजबूरी थे, अब जरूरी हो गए हैं Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/11291818100696183607noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-67900253031105897512013-09-14T11:58:56.488+05:002013-09-14T11:58:56.488+05:00मुजफ्फर नगर की ताजा सांप्रदायिक हिंसा में मारे गए ...मुजफ्फर नगर की ताजा सांप्रदायिक हिंसा में मारे गए और लापता लोगों के आंकड़ों की तुलना करें तो दोनों में बहुत अंतर दिखाई देता है। आधिकारिक तौर पर 43+ लोग मरे हैं और सैकड़ों लापता हैं। पता नहीं कि लापता लोग कौन हैं और कहाँ हैं। भारत एक सार्वभौमिक राष्ट्र है। दुनिया के इस सबसे बड़े लोकतंत्र में विभिन्न धर्मों, संस्कृतियों, भाषाओं तथा राजनीतिक मान्यताओं वाले लोग रहते हैं। इन की मौजूदगी की वजह से भारत में परस्पर विरोध एवं आंतरिक कलह की संभावना बनी रहती है। इन परिस्थितियों में पुलिस को बिना भेदभाव के सुरक्षा करने के अपेक्षा की जाती है लेकिन भारत में पुलिस बल हमारे समाज का एक बेहद संशय से देखा जाने वाला संगठन है। <br /> हमारे देश में पुलिस और विभिन्न समुदायों के बीच सौहार्दपूर्ण रिश्ता नहीं है, और सामान्य रूप से भारतीय समाज की नजर में पुलिस की सकारात्मक छवि नहीं है, अल्पसंख्यक तो विशेष रूप से पुलिस पर अपना विश्वास पूरी तरह खो चुके हैं। दलित भी पुलिस के हाथों प्रताड़ित होते रहे हैं। यह भी एक सच्चाई है कि सामान्य परिस्थितियों में पुलिस के दुर्वव्यहार और इस विभाग के संस्थागत भ्रष्टाचार की वजह से बहुसंख्यकों एंव अल्पसंख्यकों को समान रूप से परेशान होना पड़ता है। साम्प्रदायिक दंगों या फिर दंगे जैसी परिस्थितियों में पुलिस योजनाबद्ध तरीके से जान-बूझकर अल्पसंख्यकों को परेशान करती है। वर्ष 1969 में अहमदाबाद के साम्प्रदायिक दंगों, 1980 के मुरादाबाद दंगों, 1984 के सिख विरोधी दंगों, 1987 के मेरठ दंगों, 1989 के भागलपुर दंगों, 1992-93 के मुंबई दंगों से लेकर 2002 में गुजरात में हुए जनसंहार से संबंधित कागजातों के सर्वेक्षण से यह स्पष्ट होता है। वर्ष 1977 में उत्तर प्रदेश के वाराणसी में एक भीषण सांप्रदायिक दंगा हुआ था। यहां फिर से पुलिस पर सांप्रदायिक दुर्भावना और भेदभाव रवैये का आरोप लगा था। <br />पुलिस राज्य के पीड़क तंत्र का प्रतिनिधित्व करती हैं। पुलिस का चरित्र सत्ता का ही चरित्र होता है। यह संस्था राज्य द्वारा संचालित राजनीतिक तंत्र से प्रभावित होती है। जब तक पुलिस बल की संरचना में बदलाव कर उनमें विभिन्न समुदायों, विशेष रूप से दलितों एवं अल्संख्यकों को समाहित नहीं किया जाता है, तब तक पुलिस महकमे को तटस्थ नहीं बनाया जा सकता। आज आवश्यकता इस बात की है कि पुलिस बल को सक्षम, प्रभावशाली और भेदभाव रहित कानून का पालक बनाया जा सके। <br />भारतीय संविधान और तत्कालीन राजनीति का काम नागरिकों को अपने कर्त्तव्य की शिक्षा देना, लोगों से मन से संकीर्णता निकालना, साम्प्रदायिक भावनाएँ हटाना, परस्पर मेल-मिलाप बढ़ाना और भारत की साझी राष्ट्रीयता बनाना था लेकिन अब इन्होंने अपना मुख्य कर्त्तव्य अज्ञान फैलाना, संकीर्णता का प्रचार करना, अपराधी तत्वों को संरक्षण देना, साम्प्रदायिक वैमनष्य बढाना, लड़ाई-झगड़े करवाना और भारत की साझी राष्ट्रीयता को नष्ट करना बना लिया है। यही कारण है कि भारतवर्ष की वर्तमान दशा अराजकता की हो गई है, कानून का राज ख़त्म हो गया है। सभी धर्मों और जातियों के गरीब, मेहनतकशों व किसानों को स्पष्ट रूप से समझ लेना चाहिए कि उनका असली शत्रु यह शोषक और आततायी राज है। उसके ये राजनीतिक नुमाइन्दे ही हैं जो वोट और अपने बाहुबल को कायम रखने के लिए लाखों लोगों को बेहिचक कुर्बान कर सकते हैं। इसलिए इनके हथकंडों से बचकर रहने की आवश्यकता है। <br />कबीर के शब्दों में "हिन्दू कहत,राम हमारा, मुसलमान रहमाना । आपस में दौऊ लड़ै मरत हैं, मरम कोई नहिं जाना।"Shailendra Chauhanhttps://www.blogger.com/profile/03051121001166943456noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-26272968725437381802013-09-14T11:58:51.294+05:002013-09-14T11:58:51.294+05:00मुजफ्फर नगर की ताजा सांप्रदायिक हिंसा में मारे गए ...मुजफ्फर नगर की ताजा सांप्रदायिक हिंसा में मारे गए और लापता लोगों के आंकड़ों की तुलना करें तो दोनों में बहुत अंतर दिखाई देता है। आधिकारिक तौर पर 43+ लोग मरे हैं और सैकड़ों लापता हैं। पता नहीं कि लापता लोग कौन हैं और कहाँ हैं। भारत एक सार्वभौमिक राष्ट्र है। दुनिया के इस सबसे बड़े लोकतंत्र में विभिन्न धर्मों, संस्कृतियों, भाषाओं तथा राजनीतिक मान्यताओं वाले लोग रहते हैं। इन की मौजूदगी की वजह से भारत में परस्पर विरोध एवं आंतरिक कलह की संभावना बनी रहती है। इन परिस्थितियों में पुलिस को बिना भेदभाव के सुरक्षा करने के अपेक्षा की जाती है लेकिन भारत में पुलिस बल हमारे समाज का एक बेहद संशय से देखा जाने वाला संगठन है। <br /> हमारे देश में पुलिस और विभिन्न समुदायों के बीच सौहार्दपूर्ण रिश्ता नहीं है, और सामान्य रूप से भारतीय समाज की नजर में पुलिस की सकारात्मक छवि नहीं है, अल्पसंख्यक तो विशेष रूप से पुलिस पर अपना विश्वास पूरी तरह खो चुके हैं। दलित भी पुलिस के हाथों प्रताड़ित होते रहे हैं। यह भी एक सच्चाई है कि सामान्य परिस्थितियों में पुलिस के दुर्वव्यहार और इस विभाग के संस्थागत भ्रष्टाचार की वजह से बहुसंख्यकों एंव अल्पसंख्यकों को समान रूप से परेशान होना पड़ता है। साम्प्रदायिक दंगों या फिर दंगे जैसी परिस्थितियों में पुलिस योजनाबद्ध तरीके से जान-बूझकर अल्पसंख्यकों को परेशान करती है। वर्ष 1969 में अहमदाबाद के साम्प्रदायिक दंगों, 1980 के मुरादाबाद दंगों, 1984 के सिख विरोधी दंगों, 1987 के मेरठ दंगों, 1989 के भागलपुर दंगों, 1992-93 के मुंबई दंगों से लेकर 2002 में गुजरात में हुए जनसंहार से संबंधित कागजातों के सर्वेक्षण से यह स्पष्ट होता है। वर्ष 1977 में उत्तर प्रदेश के वाराणसी में एक भीषण सांप्रदायिक दंगा हुआ था। यहां फिर से पुलिस पर सांप्रदायिक दुर्भावना और भेदभाव रवैये का आरोप लगा था। <br />पुलिस राज्य के पीड़क तंत्र का प्रतिनिधित्व करती हैं। पुलिस का चरित्र सत्ता का ही चरित्र होता है। यह संस्था राज्य द्वारा संचालित राजनीतिक तंत्र से प्रभावित होती है। जब तक पुलिस बल की संरचना में बदलाव कर उनमें विभिन्न समुदायों, विशेष रूप से दलितों एवं अल्संख्यकों को समाहित नहीं किया जाता है, तब तक पुलिस महकमे को तटस्थ नहीं बनाया जा सकता। आज आवश्यकता इस बात की है कि पुलिस बल को सक्षम, प्रभावशाली और भेदभाव रहित कानून का पालक बनाया जा सके। <br />भारतीय संविधान और तत्कालीन राजनीति का काम नागरिकों को अपने कर्त्तव्य की शिक्षा देना, लोगों से मन से संकीर्णता निकालना, साम्प्रदायिक भावनाएँ हटाना, परस्पर मेल-मिलाप बढ़ाना और भारत की साझी राष्ट्रीयता बनाना था लेकिन अब इन्होंने अपना मुख्य कर्त्तव्य अज्ञान फैलाना, संकीर्णता का प्रचार करना, अपराधी तत्वों को संरक्षण देना, साम्प्रदायिक वैमनष्य बढाना, लड़ाई-झगड़े करवाना और भारत की साझी राष्ट्रीयता को नष्ट करना बना लिया है। यही कारण है कि भारतवर्ष की वर्तमान दशा अराजकता की हो गई है, कानून का राज ख़त्म हो गया है। सभी धर्मों और जातियों के गरीब, मेहनतकशों व किसानों को स्पष्ट रूप से समझ लेना चाहिए कि उनका असली शत्रु यह शोषक और आततायी राज है। उसके ये राजनीतिक नुमाइन्दे ही हैं जो वोट और अपने बाहुबल को कायम रखने के लिए लाखों लोगों को बेहिचक कुर्बान कर सकते हैं। इसलिए इनके हथकंडों से बचकर रहने की आवश्यकता है। <br />कबीर के शब्दों में "हिन्दू कहत,राम हमारा, मुसलमान रहमाना । आपस में दौऊ लड़ै मरत हैं, मरम कोई नहिं जाना।"Shailendra Chauhanhttps://www.blogger.com/profile/03051121001166943456noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-4816697924675078582013-09-14T11:58:46.358+05:002013-09-14T11:58:46.358+05:00मुजफ्फर नगर की ताजा सांप्रदायिक हिंसा में मारे गए ...मुजफ्फर नगर की ताजा सांप्रदायिक हिंसा में मारे गए और लापता लोगों के आंकड़ों की तुलना करें तो दोनों में बहुत अंतर दिखाई देता है। आधिकारिक तौर पर 43+ लोग मरे हैं और सैकड़ों लापता हैं। पता नहीं कि लापता लोग कौन हैं और कहाँ हैं। भारत एक सार्वभौमिक राष्ट्र है। दुनिया के इस सबसे बड़े लोकतंत्र में विभिन्न धर्मों, संस्कृतियों, भाषाओं तथा राजनीतिक मान्यताओं वाले लोग रहते हैं। इन की मौजूदगी की वजह से भारत में परस्पर विरोध एवं आंतरिक कलह की संभावना बनी रहती है। इन परिस्थितियों में पुलिस को बिना भेदभाव के सुरक्षा करने के अपेक्षा की जाती है लेकिन भारत में पुलिस बल हमारे समाज का एक बेहद संशय से देखा जाने वाला संगठन है। <br /> हमारे देश में पुलिस और विभिन्न समुदायों के बीच सौहार्दपूर्ण रिश्ता नहीं है, और सामान्य रूप से भारतीय समाज की नजर में पुलिस की सकारात्मक छवि नहीं है, अल्पसंख्यक तो विशेष रूप से पुलिस पर अपना विश्वास पूरी तरह खो चुके हैं। दलित भी पुलिस के हाथों प्रताड़ित होते रहे हैं। यह भी एक सच्चाई है कि सामान्य परिस्थितियों में पुलिस के दुर्वव्यहार और इस विभाग के संस्थागत भ्रष्टाचार की वजह से बहुसंख्यकों एंव अल्पसंख्यकों को समान रूप से परेशान होना पड़ता है। साम्प्रदायिक दंगों या फिर दंगे जैसी परिस्थितियों में पुलिस योजनाबद्ध तरीके से जान-बूझकर अल्पसंख्यकों को परेशान करती है। वर्ष 1969 में अहमदाबाद के साम्प्रदायिक दंगों, 1980 के मुरादाबाद दंगों, 1984 के सिख विरोधी दंगों, 1987 के मेरठ दंगों, 1989 के भागलपुर दंगों, 1992-93 के मुंबई दंगों से लेकर 2002 में गुजरात में हुए जनसंहार से संबंधित कागजातों के सर्वेक्षण से यह स्पष्ट होता है। वर्ष 1977 में उत्तर प्रदेश के वाराणसी में एक भीषण सांप्रदायिक दंगा हुआ था। यहां फिर से पुलिस पर सांप्रदायिक दुर्भावना और भेदभाव रवैये का आरोप लगा था। <br />पुलिस राज्य के पीड़क तंत्र का प्रतिनिधित्व करती हैं। पुलिस का चरित्र सत्ता का ही चरित्र होता है। यह संस्था राज्य द्वारा संचालित राजनीतिक तंत्र से प्रभावित होती है। जब तक पुलिस बल की संरचना में बदलाव कर उनमें विभिन्न समुदायों, विशेष रूप से दलितों एवं अल्संख्यकों को समाहित नहीं किया जाता है, तब तक पुलिस महकमे को तटस्थ नहीं बनाया जा सकता। आज आवश्यकता इस बात की है कि पुलिस बल को सक्षम, प्रभावशाली और भेदभाव रहित कानून का पालक बनाया जा सके। <br />भारतीय संविधान और तत्कालीन राजनीति का काम नागरिकों को अपने कर्त्तव्य की शिक्षा देना, लोगों से मन से संकीर्णता निकालना, साम्प्रदायिक भावनाएँ हटाना, परस्पर मेल-मिलाप बढ़ाना और भारत की साझी राष्ट्रीयता बनाना था लेकिन अब इन्होंने अपना मुख्य कर्त्तव्य अज्ञान फैलाना, संकीर्णता का प्रचार करना, अपराधी तत्वों को संरक्षण देना, साम्प्रदायिक वैमनष्य बढाना, लड़ाई-झगड़े करवाना और भारत की साझी राष्ट्रीयता को नष्ट करना बना लिया है। यही कारण है कि भारतवर्ष की वर्तमान दशा अराजकता की हो गई है, कानून का राज ख़त्म हो गया है। सभी धर्मों और जातियों के गरीब, मेहनतकशों व किसानों को स्पष्ट रूप से समझ लेना चाहिए कि उनका असली शत्रु यह शोषक और आततायी राज है। उसके ये राजनीतिक नुमाइन्दे ही हैं जो वोट और अपने बाहुबल को कायम रखने के लिए लाखों लोगों को बेहिचक कुर्बान कर सकते हैं। इसलिए इनके हथकंडों से बचकर रहने की आवश्यकता है। <br />कबीर के शब्दों में "हिन्दू कहत,राम हमारा, मुसलमान रहमाना । आपस में दौऊ लड़ै मरत हैं, मरम कोई नहिं जाना।"Shailendra Chauhanhttps://www.blogger.com/profile/03051121001166943456noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-33829445441506474652013-09-14T11:55:42.891+05:002013-09-14T11:55:42.891+05:00मुजफ्फर नगर की ताजा सांप्रदायिक हिंसा में मारे गए ...मुजफ्फर नगर की ताजा सांप्रदायिक हिंसा में मारे गए और लापता लोगों के आंकड़ों की तुलना करें तो दोनों में बहुत अंतर दिखाई देता है। आधिकारिक तौर पर 43+ लोग मरे हैं और सैकड़ों लापता हैं। पता नहीं कि लापता लोग कौन हैं और कहाँ हैं। भारत एक सार्वभौमिक राष्ट्र है। दुनिया के इस सबसे बड़े लोकतंत्र में विभिन्न धर्मों, संस्कृतियों, भाषाओं तथा राजनीतिक मान्यताओं वाले लोग रहते हैं। इन की मौजूदगी की वजह से भारत में परस्पर विरोध एवं आंतरिक कलह की संभावना बनी रहती है। इन परिस्थितियों में पुलिस को बिना भेदभाव के सुरक्षा करने के अपेक्षा की जाती है लेकिन भारत में पुलिस बल हमारे समाज का एक बेहद संशय से देखा जाने वाला संगठन है। <br /> हमारे देश में पुलिस और विभिन्न समुदायों के बीच सौहार्दपूर्ण रिश्ता नहीं है, और सामान्य रूप से भारतीय समाज की नजर में पुलिस की सकारात्मक छवि नहीं है, अल्पसंख्यक तो विशेष रूप से पुलिस पर अपना विश्वास पूरी तरह खो चुके हैं। दलित भी पुलिस के हाथों प्रताड़ित होते रहे हैं। यह भी एक सच्चाई है कि सामान्य परिस्थितियों में पुलिस के दुर्वव्यहार और इस विभाग के संस्थागत भ्रष्टाचार की वजह से बहुसंख्यकों एंव अल्पसंख्यकों को समान रूप से परेशान होना पड़ता है। साम्प्रदायिक दंगों या फिर दंगे जैसी परिस्थितियों में पुलिस योजनाबद्ध तरीके से जान-बूझकर अल्पसंख्यकों को परेशान करती है। वर्ष 1969 में अहमदाबाद के साम्प्रदायिक दंगों, 1980 के मुरादाबाद दंगों, 1984 के सिख विरोधी दंगों, 1987 के मेरठ दंगों, 1989 के भागलपुर दंगों, 1992-93 के मुंबई दंगों से लेकर 2002 में गुजरात में हुए जनसंहार से संबंधित कागजातों के सर्वेक्षण से यह स्पष्ट होता है। वर्ष 1977 में उत्तर प्रदेश के वाराणसी में एक भीषण सांप्रदायिक दंगा हुआ था। यहां फिर से पुलिस पर सांप्रदायिक दुर्भावना और भेदभाव रवैये का आरोप लगा था। <br />पुलिस राज्य के पीड़क तंत्र का प्रतिनिधित्व करती हैं। पुलिस का चरित्र सत्ता का ही चरित्र होता है। यह संस्था राज्य द्वारा संचालित राजनीतिक तंत्र से प्रभावित होती है। जब तक पुलिस बल की संरचना में बदलाव कर उनमें विभिन्न समुदायों, विशेष रूप से दलितों एवं अल्संख्यकों को समाहित नहीं किया जाता है, तब तक पुलिस महकमे को तटस्थ नहीं बनाया जा सकता। आज आवश्यकता इस बात की है कि पुलिस बल को सक्षम, प्रभावशाली और भेदभाव रहित कानून का पालक बनाया जा सके। <br />भारतीय संविधान और तत्कालीन राजनीति का काम नागरिकों को अपने कर्त्तव्य की शिक्षा देना, लोगों से मन से संकीर्णता निकालना, साम्प्रदायिक भावनाएँ हटाना, परस्पर मेल-मिलाप बढ़ाना और भारत की साझी राष्ट्रीयता बनाना था लेकिन अब इन्होंने अपना मुख्य कर्त्तव्य अज्ञान फैलाना, संकीर्णता का प्रचार करना, अपराधी तत्वों को संरक्षण देना, साम्प्रदायिक वैमनष्य बढाना, लड़ाई-झगड़े करवाना और भारत की साझी राष्ट्रीयता को नष्ट करना बना लिया है। यही कारण है कि भारतवर्ष की वर्तमान दशा अराजकता की हो गई है, कानून का राज ख़त्म हो गया है। सभी धर्मों और जातियों के गरीब, मेहनतकशों व किसानों को स्पष्ट रूप से समझ लेना चाहिए कि उनका असली शत्रु यह शोषक और आततायी राज है। उसके ये राजनीतिक नुमाइन्दे ही हैं जो वोट और अपने बाहुबल को कायम रखने के लिए लाखों लोगों को बेहिचक कुर्बान कर सकते हैं। इसलिए इनके हथकंडों से बचकर रहने की आवश्यकता है। <br />कबीर के शब्दों में "हिन्दू कहत,राम हमारा, मुसलमान रहमाना । आपस में दौऊ लड़ै मरत हैं, मरम कोई नहिं जाना।"Shailendra Chauhanhttps://www.blogger.com/profile/03051121001166943456noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-36103814956628526842013-09-13T11:08:30.234+05:002013-09-13T11:08:30.234+05:00
Dharatee kee sulagatee chhatee ke bechain sharar...<br /> Dharatee kee sulagatee chhatee ke bechain sharare puchhate hain<br /> <br /> Yeh kiska lahu hai kaun mara - (2)<br /> Ai rahabar mulko kaum bata<br /> Yeh kiska lahu hai kaun mara<br /> <br /> Yeh jalate huye ghar kiske hai, yeh katate huye tan kiske hain<br /> Taksim ke andhe tufan me, lutate huye gulshan kiske hain<br /> Bad bakt kijaye kiski hain, barabad nasheman kiske hain<br /> Kuchh ham bhee sune hamako bhee suna<br /> <br /> Ai rahbar mulko kaum bata, yeh kiska lahu hai kaun mara<br /> <br /> Kis kam ke hain yeh din dharam, jo sharm kaa daman chak kare<br /> Kis tarah ke hain yeh desh bhagat, jo baste gharo ko kak kare<br /> Yeh ruhe kaisee ruhe hain, jo dharatee ko napak kare<br /> Aankhe toh utha najre toh mila<br /> <br /> Ai rahbar mulko kaum bata, yeh kiska lahu hai kaun mara<br /> <br /> Jis ram ke nam peh kun bahe, us ram kee ijjat kya hogee<br /> Jis din ke hatho laj lute, us din kee kimat kya hogee<br /> Insan kee iss jillat se pare, shaitan kee jillat kya hogee<br /> Yeh ved hata kuran utha<br /> <br /> Ai rahbar mulko kaum bata, yeh kiska lahu hai kaun maraAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-33571359448312720112013-09-11T17:11:58.252+05:002013-09-11T17:11:58.252+05:00Dange par raajneeti jari hai aur apka chanel bhi k...Dange par raajneeti jari hai aur apka chanel bhi kal se hi covering kar raha aur wo bhi aise jaishe ki dange ki suruat hinduo ne ki aur muslim bhai mare ya bhagaye gaye hain...<br />sanjayahttps://www.blogger.com/profile/01739568501273781177noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-36918649311981411922013-09-11T16:17:39.515+05:002013-09-11T16:17:39.515+05:00आप अपने घर सिर्फ चार लोगों को सिर्फ चाय पे invite ... आप अपने घर सिर्फ चार लोगों को सिर्फ चाय पे invite करते हो तो भी आप को plan करना पड़ेगा :) i mean हथियार बंध दंगों का विश्लेष्ण सिर्फ 2या3 दल-दल से आप नहीं कर सकते(1)<br />दो जाती या धर्मं विशेष की असुविधाओं की अवगणना हुई है-उसके मूल मानवाधिकारों की भी? (2)<br />घटना मैं कोई दल विशेष का या धर्मं/जाती विशेष का प्रदान पाया नहीं गया है और घटना सम्पूर्णतः localites ने अंजाम दी है--मगर विशेष नोन्ध्निय बन गई है मृत्यु के बाद वह भी सिर्फ वहां के concerned people के लिए (3)<br />अब media कूदता है खबरें बटोरने के लिए-तो दल-दल भी कूदेंगे ही ख़बरों का हमसाया बन ने के लिए?(4)<br />फिर यह चारों मुद्दों को जोड़ जोड़ कर एक चर्चा नाम के दाल-चावल उगाये जातें हैं मुद्दों की जमीन पे (5)<br />उसमें कायदा/law n order/प्रशाशनिक कार्यवाही etc etc नमक/मसालें डलते हैं<br />लो चलो "चुनावी खिचड़ी" तैयार :) :) वह भी 5 लोगों के लिए<br />(1)दल (2) नेता (3)मीडिया (4)क्षेत्र(area) (5)बुद्धिजीवी<br /><br />अगर मत'दाता' मैं "गैरत" है तो यह बेहूदी खिचड़ी खा ले और चुप रहे तो उनको यह 5 लोग 'democretic' की degree से नवाजेंगे :) और अगर नहीं है तो खुद *खिचड़ी पका ले* <br /><br />****NOTE****<br />I AM A VOTER ONLY - so. ...<br />न हम अपने लिए खाते है न ही देश के लिए-हां 'खाने' के जुगाड़ करते जरुर नज़र भी आते है(नौकरी) या पकडे भी जाते है(दल हीन) :)<br /><br />nptHeerhttps://www.blogger.com/profile/18101668006499121498noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-69068788401031615152013-09-11T03:07:48.695+05:002013-09-11T03:07:48.695+05:00प्रवीण की कविता बहुत कुछ गयी. बहुत अच्च्छा सवाल है...प्रवीण की कविता बहुत कुछ गयी. बहुत अच्च्छा सवाल है . मेरा तो जान पहचान नही है धर्म से, जो जानते है उनसे ही ये स्वाल पुच्हूंगा.USBhttps://www.blogger.com/profile/06898166077199653784noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-61958838405071379602013-09-10T23:47:53.518+05:002013-09-10T23:47:53.518+05:00sir ye apka twitter accont hai"@ravishndtv&qu...sir ye apka twitter accont hai"@ravishndtv" sir plzDulhaniyaahttps://www.blogger.com/profile/11707213877848700144noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-210785569968498732013-09-10T17:19:45.838+05:002013-09-10T17:19:45.838+05:00raveesh ji saari baat sirf rajneetik chashmen se h...raveesh ji saari baat sirf rajneetik chashmen se hi kyon dekhi jaa rahi hai ?? jab ki dange aur jaatiwaadi jhagde uttar pradesh ka itihaas rahe hai .. aap apne shahron ka samaajik taana baana dekhiye .. muslim bastiyan alag hoti to walmikiyon aur so called shoodron ki alag bade log jismen jyadatar upper cast hote hain wo alag basti bana kar rahte hai .. musalmaanon ke school alag hote hai madarse ke bheetar kya chalta hai isko hamensha shak ki nigah se hi dekha jaata hai ... jab se india bana ham roj secular hone ke gaane to gaate hai lekin bastiyan alag hi basaate hai ... hamara samaaj andar se vibhaajit hai lekin ham us sachchayi ko dekhna nahin chahte aur uske oopar sarwadharm sambhav aur secularism ka labaada chada kar ye bhoolne ki koshish karte hai ki hamara samaaj kuch galat baaten apne charitra men laa chuka hai... aise dange us samaaj ki wo chadar hata dete hai .. musalmaan aaj bhi india men bahari hi maana jaata hai aur hindu ko wo aaj bhi kaafir ki shreni men hi rakhta hai .. ye baat main us tabke ke liye kar raha hoon jo dangon men maarne ya marne jaate hai.. is liye mujhe bilkul bhi ashcharya nahin hota ki mulayam ya modi usi maansikta ko besharmi se bhunaate hai aur laashon ki sankhya par pradhan mantri aur mukhyamantri chune jaane ka sapna dekhte hai ... aap ek baar is samaaj ka sting operation kijiye logon se camera hata kar baat kariye .. pata chal jayega ki dangon ke doshi sirf mulayam ya modi nahin hote ... hamare dimaagon men shaitan aaj bhi baitha hua hai wo kabhi kabhi zara si shah milte hi bahar aa jata hai ...mayank sachanhttps://www.blogger.com/profile/12929256976502972688noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-56522700054281746922013-09-10T15:24:56.664+05:002013-09-10T15:24:56.664+05:00कुँए का मेढ़क बना देश का इलेक्ट्रॉनिक मीडिया
देश क...कुँए का मेढ़क बना देश का इलेक्ट्रॉनिक मीडिया<br /><br />देश के महाभ्रष्ट इलेक्ट्रॉनिक मीडिया (महाभ्रष्ट इलेक्ट्रॉनिक मीडिया इसलिए क्यों की उसका उल्लेख मैं अपने पूर्व के ब्लॉग में विस्तारपूर्वक कर चूका हूँ अत: मेरे पूर्व के ब्लॉग का अध्यन जागरणजंक्शन.कॉम पर करे ) के उन न्यूज़ चैनलों को अपने गिरेबान में झाँक कर देखना चाहिए जो न्यूज़ चैनल के नाम के आगे ”इंडिया” या देश का नॉ.१ इत्यादि शब्दों का प्रयोग करते है. क्यों की इन इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के कुँए के मेढक न्यूज़ चैनलों का राडार या तो एन.सी.आर. या फिर बीमारू राज्य तक सीमित रहता है. कुए के मेढ़क बने इन न्यूज़ चैनलों को दिल्ली का “दामिनी” केस तो दिख जाता है लेकिन जब नागालैंड में कोई लड़की दिल्ली के “दामनी” जैसी शिकार बनती है तो वह घटना इन न्यूज़ चैनलों को तो दूर, इनके आकाओं को भी नहीं मालूम पड़ पाती. आई.ए.एस. दुर्गा नागपाल की के निलंबन की खबर इनके राडार पड़ इसलिए चढ़ जाती हैं क्यों की वो घटना नोएडा में घटित हो रही है जहाँ इन कुँए के मेढक न्यूज़ चैनलों के दफ्तर है जबकि दुर्गा जैसी किसी महिला अफसर के साथ यदि मणिपुर में नाइंसाफी होती है तो वह बात इनको दूर-दूर तक मालूम नहीं पड़ पाती है कारण साफ़ है की खुद को देश का चैनल बताने वाले इन कुँए का मेढ़क न्यूज़ चैनलों का कोई संबाददाता आज देश उत्तर-पूर्व इलाकों में मौजूद नहीं है. देश का इलेक्ट्रॉनिक मीडिया जिस तरह से न्यूज़ की रिपोर्टिंग करता है उससे तो मालूम पड़ता है की देश के उत्तर-पूर्व राज्यों में कोई घटना ही नहीं होती है. बड़े शर्म की बात है कि जब देश के सिक्किम राज्य में कुछ बर्ष पहले भूकंप आया था तो देश का न्यूज़ चैनल बताने वाले इन कुँए का मेढ़क न्यूज़ चैनलों के संबाददाताओं को सिक्किम पहुचने में २ दिन लग गए. यहाँ तक की गुवहाटी में जब कुछ बर्ष पहले एक लड़की से सरेआम घटना हुई थी तो इन कुँए के मेढक न्यूज़ चैनलों को उस घटना की वाइट के लिए एक लोकल न्यूज़ चैनल के ऊपर निर्भर रहना पड़ा था. इन न्यूज़ चैनलों की दिन भर की ख़बरों में ना तो देश दक्षिण राज्य केरल, तमिलनाडु, लक्ष्यद्वीप और अंडमान की ख़बरें होती है और ना ही उत्तर-पूर्व के राज्यों की. हाँ अगर एन.सी.आर. या बीमारू राज्यों में कोई घटना घटित हो जाती है तो इनका न्यूज़ राडार अवश्य उधर घूमता है. जब देश के उत्तर-पूर्व या दक्षिण राज्यों के भारतीय लोग इनके न्यूज़ चैनलों को देखते होंगे तो इन न्यूज़ चैनलों के द्वारा देश या इंडिया नाम के इस्तेमाल किये जा रहे शब्द पर जरुर दुःख प्रकट करते होंगे. क्यों की देश में कुँए का मेढ़क बने इन न्यूज़ चैनलों को हमारे देश की भौगोलिक सीमायें ही ज्ञात नहीं है तो फिर ये न्यूज़ चैनल क्यों देश या इंडिया जैसे शब्दों का प्रयोग करते है क्यों नहीं खुद को कुँए का मेढक न्यूज़ चैनल घोषित कर लेते आखिर जब ये आलसी बन कर देश बिभिन्न भागों में घटित हो रही घटनाओं को दिखने की जहमत ही नहीं उठाना चाहते. धन्यवाद. राहुल वैश्य ( रैंक अवार्ड विजेता), एम. ए. जनसंचार एवम भारतीय सिविल सेवा के लिए प्रयासरत फेसबुक पर मुझे शामिल करे- vaishr_rahul@yahoo.कॉम और Rahul Vaish Moradabad<br />Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/10795609342998137439noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-44227652639157349342013-09-10T12:39:00.421+05:002013-09-10T12:39:00.421+05:00धर्म तुम दिखने में कैसे हो
देखा नहीं है तुम्हें कभ...धर्म तुम दिखने में कैसे हो<br />देखा नहीं है तुम्हें कभी...<br />तुम शरीर हो क्या कोई या<br />नाममात्र हो कुछ<br />पंछी तो तुम नहीं हो सकते<br />और तुम्हें पशु<br />मैं नहीं कहना चाहता।<br />तो भला कौन सा वर्ण<br />है तुम्हारा,कौन से<br />कुल के हो तुम?<br />धर्म तुम पढ़े-लिखे भी हो क्या<br />कभी रोटी देखी है तुमने<br />और कभी भूखे पेट सोये हो क्या<br />धर्म<br />तुम बेघर भी हो क्या<br />क्या हो तुम लहुलुहान बच्चे का चेहरा<br />क्या तुम बिलखती हुई माँ हो<br />हो क्या तुम एक टुटा हुआ पिता<br />क्या तुम असहाय बेटी हो<br />या भड़का हुआ बेटा?<br />......Parveenhttps://www.blogger.com/profile/08627633603816712836noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-43834535823003505452013-09-10T11:02:04.814+05:002013-09-10T11:02:04.814+05:00Sir..main bas in tamam so called secular logon se ...Sir..main bas in tamam so called secular logon se puchna chahunga ki, kya yeh baat unhe nahi pata thi, jo aap ke blog ko padhne ke baad inko pata chali...riot hamesha insaniyat pe ek badnuma daag hai...Main ek baat aur janna chahunga...kya is desh main waike 'secular;, jaisi koi baat rahi hai, kya desh prem sirf Pakistan se cricket match ke time pe hi aata hai..kyun un netaon ko itna samman diya jata hai jo ki khud besharmi ka aina hai..mera ishara sabhi partyon se hai..chahe woh left ho ya right....aur rahi baat media ki to media main ab koi baat bachi nahi hai...ethics naam ki koi chiz hi nahi hai...news ke naam pe sirf TRP...Aap ka channel bhi isse achuta nahi raha..chahe woh Kargil war ho ya 26/11, jisme aap ki ek mahan reporter ne apne laparwah reporting ke wajah se kitnon ko maut ke hawale karwa diya....Media sab pe tippani karta phirta hai...par media pe kaun kare...media is kadar apna reporting ka level gira chuka hai ki news ka matlab hi badal gaya...So Ravish ji bahar kyun dhundh rahe haain answer..aap apne media industry man hi dekh lijiye jahan kitne visphotak aur bharkau news samaj ke liye manufacture ho rahe hain...aap sirf sahi aur nishpakch news dikhaye...baaki janta ko faisla lene dijiye. Atiqhttps://www.blogger.com/profile/10830883095452723855noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-8709888428137381062013-09-10T09:50:04.933+05:002013-09-10T09:50:04.933+05:00kya likhte hai sir ji.i am your fankya likhte hai sir ji.i am your fanAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/05399629718872206593noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-45674679484569936852013-09-09T23:45:04.962+05:002013-09-09T23:45:04.962+05:00बहुत ही होसियारी के साथ बीजेपी को दंगा का जीमेदार ...बहुत ही होसियारी के साथ बीजेपी को दंगा का जीमेदार ढहराने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद!!Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/10177715606606350880noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-64520784235201731162013-09-09T23:14:32.717+05:002013-09-09T23:14:32.717+05:00कुँए का मेढ़क बना देश का इलेक्ट्रॉनिक मीडिया
देश के...कुँए का मेढ़क बना देश का इलेक्ट्रॉनिक मीडिया<br />देश के महाभ्रष्ट इलेक्ट्रॉनिक मीडिया (महाभ्रष्ट इलेक्ट्रॉनिक मीडिया इसलिए क्यों की उसका उल्लेख मैं अपने पूर्व के ब्लॉग में विस्तारपूर्वक कर चूका हूँ अत: मेरे पूर्व के ब्लॉग का अध्यन जागरणजंक्शन.कॉम पर करे ) के उन न्यूज़ चैनलों को अपने गिरेबान में झाँक कर देखना चाहिए जो न्यूज़ चैनल के नाम के आगे ”इंडिया” या देश का नॉ.१ इत्यादि शब्दों का प्रयोग करते है. क्यों की इन इलेक्ट्रॉनिक मीडिया कुँए के मेढकों का न्यूज़ चैनलों का राडार या तो एन.सी.आर. या फिर बीमारू राज्य तक सीमित रहता है. कुए के मेढ़क बने इन न्यूज़ चेंनलो को दिल्ली का “दामिनी” केस तो दिख जाता है लेकिन जब नागालैंड में कोई लड़की दिल्ली के “दामनी” जैसी शिकार बनती है तो वह घटना इन न्यूज़ चैनलों को तो दूर, इनके आकाओं को भी नहीं मालूम पड़ पाती. आई.ए.एस. दुर्गा नागपाल की के निलंबन की खबर इनके राडार पड़ इसलिए चढ़ जाती हैं क्यों की वो घटना नोएडा में घटित हो रही है जबकि दुर्गा जैसी किसी महिला अफसर के साथ यदि मणिपुर में नाइंसाफी होती है तो वह बात इनको दूर-दूर तक मालूम नहीं पड़ पाती है कारण साफ़ है की खुद को देश का चैनल बताने वाले इन कुँए का मेढ़क इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का कोई संबाददाता आज देश उत्तर पूर्व इलाकों में तैनात नहीं है. देश का इलेक्ट्रॉनिक मीडिया जिस तरह से न्यूज़ की रिपोर्टिंग करता है उससे तो मालूम पड़ता है की देश के उत्तर पूर्व राज्यों में कोई घटना ही नहीं होती है. बड़े शर्म की बात है की जब देश के सिक्किम राज्य में कुछ बर्ष पहले भूकंप आया था तो देश का न्यूज़ चैनल बताने वाले इन कुँए का मेढ़क न्यूज़ चैनलों के संबाददाताओं को सिक्किम पहुचने में २ दिन लग गए. यहाँ तक की गुवहाटी में जब कुछ बर्ष पहले एक लड़की से सरेआम घटना हुई थी तो इन कुँए के मेढक न्यूज़ चैनलों को उस घटना की वाइट के लिए एक लोकल न्यूज़ चैनल के ऊपर निर्भर रहना पड़ा था. इन न्यूज़ चैनलों की दिन भर की ख़बरों में ना तो देश दक्षिण राज्य केरल, तमिलनाडु, लक्ष्यद्वीप और अंडमान की ख़बरें होती है और ना ही उत्तर पूर्व के राज्यों की. हाँ अगर एन.सी.आर. या बीमारू राज्यों में कोई घटना घटित हो जाती है तो इनका न्यूज़ राडार अवश्य घूमता है. जब देश के उत्तर पूर्व या दक्षिण राज्यों के लोग इनके न्यूज़ चैनलों को देखते होंगे तो इन न्यूज़ चैनलों के द्वारा देश या इंडिया नाम के इस्तेमाल किये जा रहे शब्द पर जरुर दुःख प्रकट करते होंगे. क्यों की देश में कुँए का मेढ़क बने इन न्यूज़ चैनलों को हमारे देश की भौगोलिक सीमायें ही ज्ञात नहीं है तो फिर ये न्यूज़ चैनल क्यों देश या इंडिया जैसे शब्दों का प्रयोग करते है आखिर क्यों नहीं खुद को कुँए का मेढक न्यूज़ चैनल घोषित कर लेते जब ये आलसी बन कर देश बिभिन्न भागों में घटित हो रही घटनाओं को दिखने की जहमत नहीं उठाना चाहते है. धन्यवाद. राहुल वैश्य ( रैंक अवार्ड विजेता), एम. ए. जनसंचार एवम भारतीय सिविल सेवा के लिए प्रयासरत फेसबुक पर मुझे शामिल करे- vaishr_rahul@yahoo.कॉम और Rahul Vaish MoradabadAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/10795609342998137439noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-53126223547542273562013-09-09T23:08:02.010+05:002013-09-09T23:08:02.010+05:00koi bhi lekh iss baat ko dhyan me rakh kar liken k...koi bhi lekh iss baat ko dhyan me rakh kar liken ki ussme kitna tathya hai na ki iss baat ko dhyan mein rakh kar ki usse aap kitni wahwahi bator lenge..ek naitik jimmedari nagrikon ki bhi hoti hai..jab itne bade mass mein logon mein gussa ho to aap usse sarkar ki viphalta nahi kahenge...anna movement aur nirbhaya kand mein aap logon ne gusse ke karan ko dikhaya tha..na ki ye kaha ki sarkar logon ko control nahi kar payi..same issme bhi dange ke karan ko dikhayiyeAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/15768270819777113495noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-69955540010246490432013-09-09T22:59:12.206+05:002013-09-09T22:59:12.206+05:00Aap apne khud ki stuti ko dhyan mein rakh ke lekh ...Aap apne khud ki stuti ko dhyan mein rakh ke lekh likhte hain....ye sangarsh jaroori tha. Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/15768270819777113495noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-51313840461201698492013-09-09T15:50:17.269+05:002013-09-09T15:50:17.269+05:00रवीश जी , शायद हमारे मीडिया और उनसे जुड़े लोगों को...रवीश जी , शायद हमारे मीडिया और उनसे जुड़े लोगों को सवालों से बचने की आदत पड़ गयी है और यही कारण है कि आपनें यह कहकर अपना विश्लेषण समाप्त किया है कि पहचानिये ये कौन लोग है ! सवाल उठेंगे और सवाल वाजिब भी है ३० से ज्यादा दंगे होनें के बावजूद मीडिया खामोश क्यों रहा !पूरण खण्डेलवालhttps://www.blogger.com/profile/04860147209904796304noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-38494015687209444222013-09-09T15:26:22.065+05:002013-09-09T15:26:22.065+05:00छुरा भोंककर चिल्लाये ..
हर हर शंकर
छुरा भोंककर च...छुरा भोंककर चिल्लाये .. <br />हर हर शंकर <br />छुरा भोंककर चिल्लाये .. <br />अल्लाहो अकबर <br />शोर खत्म होने पर <br />जो कुछ बच रहा वह था <br />छुरा और बहता लहू…<br />इस बार दंगा बहुत बड़ा था <br />खूब हुई थी ख़ून की बारिश <br />अगले साल अच्छी होगी <br />फसल मतदान की – गोरख पाण्डेयDilip Dixithttps://www.blogger.com/profile/09489643640881427372noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-39372604552534784072013-09-09T14:20:59.909+05:002013-09-09T14:20:59.909+05:00Bhai sahab yeh jo election --2 ka khel shuru ho ja...Bhai sahab yeh jo election --2 ka khel shuru ho jata hai tab rape dange bhi shuru ho jate hai. . Yaad hoga jab behanji ki sarkar apne akhri dino mein thi toh up mein roj rape ki khabar aati thi.. Main to kahta huu ki yeh election ka khel hona hi nahi chahiye.. Jise man kare 6 -6 mahine ke liye gaddi de do. . Sabka kam se kam pet bhara rahegasure376https://www.blogger.com/profile/04620612714012553352noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-52119749374040193802013-09-09T14:17:11.810+05:002013-09-09T14:17:11.810+05:00जिस जगह को आप छू रहे हैं नेताओ के लिये अनजाना सा म...जिस जगह को आप छू रहे हैं नेताओ के लिये अनजाना सा मसला हो गया है खेल रहे थे हिन्दू मुस्लिम बन गया जान का जंजाल।अपने ही नेताओं को गलियां पड़ीं महापंचायत में यह कोई नहीं कह रहा। दंगा महा पंचायत के कारण हुआ तो पहले से जो हो रहा था वो क्या था। यह रिटालिएशन क्यों हुआ ? कुछ अलग हो गया है बहुत प्यार और सतर्कता की जरूरत है।anuj sharma fatehhttps://www.blogger.com/profile/01305218543531452760noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-11156127408277580052013-09-09T12:02:55.163+05:002013-09-09T12:02:55.163+05:00sir ek kahawat hai as you saw as you reap!! hum sa...sir ek kahawat hai as you saw as you reap!! hum sab jante the ki s.p. ek gundo ki aur majhabi party hai but fir bhi usko jitiya to do evil and look for like. waha ki janta ne khud hi apne pair pe kulhari mari thi, jab bhi janta jaati dharm aur majhab ke naam pe vote degi, deti rahegi tab tak ye sab chalta hi rahega,,,,,,,,,,, hum aao chah ke bhi en sab ko na to samjha sakte hai na hi rok sakte hai kyuki ye sab prayojit aur paise khoon aur nafrat ke log hai jinko samajhdaro ki baa samajh nhi aati aur rahi aawam ki baat to wo abhi tak educate nhi hai usme patient ki bahut hi abhav hoti hai........Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/09431522085421121272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-40114486320328720362013-09-09T12:01:59.766+05:002013-09-09T12:01:59.766+05:00sir ek kahawat hai as you saw as you reap!! hum sa...sir ek kahawat hai as you saw as you reap!! hum sab jante the ki s.p. ek gundo ki aur majhabi party hai but fir bhi usko jitiya to do evil and look for like. waha ki janta ne khud hi apne pair pe kulhari mari thi, jab bhi janta jaati dharm aur majhab ke naam pe vote degi, deti rahegi tab tak ye sab chalta hi rahega,,,,,,,,,,, hum aao chah ke bhi en sab ko na to samjha sakte hai na hi rok sakte hai kyuki ye sab prayojit aur paise khoon aur nafrat ke log hai jinko samajhdaro ki baa samajh nhi aati aur rahi aawam ki baat to wo abhi tak educate nhi hai usme patient ki bahut hi abhav hoti hai........Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/09431522085421121272noreply@blogger.com