tag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post1936305790493752617..comments2024-03-22T11:14:13.300+05:00Comments on कस्बा qasba: चश्मे बद्दूरravish kumarhttp://www.blogger.com/profile/04814587957935118030noreply@blogger.comBlogger9125tag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-71706844230927381972013-04-11T19:04:30.286+05:002013-04-11T19:04:30.286+05:00देखकर आये, आनन्द आ गया।देखकर आये, आनन्द आ गया।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-22214890437920481062013-04-11T01:57:55.559+05:002013-04-11T01:57:55.559+05:00स्वयं से संघर्ष जो लगभग 4 वर्ष पूर्व किया , जैसा म...स्वयं से संघर्ष जो लगभग 4 वर्ष पूर्व किया , जैसा महसूस किया उन पलों में वैसा लिख दिया , कह तो किसी से सकता नहीं था पर पता नही क्यों रवीश जी आप से कहने का मन हुआ तो कह रहा हूँ <br />‘’’’ संघर्ष स्वयं से “”<br />अपनी ही नज़रों से गिराने लगा हूँ , हर पल में अब मरने लगा हूँ <br />शब्द-शब्द सच बोलना अब झूठ होता गया , कमीना-बेईमान में सिद्ध होता गया<br />बेईमान ही हो जाऊं तो बेहतर ही होगा, सच के जलने का गम तो ना होगा <br />क्यों कर लाश सच की ढोता रहूँ, क्यों कर सच में हर पल मरता रहूँ <br />खोखला कितना अब हो चुका है मन , सच बोलने से भी अब डरता है मन <br />सच में जीना अब बदतर जो हो गया, मरना ही बेहतर अब हो गया <br />अपनी ही शक्ल आईने में अब गन्दी लगने लगी है, <br />नफ़रत अब ईमानदारी से क्यों होने लगी है , <br />दोष किसी का नहीं जमाने में अभय , तुम तो हो अनफिट समय में अभय <br />सच बोल के जीना चाहते हो, यमराज के द्वारे जिंदगी चाहते हो <br />मर जाओ तब ही तुम जी पाओगे , क्योंकि मार तो तुम वैसे भी दिए जाओगे <br />झूठ तुम बोल सकते नहीं , सच ज़िंदा कभी रहता नहीं <br />दर्द का समंदर पीना होता है , सच को जीने में ये तो करना ही होता है <br />कर्म कितना भी सच्चा कर लो , दुनिया यकीं सच पे कभी ना करेगी <br />दुनिया है दर्द वही तो वो देगी , <br />दर्द दे के दुनिया मांगती है प्यार , कैसे बताएं हम तो कब के मर चुके यार <br />हमारे मरने पे भी यकीन रहा न दुनिया को, कहती है दुनिया तुम तो बड़े छलिया हो यार |<br />Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/12017311484945433956noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-57760007787938715822013-04-11T01:33:36.014+05:002013-04-11T01:33:36.014+05:00‘’ जींस और स्कर्ट से परिभाषित होती योग्यता ‘’ ?
ली...‘’ जींस और स्कर्ट से परिभाषित होती योग्यता ‘’ ?<br />लीजिये फिर उछाल दिए गए जुमले पे जुमले कि बाँध को ...... से भर दें क्या , <br />एक कंपनी ने फरमान जारी कर दिया जींस और स्कर्ट का , पंगा तो होना था सो मोहतरमा ने चिपका दिया झन्नाटेदार थप्पड़ न्यायालय में जा कर (सही कदम सही वक्त पर उठाते हुए ) .. कई बार सोचता हूँ वैसे तो बड़े अकल्मन्द बनते हैं उल-जलूल नियमों के निर्माता, पर थप्पड़ खाए बिना ये भी नहीं मानते , क्या अंतर है मय में धुत्त सड़क पे पड़े पियक्कड़ में और इन में , या फिर जीन्स और स्कर्ट की बिक्री का भी कोई दांव है, एलोपेथी की वितरण प्रणाली की तरह .....हद है जीन्स और स्कर्ट में योग्यता ढूंढी जा रही है ? फिर तो उनकी योग्यता तो सदैव प्रश्न ही रहेगी जिन्हें जिंदगी भर ये ध्यान नहीं रहा की कोन से और कैसे कपडे पहने जाने हैं नयनाभिराम सुन्दरता का प्रतीक बनने के लिए और इसी अनिभिग्यता के सहारे उन्होंने अपने आप को महा-मानव बना दिया . धन्य है ये कार बनाते हैं अन्यथा जाने कैसा ड्रेस-कोड लागू करते .अरे भाई रंग बता दो वो जायज है , सामान्य रूप से किसे किस ड्रेस में सुविधा है इस पर दादागिरी तो अनुचित ही है .. राधे –राधे राम मिला दे अब तो ..<br />Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/12017311484945433956noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-10151770724747268022013-04-11T01:28:53.582+05:002013-04-11T01:28:53.582+05:00‘’ रीमेक का ज़माना है भाई , ओरिजिनल काहे ढूंढें रे...‘’ रीमेक का ज़माना है भाई , ओरिजिनल काहे ढूंढें रे मन ‘’<br />रीमेक पे रीमेक , जिसने ओरिजनल देखा उसे रीमेक में आनंद काहे और कैसे आयेगा , या फिर सब कुछ बेच चुकने के बाद अखबार की रद्दी पर आखरी दाँव लगाते से व्यापारी की हालत हो गई है , अरे भाई ऐसा-वैसा कुछ है तो बोलो ना , देश की जनता के चंदे (टैक्स) से बहुतेरे अरबपति हो गए , काहे संकोच करते हैं , भाई देखिये रेणु, महादेवी , प्रेमचंद, निराला, पन्त जैसे मनीषियों के साहित्य पर फिल्म बनाना तो आपके बस की बात नहीं, उसके लिए कलेजा चाहिए ठेठ-हिन्दुस्तानी होने का और वो तो आप पर जमेगा नहीं , स्टैण्डर्ड लो होने के झटके का हृदयाघात में बदलने का डर जो है , अब ‘’नदिया के पार’’ जैसी साफ़-सुथरी फिलम बना के आप काहे हम देशी-ठेठ-गंवारों में अपना नाम लिखवायेंगे , ये बात अलग है की इस देशी फिलम का हर गाना हर एक के मन में आज भी गुनगुनाया जाता है | चलिए जाने दीजिये जादा बातें करेंगे तो आप नाराज हो जायेंगे,,,....राधे-राधे....---चलते-चलते वो तो सेंसर-बोर्ड है वरना @#$%^&***.......?<br />क्या कारण है की भारत की प्रत्येक भाषा में साहित्य का विपुल भण्डार होते हुए हमारे माननीयों को कॉपी-पेस्ट पर जिंदगी बितानी होती है ?<br />Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/12017311484945433956noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-3714693173224215402013-04-09T22:24:49.056+05:002013-04-09T22:24:49.056+05:00Ravish g chasmebaddor ki sahi aalochna ki aapne,ja...Ravish g chasmebaddor ki sahi aalochna ki aapne,jab mai apka blog padh rha tha,tab mughe kuch yu mehsoos hua ki aapne mere andar chal rhi goodh bato ko chhin kar blog ke roop me sabke aage parosh diya ho,baharhal,yhi pehchan hai ek mange hue patrakar ki,jo aalochna sateek kareAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/09408897926702271052noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-23658287688314455352013-04-08T22:47:24.879+05:002013-04-08T22:47:24.879+05:00na gaane ache. na film ki kahani achi. phir kesa p...na gaane ache. na film ki kahani achi. phir kesa pesa vasool???Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/10109759496975504916noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-2241680450507585422013-04-08T22:47:13.015+05:002013-04-08T22:47:13.015+05:00na gaane ache. na film ki kahani achi. phir kesa p...na gaane ache. na film ki kahani achi. phir kesa pesa vasool???Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/10109759496975504916noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-18735656422280288562013-04-07T13:24:06.170+05:002013-04-07T13:24:06.170+05:00Dhanyawad Bus abhi nikal raha hoon.Dhanyawad Bus abhi nikal raha hoon.Mahendra Singhhttps://www.blogger.com/profile/02983305155812215864noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-32755552718233269702013-04-06T14:03:33.659+05:002013-04-06T14:03:33.659+05:00बहुत दिनों से आप के ब्लॉग पर आ रहा था...
इस उम्मी...बहुत दिनों से आप के ब्लॉग पर आ रहा था...<br /><br />इस उम्मीद में कि कुछ पढ़ने को मिलेगा....<br /><br />पर आप ट्विटर और FB से गायब हुए तो लगा कि अब शायद ब्लॉग पर भी कभी नहीं आयेगे...<br /><br />पर करीब 50 दिनों बाद आप के अन्दर के एक "सिनेमाची" का लेख हमें क़स्बा पर क्या मिला हमारे चेहरे पर एक मुस्कान आ गयी.......<br /><br />मेरे जैसे एक-आध क़स्बा वालो के लिए क़स्बा पर आते रहा करिए रवीश जी.......Kumar Harshhttps://www.blogger.com/profile/10459050786337730228noreply@blogger.com