मुंबई



मुंबई को सिनेमा के पर्दे पर ही ज़्यादा देखा है और अरब सागर को मरीन ड्राइव की तरफ़ से । पहली बार समंदर से मुंबई को देख रहा था । सी लिंक से । अरब सागर की हवा से टकराते हुए । कुछ तो है इस शहर का हमारी ज़हन में । यहाँ कभी रहा नहीं पर ये शहर मेरे भीतर हमेशा रहता है । एक ख़्वाब की तरह । 


गेटवे से जब समंदर के इस छोर को देखा तो अनंत आकाश की तरह पसर गया । लगा काश मैं उस आख़िरी नाव की तरह होता । दूर से नहीं दिखने सा दिखता हुआ । किसी शहर का ऐसा किनारा हो तो वहाँ ज़रूर जाना चाहिए । सिमटी हुई मुंबई की बाँहें खुल जाती हैं । पूरा का पूरा सागर आ जाता है । हर पल यहाँ एक फ़्रेम है । तस्वीर खींचने का कारोबार यहाँ ज़िंदा है । गेटवे की भव्यता के नीचे अपनी लघुता का अहसास दर्ज कराते हुए लोगों को देखना अच्छा लगा था ।


हमारी यादें ही हमारा सहारा हैं । जीवन इन्हीं लम्हों में मिलता रहे । मुंबई की तरह गेटवे के किनारे । लौटते वक्त मरीन ड्राइव से समंदर को देखना फिर से गहरा कर गया । 

19 comments:

  1. किसी शहर का ऐसा किनारा हो तो वहाँ ज़रूर जाना चाहिए । सिमटी हुई मुंबई की बाँहें खुल जाती हैं । पूरा का पूरा सागर आ जाता है बिलकुल सही, शायद यही वज़ह है जो लोग छोटे-छोटे कमरो वाले घरो से निकल कर अपने घर का आयाम बड़ा कर लेते है।

    ReplyDelete
  2. अरे सर कब बम्बई पहुंच गए ? काली कोटि पहनी हुयी है तो लगता है ओफ्फिसिअल काम से गए है :D :D मज़े कीजिये :)

    ReplyDelete
    Replies
    1. शशश ..,,,,....ठाकरे ब्रदर्स को पता ना चले भगा देंगे वरना

      Delete
  3. One more person romanticizing the Mumbai city. Seems like you have not experienced the dark underbelly of the city!

    ReplyDelete
  4. Sir namste ji!
    Bahut mast lag rahe hai.

    ReplyDelete
  5. Mujhe samandar me Nav dekh kar lagta hi
    Kas es duniya me Nav nahi hota. Samudra ke lay ko aatkata ur bhatkata hua lagta hi

    ReplyDelete
  6. समंदर को पहले से इतने फ्रेम में देख लिया है, कि इसे अब केवल खाली नज़र से देखना ही अच्छा लगता है। सारो उपमाओं से विरक्त। समंदर पर घंटों नाव सी अपनी आँखें तैराना, और फिर देखते देखते डूब जाना अच्छा लगता है। दूर जाती नाव अपने संग मेरा भी एक हिस्सा ले जाती है। लहरों पर उड़ते पंछियों को देखकर अच्छा नहीं लगता। लगता है कोई इनके साथ मुझे अपने दीवार पर टंगी किसी तस्वीर में क़ैद रहा है। लहरों का शोर ख़ाली पड़े मन को चिढ़ा जाता है। भीतर की कई गुफ़ाएँ खुलने लगती है।
    इतना पानी देखकर सुकून मिलता है कि यहाँ मन का कोई कोना सूखा नहीं बचेगा। एक साहिल है जिसके आगे मैं हूँ, और जिसके पीछे भी मैं । दोनों मैं में दूरी बहुत है। और सच कहूँ तो ये जानकर अच्छा लगता है। पीछे ज़मीन है। ठोस है। सख़्त है। आगे पानी है। तरल है। भँवर है। और जीवन। जीवन वहाँ बीच गीली रेत में पड़ा है। जितना बाहर निकलना चाहता है , उतना ही अंदर धँसने लगता है।

    ReplyDelete
  7. Results aate hi chhuti pe ??aapke photos dekhke hamari yaade taaza ho gai...apni family ka photo bhi dikhaye na......anyways happy holidays...

    ReplyDelete
  8. bada jhaaks lagat bara ho gateway ke samne...jindgi ki 10 years maine bhi gujare hain sea link mere mumbai jane ke 4saal basd banana suru hua tha..aur samne complete hua....enjoy kareye...chill....aur.kabhi ta reply kar del kara ravish babu...achaa lagi...hope dil naa tod baa

    ReplyDelete
  9. सर हमे तो आपकी सादगी और पत्रकारिता का बिंदास स्टाइल बड़ा पसंद आता है ..............हम भी पत्रकार बनना चाहते है और बस आपको ही आदर्श बना कर के आगे बढ़ना चाहते है !!

    ReplyDelete

  10. क्या अजमेर में भी सिर झुकाने जायेगे मोदी ?

    बनारस में गंगा जी की आरती के बाद क्या नरेंद्र मोदी अजमेर दरगाह पर भी सिर झुकाने जायेंगे अगर नहीं तो ये देश के लिए किया संकेत होगा ? कियो कि जितना आशीर्वाद गंगा मईया ने उन्हें दिया है उतना ही आशीर्वाद उन्हें विश्वप्रसिद्ध अजमेर दरगाह पर भी मिलेगा .
    धन्यवाद
    द्वारा – राहुल वैश्य ( रैंक अवार्ड उपविजेता),
    एम. ए. जनसंचार (राज्य पात्रता परीक्षा उत्तीर्ण, हिमाचल लोक सेवा आयोग)
    एवम
    भारतीय सिविल सेवा के लिए प्रयासरत
    फेसबुक पर मुझे शामिल करे- vaishr_rahul@yahoo.com और Rahul Vaish Moradabad

    ReplyDelete
  11. अक्सर हँसता रहता है, बे-बात कभी रोता नहीं।
    सारी दुनिया सो जाये - ये शह्र कभी सोता नहीं।।
    जितने भी गुल-बूँटे हैं, सब गाँवों-क़स्बों से आये।
    हरियाली की फ़स्लों को ये शह्र कभी बोता नहीं॥
    उपनगरों के बूते पर ये शह्र कुलाँचें भरता है।
    उपनगरों के साथ मगर ये शह्र कभी होता नहीं॥
    सिंगापुर बनने के सपनों में खोया रहता है, मगर।
    धारावी के जैसे दाग़ - ये शह्र कभी धोता नहीं॥

    ReplyDelete
  12. Adbhut najara. Pitaji "Subedar" se yanhi retired hue the. 1974-76 ke dauran hum bhi vahi rahen hai. Tab kee Mumbai bilkul alag thi. Kolaba aur Nevinagar me rahe.

    ReplyDelete
  13. मुंबई तो अच्छा है रविश सर पर पता नहीं क्यों वहां के लोगो से उतनी मानसिकता मिलती नहीं....शायद इसलिए की हम उत्तर भारतीय की संरचना उस तरह से नहीं हुई है।।।। पर हाँ मुंबई शहर खुद में विविधताओ का शहर है, जहाँ जो जाता है उसके रंग में मंत्रमुग्ध हो जाता है.. शायद इसीलिए इसको मायानगरी कहते हैं।।।।

    वैसे एक और चीज़....रविश सर एक नंबर लागातारा.... देख के मिजाज हरिया गईल...

    पुणे आइयेगा तो बताइयेगा... एक झलक मिलेगी तो एक उपलब्धि हो जाएगी हमारे लिए।।।।
    Abhishek.kec11@gmail.com मेरा आईडी है।।।

    ReplyDelete
  14. अब देखना दिलचस्प होगा की मोदी अम्बानी से प्रचार को लिया गया धन १००० करोड़ रुपया सूद समेत कहाँ से चुकाते है ? जब इतने धन का पैसा सूद समेत गुपचुप चुकाया जायेगा तो इससे तो सरकारी खजाने में कमी होगी तो आने वाले समय में महँगाई दुगनी हो जाएगी.. देखा जाये तो करीब १२० सीटो पर कांग्रेस सिर्फ २०००० से लेकर ५०००० के वोटों के अंतर से हारी है सिर्फ..ये अंतर उन युवओं ने किया जिन्होंने पहली वार मतदान किया था और जिनकी जवान पर सिर्फ मोदी मोदी था .. यह तक की उन्हें मोदी के दंगों के बारे में भी ठीक से मालूम नहीं था.. इन युवाओं में कुछ ऐसी भी सोच के थे की जिनका माना था की मोदी के आने से एक कौम तरक्की के रास्ते पर जाएगी और एक कौम की राह में सिर्फ बाधाएं ही आएँगी.कितनी गन्दी मानसिकता है ऐसे युवओं की जो मोदी की जीत तो एक कौम की जीत के रूप में देखते है..ये देश सबका है.. आज भी हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई बौद्ध पारसी इस देश में भाई भाई है.

    धन्यवाद
    द्वारा - राहुल वैश्य ( रैंक अवार्ड उपविजेता),
    एम. ए. जनसंचार (राज्य पात्रता परीक्षा उत्तीर्ण, हिमाचल लोक सेवा आयोग)
    एवम
    भारतीय सिविल सेवा के लिए प्रयासरत

    ReplyDelete
    Replies
    1. राहुल वैस्यजी, सच मे पढ़ लिखकर चुतिए ही रह गये, बनारस मोदी जी का चुनाव क्षेत्र है, वहाँ जाकर आरती न करे, दर्शन न करे तो क्या नमाज अदा करे, तुम लोगो के लिए ही यह कहावत है कि रस्सी जल गयी और बल नही गया, दिन मे आप कितनी बार नमाज अदा करते हो, यह भी बता दिया होता, हद हो गयी है ।।ती

      Delete
  15. मुंबई एक शहर नहीं, जूनून है। मुंबई शहर की रगो में फ़िल्मी खून दौड़ता है और साथ ही अपनी कल्पनाओं की उची उड़ान के लिए मुंबई से बेहतर कोई और जगह नहीं। आप मुंबई आये, मुंबई को अपना समझा। ये देखकर अच्छा लगा।

    ReplyDelete