हिन्दी शहर जयपुर
दीवारबंद जयपुर ऐसी दुनिया है जहां लगभग हर दुकान का नाम हिन्दी में लिखा गया है। नामकरण की ऐसी तरतीब हिन्दुस्तान में कम दिखती है। दिल्ली में कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान कनॉट प्लेस और पहाड़गंज की नामपट्टिकाओं को एक समान करने का अभियान चला। पत्रकार लिख रहे थे,इसकी तुलना विदेशों से कर रहे थे। किसी को ध्यान नहीं रहा कि जयपुर में ऐसा ढाई सौ साल पहले हो चुका है। आज भी इसका बड़ा हिस्सा बचा हुआ है। जिस जगह पर विदेशी सैलानियों की भरमार रहती है वहां के नाम हिन्दी में बचे हुए हैं। देवनागरी में लिखे हुए हैं। रोमन में नहीं।
कैमरामैन दिनेश ने बताया कि कई दुकानें भाइयों में बंट गई इसलिए दुकान की नाम की जगह दोनों भाइयों के नाम लिखे गए हैं। दिल्ली की तरह रौक्सी बॉक्सी नहीं हुए हैं। फ्लेक्स बोर्ड की बदक्रांति ने हमारे शहरों को गंदा ही किया है। हिन्दी न्यूज़ चैनलों के भीमकाय फॉन्टों की प्रेरणास्त्रोत रहे ये बोर्ड अजीबोग़रीब अंग्रेज़ी नामों से भरे रहते हैं। पता नहीं कैसे और किसकी वजह से जयपुर की दुकानें हिन्दी में दिख रही हैं। दुकानों का ऐसा सिलसिला दिल्ली के चांदनी चौक में भी दिखेगा लेकिन वहां के नाम ग़ायब हो चुके हैं। बरामदों में चलने की जगह नहीं होती। नाम तो दिखता भी नहीं है। दिनेश ने बताया कि जयपुर में भी लोग पुराने मकानों को तोड़ कर खराब किस्म के गुलाबी रंगों से रंग देते हैं। ताकि दूर से लगे कि यह गुलाबी शहर है। मुझे तो यह हिन्दी शहर लग रहा था। ख़ैर।
"वाह", ये ब्लॉग पढ़ कर ये ही शब्द जुबान से निकले.
ReplyDeleteये है मातृभाषा का सम्मान.
हिंदी भाषी राज्यों के लोग सिख लेगे ?
यही मानक हर स्थान पर हों।
ReplyDeleteउफ ! आपका ब्लोग पढकर यही लगता है।
ReplyDeleteआज जब देश सरकारी करप्शन और नोट के खेल में त्राहिमाम कर रहा है तब बहुत से "खांटी पत्रकार" अब इसी तरह के विषय़ उठाकर किसी पधम श्री आदि, सरकारी बख्शीश की जुगाड़ में लगे हैं।
बहुत समय बीता, बैलैंस के लिये ही सही, कुछ आजकल की सुर्खीयों के विषय में भी लिखें प्रभु!
खैर! मीडिया की समीक्षा करता एक ब्लोग जो इन दिनों बहुत प्रभावित करता है वह है:
http://www.mediacrooks.com/
प्रेरक और अनुकरणीय.
ReplyDeleteजयपुर को ग गुलाबी नगरी कहते हैं यह पढा था, सुना था लेकिन जब पहली बार जयपुर गया तो इसे देखा भी। एक ही रंग में रंगे, गुलाबी रंग। अच्छा लगा। दूकानों को भी देखा। सलीके से एक कतार पर दूकानें। कहीं कोई अफरातफरी नहीं। दूकानों के नाम भी बकायदा एक ही रंग में और एक ही फांट में। हिंदी में। उस समय तो मन में ही तारीफ की लेकिन आज आपका पोस्ट पढकर लगा कि ये है खबर। रवीश जी, यही तो अंतर है मुझमे, एक सामान्य पत्रकार में और आप में। आपकी इसी कला तो मैं कायल हूं। मुझे याद आ रहा है वह समय जब लोकसभा के चुनाव के कव्हरेज के लिए आप राजनांदगांव आए थे और मुझे आपसे मिलने का सौभाग्य मिला था, उस वक्त आपने कुछ ऐसी 'एक्सक्लूसिव' सी खबरें निकाली थीं जिसे हम सामान्य समझते थे। रवीश जी आपको एक बार और बधाई।
ReplyDeleteआपके मार्गदर्शन की अपेक्षा के साथ1
atulshtivastavaa.blogspot.com
जयपुर को ग गुलाबी नगरी कहते हैं यह पढा था, सुना था लेकिन जब पहली बार जयपुर गया तो इसे देखा भी। एक ही रंग में रंगे, गुलाबी रंग। अच्छा लगा। दूकानों को भी देखा। सलीके से एक कतार पर दूकानें। कहीं कोई अफरातफरी नहीं। दूकानों के नाम भी बकायदा एक ही रंग में और एक ही फांट में। हिंदी में। उस समय तो मन में ही तारीफ की लेकिन आज आपका पोस्ट पढकर लगा कि ये है खबर। रवीश जी, यही तो अंतर है मुझमे, एक सामान्य पत्रकार में और आप में। आपकी इसी कला तो मैं कायल हूं। मुझे याद आ रहा है वह समय जब लोकसभा के चुनाव के कव्हरेज के लिए आप राजनांदगांव आए थे और मुझे आपसे मिलने का सौभाग्य मिला था, उस वक्त आपने कुछ ऐसी 'एक्सक्लूसिव' सी खबरें निकाली थीं जिसे हम सामान्य समझते थे। रवीश जी आपको एक बार और बधाई।
ReplyDeleteआपके मार्गदर्शन की अपेक्षा के साथ1
atulshrivastavaa.blogspot.com
ये बढ़िया रहा....असली हिंदुस्तान ढूंढ निकाला आपने तो.....
ReplyDeleteSir,I'm from Jaipur only.
ReplyDeleteThese names of shops in Hindi were loosing there charisma in Jaipur too. But during the campaign to restore the Heritage of The heritage city-Jaipur: any how forcefully shops were coloured again in Jaipur pink, Varanda's which were being encroached were cleared again to be used as pavements and names were written in our Matribhasha HINDI.Though the Abhiyaan disappointed many businessmen who were busy turning Jaipur into a cosmopolitan.But really it gave our city a Heritage look..
Thank God someone,cared about of our "Matribhasha" n Jaipur is still a nice place to live in & still rich in it's own Indian culture.
i m so proud to being a jaipurite and a hindi spoken
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteravish ji apki lakhni ke kya kahne.apke blog padh ek achi soch to har kisi ko v paida hogi,kuch log sab kuch dakh te hi,padh te hi lakin apke blok padhne ke bad bhut hi achi trah jan jate hi
ReplyDeleteबहुत बढिया, भाषा सम्मलेन मैं हिंदी के लिए जयपुर आ कर कोई जयपुर मैं दुकानों पर एक समान हिंदी मैं लिखे नामों की इन्टरनेट पर चर्चा करने वाले आप पहले पत्रकार हैं भाई साहब !!
ReplyDeleteजयपुर मैं सफेद पट्टी पर दुकानों के नाम काले अक्षरों मैं हिंदी मैं लिखने से एकरूपता आती है और ये आवश्यक है ठीक उसी तरह जिस प्रकार चारदीवारी मैं मुख्य मार्गों पर आने वाले मकानों और दुकानों का रंग भी गुलाबी, और ये जयपुर की स्थापना से ही चली आ रही परंपरा है, जों अब क़ानून भी बन चुकी है ..
आप के ब्लॉग पर जा कर पत्रकारिता का वास्तविक तस्वीर देखने को मिलता है आप के रविश की रिपोर्ट हुझे भुत पसंद आया में दिल आप को आप के टीम को धन्यबाद देता हूँ आप ने जो हिंदी उचार्ण करते है उससे हम हिंदी प्रेमी के लिए गर्व की बात है ---दिल्ली की सड़के --रेड लाइट एरिया में जीवन मजदूरो की की कहानी दिल्ली से गुडगाव तक रिक्शे वालों और रिक्शा में कुछ खाश है -- समय के आभाव में कभी कभी नहीं देख पता हूँ --
ReplyDeleteSir, pls add a facebook like button so i could post it for my freinds there
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