ऊं प्रां प्रीं प्रौं स: शनये नम:





















ये शनि जी महाराज का मंत्र है। शनि चालीसा से साभार लिया गया है। इन दिनों चालीसाओं में दिलचस्पी हो गई है। लघुतम रूप में उपलब्ध ये चालीसाएं पूजा अर्चना की विधि को तुरंता बनाने में मदद करती हैं। दिल्ली के बुराड़ी गांव में मनोज पब्लिकेशन्स ने कई चालीसाएं छापी हैं। सबकी कथाओं और मंत्रों को पढ़ कर लगता है कि हम इन देव-देवियों का पूजन भजन इसलिए करते हैं क्योंकि लोग शत्रु,दुष्ट और गरीबी से भयाक्रांत हैं। इनमें स्पस्ट नहीं है कि जब शनि पूजन से शत्रु का विनाश हो सकता है तो हम सेना पर फालतू के लाखों रुपये ख़र्च क्यों कर रहे हैं। सेना के तीनों अंगों के प्रमुखों को शनि पूजन करना चाहिए,पाकिस्तान का हाल वैसे ही बुरा हो जाएगा। सवाल ये है कि अभी तक राष्ट्रीय शत्रुओं से निपटने के लिए कोई पूजन कथन चालीसा नहीं छपी है। प्रतीत होता है कि हमारे पढ़ाई, नौकरी सहित हमारे सामाजिक जीवन में व्याप्त शत्रुओं के समूल नाश के लिए चालीसाओं का कारोबार निर्बाध गति से चलायमान है।

इस लेख में शनि चालीसा का पाठ। मेरे पास जो चालीसा है उसके मुख पृष्ठ पर शनि की तस्वीर है। शनि जी के हाथ में एक ग्लोब भी है। जिसमें लगता है कि भारत का भी नक्शा बना है। श्री शनि चालीसा में सूर्यपुत्र शनि से प्रार्थना है कि आप लोगों की लज्जा की रक्षा कीजिए। आपका ललाट अत्यंत विशाल एवं दृष्टि टेढ़ी है और भौहें विकराल हैं। आपकी छाती पर मुक्तामणि की माला विराजमान है। शनि का वर्णन जारी रहता है।

फिर कहा गया है कि हे प्रमु,आप जिस पर प्रसन्न हो जाते हैं,उस दरिद्र को भी एक क्षण में राजा बना देते हैं।(आज के टाइम में राजपाट तो होता नहीं वैसे)। जब राजा राम का राजतिलक होने जा रहा था,उस समय आपने कैकेयी की बुद्धि भ्रष्ट करके श्रीराम को वन में भेज दिया।(यहां साफ नहीं है कि शनि जी को श्रीराम जी से क्या प्राब्लम थी)। हो सकता है होगी लेकिन लघुतम चालीसा में सारी बातों के लिए जगह भी तो नहीं होती। खैर बात आगे बढ़ रही है। वन में भी आपने(शनि) माया-मृग की रचना कर दी, जिसने माता जानकी का अपहरण हो गया। लक्ष्मण को शक्ति प्रहार से आपने व्यथित कर दिया, जिससे राम दल में हाहाकार मच गया। अब यह समझ में नहीं आया कि राम, लक्ष्मण और माता जानकी से शनि की शत्रुता की वजह क्या थी। शनि जी महाराज उन्हें सबक क्यों सीखाना चाहते थे।























ये कथा तो और भी ड़राने वाली है। पाठकों से अनुरोध करूंगा कि यदि वे जानते हों तो इसकी पुष्टि करें। चालीसा में लिखा है कि राजा विक्रमादित्य पर आपका चरण पड़ा और दीवार पर टंगा मोर का चित्र रानी का हार निगल गया। राजा विक्रमादित्य पर उस नौलखे हार की चोरी का आरोप लगा और उनके हाथ पैर तोड़ दिए गए। राजा को आपने अत्यंत निम्न स्तर पर पहुंचा दिया। उन्हें तेली के घर में कोल्हू चलाना पड़ा। जब उन्होंने दीपक राग में आपकी प्रार्थना की तब आपने उन्हें सुख प्रदान किया।
अब कथा का कैसे पाठ किया जाए। क्या वाकई में विक्रमादित्य पर अपनी रानी के नौलखे हार की चोरी का आरोप लगा था। उन्हें चोरी की सज़ा किसने सुनाई। किसने उनके हाथ पैर तोड़े। क्या रानी यह सब देखती रही। क्या रानी ने अपने चोर पति का त्याग कर दिया। यह सब सवाल मेरे हैं जिनका जवाब लघुतम चालीसा में नहीं हैं।

एक कथा और है। राजा हरिश्चंद्र पर आपकी( शनि) दृष्टि पड़ी और उनको अपनी पत्नी का विक्रय करना पड़ा। डोम के घर में रहकर उन्हें निकृष्ट काम करने पड़े। २४ पेज गुज़र चुके हैं और अभी तक सिर्फ इस बात का ज़िक्र है कि शनि जी ने किन किन को तबाह किया है। सबक सीखाया है और औकात बता दी है। यहां तक पेज २८ पर यह लिखा है कि पाण्डु-पुत्रों पर आपकी दशा होते ही उनकी पत्नी द्रौपदी निर्वस्त्र होते होते बची। कौरवों की बुद्धि का भी आपने हरण कर लिया, जो विवेकशून्य होकर महाभारत जैसा युद्ध कर बैठे।

महाभारत जैसा युद्ध? क्या कौरव पाण्डव से पहले भी कोई महाभारत हो चुका था? शनि किसकी साइड लेते हैं। बेचारी द्रौपदी को क्यों सज़ा देते हैं? कौरवों की बुद्धि भ्रष्ट वाली बात तो तर्क संगत लगती है लेकिन शनि पाण्डवों पर क्यों नाराज़ हो गए? क्या महाभारत या गीता में इसका कोई ज़िक्र है। अगर कोई सुधी पाठक जानते हों तो ज़रूर बतायें। भक्त लेखक अपनी अज्ञानता हर पल दूर करने के लिए तत्पर है। सारे ताकतवर पात्र शनि के कोप से हारे हुए हैं। जब इतने बड़े बड़े लोग मात खा गए तो सामान्य भक्तों की क्या बिसात।


शनि का आज कर काफी ज़ोर है। शनि पर एक स्पेशल रिपोर्ट भी की थी। कई मंदिरों के पुजारियों ने बताया कि शनि का मंदिर अपने कैंम्पस में जोड़ना पड़ा है। लोग वहीं जाते हैं जहां शनि का मंदिर है। हनुमान के भक्त बंट गए हैं। शनि से सब डरते हैं। एक अभियान भी चल रहा है जिसमें बताया जाता है कि शनि शत्रु नहीं मित्र है। दिल्ली के पुष्पविहार के पास एक हनुमान मंदिर था। नगर निगम वाले अक्सर हनुमान मंदिर तोड़ जाते थे। तो भक्त ने साइड में शनि का मंदिर बनवा दिया। अब डर के मारे कोई नहीं तोड़ता। जब बीआरटी कोरीडोर बन रहा था तब लगा कि इस बार तोड़ दिया जाएगा। लेकिन रास्ते में आना वाला शनि मंदिर बच गया। यह शनि मंदिर एक हिंदू और एक मुसलमान के पार्टनरशिप पर चलता है।

अब मैं पेज नंबर ४२ पर पहुंच चुका हूं। यहां लिखा है कि स्वामी आश्चर्यजनक लीलाएं दिखातें हैं और शत्रुओं की नसें और बल क्षीण कर देते हैं। यदि कोई व्यक्ति सुयोग्य पंडित बुलाकर विधिवत शनि ग्रह की शान्ति करवाता है तो उसे सुख मिलता है। पेज संख्या ४६ पर दिलचस्प बात लिखी है। भक्त ने इस शनि चालीसा को तैयार किया है। इसका चालीस दिनों तक पाठ करने से भवसागर को पार किया जा सकता है। पाठ शनिश्चर देव को, कियो भक्त तैयार। करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार।।

यानी इसका लेखक कोई भक्त है। संस्कृत के श्लोक जैसा लगे इसलिए अवधि जैसी भाषा का इस्तमाल लगता है। वैसे आखिरी श्लोक को दोहा लिखा गया है। दोहा शब्द तो शायद मध्यकाल का होगा। शनि महाराज का डर है या उनके प्रति श्रद्धा। लेकिन इन चालीसाओं के पाठ से पता चलता है कि हम किसी देव की पूजा क्यों करें। सारे देवों में इसी तरह के भयादोहन करने वाले प्लॉट हैं। पढ़कर रातों की नींद ख़राब हो जाए और अच्छा भला आदमी चौदह हज़ार जाप करने के संकल्प में फंस जाए। वैसे शंकर जी का सपना देखकर लालू जी मांस मछली खाना बंद कर दिए थे। चुनाव में ज़मीन पर आ गए तो फिर से खाने लगे हैं। भक्त भी अपने हिसाब से एडजस्ट करते रहते हैं। भक्ति फ्लेक्सिबल है।

48 comments:

  1. रवीश भाई...किसी की आस्तिकता पर प्रश्न उठाना निश्चय ही आपका मंतव्य भी नहीं रहा होगा, लेकिन पाखंड, लूटमार के लिए किया जाने वाला कर्मकांड, ढोंग और भय बिनु होय ना भक्ति जैसे सिद्धांतों के बल पर जबरन पैदा किए गए भययुक्त आस्थाभाव का विरोध ज़रूर आपने किया है. शनिदेव की भक्ति जो करना चाहें, ज़रूर करें...उन्हें रोक भी कौन सकता है, न आप चाहेंगे और ना मैं...।
    वैसे मैं शनि जी को नहीं मानता, न मानना चाहता हूं. पिता जी एक कथा सुनाते हैं--एक गरीब आदमी से पंडित जी ने कहा--शनि का पूजन करा ले, सब ठीक हो जाएगा. गरीब बोला--कितने पैसे लगेंगे...पंडित जी ने कहा--1551 रुपये. उसने असमर्थता दिखाई. आखिरकार मामला, 551 से 51 तक जा पहुंचा. गरीब ने तब भी कहा, मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं. अंततः पंडित जी ने कहा-पांच रुपया तो होगा. गरीब आदमी ने कहा--पांच रुपया होता, तो रोटी खा ली होती, दो दिन से भूखा ना रहता। पंडित जी ने ताव खाकर कहा--अबे जा, शनि भी तेरा क्या बिगाड़ लेगा. मस्त रह।...तो रोज रोटी जुटाने के लिए भाषा की बाजीगरी करने वाले हम जैसे कलमबेचुवों (बेटीबेचवा से साभार) को शनि का क्या डर...पर श्रद्धालुओं की आस्था का सम्मान मैं भी करूंगा.
    वैसे, ये दुर्भाग्य ही है कि जिन्हें हम सहज ही डर की स्थिति में सहारा बनाना चाहते हैं, जिनका नाम लेकर हिम्मत का खुद में संचार करते हैं, उन प्रभुजनों, चाहे वो शनि हों, या शिव...उनके वीरत्व और पराक्रम की कथाएं महज भय पैदा करने के लिए सुनाई जाती हैं...मैं पुरोहित परिवार से हूं...बहुत अच्छी तरह जानता हूं कि झोलाछाप डॉक्टरों की तरह कुछ गिने-चुने तांत्रिकों और पुरोहितों की भी खूब डग्गेमारियां होती हैं...इनके इलाके बंटे होते हैं...ये किसी माफिया से कम नहीं होते. रेलवे कांट्रेक्ट हासिल करने के लिए जितने जुगाड़ अपनाए जाते हैं, उससे कम ठीकठाक जगह पर पंडागीरी, पौरोहित्य के लिए नहीं किए जाते. अच्छा हो...प्रभु का नाम सुनकर मन ठंडा हो...जो आस्तिक रहना चाहें, वो रहें...कम से कम गरीबों, रोटी के लिए पहले से तड़प रहे भक्तजनों को लोभी डॉक्टरों की तरह न डराएं. पता चलें, जिन्हें बुखार भी नहीं है, उन्हें मलेरिया हो जाने का डर बताकर, शनि महाराज उजाड़ देंगे, ये समझाकर गिड़गिड़ाने, कांप जाने को मजबूर ना करें...
    रवीश जी...हमेशा की तरह पाखंड पर प्रहार कर आपने मस्त वाला काम किया है...बल्ले-बल्ले, बधाई!

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  2. bahut hi satik aalekh likha ravish ji aapne. aapke harek shabd se main sahmat hun.

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  3. bahut gambhir baat hai........aapne rochak prastuti ki hai....badhai

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  4. समय समय पर बहुत सारे लोग विभिन्न धर्मो के अन्दर फैले अन्धविश्वाशों को उजागर करने करने का पर्यत्न किया. लेकिन शायद ही कोई कबीर बन सका. लेकिन कबीर तो केवल हिन्दू और मुस्लिम धर्मो के अन्धविश्वाश पर कटाक्ष किया. हर कोई कबीर बनने की कोशिश करता है लेकिन कबीर बनना बहुत मुश्किल है.

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  5. Ravishji,

    Shani Maharaj kitna bhi pareshan kyon na karein,khud ko itna strong banana chahiye ki woh bhi humse har jayein:)

    Regards,
    Dr. Pragya

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  6. 'सूर्य पुत्र शनि'! केवल तीन शब्द काफी हैं 'हिन्दू' के लिए...

    रवीश जी (नाम सूर्य का) क्या आपको पता है कि शनि ग्रह से तीन प्रकार कि ध्वनि का मिश्रण सुनाई पड़ता है? और ये तीन हैं: घंटी, पक्षियों की चहचहाट, और ढोल पीटने जैसी आवाजें?

    क्या आपने कभी किसी हिन्दू मंदिर में घंटी नहीं देखी? और किसी मंदिर में नगाडा आदि की आवाज नहीं सुनी? और मुझे पूर्ण विश्वास है कि आपने संस्कृत में पढ़े गए मंत्रों को कभी भी पक्षियों की चहचहाट जैसा न पाया होगा :)

    ये भी आपको न पता होगा कि सूर्य से जो आवाज़ निकलती है वो सरस्वती वीणा सामान सुनाई पड़ती है!!!!

    अब बताइए कि यह अज्ञानता कि मिसाल हुई कि नहीं?

    क्षमा प्रार्थी हूँ, मुझे खेद है मैंने पहले भी कहा था कि आप कन्नी काट जाते हैं :)

    कृष्ण ने भी कहा कि मानव अज्ञानतावश गलती करता है...

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  7. क्या रवीश जी, शनि चर्चा करे एकदमै डेरवा दिये हैं। एक तो सुबह सुबह उठकर उट पटांग बाबा लोग चैनल पर दिखते हैं या फिर मोटी मोटी औरतें चमकीले बडे कटोरे नुमा अंगुठीयां पहने टेरो मेरो कार्ड गिना रही होती हैं।
    एक गनेश नागर आता है जो कहता है काली गाय को पके आलू खिलाओ। मंदिर में अरहर की दाल सौ ग्राम छोड दो......पपीता पीस कर खाओ।
    मैं ऐसे कार्यक्रम अपने लेखकीय चटपटे पन को छौंक लगाने के लिये कभी कभार देखता हूँ। तब थोडा मनफेर हो जाता है कि चलो मैं ही अकेला मूर्ख नहीं हूँ....और भी लोग हैं जमाने में जो काली गाय को पके आलू खिलाते देख रहे हैं :)

    अच्छी पोस्ट।

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  8. रवीश जी अन्यथा न लें...विशेषकर 'हिन्दू' को आवश्यक है जानना कि उनके पूर्वज ज्ञान की चरम सीमा तक पहुँच गए थे...और काल-चक्र के निरंतर घूमने के कारण जो हम आज देख रहे हैं वो सृष्टि की रचना के आरंभिक काल का दृश्य है, जब समस्त जीवन का, मानव एवं अन्य प्राणियों का उपयोग कर सृष्टिकर्ता अपनी उत्पत्ति की कहानी का, अपने ही इतिहास का अवलोकन कर रहा है...

    मानव रूप को परमात्मा का ही स्वरुप जाना गया था - एक संरचना जिसमें नौ ग्रहों, अपने सौर मंडल के ९ सदस्यों के, सूर्य से शनि तक के रसों का उपयोग किया गया है...किन्तु हर व्यक्ति कालानुसार अपने मस्तिष्क के केवल थोड़े से भाग का ही उपयोग कर सकता है...और इसी कारण आज 'मूर्खता' अधिक दिखाई पड़ती है, और पश्चिमी वैज्ञानिकों ने भी इसका सत्यापन किया है कि सबसे बुद्धिमान व्यक्ति भी दिमाग में उपलब्ध सम्पूर्ण सेल का एक थोडा से ही भाग का इस्तेमाल कर पाता है...

    कृष्ण ने भी कहा है कि यदि कोई उनकी ऊँगली पकड़ ले तो वे स्वयं उसे अपने पास तक ले आएंगे...

    और सुदर्शन-चक्र धारी कृष्ण को विष्णु भगवान का ही स्वरुप जाना गया...और वैज्ञानिक भी शनि को (और बृहस्पति को भी) एक सुदर्शन-चक्र वाला गृह जान पाए हैं...

    उपरोक्त से शायद एक हिन्दू ही अनुमान लगा सकता है कि कैसे हमारे पूर्वजों ने प्रकृति के ज्ञान को सांकेतिक भाषा में किन्तु मनोरंजक कहानियों द्वारा प्रस्तुत किया है...

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  9. ये तो अजीब तथ्य हैं कि शनि महासंग्राम के ज़िम्मेदार हैं। बुद्धिहारी हैं। राजाओं की तबाही के पीछे इनका बहुत बड़ा हाथ है। पहली बार पढ़ा है कि भगवान विनाशकारी है। बिना इंटेशन बताए किसी को भी टपका डालता है। अजीब है पढ़कर हंसी आ रही है। शाबाश फड़िया साहित्यकारों की लेखनी गज़ब है, आध्यात्मिक हॉरर पैदा कर दिया है।

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  10. रविश जी आपकी न्यूज़ स्क्रिप्ट और voice over का तो मैं एक अरसे से प्रसंशक रहा हूँ यहाँ तक की हमारे मीडिया संसथान में भी आपकी और कमाल खान की रिपोर्ट देखने की सलाह दी जाती रही है रही बात आपके इस लेखन की तो मैं यह कहना चाहूँगा की हमारे भारतीय समाज में आस्था के आगे हर तरह के विज्ञानं और प्रमाण को नज़र अंदाज़ किया जाता रहा है चाहे वो मूर्तियों के दूध पीने की घटना हो या समुन्द्र का पानी मीठा होने की लेकिन ये विश्वास हर आमजन में है कारण हमारी संस्कृति ! नौकरी , बीमारी ,आर्थिक हालात के चलते अगर हिन्दुस्तानी शनि देव की उपासना करते भी हैं तो इसमें कुछ गलत नहीं है मानसिक तौर पर ही सही उन्हें लगता तो है की उनका बुरा वक्त टल जायेगा आपका ये लेखन उन देवी देवताओ पर कटाक्ष न होकर इस तरह की पुस्तकों और पंडितो पर है जो इश्वर का डर दिखाकर लोगो को भ्रमित करते हैं जिसके प्रति मै आपका आभार प्रकट करता हूँ क्योंकि भगवन सर्व हितकारी हैं मैंने कहीं पढ़ा था की यदि आपकी एक आँख में मोतिअबिंद हो तो क्या आप अपनी आँख निकलवा देंगे , इसी प्रकार यदि धर्म के तथाकथित pandit धर्म का सही sanchalan नहीं कर रहे हैं तो क्या हमें धर्म tyaag dena चाहिए ! vaidik धर्म में aatmsakshatkar ही BHAKTI है हाँ इस तरह ishwar के नाम पर डर dikhakar उनकी उपासना karavana गलत है

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  11. आध्यात्मिक हॉरर पसंद आया है। रामसे ब्रदर्स जैसे लगते हैं।

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  12. हमारी पृथ्वी सौरमंडल का एक अंश है, और हमारा सौरमंडल स्वयं एक छोटा सा अंश है हमारी चक्र-समान असंख्य सितारों आदि से बनी तारा-मंडल का...और हमारे अनंत ब्रह्माण्ड के शून्य में उसके जैसे असंख्य तारा-मंडल समाये हुवे हैं..."हरी अनंत..."

    आधुनिक विज्ञानं के कारण आज हम फिर से 'पश्चिम' से जान पा रहे हैं जो कभी पूर्व में, 'पूर्व दिशा' में, इससे भी अधिक गहराई में जाना गया...पश्चिम दिशा का राजा शनि को जाना ज्योतिषियों ने...इसे यह नाम दिया गया इसकी धीमी गति के कारण. क्यूंकि पृथ्वी को सूर्य के चारों ओर चक्कर काटने में एक वर्ष का समय लगता है तो वहीं शनि को ३० वर्ष लगते हैं...और बृहस्पति को लगभग १२ वर्ष (भारत में परंपरा अनुसार कुम्भ मेला हर १२ वर्ष बाद मनाया जाता है और बृहस्पति को देवताओं का गुरु भी माना जाता है)...

    फिर शनि का क्या रोल है?

    मानव शरीर को अष्ट-चक्र से बना माना गया, सूर्य से बृहस्पति तक के रसों से, जबकि शनि के कार्यक्षेत्र में माना जाता है इन आठ चक्रों में उपलब्ध सूचना/ शक्ति को मस्तिष्क तक पहुँचाना. किन्तु यह कई कारणों से आदमी आदमी को देख कर सीमित सूचना ही उपलब्ध करता दीखता है, जिस कारण सबको बराबर का दर्जा नहीं मिलता...इस कारण इसे 'शैतान' भी माना जाता है...

    उपरोक्त कारणों से शनि देवता को आम आदमी ने एक भयावह देवता समान जाना और एक कहावत के चलते, "दुर्जनं प्रथमं पूज्यते," चलन बन गया इनको 'मस्का मारने' का...इनको ज्ञानियों ने धातुओं में लोहे, और रंगों में नीले रंग से जोड़ा...और क्यूंकि लोहे में ज़ंग लग जाती है, जो इसको हानि पहुंचती है, सरसों के तेल के दान का भी चलन होने लगा जिससे शनि महाराज की उम्र बढे और खुश हो कर वो हमें भी खुश करें :)

    हिन्दू मान्यता के पीछे कई राज़ हैं...जैसे सरसों के बीज, अथवा इसके तेल को, भूतों को नियंत्रण में रखने के लिए भी प्रयोग में लाया जाता रहा है :)

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  13. पंजाब में मक्की की रोटी के साथ सरसों का साग, 'मक्खन मार के', मिल जाये तो आदमी की आत्मा तृप्त हो जाती है, बल्कि केवल याद भर कर लेने से ही!

    और बंगाल, माँ काली का प्रदेश, तो जगत प्रसिद्ध है सरसों के अनादि काल से विभिन्न कार्यों में उपयोग में लाये जाने के लिए: शाक-भाजी आदि तलने; शरीर मालिश; और 'काला जादू' में इस्तेमाल के लिए भी...

    लाल जिव्हा वाली माँ काली का निवास-स्थान सांकेतिक भाषा में 'शिव', भूतनाथ अथवा भूतों के राजा, के हृदय में बताया जाता है...और 'त्रिलोकीनाथ शिव' को गंगाधर और चंद्रशेखर नाम भी दिया जाना हमारी पृथ्वी की ओर संकेत करता है... और इसके अलावा 'आकाश' , 'पृथ्वी', 'अग्नि', 'जल' और 'वायु' को पंचभूत (अथवा पंचतत्व) भी कहा जाता है...

    उपरोक्त से 'हिन्दू' ही जान सकता है की ज्वालामुखी से निकलता लाल रंग का लावा, यानि पिघली चट्टानें, जो उसके रास्ते में आने वाले वृक्ष आदि सभी प्राणी को भस्म कर देता है (उसी प्रकार जैसे एक बैल, शिव का वाहन, सीधे चलते हुए राह के अवरोधक को धक्का मारता है) और फिर ठंडा हो जाने पर काला पड़ जाता है, संकेत करते हैं कि वास्तव में माँ काली पृथ्वी में केन्द्रित शक्ति या सती, शिव की अर्धांगिनी, को जाना गया...

    क्या 'पश्चिम' इस ज्ञानरूपी गुप्त-धन को कभी पा सकता है?

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  14. टीवी पर ग्रहों के दुष्प्रभाव के महिमा मंडन से ही ऐसे हालात पैदा हुए हैं.

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  15. यही प्रश्‍न मेरे मन भी उठते रहे हैं, कई तथाकथित संतों- महात्माओं से पूछा तो जवाब तक नहीं दे पाये, ऊलूल जूलुल बातें करने लगे।
    ज्योतिष विज्ञान के अनुसार मेरी कुंभ राशि पर पिछले २१ साल से शनि का प्रकोप है, पता नहीं मैने शनि महाराज की भैंस को डंडा कब मारा था?
    लाजवाब पोस्ट है यह आपकी, धन्यबाद।

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  16. nakkarkhaane meN tuti....?
    magar kabhi to rang layegi.

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  17. क्षीरसागर मंथन से पहले केवल अजन्मे और अनंत स्वयम्भू नादबिन्दू, निराकार विष्णु, विशाल शून्य के मध्य, ब्रह्माण्ड, में विराजमान थे (जैसे उनका नाम दर्शाता है, वो अपने भीतर विष धारण किये शांत पड़े थे इस लिए उन्हें निराकार शिव भी कहा जाता है जिसका साकार रूप में 'हिन्दुओं' ने द्योतक शिवलिंग को माना)...किन्तु सर्वशक्तिमान होते हुए भी नादबिन्दू को सदैव यह जिज्ञासा रही होगी कि वो कहाँ से आये ('हिन्दू' के माध्यम से ऐसे कई प्रश्न पूछे उन्होंने, जैसे: मैं कौन हूँ? मैं कहाँ से आया हूँ? इसके पश्चात मुझे कहाँ जाना है? इत्यादि)...

    संक्षिप्त में, कलियुग में, गुरु बृहस्पति, सौरमंडल के एक सदस्य, और अपने तारामंडल के केंद्र में विद्यमान कृष्ण, की देखरेख में देवता और राक्षश के मिलेजुले प्रयास से क्षीरसागर मंथन के प्रथम चरण में नादबिन्दू के भीतर समाया विष वातावरण में व्याप्त हो गया, और क्यूंकि अमृत अभी उत्पन्न नहीं हुआ था, साकार रूपधारी ग्रह 'हाहाकार' करने लगे होंगे (घुल गए). इस कारण नादबिन्दू के साकार प्रतिरूप सौरमंडल में शुक्र ग्रह (महाशिव के गले) को इसे धारण करना पड़ा और इस कारण शिव को नीलकंठ नाम भी दिया...

    शुक्र को शनि का मित्र बताया जाता है और नीला रंग शनि की छाया या प्रतिबिम्ब...और हमारी पृथ्वी शिव का सबसे छोटा प्रतिरूप माना गया जिस कारण इसे Blue Planet कहते हैं, और मंगल ग्रह को लाल रंग के कारण Red Planet...

    सौरमंडल सतयुग के अंत में ही चंद्रमा (विष्णु के मोहिनी रूप) द्वारा सोम रस (चन्द्रकिरण) उपलब्ध होने से अमृत/ अनंत बन पाया...

    और मानव रूप में कृष्णलीला अनंत काल से जारी है...शरीर अस्थायी है किन्तु आत्मा अनंत है...इस लिए आत्मज्ञान की आवश्यकता है...जैसे अर्जुन ने जाना की वो एक माध्यम है, निमित्तमात्र...

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  18. सागर नाहर जी ने राशिः के विषय में लिखा है...राशिः जानी जाती है किसी भी व्यक्ति के जन्म समयानुसार चंद्रमा/ सूर्य किस घर में बैठा था...

    आकाश को १२ भाग अथवा घरों में विभाजित किया जाता है, इस लिए १२ राशिः मैं से कोई एक राशिः किसी एक व्यक्ति की होगी...

    आकाशगंगा में २७ नक्षत्र हैं जिस कारण एक साल में १२ माह होने के कारण पृथ्वी से चंद्रमा/ सूर्य एक माह में २-३ नक्षत्र के सामने दिखाई देगा...जो निर्धारित करेंगे किसी का
    भविष्य...

    हर मानवीय संरचना में सूर्य से बृहस्पति तक के आठ ग्रहों के रस का सम्मिश्रण निराकार ब्रह्म द्वारा उपयोग में लाया जाना माना गया है जो मूलाधार (मंगल का रस, बैठने के स्थान पर) से सहस्रार (चंद्रमा का रस माथे में) चक्र में एक एक ग्रह का रस धारण किये जाने गये, जबकि सूर्य का रस 'पापी पेट' में...हिन्दुओं ने इस प्रकार चंद्रमा को सबसे ऊंचा दर्जा दिया जाना पाया, इसका रस माथे में जाना, और जो शिव के माथे में भी सांकेतिक भाषा में दिखाया जाता है...और यह शिव और कोई नहीं हमारी धरती ही है, और यही मृत्युलोक भी है - जो स्वयं चंद्रमा की कृपा से अमृत है जिसके सोमरस का यह सदैव पान करती है और नशा मानव को आता है, अज्ञानता के कारण, क्यूंकि मानव शरीर भी पृथ्वी का ही मॉडल है और कलियुग में, आज, चारों ओर विष ही विष नजर आता है गुजरात में ही नहीं :)

    इसे केवल शुक्र, अथवा गले में धारण करने की शक्ति कोई प्रदान करे तो शनि की बुरी दशा से मुक्त हो सकता है...और वो है चंद्रमा, यानि हिन्दू मान्यता की दुर्गा अथवा शैलपुत्री जिसने शिव को अमृत प्रदान किया...और हिन्दू ने दुर्गा-कवच, मंत्र, तंत्र, और यन्त्र से ढूंढ निकाला...आज उसके लिए भी सही पंडित चाहिए - झोला छाप कई, या केवल वो ही मिलेंगे :)

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  19. ravish ji...u r a gud blogger, journalist, presenter and above all a very2 gud human. i had once seen your conversation to Hamid Mir over recent tension in kashmir in ur program. though his comments were bit harsh but u talked humbly. god bless you

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  20. आजकल यही सब चालों ओर चल रहा है। तस्‍लीम और साइंस ब्‍लॉगर्स असोसिएशन काफी समय से इस मानसिकता के विरूद्ध लोगों को जागरूक करने का काम कर रहा है।

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  21. शनि ग्रह की कार्य प्रणाली को समझने के लिए सबसे अच्छा उदहारण भारतीय रेल के जाल के माध्यम से समझा जा सकता है...

    शनि का कार्य मस्तिष्क तक सूचना/ शक्ति विभिन्न अन्य ग्रहों से पहुँचाना है, जैसे रेलगाडी जनता को एक स्टेशन से दूसरे तक पहुँचाने का काम करती है...

    इसी प्रकार शनि परम ज्ञान की प्राप्ति हेतु मूलाधार से सहस्रार तक हरेक ग्रह के केंद्र में उपलब्ध सूचना/ शक्ति को एकत्रित कर Nervous Systems द्वारा मस्तिष्क में पहुंचाना आवश्यक है, जिसका भारत में मॉडल है हावडा से कालका रेल, जो काली के क्षेत्र, कोलकाता, के यात्री को हिमाचल में स्तिथ ज्वालामुखी, माँ सती के चेहरे, या नैनादेवी, सती की आँख, मंदिर आदि तक कालका या कालिका के प्रदेश तक पहुँचाने का कार्य करती है...

    इसी प्रकार योगी कुण्डलिनी जगा कर संपूर्ण शक्ति/ सूचना को मस्तिष्क तक योग द्वारा पहुँचाने का प्रयास करते हैं...

    और अब ममता दीदी यानि 'माँ काली' के प्रतिरूप के हाथ में रेल की बागडोर बिहार तक उठ फिर से मूलाधार यानि 'तृणमूल' पहुँच गयी है...देखना है कि कालका पहुँचती है गाड़ी या मूलाधार में, विष्णु में, ही लुप्त हो जाती है...

    जय माता की!

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  22. hello sir..
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    thankyou sir.

    AsHIsh Kedia

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  23. रवीश जी, मैंने भूगोल कक्षा आठ तक ही पढ़ा, और उसमें गोल था...किन्तु अब समझ में आया कि क्यूँ पढाया गया था: उदाहरणार्थ मुझे आश्चर्य हुआ जब मैंने पाया कि हिमाचल कि राजधानी और एक समय ब्रिटिश राज्य की Summer Capital शिमला, भारत देश कि राजधानी नई दिल्ली, और भारत के उत्तर और दक्षिण शेत्रों का मिलन बिंदु कर्णाटक की राजधानी बंगलुरु तीनों के Longitude लगभग एक ही हैं; क्रमशः ७७.१७, ७७.१२, और ७७.३८...और यही नहीं नर्मदा नदी के उद्गम स्थल अमरकंटक, काशी यानि वाराणसी, और कैलाश पर्वत, तीनों, जो शिव से विशेषकर जुड़े हैं लगभग एक ही Longitude, ८२.५ पर हैं जिसके आधार पर भारत की घडियां समय दर्शाती हैं...और शिव को महाकाल भी कहा गया है अनादी काल से :)

    शायद उपरोक्त इशारे 'बुद्धिमान' के लिए काफी हों निराकार ब्रह्म के हाथ को देखने के लिए...

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  24. कलियुग के कारण आज अधिकतर आत्माएं विष के प्रभाव में हैं, जिस कारण अधिकतर शरीर भी 'आसुरी आनंद' को महत्व देती दिखाई देती हैं...बिना आत्मज्ञान के कारण, सतही तौर पर देखने पर, आम आदमी को ऐसा प्रतीत होना प्राकृतिक है कि जो कुछ पाना है वो इसी एक जन्म में पालें...किन्तु शक्ति का, काल-चक्र के कारण, मानव शरीर ८४ लाख योनियों से चक्कर काट पाना मान भी लें तो सोने कि चमक से भटक जाना भी प्राकृतिक ही होना चाहिए, जिससे हिन्दू मान्यता के अनुसार राम-सीता भी नहीं बच पाए थे, और दुर्योधन, रावन, इत्यादि तो माने हुए हैं जिनको सोने ने अँधा कर दिया था...वो तो केवल योगी ही थे जो सत्य कि खोज में, सब कुछ छोड़, हिमालय पहुँच, शांत वातावरण में, प्राकृतिक वातानुकूलित प्रदेश में, ठंडे दिमाग से 'सत्य' की खोज कर पाए और "सत्यम शिवम् सुंदरम" के द्वारा सबको बताया कि निराकार आत्मा अमृत है और हर स्थान में, हर छोटे-बड़े प्राणी में व्याप्त है...इस प्रकार मानव का कर्त्तव्य केवल 'परम सत्य', परमात्मा, को जानना, और उसे अपने अन्दर भी जानना है...और यह भी कि उसे पाने का 'बीज मंत्र' ॐ है...साधू, एक को साध लो तब सबको साध सकते हो क्यूंकि वो ही असली 'तृणमूल' है :)

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  25. क्या पता हम सब कुछ जानकार भी अनजान बने रहते हैं....मुझे पूजा पाठ से कोई परहेज नहीं लेकिन उसके पीछे कोई डर या लालच छिपा है तो ये ढोंग ही है....आपने मेरे मुंह की बात छीन ली है.....बहुत अच्छा लगा पढ़कर....

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  26. रवीश भाई

    बिलकुल सही कहा है आपने,वैसे आजकल धर्म एक फैशन की तरह हो गया है. काफी दिन से मै भी कुछ ऐसा ही लिखने की सोच रहा था.

    बधाई हो आपको

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  27. जे सी भाई ! बहुत बहुत शुक्रिया ! मै रविश बाबु के ब्लॉग पर आपका कमेन्ट पढ़ने आता हूँ ! आप धर के एकदम से रगड़ देते हैं !

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  29. शनि नहीं आजकल तो भोले बाबा भी सडको पे उतरे हुए हैं, सडको पे भोले बाबा से डर के रहो वर्ना भोले बाबा के विनाशकारी रूप से बच नहीं पाओगे , भोले भोले के जाप सुनते कब तुम शोलो में दहक जाओगे पता ही नहीं चलेगा!
    मानो या ना मानो पर भोले बाबा की ही कृपा है की अचानक सावन के महीने में बाबा भक्तो पे प्रशन्न होते है तबी तो शहर में अचानक ही अपराधिक ग्राफ निचे की तरफ झुक जाता है ,
    मैंने तो सुना है किसी थाने जाकर इस बात की पुष्टि नहीं की ,हाँ उन लोगो से जरुर सुना है जो भोले के हर रूप से वाकिब है ! वैसे ये तो भोले का पर्सनल मामला है हम इसमें क्या कह सकते है, वो कब हमे सुख दे और कब सब कुछ छीन ले , ये जानते है तो सिर्फ भोले ......
    मेरा सुजाव तो बस इतना सा है की गर्मी से तुम बच सकते है लेकिन अगर भोले रुष्ट हुए तो भोले के शोल्लो से तुम्हे कोई नहीं बचा सकते, भोले के मामले में तो ना सरकार कुछ कर सकती ना जनता ..........!
    कही सावन में भोले तुम पे ना बरस जाए इसलिए सावान में ज़रा चल संभल के ......!
    जय भोले की........!

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  30. रवीश जी का लेख से प्रेरणा मिली, तथा कालसर्प योग के बारे मैं कुछ विचार व्यक्त किये हैं.

    अथ श्री कालसर्प योग कथा

    http://dilli6in.blogspot.com/

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  31. Aaj hum jitne pakhandi aur baiman hote ja rahe hain shayad oose ko barabar karne ke liye hamari chahat ko bazar ke log cash kar rahe hain.

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  32. शुक्ल जी की काल-सर्प योग कथा पढ़ी - अच्छी है...किन्तु यह तो निश्चित है कि किसी भी काल में हर प्राणी का किसी न किसी तरह अंत तो हुवा होगा ही जिसे शायद केवल अनंत शिव ही बता सकते हैं जो स्वयं अकेले ही तथाकथित क्षीर-सागर मंथन के अंत पर परम ज्ञान प्राप्त कर पाए...और यह भी निश्चित है कि ब्रह्माण्ड का जो भी विराट रूप हम सभी को दिखाई पड़ रहा है हमारी हर एक की बुद्धि के परे है, क्यूंकि हम सभी मंथन के आरंभिक काल के उसी निराकार ब्रह्म के विभिन्न रूप जाने गए, और इसी कारण ज्ञानी सलाह दे गए कि अपने कर्मों को 'कृष्ण' में अर्पित कर दो जो नादबिन्दू विष्णु के प्रतिनिधि से आरंभ कर साकार त्रेयम्बकेश्वर (ब्रह्मा-विष्णु-महेश, यानि सूर्य और पृथ्वी) के भी प्रतिनिधि बन गए...हाँ इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता कि कुछ गणनाये कुछ हद तक सही भी उतर सकती हैं यदि उस व्यक्ति की 'तीसरी आँख' कुछ हद तक खुली हो - जिसे 'sixth sense' भी कहते हैं...

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  33. आदरणीय JC

    आपके विचार पडे, आपने सही कहा, अंत एक सत्य है, मेरी राय मैं, इतनी सारगर्भित तथा गूड बातों का समाज के बहुत बडे हिस्से के लिये कोई अर्थ नही है, खुद गोस्वामी तुलसीदास ने कहा है.

    "नही कलि कर्म ना धर्म विवेकु, राम नाम अवलमंबन ऐकु"

    अर्थात कलियुग मैं कर्म, धर्म तथा विवेक कुछ नही है, सिर्फ राम नाम जपो.

    तो भइया, क्या पोंगा पंडितो के चक्कर में पडना, बस राम नाम जपो

    एक आग्रह : यदि ये टिप्प्णी आप उसी लेख के साथ लिख दें, तो बाकी पड्ने वालो को आसानी होगी.

    http://dilli6in.blogspot.com/

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  34. शुक्ल जी, तुलसीदास यह भी कह गए, "जा की रही भावना जैसी प्रभु मूरत तिन देखि तैसी."

    'बच्चे' को अज्ञानता के कारण अन्धकार से भय स्वाभाविक है, और तुलसीदास जी ने ही राम के माध्यम से कहा, "भय बिन होऊ न प्रीती." ३ दिन (?) वरुण देवता से लंका जाने के लिए मार्ग देने हेतु प्रार्थना न मानने पर उन्होंने लक्षमण से सागर को ही सुखा देने हेतु तीर माँगा था, तभी वरुण देवता हाथ जोड़ उपस्थित हो गए और उन्होंने नल-नील के माध्यम से पुल बनाने का सही सुझाव दिया (जो दर्शाता है हर पात्र का 'रामलीला' में निर्धारित रोल)...

    कलियुग में, त्रेतायुग में बना 'रामसेतु', केवल विचाराधीन ही रहा होगा क्यूंकि सृष्टि की उत्पत्ति अपने श्रेष्टतम गंतव्य पर केवल सतयुग के अंत पर संभव हुआ माना जाता है...

    [मुझे खेद है मैं अपनी टिपण्णी आपके ब्लॉग में पोस्ट करने में सफल नहीं हो पाया (अभिमन्यु सामान चक्रव्यूह भेद नहीं पाया :)...]

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  35. Anti जी, जैसा मैंने अपने पूर्वजों के माध्यम से सीखा, शनि ग्रह का काम दिमाग की बत्ती जलाना है...किसी की बत्ती हमेशा ही लगभग गुल रहती है तो किसी की १०० वाट के बल्ब जैसी, जो इम्तहान में मिले प्रतिशत नंबरों से भी पता चलता है - लगभग ० से लगभग १००% के बीच...

    और इसी प्रकार कंप्यूटर के माध्यम से हम एक दूसरे को विभिन्न क्षेत्र की सूचनाओं का आदान-प्रदान करते हैं, यानि हम शनि का ही काम करते हैं :)

    और 'अनजाने के भय' के कारण ऐसा, सौरमंडल समान, चक्रव्यूह रच देते हैं कि कई बार तो सूचना आगे बढती ही नहीं है...और न करें तो 'शैतान' लोगों के कारण वाइरस प्राप्त हो जाता है अपने
    कंप्यूटर को, और Mother board ही बदलना पड़ जाता है शनि की 'वक्र दृष्टि' के कारण :)
    काम तो रुकता ही है पर जेब पर भी भारी पड़ता है :)

    कहते हैं शनि के कारण ही लक्ष्मी माता आती-जाती रहती हैं :)

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  36. अरे भइया रवीश जी आगे भी बढ़िए कुछ नया लिखिए शनि को छेड़ कर तो आपने लिखने की गति को ही रोक दिया। क्या शनिदेव को शांत करवाने का यत्न शुरू करूं। ऐसा करिए एक नीलम धारण करिए आप चाहें तो काली स्याही वाली पेन का इस्तेमाल भी कर सकते हैं। अब आगे कुछ औऱ लिखिए, ये नाकाबिलेबर्दाश्त है।

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  37. ...Apke blog par to log khub comment likhte hain, ham bade ho jayenge to ham bhi likhenge.

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  38. "काले से डर गए क्या?...हम काले हैं तो क्या हुआ दिलवाले हैं..."

    लीला राम यानि सूर्य की है और शनि सूर्य-पुत्र है...बीच में ६-७ अन्य ग्रह भी हैं जिन्हें भी, हर एक को, विशेष रोल दिए गए हैं...नीलम धारण करने से पहले जान लें उसकी आवश्यकता है भी कि नहीं - ऐसा नहीं है कि यह सबको लाभ ही करेगा...अधिक देने कि क्षमता है, अन्य ग्रहों से ले कर, तो अधिक ले भी लेता है उन्हें वापिस करने हेतु :)

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  39. लोगों को डरा के पैसा कमाना वोह भी भगवान् के नाम पे शायद सबसे आसान काम हो गया है|

    वैसे कहते हैं शनि सबसे बड़े शिक्षक हैं, और भले ही शुरू में कष्ट दें अंत में उबार लेते हैं|

    और जैसा के कहते है आदमी परेशानी से ज्यादा सीखता है अच्छे समय से कुछ नहीं|

    "सुख में सुमिरन सब करें, दुःख में करे ना कोय जो सुख में सुमिरन करे तो दुःख काहे को होय"

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  40. ये सुख और दुःख जरा आपस में बदल गए |

    :-)

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  42. रवीश जी
    इस धर्म में इतना विरोधाभास है कि उसे शायद भगवान भी न सुलझा पाये।

    सर आप मेरे लिए एक सम्माननीय और प्रेरक व्यकित है मैने आपके किसी लेख में पढा था कि आप खुद को सर कहे जाने से काफी परेशान है इसलिए मैं यह पूछना चाहता हूं कि मुझ जैसे पत्रकारिता के विद्यार्थी आप को किस संबोधन से पुकारे कि आप को भी ठेस न पहुंचे और हमारे विचार भी आप तक पहुंच सके।

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  43. सौर-मंडल में अनंत ग्रह इत्यादि, देवता, हैं...जहाँ तक मानव शरीर की रचना का प्रश्न है, माना गया है कि 'हिन्दू' (वो शब्द जो 'इंदु' यानि चाँद से बना, जिसे शिव के माथे में यानि सबसे श्रेष्ठ स्थान दिया गया है) मान्यता के अनुसार सूर्य से लेकर शनि, केवल ९ 'ग्रह', के सत्व उपयोग में लाये गए हैं...

    इन्हें ही मुख्य देवता, महारथी, भी कहा गया है, और ये सब अपने अपने निर्धारित दिशा के राजा माने जाते हैं, जिसमें शनि उपर-नीचे की दिशा देखता है जबकि अन्य आठ, सूर्य से बृहस्पति (Jupiter), एक बिंदु से आठ मुख्य दिशा में से एक, हर एक, का कार्य क्षेत्र में मानी गयी हैं...

    भारत में उत्तर दिशा, यानि जहाँ हिमालय है, सर्वश्रेष्ट मानी गयी है और चंद्रमा के कार्यक्षेत्र में...

    सारे देवता कभी लाभकारी होते हैं (जब वो व्यक्ति विशेष को शक्ति प्रदान करते हैं), और कभी हानिकारक (जब वो शक्ति ग्रहण करते हैं)...और कभी निर्गुण भी होते हैं... ये तीन अवस्थाएं हर व्यक्ति की किसी काल विशेष में दशा दर्शाती हैं (आप या तो 'अच्छे' है, या 'बीमार' या केवल 'ठीक-ठाक')...

    और यह भी जानना आवश्यक है कि 'ग्रह' मगरमच्छ को भी कहते हैं, जो आधार है 'गज-ग्रह' की कहानी का जिसमें ग्रह, यानि मगरमच्छ, को विष्णु का पहला अवतार माना गया है जिन्होंने हाथी (गज) को मुक्ति दी...और बालक गणेश के सर, जिसे शनि ने काट दिया था, उस की जगह शिव ने हाथी का सर लगा उन्हें फिर से जीवन दान दिया...और गणेश को पहला स्थान दिया जाता है जो मंगल ग्रह के सत्व का मूलाधार में होना इशारों से दर्शाया जाता है...

    इस प्रकार योगी प्रयास करते हैं गणेश को उसकी माँ से मिलाने का, बालक मूल में है तो माँ माथे में, और बीच में ६ अन्य ग्रह अवरोधक समान...

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  44. रवीश जी
    इस धर्म में इतने विरोधाभास है कि शायद भगवान भी न सुलझा पायें।

    सर आप मेरे लिए एक प्रेरणास्त्रोत्त हैं। मैनें आप के किसी लेख में पढा था कि आप सर संबोधन से काफी परेशान हैं। मैं आपसे यह जानना चाहता हूं कि मुझ जैसे पत्रकारिता के विद्यार्थी आप को किस संबोधन से पुकारे कि आप के सम्मान को ठेस भी नहीं पहुंचे और हमारे विचार भी आप तक पहुंच जाये।

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  45. शिशिर
    सिर्फ रवीश कह सकते हैं. रवीशवा भी।

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  46. "...इस धर्म में इतने विरोधाभास है कि शायद भगवान भी न सुलझा पायें।" कहते हैं शिशिर भाई :)

    कितनी गहराइ में गए हो? पंचतंत्र की कहानियां पढ़ी हैं? किसने बताया कि वे नीतिशास्त्र को मूर्खों के लिए मनोरंजक कहानियों द्वारा किसी 'ब्राह्मिन' ने कभी लिखा था? इसी प्रकार क्या कोई पढ़ा-लिखा मान नहीं सकता है कि किसी 'हिन्दू' ने सनातन धर्म अर्थात सत्य को आम आदमी के हित में पहले कभी गहराई में जा कर लिखा हो सकता है? नहीं तो क्यूँ हर कोई भारतीय गर्व से कहता है कि संसार को शून्य प्राचीन भारत ने दिया? अर्थात भगवान् को निराकार पाया :)

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  47. क्या खूब कहा आपने भक्ति फ्लेक्स्जिबल है ,

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