ये अखबार और टीवी के नए बाइट बालक हैं। हर बालकों का दौर आता है। सबसे पहले नेताओं का आया। हर दल ने टीवी के लिए प्रवक्ता पैदा किए। प्रवक्ताओं ने टीवी के लिए पंच लाइन गढ़े। उसके बाद क्रिकेट बालक आए। ये वो लोग थे जो क्रिकेट से रिटायर होकर बुढ़ा रहे थे। भला हो क्रिकेट और विवाद का इन खिलाड़ियों को नया काम मिला। इन्होंने क्रिकेट की समीक्षा को नया आयाम दिया। लगे बॉल के मूवमेंट से लेकर शाट्स के कट तक का विश्लेषण करने। इसी के साथ मनोविज्ञानियों को भी बुलाया जाने लगा। परीक्षा में तनाव, रिश्तों में टकराव, दफ्तर में मनहूसियत। इन सब कारणों का विश्लेषण आज कल मनोविज्ञानी करते हैं। हर समस्या पर इन्हीं के विचार आते हैं। यही आते हैं बताने कि वक्त बदल रहा है। उम्मीदें बढ़ रही हैं।ऐसे में आदमी तनाव में हैं। इनकी बातें किसी रामदेव से कम नहीं होतीं। टीवी को तुरंता विचारक चाहिए। पता नहीं बाकी लोग क्या कर रहे हैं।
अब एक दौर आया है बाज़ार को समझाने वाले जानकारों का। हर दम अपनी छोटी छोटी दुकानों से किसी अर्थशास्त्री की तरह बकते रहते हैं। कुछ लोगों को छोड़ दें तो किसी की विश्वसनीयता का पता ही नहीं चलता। ज़माना ऐसा पगला गया है कि अगर आप मैनेजमेंट पास हैं या फिर ब्रोकर हैं तो आप बाज़ार के बारे में बकने के लिए अधिकृत हैं।
अजीब हालत है। पहले अर्थव्यवस्था की किसी भी हरकत को अर्थशास्त्री बताते थे। अब लगता है वो कहीं गायब हो गए हैं। एक भी अर्थशास्त्री का कोट कहीं नहीं उनकी जगह हाल ही में उगने वाले शेयर जानकारों ने ले ली है। वो फोन पर बकते हैं। टीवी स्टुडियों में आकर बकते हैं। यहां लगाओ। वहां मत लगाओ। लेकिन जब जनता के खरबों रुपये डूब जाते हैं तो नेताओं की तरह जनता को संयम बरतने का वरदान देने लगते हैं। ये बताते नहीं कि बाज़ार डूबा क्यों और उबरेगा कब। गौर से इनकी बातों को सुनिये। ऐसी गिरावट की स्थिति में यही वो लोग हैं जो बोलते हैं कि सरकार को कुछ करना चाहिए। जब बाज़ार चढ़ता है तो कहते हैं कि सरकार को इससे दूर रहना चाहिए। मैं बिज़नेस का आदमी नहीं हूं। हो सकता है कि बाज़ार बालकों की दूरदर्शी क्षमता की पहचान नहीं कर पाया हूं लेकिन ये टीवी के नए बाइट बालक हैं। ब्लाज जगत में कई लोग बाज़ार से जुड़े हैं। वो जरा प्रकाश डालें कि बाज़ार विशेषज्ञों की विश्वसनीयता कैसे परखी जाए। कैसे भरोसा किया जाए।
अब विशेषज्ञों को कौन पूचता है सरजी, सब जगह यही हाल है। मेरी एक दोस्त को चैनल के एक बाबा ने बताया था कि लड़की मांगलिक है, दो साल तक शादी का जोग नहीं है, तीस को सगाई है। चैनलों को लगता है देखने वाले लोग फूद्दू हैं, सब जल्द ही भूल जाएगे। गुमराह करने में कौन किससे पीछ है,,,
ReplyDeleteबाज़ार के बारे में मुझे कोई ज्ञान नहीं इसलिए मैं ज्यादा कुछ कह नहीं सकता. लेकिन हाँ,ये क्रिकेट क्रिटिक्स मुझे फूटी आँख नहीं सुहाते.मक्ग्राथ,डोनाल्ड और वॉर्न भी अब तक सचिन कि कमजोरी नहीं ढूंढ पाए और ये टटपुन्जिये सेवानिवृत्त क्रिकेटरों कि जमात उस कमजोरी को ढूँढने का दावा करते हैं. छोटे क्रिकेटर का मुह ज्यादा बड़ा होता है. हमने कभी कपिल देव या सुनील गावस्कर को किसी प्लेयर कि बुराई करते नहीं सुना,शायद इसीलिए वो लोग महान हैं . पर वो क्रिकेटर जिन्होंने जीवन में कुछ नहीं किया वे बड़े बड़े क्रिकेटरों के बारे में अनापशनाप बकते हैं तो बुरा लगता है.
ReplyDeleteएक जमात आजकल भविष्यवक्ताओं की भी पैदा हो चुकी है, न्यूज़ चैनल पर अब हर बात में इनकी भी राय ली जाने लगी है. भारत के मीडिया का हाल केंकड़े से भरे ड्रम जैसा हो गया है, मीडिया आगे निकलने का प्रयास करता है तो चैनल उसे सौ साल पीछे ले जाने का प्रयास करने लगते हैं.
इन को अनदेखा भी नहीं कर सकते, चौबीसों घंटे किसी न किसी चैनल पर बहस जारी रहती है.जो कभी पर्थ में खेला नहीं वो कहता है कि भारत के जीतने का कोई चांस नहीं. जो खुद कमाने कि जुगत में भिडा है वो दूसरों को इनवेस्टमेंट के गुर सिखाता है, जिसके खुद के भूतकाल का पता नहीं वो हमारा भविष्य बताता है.
ReplyDeleteचैनल कहते हैं कि ये पब्लिक कि डिमांड है, हम कहते हैं कि भाई हम क्या पब्लिक से अलग हैं,हमें तो ये सब नहीं पसंद.वे कोई न कोई बहाना ढूंढ लेते हैं.
एक "सनसनी" से निपटे नहीं थे
अब तो हर चैनल सनसनाने लगा है.
सावधान करने का मकसद लेकर शुरू हुआ था,
अब हर चैनल पर डराने लगा है
(ये भी एक तरह की कविता है).
अभी तो ये शुरुआत है साहब, आगे तो लगता है कि समाचार देखने के लिए शायद हमें वापस डी डी १ की शरण में जाना होगा.
बाजार और शेयर मार्केट के आंकड़े मेरे लिए काला अक्षर भैंस बराबर। कुछ पल्ले नहीं पड़ता। इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करना हो या टैक्स बचाने की तिकड़में हो, ये मेरे जीवन का सबसे बड़ा दुख है। पानी-बिजली से भी बड़ा। क्रिकेट भी काला अक्षर भैंस बराबर है। बस इतना ही समझ में आता है कि चार बल्ला और गेंद लेकर दौड़ते रहते हैं और बीच-बीच में एक डॉक्टर का कोट पहने आदमी हाथ उठाकर अदाएं दिखाता है। बाकी सब संपट। मैं कोई एक्सपर्ट कमेंट नहीं कर सकती, क्योंकि इस मामले में मेरा यही हाल है कि 'भैंस के आगे बीन बजावे, भैंस खड़ी पगुराए।'
ReplyDeleteमालूम नहीं, रवीश, बकते हैं? कहां.. बकने में भी एक लपेट, एक उमंग होती है.. मुझे तो लगता है हगते हैं?
ReplyDeleteअब 24 घण्टे चैनल का पेट भरना है, कुछ न कुछ तो कहते रहना पडेगा। अर्थपूर्ण हो या अर्थहीन - पर चैनल के अर्थशास्त्र के लिए जरूरी है!
ReplyDeleteहम तो केवल सुनते हैं और खीझकर चैनल बदल देते हैं - आप तो महानुभाव अंदर रह कर सहते हैं।
संजय गुलाटी मुसाफिर
सुना है NDTV को ज्योतिष और ज्योषियों से विशेष Alergy है। सो आपको अपने ब्लॉग - 'ज्योतिष परिचय' पर पधारने का न्यौता दे रहा हूँ। स्वागत है।
ReplyDeletehttp://www.sanjaygulatimusafir.blogspot.com/
संजय गुलाटी मुसाफिर
सच बात है
ReplyDeleteये समझदार भी अचानक ही पैदा हो जाते हैं
एजेंसियों के बाजारू संवाददाताओं का शुक्रिया.. वो बाजार की खबर लिख के भेजते हैं और हम जैसे उसे पहले पन्ने पर चिपका कर मुक्ति पा लेते हैं. विश्लेषण गया तेल लेने. जिसके जीवन भर की कमाई चली गई हो वो किस लंपट की बात का यकीन करेगा. और आपके ये नए बाइट बालक ... दुनिया में स्थाई क्या है बंधु यह दौर भी जल्द खतम हो जाएगा.
ReplyDeleteगुलाटी जी का मेसेज बॉक्स शायद जनसाधारण के लिए बंद है,इसलिए मैं वहाँ पर रिप्लाई तो नहीं कर पाया इसलिए आपके दशाव्तारों वाले पोस्ट का प्रत्युत्तर यहीं पोस्ट कर देता हूँ.
ReplyDeleteशायद ही कोई इतिहास के जानकार शंकराचार्य रामानुजन का बुद्ध धर्म के खिलाफ की गयी "हिन्दू बचाओ क्रांति" के बारे में अनभिज्ञ हो.
कल तक बुद्ध को हिन्दू धर्म के लिए खतरा मानने वाले आज बुद्ध को दशाव्तारों में से एक मानने लगें तो यह विरोधाभास नहीं तो और क्या है.
ये सनातन धर्म की विडंबना है या समय की आवश्यकता, ये तो मुझे नहीं पता.पर बुद्ध को अवतार कहने वाले मनुवाद पर क्या कहते हैं, यह देखने वाली बात होगी.
वैसे मुझे आश्चर्य नहीं है,ऐसे समय में जब ऊंची जाति वाले खुद को निम्न जाति में शामिल करने की मांग करने लगें हैं तो धर्म कैसे इससे अछूता रह सकता है, बुद्ध को दशम अवतार मान लेने में कोई अतिशियोक्ती नहीं है ११ वे स्थान पर अम्बेडकर के लिए तैयार रहिये.
यहाँ गंदगी फैलाने के लिए रवीश जी से माफ़ी चाहता हूँ.
अरे रविश भाई यह तो कुछ नहीं है, हमारे यहां तो हमारे चपरासी से लेकर डाईवर तक सब बाजार के जानकार बन गए हैं
ReplyDeleteSambhavatah aj ki pirdhi ne yeh suna nahin hoga ki gyani is sansar ko hi 'mithya jagat' kah gaye, ek maya-jal, jahan kewal jhoot bikta hai! Is 'Maya' ka saar Nirakar Brahma, sat-chit-anand, hain - jinhain mehsoos karna hota hai, kyunki way bhautik indriyon ke pare hain.
ReplyDeleteGhulam Ali ki ek gazal kuch aisi hai, "Fasle aise bhi hone/ Yeh kabhi socha na tha/ ...Samne baitha tha mere/ Aur wo mera na tha/ Main use mehsoos kar sakta tha chhoo sakta na tha..."
भई आप भी किसी के पीछे पड़ते है तो हाथ मुहं धोकर। शेर के दांत टुट जाऐ तो क्या वह खाना छोड़ दे। ठीक है रिटायर हो गये है। लेकिन पेट तो उनके भी है। किसी को वो फुटी आंख नही भाते है तो अपनी आंख बंद कर ले। क्योकि जब तक चैनल है उनकी दुकान तो नुऐ चाल्लेगी। वो लोग नही बोलते है तो खबरिया पहुच जाते है अपना तमबुरा लेकर...रिएक्शन लेने। और बोलते है तो आप जीने नही देते। क्या करें वो लोग। क्रप्या बताए।
ReplyDeleteMaya ke vishaya mein thorda-bahut mujhe jo samajh mein aya wo maine http://indiatemple.blogspot.com mein samjhane ka prayas kiya hai.
ReplyDeleteSankshipta mein yeh kaha ja sakta hai ki Shiv puran, Ramleela, Krishnaleela ityadi anant kal se chal rahe hain – Satyuga se kaliyuga tak, Mahakal Shiva dwara rachit kal chakra k anusar. Aur, gyani hi kewal in leelaon ka anand utha paye hein aur kuchh pratyaksha-darshi athva TV ityadi ke madhyam se anya darshak bhi vibhinna kal mein - aise hi jaise Sachin (jhoot out!) aaj dikhai pardte hein 39 shatak ke aur 50 ardha-shatak ke sath anand lete!
‘Anand’ film ki kahani yoon tau waise hi dil moha lene wali thi, kintu uski antim line mein uska satva, athva kahani ka nichord samaya that – jaise ‘Satyam Shivam Sunderam”, kewal teen shabda mein Brahmand ka satva samaya hai!
Mera Bharat, athva Bhootnath Mahan!
sahab aaj kal har kisi ko jugali karne ki aadat pad gaye hai.kisi incident ke bad 2 hours ki jugali kiye bina khana hi nahi hajam hota hai.
ReplyDeleteरवीश जी ताज़ा ताज़ा ब्लोग लेखन शुरू किया है प्रयास पर एक बार नज़र ए इनायत कर करें और ईमानदार समीक्षा दें सहयोग अपेक्षित है कृपया उपेक्षित न करें !
ReplyDeletewww.taazahavaa.blogspot.com
साहब ,काहे लिए इन नए बाईट बालकों के पेट पर लात मर रहें हैं । अब हर चैनल प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री के साथ घंटों डिसकस तो कर नहीं सकते , और नेताओं की विश्वसनीयता कितनी विश्वसनीय है ये सब जानते है ।शेयर बाज़ार के बुखार को नापने के लिए एम्स के डाक्टर तो आएंगे नहीं । चैनलों को भी चौबीस घंटा चलना है ,इसलिए कोई भी घंटाप्रसाद आ के टिनटिनाने लगता है ।
ReplyDeleteजो समझदार हैं
ReplyDeleteब्रोकर हो गए
जो और ज्यादा समझदार हैं
जोकर हो गए
यह ब्रोकरों और
जोकरों का ज़माना है
जो ब्रोकरों और जोकरों से
चिढ़ते हैं
पांवों की ठोकर हो गए।
असल बात यह है कि ख्बरनवीस ख्बर की कमजोर कडी बनता जा रहा है
ReplyDeleteपहले वह एक्सपर्ट के हवाले से खबर ेदता था यही खबरनवीसी का प्रोफेशनलिज्म था अब एक्सपर्ट खुद ही खबर देता है बावजूद इसके खबर देना उसका काम नहीं है
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ReplyDeleteरवीश जी,अगले पोस्ट के लिए और कितना इंतज़ार करवाएंगे???
ReplyDeleteअरे आजकल का ट्रेंड ही यही है, जो क्रिकेटर ना बन सका, वो क्रिकेट का प्रशिक्षक बन जाता है। जो कभी बल्ला ना पकड़ा हो माइक पकड़ कर एक्सपर्ट बन जाता है। जिसके पल्ले रुपल्ली ना हो, वो स्टूडियो मे बैठकर स्टॉक मार्केट पर भविष्यवाणियां करता है। और टीवी वाले बाबाओं का क्या कहना, इनको अपने अगले पल का पता नही होता, टेलीफोन पर ही बंदे का भविष्य बता देते है। बनाने वाले बन रहे है और बनने वाले बने चले जा रहे है। जब तक डिमांड रहेगी तब तक ये सप्लाई का खेल चलता रहेगा।
ReplyDeleteऔर लल्ला, इ पोस्ट २२ तारीख को लिखे थे, २२ टिप्पणियां तो पा गए हो, अगली पोस्ट के लिए क्या २२ दिन इंतजार कराओगे? देखो जनता अब आतुर हो रही है...
yeh jamana hai suchna kranti ka lekin jaise har kranti sawatah sfurt hoti hai waise hi is kranti mein bheee sawayam ko suchna srot manane wale har badmash balak ko media ne bina soche samjhe neta banane ka mauka de diya hai....
ReplyDeletejahir si baat hai... kranti ke khewanhaar hi aise hain to phir aage kya hoga
HAR skahk pe Ulu baithe hain anjam e gulista kya hoga