tag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post95830798521495839..comments2024-03-22T11:14:13.300+05:00Comments on कस्बा qasba: ऑफिस- अ प्लेस टू लिवravish kumarhttp://www.blogger.com/profile/04814587957935118030noreply@blogger.comBlogger44125tag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-47184409274805558912009-10-17T14:57:29.459+06:002009-10-17T14:57:29.459+06:00ravish ji idhar bhi dekh lein ..kya hal hai duniya...ravish ji idhar bhi dekh lein ..kya hal hai duniya ka<br /><br />http://www.youtube.com/watch?v=5fCsWml5ZkYsyahihttps://www.blogger.com/profile/09861773621205083891noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-13576286595461990452009-10-05T20:20:34.426+06:002009-10-05T20:20:34.426+06:00आशुतोष जार्ज मुस्तफा।
अभी हंस में राजेंद्र यादव की...आशुतोष जार्ज मुस्तफा।<br />अभी हंस में राजेंद्र यादव की तेरी मेरी उसकी बात पढ़कर खत्म ही किया था कि यह पोस्ट खुलते खुलते खुल गया। वैसे भी मैं ब्लाग एकाध लोगों की पढ़ता हूं और किसी को कुछ लिखने से कतराता भी हूं। लेकिन रहा नहीं जा रहा इसलिए लिख दे रहा हूं। मैं पटना में ही एक टीवी पर आने को प्रतीक्षारत चैनल में काम कर रहा हूं। बहुत कम दिन काम किए इस फिल्ड में लगभग चार या पांच साल। मुझे पता भी नहीं आप दूसरे के कामें ट को पढ़ते भी होंगे या नहीं। क्योंकि आफिस से आने के बाद सबसे बड़ी प्रेमिका या प्रिय बिस्तर और बच्चे हो जाते हैं।<br />सर मैं आफिस से गायब होकर कुछ गिलहरियों को पटना में पाल रखा है। खैर जाने दिजिए। बुंदेलखंड़,सीमांचल के नेपाल से सटे इलाके के गांवों के तस्कर बनते बच्चे. पंचायती राज स्तर पर बिहार में छोटी सी नौकरी के लिए मुखिया के साथ हमबिस्तर होने वाली लड़किया. कल तक साईकिल को तरस रहा पंचायत का प्रतिनिधि आज बोलेरो खरीद लिया है। चारो ओर भ्रष्टाचार। वह भी आकंठ तक। एक दूसरे के हिस्से को खा लेने की होड़। दिमाग फट जाएगा ज्यादा सोचने पर। चारों ओर खाने चबाने का दौर जारी है। <br />पत्रकारिता में अब कभी अखबारों में स्टेट्समैन और द हिंदू की बात याद आती है, वरना बिहार से छपने वाले अखबार तो कोसी में पानी बढ़ने की खबर छापने की वजाए मैनकाईंड का विज्ञापन छापना ज्यादा पसंद करते हैं। किसी की बात मत किजिए। खुशवंत सिंह ने अपनी आत्मकथा में लिखा था कि देश के एक बहुत बड़े घराने के अखबार में सिर्फ मूर्ख भरे हैं पत्रकार नहीं. जाने दिजिए। आफिस में कैसे कैसे इनफेक्सनस पल रहे हैं प्रोफेशनलिज्म के नाम पर उसे आपने उकेर तो दिया ही हैं। सर आपके मित्रों का जो हाल है न वहीं चारों ओर है ............................बाकी बच्चोंके साथ आराम से आपका दिन बीते .......तथाकथित लोकतंत्र के हाईटेक पहरुओं को कभी औकात दिखाने का मौका मिले पत्रकारिता के जरिए तो जरुर दिखाईए क्योंकि उनकी संपति बीना टेंशन के कई गुना फिसदी बढ़ रही है।baadlav.blogspot.comhttps://www.blogger.com/profile/04031304422492618099noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-53237956601252723432009-10-05T20:19:24.029+06:002009-10-05T20:19:24.029+06:00आशुतोष जार्ज मुस्तफा।
अभी हंस में राजेंद्र यादव की...आशुतोष जार्ज मुस्तफा।<br />अभी हंस में राजेंद्र यादव की तेरी मेरी उसकी बात पढ़कर खत्म ही किया था कि यह पोस्ट खुलते खुलते खुल गया। वैसे भी मैं ब्लाग एकाध लोगों की पढ़ता हूं और किसी को कुछ लिखने से कतराता भी हूं। लेकिन रहा नहीं जा रहा इसलिए लिख दे रहा हूं। मैं पटना में ही एक टीवी पर आने को प्रतीक्षारत चैनल में काम कर रहा हूं। बहुत कम दिन काम किए इस फिल्ड में लगभग चार या पांच साल। मुझे पता भी नहीं आप दूसरे के कामें ट को पढ़ते भी होंगे या नहीं। क्योंकि आफिस से आने के बाद सबसे बड़ी प्रेमिका या प्रिय बिस्तर और बच्चे हो जाते हैं।<br />सर मैं आफिस से गायब होकर कुछ गिलहरियों को पटना में पाल रखा है। खैर जाने दिजिए। बुंदेलखंड़,सीमांचल के नेपाल से सटे इलाके के गांवों के तस्कर बनते बच्चे. पंचायती राज स्तर पर बिहार में छोटी सी नौकरी के लिए मुखिया के साथ हमबिस्तर होने वाली लड़किया. कल तक साईकिल को तरस रहा पंचायत का प्रतिनिधि आज बोलेरो खरीद लिया है। चारो ओर भ्रष्टाचार। वह भी आकंठ तक। एक दूसरे के हिस्से को खा लेने की होड़। दिमाग फट जाएगा ज्यादा सोचने पर। चारों ओर खाने चबाने का दौर जारी है। <br />पत्रकारिता में अब कभी अखबारों में स्टेट्समैन और द हिंदू की बात याद आती है, वरना बिहार से छपने वाले अखबार तो कोसी में पानी बढ़ने की खबर छापने की वजाए मैनकाईंड का विज्ञापन छापना ज्यादा पसंद करते हैं। किसी की बात मत किजिए। खुशवंत सिंह ने अपनी आत्मकथा में लिखा था कि देश के एक बहुत बड़े घराने के अखबार में सिर्फ मूर्ख भरे हैं पत्रकार नहीं. जाने दिजिए। आफिस में कैसे कैसे इनफेक्सनस पल रहे हैं प्रोफेशनलिज्म के नाम पर उसे आपने उकेर तो दिया ही हैं। सर आपके मित्रों का जो हाल है न वहीं चारों ओर है ............................बाकी बच्चोंके साथ आराम से आपका दिन बीते .......तथाकथित लोकतंत्र के हाईटेक पहरुओं को कभी औकात दिखाने का मौका मिले पत्रकारिता के जरिए तो जरुर दिखाईए क्योंकि उनकी संपति बीना टेंशन के कई गुना फिसदी बढ़ रही है।baadlav.blogspot.comhttps://www.blogger.com/profile/04031304422492618099noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-80065022181261880142009-10-04T01:46:48.940+06:002009-10-04T01:46:48.940+06:00aur haan,t best thing is...that t post seems to re...aur haan,t best thing is...that t post seems to represent no perspective or judgement as such...just simple facts laid down...moreso, by giving a miss to the main words &without using any adjectives..& even t nouns,in a manner :), u've sustained its meaning quite beautifully and appealing!! Interesting...rgds,payalPayal Khare Bhatnagarhttps://www.blogger.com/profile/02647691712620116414noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-27236402512726305982009-10-03T18:39:59.839+06:002009-10-03T18:39:59.839+06:00कितना अजीब सिलसिला है मेरी तुम्हारी बातचीत का...
त...कितना अजीब सिलसिला है मेरी तुम्हारी बातचीत का...<br />तुम मेरी आँखों में देखकर कुछ कहते हो,<br />तो मुझे तुम्हारी नज़रों पर शक होता है...<br />लेकिन जब तुम वही बात लिख कर देते हो,<br />तो मैं समझ जाता हूँ....<br />मैं क्यों हँसा, तुम्हे इससे मतलब नहीं,<br />तुम तो, मुझे हसाने वाले को ढूंढते हो...<br />तुम,खुद को मुखौटों से अनजान कहने वाले,<br />मेरे आंसुओं से भरे चेहरे में, एक गैर को देखते हो...<br />लेकिन जब किसी कागज़ पर मेरे अश्क गिर जाते हैं,<br />तो मुझे अपना सा पाकर, कितनी बेचैनी से उसी कागज़ पर,<br />तुम अपना हाल-ऐ-दिल बयान कर देते हो....-payal kharePayal Khare Bhatnagarhttps://www.blogger.com/profile/02647691712620116414noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-63051123139276505862009-09-29T21:31:58.544+06:002009-09-29T21:31:58.544+06:00गीता ने कहा है कि कर्म करो,फल की चिंता मत करो। कृष...गीता ने कहा है कि कर्म करो,फल की चिंता मत करो। कृष्ण,तुमने नौकरी नहीं की। की होती तो बात नहीं करते। kaya khub kaha hai sir .....Pawan Narahttps://www.blogger.com/profile/07824679968668967882noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-77749284688845306942009-09-22T11:33:30.907+06:002009-09-22T11:33:30.907+06:00Aaj kal offices main galakat professionalism hai. ...Aaj kal offices main galakat professionalism hai. Yah samajh main hee nahin aata ki agla apna dost has ya dushman. woh hamari unnati chahta hai ya avnati. Kisee shayar ne kya khoob likha "mujhe dushmanao ke sitam ka khof nahin main doston ki wafaon se darta hoon"Mahendra Singhhttps://www.blogger.com/profile/02983305155812215864noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-82744277441983246092009-09-20T22:16:33.962+06:002009-09-20T22:16:33.962+06:00बहुत बुरा विकास है कि दुनिया के विकास की शुरुआत ही...बहुत बुरा विकास है कि दुनिया के विकास की शुरुआत ही औफिस से हो रही है.ritu rajhttps://www.blogger.com/profile/03597991886714743948noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-76360568109942142142009-09-20T22:14:39.739+06:002009-09-20T22:14:39.739+06:00घोडे की चाल की तरह सधी हुई पोस्ट. ढाई कदम के बाद द...घोडे की चाल की तरह सधी हुई पोस्ट. ढाई कदम के बाद दूसरा ढाई कदम फिर तीसरा ढाई कदम फिर और उसके बाद फिर, फिर और फिर. एक एक शब्द सच लगा सिर्फ़ सच. एक बात सोच रहा हूं कि इस पोस्ट को लिखते समय की आपकी मनोदशा कैसी रही होगी? अभी अभी दोस्त के साथ बकझक हुई की इंडिया में पैसा खूब है. लोगों की सैलरी बढ रही है. मैंने भी तर्क दिया कि हां एक की ५० तो बकी बचे नब्बे की सिर्फ़ ५. बडा अजीब विकास हो रहा है. दुनिया में. और दुनिया के विकास के शुरुआत ही औफिस से हो रही है. सा.. औफिस और औफिस की राजनीति. खैर कहानी हर जगह वही है और पात्र भी वही है. हम सब के सब मरीज है. खुद को खींच खींच कर कुर्सी तक पहुंचा रहे हैं. हम मरीज सब के सब औफिस के मरीज. दुनिया के विकास की शुरुआत ही औफिस से होती है.ritu rajhttps://www.blogger.com/profile/03597991886714743948noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-63161055078283258892009-09-20T14:02:45.514+06:002009-09-20T14:02:45.514+06:00दोस्तों
"आई-आई आरूषि आई..."
पढ़ लें, थो...दोस्तों <br />"आई-आई आरूषि आई..."<br />पढ़ लें, थोड़ा मन हल्का हो जाएगा<br />सेंटी होनें की बजाए मज़े लो, खोट ढूंढ़ों, <br />पिन मारो, सुलगाओं सालों को, दुखी मत होना, <br />अपनें दर्द को उनकी कमीं बनाओ...बस।नवीन कुमार 'रणवीर'https://www.blogger.com/profile/17518069543329053477noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-88413934768150878022009-09-20T14:01:44.503+06:002009-09-20T14:01:44.503+06:00आप पेज-3 पार्ट 2 बनाइए....खूब चलेगी....आप पेज-3 पार्ट 2 बनाइए....खूब चलेगी....Nikhilhttps://www.blogger.com/profile/16903955620342983507noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-61248320435944484642009-09-20T14:01:05.923+06:002009-09-20T14:01:05.923+06:00This comment has been removed by the author.नवीन कुमार 'रणवीर'https://www.blogger.com/profile/17518069543329053477noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-86141878806639029522009-09-20T10:21:33.293+06:002009-09-20T10:21:33.293+06:00रवीश तो हमसे भी घणे दुखी हैं भाई। व्यंग्य लिखो महा...रवीश तो हमसे भी घणे दुखी हैं भाई। व्यंग्य लिखो महाराज मन को सकून मिलेगा। इतना मत सोचो, लेकिन जितने गहरे उतर कर लिखा है उससे तो यही लगता है कि एक जिम्मेदार पोस्ट पर होने के नाते आप शिकार भी हैं। जंगल में सफेद खरगोश और पट्टियों में लिपटा हमलावर मरीज़ भी। कोई बात नहीं है जी कुर्सी बचाने वालों को देखकर(राजनीति पर लिखते-लिखते) कुर्सी बचाना तो आप भी सीख ही गए होंगे। वैसे इस तंत्र का आप भी एक हिस्सा हैं और तंत्र से लड़ने के बजाय कदमताल तो करनी पड़ेगी। एक और बात समझ आ रही है। जब आप हमलावर हैं तो कहीं यह पोस्ट अपने आप को रिप्रेजेंट करने के लिए तो नहीं लिखी गई।मधुकर राजपूतhttps://www.blogger.com/profile/18175900220847414275noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-16566346059271315882009-09-20T01:12:29.184+06:002009-09-20T01:12:29.184+06:00एक बेहतरीन रचना,
में उन महारथियों में नहीं जो खास...एक बेहतरीन रचना,<br /><br />में उन महारथियों में नहीं जो खास होकर खुद को आम कहते हैं। पर जहां तक मुझे लगता है कि ये<br /> बेशक 21वीं सदी के किसी भी काबिल कर्मयोद्धा की ब्रेन मैपिंग रिपोर्ट है ये।<br /> जरा सोचिए 1909 में हमारी आपकी तरह का एक भारतीय क्या करता था, हमारे बच्चों की उम्र वाले उनके बच्चे कैसे रहते थे। 1809 में जन्मे एक आम भारतीय की लाइफ स्टाइल और उसकी समस्याएं कैसी होंगी। क्या ये मुमकिन नहीं कि 1109 ईस्वी में हमारी आपकी तरह के नौजवान सुबह का नाश्ता कर होते होंगे, फिर अचानक कहीं नगाड़ा बजता होगा वो सबकुछ छोड़ हाथ में तीर कमान या भाला या चाहे जो भी कुछ मिले लेकर दौड़ पड़ते चलो आक्रमण.... हिस्ट्री में हीरा हूं, लिहाजा तथ्यों के बल पर तर्क नहीं दे सकता। सिर्फ कल्पना करने की जरूरत है। <br />जाहिर तौर पर हर समाज की अपनी समस्याएं रही होंगी, जिनसे जूझना उनलोगों की नियति, लाचारी या फिर ड्यूटी रही होगी। बदले रुप में आज भी है। ये एक बेहद जटिल और लंबी विषयवस्तु है और स्यादवादियों की तरह हर कोई पहली को अपनी तरह से बनाता और हल करता है।<br />लेकिन कुछ बातों पर एक व्यावहारिक नजरिया रखते हुए जरूर सोचना चाहिए। <br /><br /> - आज जो कुछ हो रहा है क्या वो रातोंरात हुआ है?<br />- उससे भी पहले, क्यों हुआ?<br />- किसके लिए हुआ?<br />- और फिर होश संभालते ही, यही सब करने के लिए क्यों मरे जाते हैं?<br /><br />आज की जिंदगी में जो जहां हैं कुछ करने के लिए ही है और आगे की उम्मीद उसी कुछ पर टिकी होती है। वो कुछ क्या होगा ये कौन तय करेगा?<br /><br />अमिर खुसरो नहीं हूं फिर भी एक छोटी सी पहेली ही सही..<br />आपने जिस किस्म के इंसान की ब्रेन मैपिंग की है.. उसके लिए नीचे लिखे चंद गानों का क्या मतलब रह गया. जिन्हें सुन सुनकर वो बड़ा हुआ है। <br /><br />नन्हा मुन्ना राही हूं..देश का सिपाही हूं...<br />झूठ बोले कौआ काटे..<br />कोई हसीना जब रूठ जाती है तो...<br />जब हम जवा होंगे..<br />ये गोटेदार लहंगा...<br />पापा कहते हैं...<br />चोली के पीछे क्या है..<br /><br />और आज आपके मन का रेडियो कौन सा स्टेशन पकड़ता है...<br /><br />संक्षेप में लाजवाब विश्लेषण,<br />मैं जैनेंद्र या सुरेंद्र यादव की स्टाइल के चक्कर में नहीं पड़ना चाहता.. तुलना करुं तो श्रीलाल शुक्ल की रागदरबारी पढ़ने की आदत के बाद विश्रामपुर का संत पढ़ना। दोनों ही उम्दा लेकिन दो छोर पे।दीपक चौबेhttps://www.blogger.com/profile/08466911729017013790noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-22061178019652133972009-09-19T17:35:30.503+06:002009-09-19T17:35:30.503+06:00Your post reflects the frustrating and venomous at...Your post reflects the frustrating and venomous atmosphere of society where everyone doubts everybody and mistrust is everywhere.Only few good people are the only hope.<br /><br />Regards,<br />PragyaUnknownhttps://www.blogger.com/profile/10887632886503253994noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-15181536954648782912009-09-18T23:39:35.453+06:002009-09-18T23:39:35.453+06:00रवीश जी , बिल्कुल यथार्थ । हर वक्त दिल सहमा सहमा स...रवीश जी , बिल्कुल यथार्थ । हर वक्त दिल सहमा सहमा सा रहता है । कोई न सच बोलता है न सुनना चाहता है । न दोस्त का पता चलता है , न सहयोगी का, लेकिन हर समय टीम स्पिरिट पर ग्यान मिलता रहता है । यही कारपोरट कल्चर है ।आपने जैसा चित्रण किया है, मैं उसमे और कुछ जोड़ने की आवश्यकता नहीं समझता हूं ।विजय प्रकाश सिंहhttps://www.blogger.com/profile/17982982306078463731noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-63481748107358127822009-09-18T14:51:23.705+06:002009-09-18T14:51:23.705+06:00बहुत दिन बाद आफिस आई हूं, लगता है जैसे किसी नई जगह...बहुत दिन बाद आफिस आई हूं, लगता है जैसे किसी नई जगह हूं, कोई अजनबी शहर हो, एक जंगल जहां हर नजर अपना शिकार खोज रही है।<br />कहना होगा आपकी अब तक की पोस्ट में बेहतरीन लेकिन रवीशजी आप अपनी पोस्ट में कभी इतना दुखी और इतने परेशान साउंड नहीं हुएनीलिमा सुखीजा अरोड़ाhttps://www.blogger.com/profile/14754898614595529685noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-46512718891522070422009-09-18T09:37:55.483+06:002009-09-18T09:37:55.483+06:00अभी मैं हूं..."मोबाइल के इनबाक्स में बचा कर र...अभी मैं हूं..."मोबाइल के इनबाक्स में बचा कर रखे गए कुछ सीक्रेट एसएमएस। किसी वक्त के साथी के किसी भी वक्त पलट जाने पर काम आयेंगे।" आपकी पोस्ट नें दिल के छालों को हरा कर दिया। प्यार, ज़़ज़्बात, दोस्ती, एहसास सभी की असलियत को बयां कर देनें वाले लेख को सलाम। नौकरी से छोकरी तक रोटी से दोस्ती तक की गर्दों की कहानी है। प्रतिभा भी मक्खन की मोहताज़ हो गई...गज़ब। वास्तविकता कहें की मज़बूरी? पता नहीं...अम्मा के मुंह से कहावत सुनी थी जब कहा था कि "मैं अब और गाली नहीं सुनूंगा, नहीं करनी नौकरी किसी चैनल में"<br />वो बोली सब जगह सुनना पड़ेगा, इसी को नौकरी कहते है... "हां जी की नौकरी औऱ ना जी का घर"।नवीन कुमार 'रणवीर'https://www.blogger.com/profile/17518069543329053477noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-64525079703665118342009-09-18T08:27:43.002+06:002009-09-18T08:27:43.002+06:00रवीश जी मैं समझता हूँ की यह सब मानव स्वभाव है. इसल...रवीश जी मैं समझता हूँ की यह सब मानव स्वभाव है. इसलियें मैं आपके लियें हरिवंश राय बच्चन की एक कविता की कुछ पंक्तियाँ भेंट कर रहा हूँ. जो थोड़ा बहुत आपको राहत पहुंचायेगी. <br /><br /><br />हिम्मत करने वालों की हार नहीं होती<br />लहर से डर कर नैया पार नहीं होती।<br /> नन्हीं चिटी जब जब दाना लेकर चलती है<br />चढ़ती दीवारों पर सौ बार फिसलती है<br />मन का विश्वास रगों में साहस भरता है<br />चढ़ कर गिरना गिर कर चढ़ना न अखरता है<br />आखिर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती<br />कोशिश करने वालों की हार नहीं होतीदस्तकhttps://www.blogger.com/profile/02844638941938729914noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-18536990455781782702009-09-18T00:03:44.180+06:002009-09-18T00:03:44.180+06:00आपने सच उतार दिया है शब्दों के माध्यम से।आपने सच उतार दिया है शब्दों के माध्यम से।Democracy Monitor ( डेमोक्रेसी मॉनिटर ) https://www.blogger.com/profile/17065465017021897084noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-29074656435026873782009-09-17T22:41:41.855+06:002009-09-17T22:41:41.855+06:00प्रतिभा भी मक्खन की मोहताज हो गई है....
लेकिन मक्ख...प्रतिभा भी मक्खन की मोहताज हो गई है....<br />लेकिन मक्खन बिना प्रतिभा के भी सफलता की सीढ़ियां चढ़ने में समर्थ है....<br />एक अदभुत पोस्ट के लिए ह्रदय से साधुवाद....anil yadavhttps://www.blogger.com/profile/16738905491616336875noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-45658480603451640122009-09-17T19:56:53.884+06:002009-09-17T19:56:53.884+06:00SACHIN KUMAR
MAINE SOCHA THA KI' AAPNE BAHUT A...SACHIN KUMAR<br />MAINE SOCHA THA KI' AAPNE BAHUT AACHA LIKHA HAI' LIKHNE KE LIYE KABHI POST NAHI LIKHUNGA. LEKIN AUR KUCH NAHI LIKH PAA RAHA HOON.O KAHTE HAI EK BEHTAR WAQTA HONE KE LIYE AACHA SHROTA HONA JAROORI HAI EK AUR BAAT BEHTAR WAQTA HONE KE LIYE BEHTAR LIKHNE WALA HONA BHI JARRORI HAI. ONE OF THE BEST BLOGS I HAVE EVER READ.THANKS.SACHIN KUMARhttps://www.blogger.com/profile/07876633469215289831noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-77942650747264786482009-09-17T18:11:59.091+06:002009-09-17T18:11:59.091+06:00aaj pehali baar aapka article padhaa bahut kuch sa...aaj pehali baar aapka article padhaa bahut kuch samajhane jaisaa tha jivan ka nichod tha par kuchh baate samajh me nahi aai shayad uske liye mujhe abhi vakt lagega <br /><br />ANIL O. SINGH <br />NEWS24अनिल ओमप्रकाश सिंह https://www.blogger.com/profile/06471345375942243258noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-68544579954855691592009-09-17T16:53:26.740+06:002009-09-17T16:53:26.740+06:00Best Part of Blog..
गीता ने कहा है कि कर्म करो,फल...Best Part of Blog..<br /><br />गीता ने कहा है कि कर्म करो,फल की चिंता मत करो। कृष्ण,तुमने नौकरी नहीं की। की होती तो बात नहीं करते।<br /><br />Overall post is awesome, illustrating true situation of so called modern professionalism.Virushttps://www.blogger.com/profile/06803040280097141147noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-56326331798503390662009-09-17T15:55:51.887+06:002009-09-17T15:55:51.887+06:00कल रात 'विनोददुआ के साथ' वाले एपीसोड में च...कल रात 'विनोददुआ के साथ' वाले एपीसोड में चलते चलते पर उसने कहा था फ़िल्म का आपका पसंदीदा गीत सुना, <br />आज का आपका पोस्ट उससे काफ़ी मिलता है।<br /><br />एक संवेदनशील रीपोर्टर का संवेदनशील पोस्ट।रज़िया "राज़"https://www.blogger.com/profile/12190998804214272758noreply@blogger.com