tag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post9115534995272683270..comments2024-03-22T11:14:13.300+05:00Comments on कस्बा qasba: गांधी कथावाचकों को तैयार करने का मन तो है पर योजना नहींravish kumarhttp://www.blogger.com/profile/04814587957935118030noreply@blogger.comBlogger21125tag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-27065235376348781192010-04-15T17:16:50.331+05:002010-04-15T17:16:50.331+05:00"...Gandhi jaisa wyakti...na bhoota na bhavis..."...Gandhi jaisa wyakti...na bhoota na bhavishyati..!" क्षमा जी ने कहा...मैं उनसे 'निकट भविष्य' के विषय में तो सहमत हूँ, किन्तु चाहूँगा कि कोई भी समझा दे अंतर राम, बुद्ध और मोहन दास, तीनों के तथाकथित त्याग के बीच: एक ने अयोध्या के राज्य को ठुकराया माँ केकई के आदेश पर, उनके स्वार्थ के कारण; दूसरे ने ठुकराया 'अंतरात्मा की आवाज़ पर सत्य की खोज में'; और तीसरे ने रेल के प्रथम श्रेणी के डब्बे से अफ्रीका के स्टेशन पर जबरदस्ती उतार दिए जाने के कारण अपनी तत्कालीन ५००० रु. मासिक वकालत छोड़ अंततोगत्वा 'संग्राम में जीत' हासिल कर भी, शायद ७८ वर्ष की आयु हो जाने पर (?)...JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-85134803863373141032010-04-15T12:55:30.855+05:002010-04-15T12:55:30.855+05:00गाँधी कथा वाचक - कथा सुनना और कथा कहना शायद दोनों ...गाँधी कथा वाचक - कथा सुनना और कथा कहना शायद दोनों पेशेवर कार्य हो गए हैं . शायद फैशन भी . नहीं तो टी वी वाले इन्हें बुलाते ? गाँधी पहले जीवन में थे , फिर स्मृति में . अब शायद कथाओं में सिमट कर रह जाएँ . फिर भारतीय संस्कृति के बारे में जैसे अब बच्चे चिल्ड्रेन्स बुक ट्रस्ट या गीता प्रेस पढ़ कर सीखते हैं . या उनके माँ बाप टी वी पर रामायण या महाभारत देख कर जानते हैं. शायद गाँधी के बारे में भी कुछ वैसा ही हो. वैसे भी शुक्रिया अतेनबोरो साहब का जिन्होंने एक पूरी पीढ़ी को गाँधी से मिलवाया . वैसे भी नयी पीढ़ी जिस दौड़ में शामिल है उसमे गाँधी के लिए वक्त ? और उनके साथ हम भी तो दौड़ रहे हैं .Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/08928212793008107322noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-73480480549041426422010-04-15T12:55:10.774+05:002010-04-15T12:55:10.774+05:00गाँधी कथा वाचक - कथा सुनना और कथा कहना शायद दोनों ...गाँधी कथा वाचक - कथा सुनना और कथा कहना शायद दोनों पेशेवर कार्य हो गए हैं . शायद फैशन भी . नहीं तो टी वी वाले इन्हें बुलाते ? गाँधी पहले जीवन में थे , फिर स्मृति में . अब शायद कथाओं में सिमट कर रह जाएँ . फिर भारतीय संस्कृति के बारे में जैसे अब बच्चे चिल्ड्रेन्स बुक ट्रस्ट या गीता प्रेस पढ़ कर सीखते हैं . या उनके माँ बाप टी वी पर रामायण या महाभारत देख कर जानते हैं. शायद गाँधी के बारे में भी कुछ वैसा ही हो. वैसे भी शुक्रिया अतेनबोरो साहब का जिन्होंने एक पूरी पीढ़ी को गाँधी से मिलवाया . वैसे भी नयी पीढ़ी जिस दौड़ में शामिल है उसमे गाँधी के लिए वक्त ? और उनके साथ हम भी तो दौड़ रहे हैं .Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/08928212793008107322noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-532678676845004202010-04-15T06:55:14.041+05:002010-04-15T06:55:14.041+05:00गाँधी तो पाकिस्तान के भी प्रिय हैं, आनंद के स्रोत,...गाँधी तो पाकिस्तान के भी प्रिय हैं, आनंद के स्रोत, तभी तो वो भारत में गाँधी की तस्वीर वाले जाली नोट बंटवा मजा ले रहा है,,,हम सबको गाँधी कि तस्वीर वाले पांच सौ और हजार के नोट हाथ में आते ही शक हो जाता है कहीं बेवकूफ तो नहीं बन रहे हैं?...<br />हो सकता है इसमें भी नटखट नन्दलाल, कृष्ण, का ही हाथ हो,,, क्यूंकि आधुनिक भारत में कृष्ण की कथा वाचक फूल माला गले में डलवा 'काजू बर्फी' आदि का आनंद उठा रहे हैं (नेताओं के भाषण समान?),,, और आम आदमी, स्वयं, साबुन, यूरिया आदि का दूध (मीडिया के कारण ज्ञानवर्धन कर, आशा में कि उसको दूध सही मिला होगा :) अपने बच्चों को पिला रहा है और, शायद अधिकतर, विष के कारण, अस्पतालों के चक्कर लगा रहा है...<br /><br />हम जब बच्चे थे तो अपने पूर्वजों को खालिस घी, दूध आदि खाए पीये मानते थे और स्वयं को वनस्पति घी खाने वाले,,,आधुनिक भारतीय, जो फिर भी शिव समान विष पी जी रहा है, उसको क्या आप वनस्पति ही नहीं कहेंगे? "जाकी कृपा पंगु गिरी लंघे...",,, कमाल तो ऊपर वाले का ही है शायद कि कोई कोई लंगड़ा आज भी पहाड़ की चोटी पर चढ़ता दिखता है कभी कभी - मीडिया की कृपा से :)JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-21954581239743869172010-04-14T20:42:45.136+05:002010-04-14T20:42:45.136+05:00sir, narayan desai jee ke es prayas se nayi pidhi ...sir, narayan desai jee ke es prayas se nayi pidhi ko gandhi ko janane aur samajhne ka mooka milega. thanks a lotkamlakar Mishra Smriti Sansthanhttps://www.blogger.com/profile/03099892762957449804noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-2898664928129539622010-04-14T18:46:27.775+05:002010-04-14T18:46:27.775+05:00भारतीय राजनीति के वास्तविक परिदृश्य में गांधी नाम ...भारतीय राजनीति के वास्तविक परिदृश्य में गांधी नाम की सेल फिर खुली है, सोनिया गांधी और राहुल बाबा नें गांधी बाबा को भी फोटों और नोटों से निकाल लाईमलाईट में ला खड़ा किया है। नारायण देसाई ज्ञान की नई दुकान जमानें की फिराक में है। गांधी कथा में क्या नारायण देसाई जी, भगत सिंह फांसी प्रकरण, दलितों को हरिजन बनानें की सुध, पूना-पैक्ट, सांप्रदायिकता तथा धर्म निरपेक्षता पर गांधी बाबा के फैसले भी बताएं। <br />अरे कोई कोबाड़ गांधी पर भी कथा सुनाता है क्या? पता चले तो बताना जरूर...नवीन कुमार 'रणवीर'https://www.blogger.com/profile/17518069543329053477noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-6417930328725032722010-04-14T17:35:29.210+05:002010-04-14T17:35:29.210+05:00देसाई जी निश्चित तौर पर तारीफ बटोरने का कार्य कर र...देसाई जी निश्चित तौर पर तारीफ बटोरने का कार्य कर रहे हैं। जिस उम्र में वे हैं और जिस तरह से गांधीजी की कथा बांच रहे हैं उसे देखते हुए हम यही कहेंगे कि वे गांधी धर्म के संत हैं। हमारे देश में कई ऐसे लोग मिल जाएंगे जिनके दिल में बापू के प्रति सच्ची भक्ति देखने को मिल जाएगी। जमाना जरूर बदला है लेकिन गांधीजी की प्रासंगिकता आज भी नहीं बदली है। बस भागमभाग भरी इस जिंदगी में गांधीवाद की शीतलता का सुकून देने वाला कोई नहीं है। नारायण देसाई जैसे कुछ लोग है लेकिन उनकी उम्र को देखकर ये जरूरत तो अब और भी महसूस होने लगी है कि युवाओं की एक अच्छी खासी संख्या इस दिशा में आगे आनी चाहिए। आज हमारे देश में कई ऐसे कॉलेज और विश्वविद्यालय हैं जिनमें गांधीवाद पर अच्छा खासा कोर्स चल रहा है लेकिन ये संस्थान अपने पाठ्यक्रम से गांधीवाद की कोई नई रोशनी पैदा नहीं कर पा रहे हैं। आज हमारे देश को गांधीवाद रूपी नैतिकता की जरूरत है। ये सच है मार्गदर्शक के अभाव में आज हमारा देश गांधीवाद के पथ से भटक गया है, लेकिन सवाल ये उठता है कि कितने प्रतिशत लोग हैं जो गांधीवाद को भारतीय समाज में एक संस्कार के रूप में तब्दील करने के लिए प्रयासरत हैं।Janduniahttps://www.blogger.com/profile/06681339283219498038noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-65110513118859455612010-04-14T07:24:15.440+05:002010-04-14T07:24:15.440+05:00रवीश जी, इस लेख से आदरणीय नारायण देसाई जी से गांधी...रवीश जी, इस लेख से आदरणीय नारायण देसाई जी से गांधी कथा सुनने की इच्छा बहुत प्रबल हो गयी----पता नहीं सी आई ई टी,एन सी ई आर टी वालों ने कुछ रिकार्ड किया है या नहीं?डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumarhttps://www.blogger.com/profile/03899926393197441540noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-47056252465537240312010-04-13T22:48:58.296+05:002010-04-13T22:48:58.296+05:00Gandhi ke katha sunayee ja rahee hai sunkar achcha...Gandhi ke katha sunayee ja rahee hai sunkar achcha laga. Nai peedhee ke liye Gandhiji kee viratta samay ke saath ek aboojh paheli banti jayegee.Mahendra Singhhttps://www.blogger.com/profile/02983305155812215864noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-41772002039595025172010-04-13T22:45:12.240+05:002010-04-13T22:45:12.240+05:00Gandhiji ki katha vachakon dwara sunai ja rahi hai...Gandhiji ki katha vachakon dwara sunai ja rahi hai sunkar achaa laga. Gandhi ji ka vyaktiktwa samay ke sath aur virat roop leta jayega. Nai peedhi ke liye ek aboojh paheli bnata jayega.Mahendra Singhhttps://www.blogger.com/profile/02983305155812215864noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-31466232183660044502010-04-13T12:43:42.281+05:002010-04-13T12:43:42.281+05:00पूर्वोत्तर में एक जवान मणिपुरी को कहते सुना था कि ...पूर्वोत्तर में एक जवान मणिपुरी को कहते सुना था कि वो 'गांधी समान' मूर्ख नहीं हैं जो उम्र भर लाठी हाथ में ले लंगोटी में घूम कर उम्र बिता दें,,,और अंत में गोली भी खाएँ !!! असम में कहावत सुनी थी, "बंगाली का माथा / आसामी का कथा / और बिहारी का खाता" (उनके लिए बंगाली और आसामी के अतिरिक्त सब 'बिहारी' थे: दुकानदार, जिन्हें मैंने ट्रेन भर-भर अस्सी के दशक में घर लौट फिर वापिस गौहाटी लौटते पाया, क्यूंकि असमियों की हालत कहावत "तू भी रानी / मैं भी रानी / कौन भरेगा पानी?" से जानी जा सकती थी)...<br /><br />'खंडित भारत' में अधिकतर जनता (शहरों को छोड़ कर) सोते - जागते खाली पेट और दिल में आग ले जी रही है जिन्हें रोटी, कपड़ा और मकान चाहिए - 'कथा' सुनने से पहले, क्यूंकि "भूखे भजन न होयें गोपाला!" <br /><br />साठ के दशक में स्टील प्लांट में (राउरकेला उड़िसा में) ट्रेनिंग के कारण, और बाद में वर्तमान में छत्तीसगढ़ (बस्तर मध्य प्रदेश) में विवाह के कारण, दोनों क्षेत्रों के आदिवासियों को निकट से देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ,,,और तब सोच नहीं सकता था कि वे सीधे साधे आदिवासी कभी शक्तिशाली सरकार के विरुद्ध बंदूक भी उठा सकते हैं !!! <br />जय माता ('शक्ति रूपेण संस्थिता') की!JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-22538114125260593882010-04-13T09:59:39.870+05:002010-04-13T09:59:39.870+05:00Waah! Is prayas ke bareme sun man khush ho gaya......Waah! Is prayas ke bareme sun man khush ho gaya...Gandhi jaisa wyakti...na bhoota na bhavishyati..! Kash yah kala mujhme hoti...Gandhi jaise maha purush ki jeevani katha kathan dwara kahneki...kshamahttps://www.blogger.com/profile/14115656986166219821noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-56957033313993295112010-04-13T09:35:09.658+05:002010-04-13T09:35:09.658+05:00मैं तो गांधी के साथ २२ साल रहा। गांधी को जाना उनकी...मैं तो गांधी के साथ २२ साल रहा। गांधी को जाना उनकी मृत्यु के बाद। उनसे अंतरंग परिचय हुआ। गांधी क्रांतिकारी सन्त थे। शरीर से जो प्राप्त होता है वो सुख है। आत्मा से जो प्राप्त होता है वो आनंद है। क्रांन्तिकारी वह है जिसके ह्रदय वीणा पर दूसरे के कष्ट की प्रतिध्वनि हो। विश्व की वेदना उसके ह्रदय में प्रतिध्वनित होती हो। गांधी का प्रयत्न चित्त शुद्धि और समाज क्रांति का मेल था। ध्यान योग से चित्त शुद्धि और अपने प्रयास से सामाजिक संरचना में परिवर्तन। अशुद्ध चित्त से की गई क्रांति शुद्ध नहीं है। गांधी सत्य की चोटी चढ़ते चढ़ते आरोहरण करने वाला था। हमारे देश में कई धुनें सुनाई देती हैं। सबसे पोपुलर है रघुपति राघव राजा राम, पतित पावन सीता राम। पतित को पावन करने वाला राम है। इस गांधी में रुचि है। गांधी इसलिए आदर्श है क्योंकि उसने वही करने की कोशिश की जो बोला। युवा किसी भी नेता में यही आदर्श ढूंढता है कि जो बोलता है वो करता है या नहीं। गांधी की विशेषता उनकी कोशिश थी। सत्य सहज था। जैसे बच्चे के लिए सत्य सहज होता है। सत्य के ऊपर भय आ गया तो झूठ का जन्म होता है। गांधी की खोज सत्य की थी।<br />BILKUL SAHI KAHA..AISE WALE GANDHI KO TO SUNNE KI HAMARI BHI KHAWAHISH HAI...NARAYAN BHAI JI KO GANDHI KATHA KE LIYE AOUR APKA IS POST KE LIYE AABHAR...Archanahttps://www.blogger.com/profile/04248270171579162745noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-16188548513528305882010-04-13T09:26:21.807+05:002010-04-13T09:26:21.807+05:00रंगनाथ ने क्या बात कही है!
वैसे लाल बहादुर वर्मा ...रंगनाथ ने क्या बात कही है!<br /><br />वैसे लाल बहादुर वर्मा जी भगत कथा और अम्बेडकर कथा के ज़रिये ऐसा ही प्रयोग कर रहे हैं।Ashok Kumar pandeyhttps://www.blogger.com/profile/12221654927695297650noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-27796902775314183652010-04-13T06:22:52.414+05:002010-04-13T06:22:52.414+05:00भारत के इतिहास में 'गाँधी' - अर्थात पोरबंद...भारत के इतिहास में 'गाँधी' - अर्थात पोरबंदर निवासी करमचंद के पुत्र मोहन दास - का नाम स्वर्णिम अक्षर में लिखा जाता है,,,क्यूंकि 'खंडित भारत' को अंततोगत्वा अपना (सही या गलत) लक्ष्य प्राप्त होने में उनका हाथ साफ़ दिखा तत्कालीन 'भारत वासियों' को, जैसे 'आकाश' को छूती 'पश्चिम' में पिरामिड या 'पूर्व' में कैलाश पर्वत की चोटी जिसके नीचे स्तिथ मानसरोवर से अनादि काल से बहती जल-धाराएं मानव को ही नहीं अपितु असंख्य प्राणियों के काल-चक्र को बनाये रखने में सक्षम हैं... <br /><br />किन्तु ध्यान रखने वाली बात शायद भूतकाल में 'सत्य' का गहराई में जा 'आत्मा' के विषय में बेहतर ज्ञान है: समतल प्रदेश में ऊंचा पिरामिड बना मृत राजा और उसके स्वामि-भक्त दासों के मृत शरीर के भीतर की आत्माओं को एक ही स्थान पर कैद रख केवल उनसे और अच्छे शासकों के पुनर्जन्म करा देश का (मिस्र का) भविष्य सुधारने कि आशा का,,,जबकि 'भारत' में हिमालय में प्राकृतिक तौर पर उपलब्ध चोटियों, 'शक्ति-पीठ', पर निर्मित मंदिरों के शिखर पर पिरामिड समान 'विमान' बना प्रत्येक जीवित लोगों के भीतर ही स्थित आत्मा को उनके जीवन काल में ही और ऊपर उठा उनको 'पहुंचे हुवे' व्यक्ति अर्थात 'सिद्ध पुरुष' बनाने का उद्देश्य,,,<br /><br />किन्तु सिद्ध पुरुष काल की चाल भी बेहतर जान पाए थे: कि पानी के प्राकृतिक संकेत, 'ऊपर से नीचे बहने' समान, काल सतयुग से कलियुग की ओर ही बहता है (जब तक 'सही समय पर' सूर्य की शक्ति उसे फिर से ऊपर न पहुंचा दे),,, और यदि किसी को 'कथा' से लाभ मिलना लिखा है तो मूक प्रतीत होती प्रकृति के इशारों अथवा कुछेक संकेतों से ही सब प्राणियों के पीछे 'परमेश्वर' का हाथ सभी को कभी भी और कहीं दिख सकता है! किन्तु जैसा किसी एक शायर ने कहा "जो मज़ा इंतज़ार में देखा / वो कहाँ वस्ले यार में पाया"...या ज्ञानी इशारा कर कर गए 'कथा' में केवल 'श्मशान वैराग' उत्पन्न करने की ही सक्षमता की ओर :-)...JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-78764245669474679782010-04-13T04:33:21.014+05:002010-04-13T04:33:21.014+05:00जब मैं छोटा बच्चा था
गाँधी-दर्शन अच्छा लगता थाजब मैं छोटा बच्चा था<br />गाँधी-दर्शन अच्छा लगता थाRangnath Singhhttps://www.blogger.com/profile/01610478806395347189noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-78598152225009059802010-04-13T01:33:50.565+05:002010-04-13T01:33:50.565+05:00अहमदाबाद में गाँधी आश्रम में नारायण भाई की गाँधी क...अहमदाबाद में गाँधी आश्रम में नारायण भाई की गाँधी कथा सुनी थी, आपके इस आलेख ने उस यादगार दिन की यादें फिर से ताजा कर दी. गाँधी जी को फिर से आम जानता और नयी पीढ़ी तक पहुचने का यह प्रयास वाकई स्तुत्य है. इतनी सुंदर पोस्ट के लिए आभार.KESHVENDRA IAShttps://www.blogger.com/profile/08624176577796237545noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-80989266576081583782010-04-13T00:45:35.705+05:002010-04-13T00:45:35.705+05:00vakai sun na chahunga mai bhi gandhi katha, vah bh...vakai sun na chahunga mai bhi gandhi katha, vah bhi us vyakti se jo gandhi jee ke wardha aashram me, mere pita jee ke sath the, ya kahu ki jinke saath mere pita bhi the......1940 ke dashak me......<br /><br />padh padh kar sun ne Trishhna jaag ti hai man me ki gandhi katha suna to jaye ek bar....Sanjeet Tripathihttps://www.blogger.com/profile/18362995980060168287noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-22867239575338560612010-04-13T00:43:33.601+05:002010-04-13T00:43:33.601+05:00This comment has been removed by the author.Sanjeet Tripathihttps://www.blogger.com/profile/18362995980060168287noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-29234336843420229272010-04-13T00:20:32.244+05:002010-04-13T00:20:32.244+05:00एक बार गांधी कथा सुनने की ख्वाहिश है।एक बार गांधी कथा सुनने की ख्वाहिश है।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-4344300539977405822010-04-12T22:52:50.039+05:002010-04-12T22:52:50.039+05:00gandhi katha vachkon se jyada jarurat unke siddhan...gandhi katha vachkon se jyada jarurat unke siddhanton par chalne walo ki hai....kaun chal raha hai unke bataye marg par..mera bhi ek yahi sawaal hai!Parul kananihttps://www.blogger.com/profile/11695549705449812626noreply@blogger.com