tag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post6795750828089572419..comments2024-03-11T10:40:44.616+05:00Comments on कस्बा qasba: आम औरतों की आज़ादी साइकिल के बिना मुकम्मल नहींravish kumarhttp://www.blogger.com/profile/04814587957935118030noreply@blogger.comBlogger12125tag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-36815826755095639082010-08-28T23:35:21.682+05:002010-08-28T23:35:21.682+05:00ravish ji mazaa aa gayaa
kuch naya likhane me aapk...ravish ji mazaa aa gayaa<br />kuch naya likhane me aapka javaab nahi hai.<br />bas aise hi likhate rahan aur ham se jude rahana.chandrajeet singhhttps://www.blogger.com/profile/07167353216092217675noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-22441792937973608902010-08-28T13:15:00.816+05:002010-08-28T13:15:00.816+05:00नमस्कार रविश जी ,आपकी बात सही हैं की नितीश सरकार न...नमस्कार रविश जी ,आपकी बात सही हैं की नितीश सरकार ने साईकिल देकर लडकियों में आत्मविश्वास पैदा किया हैं . आज गाँव की बच्चिया जब साईकिल से विधालय जाती हैं जिसे देखकर सुखद अनुभूति होती हैं.Amitkr guptahttps://www.blogger.com/profile/16429838339818602252noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-47535539357971499612010-08-08T16:13:26.657+05:002010-08-08T16:13:26.657+05:00In Orissa also cycles have changed the life of Dal...In Orissa also cycles have changed the life of Dalit girls. The government has been giving free cycles to tribals girls in schools. This has checked school dropout ratio.Debabratahttps://www.blogger.com/profile/11856413420426847916noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-60337894398698602782010-08-05T20:20:05.346+05:002010-08-05T20:20:05.346+05:00nice.......
sir, maine bhi cycle pr ek report likh...nice.......<br />sir, maine bhi cycle pr ek report likhi thi ittefaakan vo aajtak mere channel pr nahi chali or aapki rikshwa ki report chal gayi such a nice report n nice article.अभिनव 'अभिन्न'https://www.blogger.com/profile/14325700819160867622noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-3260608963144672082010-08-05T17:41:12.184+05:002010-08-05T17:41:12.184+05:00किस तरह एक छोटी सी चीज जिंदगियां बदल सकती है न?किस तरह एक छोटी सी चीज जिंदगियां बदल सकती है न?delhidreamshttps://www.blogger.com/profile/04613041484425960760noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-3762491686298272942010-07-31T22:46:26.225+05:002010-07-31T22:46:26.225+05:00एक तस्वीर होती तो और बढ़िया रहता...सिर्फ महिलाएं ह...एक तस्वीर होती तो और बढ़िया रहता...सिर्फ महिलाएं ही क्यों....पुरुष भी साइकिल चलाते हैं तो मुकम्मल लगता है....मुझे साइकिल के अलावा कुछ और चलाना ही नहीं आया....मैं आखिरी आदमी ही सही...Nikhilhttps://www.blogger.com/profile/16903955620342983507noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-78640385480460445502010-07-31T13:54:53.350+05:002010-07-31T13:54:53.350+05:00साइकिल पर अस्सी के दशक में मणिपुर में अधिकतर लड़कि...साइकिल पर अस्सी के दशक में मणिपुर में अधिकतर लड़कियों को सुबह-शाम देखा था सड़क पर, जहां औरतों को अधिक आजादी थी, या कहिये घर वो ही चलाती हैं और 'ईमा बाज़ार' में स्त्रीयां ही सामान बेचती दिखाई पड़ती हैं...<br /> <br />और पता चला था कि भारत में सोनीपत से बहुत साइकिलें बर्मा में भी बिकती थीं जहां पर भी उनकी बहुत मांग थी...JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-82543872471759253662010-07-31T13:31:12.625+05:002010-07-31T13:31:12.625+05:00अहा ! क्या फ़ुहार छोड़ी है नास्टेल्जिया की ! मैंने...अहा ! क्या फ़ुहार छोड़ी है नास्टेल्जिया की ! मैंने दिल्ली आकर एक स्पोर्टस् सायकिल लिया था। किसी ने चुरा लिया। ग़रीबी-रेखा से भी नीचे की किसी रेखा का चोर रहा होगा। एफ. आई. आर. कराने की हिम्मत नहीं पड़ी।<br />अब नयी लूंगा। याद दिलाने के लिए आपका भी शुक्रिया और उन कामवाली महिलाओं का भी।Sanjay Groverhttps://www.blogger.com/profile/14146082223750059136noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-30647854631645080832010-07-31T12:08:20.351+05:002010-07-31T12:08:20.351+05:00साईकिल तो साहब हमारी बहने भी चलाती थी, इतनी तेज़ क...साईकिल तो साहब हमारी बहने भी चलाती थी, इतनी तेज़ की हमे भी पीछे छोड़ देती थी कही...रेसिंग साईकिल जो थी उनके पास, समय के साथ वो स्कूटर चलाने लगी, लेकिन आज आपकी पोस्ट पढ़कर बड़ा आश्चर्य हुआ की ऐसी भी जगहे है आज भी जहा साइकिल जैसी बेसिक साधन की भी अनुमति नहीं ...कभी कभी लगता है जाये और जरा झकझोड़ आये जोरो से,ऐसे संकुचित विचारधारा के लोगो को...Unknownhttps://www.blogger.com/profile/17788841456607178964noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-44722310681541535882010-07-31T06:55:48.279+05:002010-07-31T06:55:48.279+05:00वैसे कल आपने शायद धयान नहीं दिया की उस रिक्शे क पी...वैसे कल आपने शायद धयान नहीं दिया की उस रिक्शे क पीछे CNG लिखा था , CNG ने भी काफी कायापलट केर दी है , पेट्रोल क अनुपात में यह आधे दम में ही मिल जाता है और प्रयावन को भी मजा , इस पर कुछ हो जाये तोह अच्छा है , आप को जानकारी हम देता हूँ , में इसी field का इंजिनियर हूँ , महज १० सालो में इस उर्जा क स्रोत नें कितनो की नैया पर लगा दी है सर ,<br />कल आपकी रिपोर्ट देखी ,रिक्शे वाले पर , सब कैलोरी का खेल है सर , कुछ लोग जहा कम कैलोरी में निभा रहे ,चाय में २ रुपये की पारले जी डूबा कर लाइट खाना खा कर भी वो रिक्शा वाला डार्विन की थेओरी survival of fittest को चरितार्थ कर रहा है , यहाँ कोई वजन कम करने की समस्या नहीं है ,क्योक यहाँ समस्या भूख है ,चर्बी नहीं .Abhishekhttps://www.blogger.com/profile/04417746028389759277noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-4612634181095763222010-07-31T06:40:41.943+05:002010-07-31T06:40:41.943+05:00रवीश जी,
अस्सी ओस्सी के दशक में पूर्वांचल में किन...रवीश जी,<br /><br />अस्सी ओस्सी के दशक में पूर्वांचल में किन्ही बूल्लू यादव का गाया बिरहा की द्विअर्थी पंक्तियां थीं कि- <b>लड़कियाँ जबसे साईकिल चलाने लगीं....तबसे आगे का डण्डा खतम हुई गवा। </b><br /><br /> यूँ तो मिस्टर बूल्लू यादव ने प्रत्यक्ष रूप से साइकिल के फ्रेम में गद्दी और हैंडल को जोड़ने वाले वाले डंडे का जिक्र किया था लेकिन यह गाना द्विअर्थी के साथ साथ एक और अर्थ दे रहा था कि लड़कियों ने अपने अभिभावकों के द्वारा लादे गए बंधन...रोक छेक के प्रतीक डंडा संस्कृति को ठेंगा दिखाने के लिए साइकिल चलाना शुरू किया और उसका असर था कि साइकिल की कंपनीयों ने फ्रेम में लगने वाले डंडे को निकाल कर लेडीज साइकिल का उत्पादन शुरू कर दिया। <br /><br /> बिरहा की पंक्तियां शायद बूल्लू यादव की थीं या किसी और की इस पर थोड़ा मुंझे संशय है....तब मैं उम्र में काफी छोटा था....काफी पहले यह गाना सुना है।<br /><br /><br /> अच्छी पोस्ट।सतीश पंचमhttps://www.blogger.com/profile/03801837503329198421noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-5602396185075875262010-07-31T00:55:17.927+05:002010-07-31T00:55:17.927+05:00बात तो सही है रवीश जी। काम में गति का होना अति आवश...बात तो सही है रवीश जी। काम में गति का होना अति आवश्यक है। गति होगी तो काम जल्दी होगा और जल्दी काम होगा तो काम ज्याद होगा।<br />बाद में यह भी लग रहा है कहीं आप सपाई तो नहीं हो गए। नेताजी ने फोन करके तो यह अप्रत्यक्ष पोस्ट नहीं लिखवाई।पंकज मिश्राhttps://www.blogger.com/profile/05619749578471029423noreply@blogger.com