tag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post6313354263511264383..comments2024-03-22T11:14:13.300+05:00Comments on कस्बा qasba: उदास मनों में झांकता फेसबुकravish kumarhttp://www.blogger.com/profile/04814587957935118030noreply@blogger.comBlogger19125tag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-17370711493647584302009-12-10T19:43:22.332+05:002009-12-10T19:43:22.332+05:00रविश सर
मुझे फेसबुक और ऑरकुट जैसी सोसिअल साईट बह...रविश सर<br />मुझे फेसबुक और ऑरकुट जैसी सोसिअल साईट बहुत अच्छी लगी .. इनकी वजह से आप जैसे बुधिजिवियो से रु-बरु होने का मौका मिला और अपने मन की बात कहने का चांस मिला ..आपका ब्लॉग "कस्बा" really touchingdr prem dhingrahttps://www.blogger.com/profile/13888624002906245370noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-80430471159956003892009-12-01T09:39:08.869+05:002009-12-01T09:39:08.869+05:00रविश बाबु - भुक्क से चैट विंडो पर नज़र आये - फिर भु...रविश बाबु - भुक्क से चैट विंडो पर नज़र आये - फिर भुक्क से गायब भी हो गए ! खुशनुमा रहने के लिए - हमउम्र के साथ रहना जरुरी है ! फेसबुक हमउम्र के साथ रहने का एक अवसर देता है - भले ही ये "वर्चुअल" ही क्यों न हो ! जोश के लिए खुद से जवान लोगों के साथ रहना जरुरी है - फेसबुक पर मेरे कई मित्र मुझसे उम्र में काफी छोटे हैं ! सही दिशा के लिए बड़ों का संसर्ग होना जरुरी है - मेरे कई अग्रज यहाँ मौजूद हैं ! आप सभी को धन्यवाद !Ranjanhttps://www.blogger.com/profile/03013961954702865267noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-32947158866330398122009-12-01T04:55:25.252+05:002009-12-01T04:55:25.252+05:00पता नहीं लिखते वक्त आप गंभीर मुद्रा में रहे होंगे ...पता नहीं लिखते वक्त आप गंभीर मुद्रा में रहे होंगे या मजाकिया। लेकिन ये लेख पढ़ते वक्त पता नही क्यों मैं हंसता रहा। कई जगह ऐसा लगा आप मेरे मन की बात कहे जा रहे हैं। कई दफा मैं फेसबुक पर आपके एकांउट पर वीजिट करता हूं..फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजते-भेजते खुद को रोक लेता हूं। ठिक वही डर लिए जिसे आप फ्रैंड लिस्ट में ऐड य़ा इग्नोर करते वक्त महसूस करते हैं।अमृत कुमार तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/00404648697774307768noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-60664208162189365982009-11-30T23:15:03.333+05:002009-11-30T23:15:03.333+05:00कोई लिख देता है- जगे हैं? बस बात शुरू हो जाती है। ...कोई लिख देता है- जगे हैं? बस बात शुरू हो जाती है। मौन रहते हुए,बिना आवाज़ निकाले,बातें होने लगती हैं...आपने सही फरमाया हैविधुल्लताhttps://www.blogger.com/profile/15471222374451773587noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-87816384177768779592009-11-30T15:47:46.910+05:002009-11-30T15:47:46.910+05:00ये कुछ-कुछ नशे की तरह है। हर बार नया नशा। शायद शुर...ये कुछ-कुछ नशे की तरह है। हर बार नया नशा। शायद शुरुआत याहू मैसेन्जर से हुई होगी। चैट रूम में जाना और पूछना एएसएल। ये सब नशा है जोकि किसी का समय रहते उतर जाता हैं तो कोई इससे उल्टी करके निजात पाता हैं।Diptihttps://www.blogger.com/profile/18360887128584911771noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-72688337782024043472009-11-29T22:12:16.834+05:002009-11-29T22:12:16.834+05:00अजेय जी ने भी सही कहा (और वो भी हिमालय की चोटी से)...अजेय जी ने भी सही कहा (और वो भी हिमालय की चोटी से), " यह दुनिया भी तो आभासी है......पूरी क़ायनात ही अभिव्यक्ति के लिए आतुर है..." <br /><br />यह सबको पता ही होगा कि मानव के समान सब जानवर भी स्वप्न भी देखते हैं और आपस में बात भी करते हैं, यानि अपनी-अपनी भाषा में अपने हृदय के उदगार अन्य अपनी ही जाति के अन्य जीवों से प्रस्तुत करते हैं, भले ही पीसी उनको अभी उपलब्ध न हो...<br /><br />जब मानव शायद सही मायने में किसी काल में सर्वश्रेस्ट जीव था/ रहा होगा तो तोता-मैना की भी भाषा समझ पाता था...हमारे ही पूर्वजों ने 'पक्षी शास्त्र' लिखा है - ऐसा कहा जाता है आज भी :) <br /><br />इसी पृष्ट-भूमि को ध्यान में रखते, एक बार मैंने एक से पूछा था कि कोयल के गान सभी को भाते हैं, किन्तु क्या किसी को गधे का रेंकना भी अच्छा लगता होगा?! मेरी बात उसने सुनी तो सही पर अंत में मुझे ही उसको अपने विचार से उत्तर सुनाना पड़ा कि उसके मालिक को :) <br /><br />क्यूंकि मान लीजिये वो एक धोबी है जो मैले/ धुले कपडे लाने/ लेजाने का काम अनथक करता है...और इस लिए धोबी कि आजीविका उस पर निर्भर है - उसके पापी पेट का सवाल है...किन्तु जब वो कपडे धो रहा होता है और गधे को उस दौरान घास चरने के लिए छोड़ देता है तो उसे उसकी आवाज़ सुन उसे वो ही आनंद मिलता होगा जो अमिताभ बच्चन को आज अपने बाबूजी की मधुशाला सुनने/ गाने मैं मिलता है :) और वो निश्चिंत कपडे धोने का कार्य कर सकता है, नहीं तो उसकी खोज में ही समय व्यर्थ हो जायेगा...JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-45336279701525663632009-11-29T16:52:33.688+05:002009-11-29T16:52:33.688+05:00भाई जी यह दुनिया भी तो आभासी है......पूरी क़ायनात ह...भाई जी यह दुनिया भी तो आभासी है......पूरी क़ायनात ही अभिव्यक्ति के लिए आतुर है. वह अपना वह रूप दिखाना चहती है जिस का कि (उसे लगता है) नोटिस नही लिया जा रहा. और हम खुश फहम इंसान भी उसी सृष्टि का हिस्सा हैं. <br />और यह रिश्ता साला बीच मे कहाँ से आ गया? चार दिन मिले हैं हम तो भईया कुछ कम्युनिकेट करना चह्ते हैं, अगर ये वक़्त की बर्बदी है तो वक़्त का सदुपयोग करने वलों ने ही इस दुनिया को कितना ठीक ठाक कर दिया है?अजेयhttps://www.blogger.com/profile/05605564859464043541noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-64459921963941668012009-11-29T12:06:04.712+05:002009-11-29T12:06:04.712+05:00उक्त टिप्पणी में मैंने उन लोगों की बात की है जो सच...उक्त टिप्पणी में मैंने उन लोगों की बात की है जो सच और झूठ के वास्तविक अर्थ और फ़र्क को समझते हैं। ऐसे लोग ढूंढने से मिलते हैं। उन लोगों की बात नहीं की जिन्हें बचपन से ही सच के नाम पर झूठ बोलना सिखाया जाता है। और जिनकी बुद्धि मरते दम तक इतनी विकसित नहीं हो पाती कि इतना भी जान पाएं कि अभी हम चैराहे पर क्या बोल कर आए हैं और घर में आकर क्या बोल रहे हैं। सुबह से शाम तक ऐसे ही लोगों से हमारा पाला पड़ता है।Sanjay Groverhttps://www.blogger.com/profile/14146082223750059136noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-12487102544312492972009-11-29T09:57:35.918+05:002009-11-29T09:57:35.918+05:00रवीश जी आपने अपने विचार बहुत सुन्दरता पूर्वक प्रस्...रवीश जी आपने अपने विचार बहुत सुन्दरता पूर्वक प्रस्तुत किये, इसमें कोई दो राय नहीं...किन्तु डा. दराल भी सही हैं कहने में, "...एक वर्चुअल वर्ल्ड में रहकर आप अपने ख्यालों में ऐसे खोये रहते हैं, जैसे एक मानसिक रोगी खोया रहता है। समय का सदुपयोग नही लगता।..." <br /><br />इस कारण शायद हम मान सकते हैं प्राचीन कथन अथवा सार को "हरी अनंत हरी कथा अनंता", या "पसंद अपनी-अपनी, ख्याल अपना-अपना"...<br /><br />प्राचीन "ज्ञानी" यह भी कह गए कि मानव इस धरती पर केवल भगवान् को और उसके अनंत स्वरूपों को जानने आया है...और शायद इसी लिए हम "पुराने" से बोर हो "कुछ नया" ढूंढते प्रतीत होते हैं, हर क्षण...जैसे बच्चा तितलियों के पीछे भागता है किन्तु बड़ा होने पर शायद उनकी तरफ देखता भी नहीं है, और हम, 'पढ़े-लिखे', सभी समाचार पत्र पढ़ते, या टीवी के कार्यक्रम देखते तो हैं, आदि आदि, किन्तु कभी भी हमें संतोष नहीं होता...हम कुछ 'नया' दीखते ही उसके पीछे पड़ जाते हैं - जब तक उनसे मन न भर जाए...शायद यही तथाकथित माया कि तरफ इशारा है :)JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-60834549298336856872009-11-28T23:35:48.602+05:002009-11-28T23:35:48.602+05:00मैंने तो पॉपअप में पहली बार आपको देखा। खुशी हुई कि...मैंने तो पॉपअप में पहली बार आपको देखा। खुशी हुई कि जिस इंसान से आजतक मिला नहीं,कभी फोन पर बात नहीं कि लेकिन लगा कि मैं उन्हें बहुत हद तक जानता हूं। एक घड़ी के लिए ये भी खुशफहमी हुई कि वो भी मुझे धीरे-धीरे जाननने लगा है। देर रात किए मेल का लंबा जबाब देता है। देर से जबाब देने के लिए माफी मांगता है। जो कहता है कि मेरा नंबर गांव-गांव में बांट दो। फेसबुक पर ऑनलाइन देखा तो लगा कि इस आभासीय दरवाजे पर कोई खड़ा है। हमने ऐसे ही टोका जैसे कॉलोनियों के दरवाजे पर खड़े किसी को टोका करते हैं हम सब- क्या मिसराजी,घर में मच्छड काट कहा है क्या? स्क्रीन पर बोलते हुए उतने अपने नहीं लगते। उस समय करोड़ों लोगों की हिस्सेदारी हो जाती है। फोसबुक पर ऑनलाइन देखकर लगा कि चंद मिनटों के लिए हममें से कुछेक लोगों के लिए ही है।..सो पहली बार टोक दिया,अरे आप ऑनलाइन हैं...। पहली बार था इसलिए टोक दिया,दोबारा नहीं टोकते। हमें भी टोका-टोकी पसंद नहीं है। इस चिढ़ से बचपन का शहर छोड़कर ऐसे शहर में आ गए जहां न कोई टोकेने वाला बाप हो और न ही भाईयों की लंबी फेहरिस्त। लेकिन हमारी इस नीयत के पहले ही आपकी नीयत बदल गयी।..अब आप दिखते तो हैं लेकिन टोकनेवाला दरवाजा नहीं खुलता। कुछ उस तरह से कि कांच के बाहर से आपको देख तो सकता हूं लेकिन मेरी आवाज आप तक नहीं जाएगी।विनीत कुमारhttps://www.blogger.com/profile/09398848720758429099noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-56333498081705642682009-11-28T21:42:00.743+05:002009-11-28T21:42:00.743+05:00ई-मेलिंग, चैटिंग,आर्कुटिंस के बाद अब फ़ेसबुक का दौर...ई-मेलिंग, चैटिंग,आर्कुटिंस के बाद अब फ़ेसबुक का दौर है। देखिये कितने दिन चलता है। हम हर जगह वही होते हैं जो वास्तव में होते हैं। सच बहुत दिन तक छिप नहीं पाता।अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-7499320871186303522009-11-28T21:35:13.400+05:002009-11-28T21:35:13.400+05:00एक नयी दुनिया की ओर कूंच का काउंट डाऊन शुरू...एक नयी दुनिया की ओर कूंच का काउंट डाऊन शुरू हो चुका है !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-24382363512339083612009-11-28T21:29:53.337+05:002009-11-28T21:29:53.337+05:00हमे पता ही नहीं था ..अचानक एक दिन अजित वडनेरकर जी ...हमे पता ही नहीं था ..अचानक एक दिन अजित वडनेरकर जी का आमंत्रण आया और वे हमारे फेसबुक पर पहले मित्र बन गये ..फिर संयोग यह हुआ कि एक दिन भोपाल जाना हुआ और सशरीर उनसे मुलाकात हो गई ..और फिर यह मित्रता परवान चढने लगी । अब तो फेस बुक पर बहुत सारे मित्रों के अलावा बहुत सारे भांजे भांजियाँ भतीजे भी हैं । उम्मीद है भविष्य में नाती-पोतों तक यह सिलसिला चलता रहेगा .. हाय दादू और हाय नाना बोलने वाले फ्रेन्द्स तक ..।शरद कोकासhttps://www.blogger.com/profile/09435360513561915427noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-56319989525553226822009-11-28T20:59:37.379+05:002009-11-28T20:59:37.379+05:00क्या विषय छेड़ दिया आपने, भाई। पर सच बोलना तो बहुत ...क्या विषय छेड़ दिया आपने, भाई। पर सच बोलना तो बहुत मुश्किल है, भाई। बहुत ही मुश्किल। चाहे फेसबुक हो चाहे जीवन। लड़कियों को प्रभावित करना न चाहता हो, विरला ही होता होगा (जो नहीं हैं कृप्या माफ करें)। कोई सभ्यता का इस्तेमाल करता है तो कोई बोल्डनेस का। यहां तक कि सच का इस्तेमाल भी हम कर डालते हैं अगर लगे कि यह लड़की सच से प्रभावित होती होगी। अब कल को कोई कह सकती है कि फलां ने तो खुद ही फेसबुक पर लिखा है कि वह सच भी लड़की फंसाने के लिए बोलता है। इसी लिए सच बोलना मुश्किल है भाई। पर जो झूठ बोल ही नहीं पाता वो तो गया समझो। वसीम बरेलवी ने कहा है न:-<br />झुठ वाले कहीं से कहीं बढ़ गए,<br />और मैं था कि सच बोलता रह गया।Sanjay Groverhttps://www.blogger.com/profile/14146082223750059136noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-13630367106752264322009-11-28T20:40:19.317+05:002009-11-28T20:40:19.317+05:00aadash ki baat sahi hai, kai baar aise dost b milt...aadash ki baat sahi hai, kai baar aise dost b milte hain , (school . college) jinhe shayad dhoondna aasan na hota, agar ye social sites na hoti.<br />aaj aapke ek click par aapke saamne wo dost hosakta hai , jiise aap bhut pehle mile hon,<br /><br />ab sach mein, insaan kam, aur uski ungliyan zyada bolti hain. <br />"मौन रहते हुए,बिना आवाज़ निकाले,बातें होने लगती हैं"vikashttps://www.blogger.com/profile/03116125151844478089noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-65218157898953607552009-11-28T20:14:50.020+05:002009-11-28T20:14:50.020+05:00हा हा हा, कहीं पर हम दोस्त हैं तो कहीं पर नहीं... ...हा हा हा, कहीं पर हम दोस्त हैं तो कहीं पर नहीं... बहुत खूब।<br />मेरे विचार से फेसबुक और ऑरकुट जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट्स लोग कौतूहल वश ज्वाइन करते हैं। फिर धीरे-धीरे वो आदत बन जाती है। वहीं मेरे लिए ऑरकुट मददगार भी रहा। दरअसल 'किसी' से मैं कभी आमने-सामने बात नहीं कर पाया, उससे मेरी बोलचाल ऑरकुट पर शुरु हुई और इसी तरह मैंने उसके मन में मेरे प्रति भरे पूर्वाग्रहों को हटाया। और आज हम अच्छे मित्र हैं...। इस हिसाब से मेरे लिए तो ये वरदान ही रहा।<br /><br />वहीं अगर हम युवा लोग देखें तो हम अपने पुराने क्लासमेट्स वगैरह के संपर्क में हैं। वहीं अगर इस तरह की नेटवर्किंग साइट्स नहीं होती तो शायद ऐसा न होता। <br /><br />मेरे कुछ मित्र हैं जो फेसबुक सिर्फ FarmVille खेलने के मकसद से विज़िद करते हैं। <br />इस आभासी खेल में हर किसी की अपनी अलग-अलग तलाश रहती है। कइयों के लिए ये बिज़नेस का प्रचार करने का माध्यम है तो कुछ के लिए टाइम पास का....Aadarsh Rathorehttps://www.blogger.com/profile/15887158306264369734noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-54681001595487493042009-11-28T20:11:01.309+05:002009-11-28T20:11:01.309+05:00सोशल नेटवर्किंग साइट मतलब पता नहीं....
समय की बर्ब...सोशल नेटवर्किंग साइट मतलब पता नहीं....<br />समय की बर्बादी या फिर तफरी....या फिर नए दोस्त ढूंढने की जगह या फिर या फिर या फिर पता नहीं क्या है ये........anil yadavhttps://www.blogger.com/profile/16738905491616336875noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-16995103313819004632009-11-28T19:23:25.318+05:002009-11-28T19:23:25.318+05:00बहुत दिनों से इस विषय पर लेख ढूढ़ रहा था। लगता है ...बहुत दिनों से इस विषय पर लेख ढूढ़ रहा था। लगता है सही जगह आ गया। आशा है कि इस विषय पर आगे भी बहुत कुछ हिन्दी ब्लॉगिंग में आएगा। कुछ बातें तो आप ने वाकई बहुत बारीकी से पकड़ी हैं। <br />- ... यही तलाश हमारे भीतर रिश्तों की कमी को बड़ा करती है।<br /><br />- ...तो क्या हम मन की बात अपनों से,उनके सामने नहीं कह सकते? तभी तो हम आभासी जगत के रिश्तेदारों के बीच उगलते हैं। <br /><br />-...कई बार मन की बात लिखने के लिए लोग ज़बरन कुछ लिखते हैं। कोई सहानुभूति बटोरना चाहता है <br /><br />-...लड़कियां जब स्टेटस में लिखती हैं तो उनकी बातों की प्रतिक्रिया में तस्वीरों की खूबसूरती की चर्चा होती है।कई लड़कियां अब परेशान होने लगी हैं।<br />...आम जीवन में भी तो हम आभासी ही होते हैं। मन की बात बच-बचाकर कहते हैं। लेकिन ऐसा क्या है कि हम सामने जो कह सकते हैं,उसी बात को फेसबुक में जाकर कहते है। क्या यह गैर-इरादतन रिश्तेदारी है?<br /><br />...हम कहीं पर दोस्त हैं। हम किसी के दोस्त नहीं हैं। हम सब बदल रहे हैं। अब एकांत का मतलब खतम हो गया है। <br /><br />सशक्त बात दराल साहब ने भी कही है। ध्यान दीजिए। <br /><br /> आभार।गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-47833411115008386282009-11-28T18:04:04.681+05:002009-11-28T18:04:04.681+05:00रवीश जी, मुझे तो ये सोशिअल नेट वर्किंग के साईट बेम...रवीश जी, मुझे तो ये सोशिअल नेट वर्किंग के साईट बेमतलब लगे। एक वर्चुअल वर्ल्ड में रहकर आप अपने ख्यालों में ऐसे खोये रहते हैं, जैसे एक मानसिक रोगी खोया रहता है। समय का सदुपयोग नही लगता। हाँ, अगर फालतू समय है तो बात और है। इसलिए मैंने तो अपना फेसबुक अकाउंट बंद कर दिया ।डॉ टी एस दरालhttps://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.com