tag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post3825470700397950553..comments2024-03-22T11:14:13.300+05:00Comments on कस्बा qasba: आप कहां रहते हैंravish kumarhttp://www.blogger.com/profile/04814587957935118030noreply@blogger.comBlogger40125tag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-57765545650887308902013-05-06T15:27:40.766+05:002013-05-06T15:27:40.766+05:00 अजी रवीश भैया! अगर एंकरी भारी हो गयी हो तो लगे है... अजी रवीश भैया! अगर एंकरी भारी हो गयी हो तो लगे हैं बहुत से लाइन में, दे दिजीये"MURKHA --- RAAJ"https://www.blogger.com/profile/09113632549504715037noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-6372851871842551482013-04-22T17:22:21.729+05:002013-04-22T17:22:21.729+05:00कितनी जानी पहचानी बातें करते हो आप रवीश भाई ..आपकी...कितनी जानी पहचानी बातें करते हो आप रवीश भाई ..आपकी पहली रिपोर्ट को देखने के बाद जो अवधारणा बनी थी आपके बारे में एकदम वैसे ही हो आप ..समझने में कोई भूल नहीं हुई....<br />सादा जीवन उच्च विचार जीने के लिए आप हमें हमेसा प्रेरित करते रहेंगे ...!!<br />साधुवाद ..!!Akhil_Rajhttps://www.blogger.com/profile/11845725355691415438noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-64557359781083974872013-04-21T23:41:16.152+05:002013-04-21T23:41:16.152+05:00 aap delhi main to rahte ho hum to metro main bhi ... aap delhi main to rahte ho hum to metro main bhi nahin rahte.... jiska afsos bhi nahin hai is blog ko parh ke ab to:))nptHeerhttps://www.blogger.com/profile/18101668006499121498noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-13488209993455991532013-04-19T21:05:36.000+05:002013-04-19T21:05:36.000+05:00Yahaan hum apna ghar na hone pe dukhi rehte hain,w...Yahaan hum apna ghar na hone pe dukhi rehte hain,wahaan ghar kahaan hai wo bhi chinta ka vishay hai..Aapka likha padh ke apne pan ka ehsaas hota hai..Aapne fridge pe bhi kuch likha tha...kahaan padh sakta hoon(subtlesandy@gmail.com)Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/12402667380329035299noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-54517461973339379022013-04-17T20:45:27.671+05:002013-04-17T20:45:27.671+05:00सर शायद लोग यह भूल गए हैं कि इंसान की पहचान उसके व...सर शायद लोग यह भूल गए हैं कि इंसान की पहचान उसके व्यक्तित्व, ज्ञान, गुण और काबिलियत से होती है न कि उसके घर या हाई क्लास कालोनी से। और आप की शख्सियत तो उन लोगों में है जो अपनी काबिलियत से जाने जाते हैं। वैसे आप का यह लेख उन लोगों को आईना दिखाने से कम नहीं है जो अपने पते चाहे वह गलत ही क्यों न हो के जरिए अपनी काबिलियत को अंकवाना चाहते हैं। punam guptahttps://www.blogger.com/profile/05511132929363093956noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-34338877983102629402013-04-17T10:11:23.581+05:002013-04-17T10:11:23.581+05:00यह परिवर्तन का युग है .. ....कोई राजनिति में, कोई...यह परिवर्तन का युग है .. ....कोई राजनिति में, कोई पत्रिकार्ता में करने में लगा हुआ है .....डटे रहो , मस्त रहो Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/17294030569101213984noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-56434583828160293402013-04-16T18:25:21.860+05:002013-04-16T18:25:21.860+05:00इस पोस्ट को पढने के बाद अचानक ही उस अतिसामान्य रवी...इस पोस्ट को पढने के बाद अचानक ही उस अतिसामान्य रवीश जी को बहुत मिस कर रहा हूँ ...हम लोगों के बीच आप तो हम जैसे ही थे ...Ranjit Kumarhttps://www.blogger.com/profile/02473506227989439602noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-58593294983602136352013-04-16T18:16:09.184+05:002013-04-16T18:16:09.184+05:00मैं तो इतना ही जानता हूँ कि दिल्ली प्रवास के मेरे ...मैं तो इतना ही जानता हूँ कि दिल्ली प्रवास के मेरे ११ सालों में जब मेरा पलायन दक्षिण के वसंत कुञ्ज से उत्तर के रूपनगर की तरफ हुआ , तभी मेरा परिचय दिल्ली से हुआ ...Ranjit Kumarhttps://www.blogger.com/profile/02473506227989439602noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-90417729194878537062013-04-16T09:34:03.790+05:002013-04-16T09:34:03.790+05:00बड़ा फाडू पोस्ट है. पढ़कर मन खुश हो गया. अपनी बात कर...बड़ा फाडू पोस्ट है. पढ़कर मन खुश हो गया. अपनी बात करते हुए भी कितनों को यह सन्देश दे दिया कि कभी भी दिखावा नहीं करना चाहिए. जो आजकल ज्यादातर लोगों में होता जा रहा है एक रोग की तरह. Pankaj kumarhttps://www.blogger.com/profile/01027653170078278320noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-70424934332684462032013-04-15T17:11:20.387+05:002013-04-15T17:11:20.387+05:00घर हमारी आदिम अवधारणा है। विविध जीव-जंतुओं और योनि...घर हमारी आदिम अवधारणा है। विविध जीव-जंतुओं और योनियों का घर हमारी पृथ्वी है। कभी-कभी इसकी सीमा धरती के भी पार चली जाती है। स्वर्ग-नरक, आकाश-पाताल तक फैले घर की चारदीवारी एक अनंत सीमा है। इतनी असमानताओं के बीच भी जो चीजें हमें अभिन्न करती है वह है एक अदद घर की हमारी तलाश। बसेरे की खोज . यह एक घर समुद्र की तलहटी भी हो सकती है और ध्रुवीय बर्फीले प्रदेश भी। जाने कितने जीवों का घर दूसरों जीवों का शरीर भी है। खुद हम और हमारा घर विविध अन्य जीवनों का आधार है। इस तरह घर छोटे से छोटे और बड़े से बड़ा हो सकता है। घर हमारी शारीरिक और मानसिक आवश्यकता है। मनुष्य होने के नाते घर हमारी सामाजिक आवश्यकता भी बन जाता है। घर इतना बड़ा हो सकता है कि हम ताउम्र इसमें भटकते रह जायें और इतना छोटा हो सकता है कि हम चाहे किसी के दिल में ही इसे बसा लें। घर हमारा जीवन आधार है . <br />इतना कठोर भी हो सकता है कि सारी उम्र गुजर जाये और हम इसकी बेडिय़ां ना तोड़ पाये। चारदीवारी ना लांघ पायें और इतना नाजुक हो सकता है कि नोंक-झोंक की मामूली टक्कर से ही टूट जाये।<br />गुफाओं, खण्डरों, भग्वावशेषों में मिलते रहे चित्रों, बेल-बूटों, झालरों की सजावट इस परिकल्पना का सुंदर चित्रण है। हमारा आशियाना रहने की जगह भर नहीं, वह आरामगाह होता है जहां आकर हम पुरसुकुन हो सकते हैं। इत्मीनान से भर जाते हैं। तभी तो लंबे सफर की थकान हो या मौसम की मार हमें अपना घर बार-बार याद आता है।<br />हमारा घर हमारा ख्वाबगाह भी हो सकता है और हमारा जीवन भी। हमारे जीवन की धुरी। हमारी जीवनचर्या का अंग। समाज में हमारा एक स्थान। कई-कई बार हम और हमारा पनाहगाह इतने गुत्थम-गुत्था हो जाते हैं कि दोनों की पहचान एक-दूसरे से जुड़ जाती है। तब घर जीवित हो उठता है। हमारे दुख-दर्दों संग बेरौनक हो जाता है और हमारी खुशियों संग सज-संवर जाता है। हंसने-खिलखिलाने लगता है।<br />हमारी विकास-यात्रा का अहम पड़ाव हमारे रहने की जगह रही। हमने शिकार किया और यहां बैठकर पकाया। फल-फूल, कंद-मूल तोड़े और यहां संग्रह किया। हमने यहां परिवार बसाये। कबीले बसाये। लड़ाईयां लड़ी। साम्राज्य बनाये। हमारे घर का विस्तार होता गया। इस विकास-यात्रा का केंद्र रही झोपडिय़ां, लिपे-पुते आंगन, महल-दोमहले, किले-बंगले मात्र हमारी संरक्षण का थाती मात्र नहीं। हमारा संबल रही हैं। हमारी सुरक्षा का आभास। जीवन के थपेड़ों-झंझावातों से लडऩे का आश्वासन कि ‘‘हमारा घर हमारे साथ है।’’<br />यह घर जो हमेशा हमारे साथ हैं। वह हमारे अकेले रहने से नहीं बना। इसमें कई धडक़नें और कई सपने साथ-साथ फलते हैं। घर में होना इन सपनों और धडक़नों के बीच होना है। एक सुंदर घर में चिडिय़ों की चहक हो सकती है और हिरण-शावकों की धमा-चौकड़ी भी। खट्टी-मीठी बातें हो सकती हैं और थोड़ी तीखी भी। बचपन की किलकारियां हो सकती हैं और जिंदगी की धूप-छांव भी। हमारा घर सूरज की गरमी है, ओस की नमी है, बारिश की फुहार और इनसे रक्षा भी।<br />यह सुरक्षात्मक आभास मात्र दीवारें और छत ही नहीं जो सभ्यता की ताल में ताल मिलाकर हमारे साथ-साथ विकसित होती रहीं। बारिश-धूप-सर्दी से हमें बचाती रहीं। ये मूक दृष्टïा हैं जिनकी कोख में हमारे संपूर्ण जीवन का आश्वासन छिपा है। यह आश्वासन पत्थर की गुफाओं में मिला और हमारा घर बन गया। छतनार पेड़ों पर हमने अपने घोंसले बनाये। घास-फूस, तिनका-तिनका जोडक़र झोपडिय़ां बनाई। लकड़ी,बांस, खप्पच्चियों, पत्तियों से शुरू हुआ। हमारा घर मिट्टी गारें, ईंट, सीमेंट, लोहे तक पहुंच गया। पहले जंगल ही हमारा घर थे। मुंबई, दिल्ली, चैन्नई, कलकत्ता, जयपुर, पटना, भोपाल... हमने महानगर बसायें। घर ही घर। समय बदलता गया और हमारे घरों का स्वरूप भी। हमने आकाश की ऊंचाई और जमीन की गहराईयों में अपने घर बनाये। नगरों-महानगरों की ईंच-ईंच जमीन हमारे घरों से भर गई। हम विकसित होते गये। घर बनते गये और हम बंटते गये। हमारे गांव-गिरान, कबीले-कस्बों, जिनमें हम और हमारे पुरखे जाने कब से रह रहे थे, टूटते चले गये। व्यक्तिवादिता और विकासवादिता की अंधी दौड़ में हमारे पुरातन पुश्तैनी घर ध्वस्त होने लगे। हमारे सबसे पुराने धरोहर छूट और टूट गए। अपने गांवों-गिरानों से पोटलियां बांधे हम शहर में गए और वहां अपने नए घर बनाए। जगहें बदलीं, शहर बदले। नये-नये घर बसाए फिर बनाए। अब हमारे एक नहीं कई घर होते गए। किसी की छत शहर में सबसे ऊंची है तो किसी की बालकनी से गर्जन करता समुद्र दिखता है। बिना घरों वाले लोगों को हमेशा एक घर की तलाश होती है। बिना घरों वाले ऐसे लोगों का कोई घर नहीं होता लेकिन एक समाज होता है। बिना घरों वाले लोग अपने समाज के साथ फुटपाथों को अपना घर बना लेते हैं। रैन बसेरों में सो लेते हैं। इस तरह बिना घरों वाले लोग देश की एक अलग छवि गढ़ डालते हैं। यह छवि घर-बेघर का अंतर है। अमीरी-गरीबी का मूल्यांकन है। SAVITA PANDEYhttps://www.blogger.com/profile/10703021668142985877noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-21375073675950581792013-04-15T17:01:41.111+05:002013-04-15T17:01:41.111+05:00कवि ज्ञानेंद्रपति ने ‘भिनसार’ (कविता संग्रह) में ल...कवि ज्ञानेंद्रपति ने ‘भिनसार’ (कविता संग्रह) में लिखा है-<br /> ...एक दिन घर पहुंचने पर देखता हूं मैं/कि जब मैं घर नहीं रहता हूं तब भी /घर/ रहता है।<br /><br />JAHA GHAR-DUWAR , KHET-KHALIHAN , DANA-PAANI SABKO NASIB NAHI HO ..WAHA KAHA WALA SAWAL KYOAN HAI ? SAVITA PANDEYhttps://www.blogger.com/profile/10703021668142985877noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-11039998019126459282013-04-15T13:27:35.182+05:002013-04-15T13:27:35.182+05:00या ख़ुदा 'गौड़'(गौड नहीं ) में भी और __
ज़रा...या ख़ुदा 'गौड़'(गौड नहीं ) में भी और __<br /><br />ज़रा सा आगे -- गाजियाबाद में कहाँ रविश ?( फिलहाल जी या सर से भी बच कर निकल रहा हूँ ,अगली बार क़ायदे से )<br /><br />प्रवीण पंडित praveen pandithttps://www.blogger.com/profile/04969273537472062512noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-58972303363844986092013-04-15T13:26:51.904+05:002013-04-15T13:26:51.904+05:00या ख़ुदा 'गौड़'(गौड नहीं ) में भी और __
ज़रा...या ख़ुदा 'गौड़'(गौड नहीं ) में भी और __<br /><br />ज़रा सा आगे -- गाजियाबाद में कहाँ रविश ?( फिलहाल जी या सर से भी बच कर निकल रहा हूँ ,अगली बार क़ायदे से )<br /><br />प्रवीण पंडित praveen pandithttps://www.blogger.com/profile/04969273537472062512noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-13839667433799765492013-04-15T12:27:18.579+05:002013-04-15T12:27:18.579+05:00रविश जी,
twitter छोड़ने का फायदा यह हुआ है कि ...रविश जी,<br /> twitter छोड़ने का फायदा यह हुआ है कि ब्लॉग ज्यादा लिखने लगे हैं. कुछ नुकसान हुआ तो कुछ फायदा भी हुआ. Tv पर देख् कर लोग एक धारणा तो बना हीं लेते होंगे इसमे उनका क्या दोष. आपको बताना चाहिए कि पैसे बचा कर लगा kanha लगा रहें हैं.<br />Arjun Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/15439501196229236110noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-36882223716240789872013-04-15T11:52:31.575+05:002013-04-15T11:52:31.575+05:00it's the new age 'discrimination'. The...it's the new age 'discrimination'. The "Superior-Inferior" concept can never leave the minds of Homo Sapiens.aSThahttps://www.blogger.com/profile/09617795848570512789noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-78787223211327960572013-04-15T11:48:14.311+05:002013-04-15T11:48:14.311+05:00You forced me to update my google account for comm...You forced me to update my google account for commenting at your post. <br />KHUSH TO BAHUT HONGE AAP, fans ko pareshan karke.<br />:-)Arvind mishrahttps://www.blogger.com/profile/05528112787253399671noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-8615894112170024602013-04-15T06:20:36.809+05:002013-04-15T06:20:36.809+05:00Madhosh kar diya bhakya. Jiyo ho bihar ke lalla.
Madhosh kar diya bhakya. Jiyo ho bihar ke lalla.<br />om sudhahttps://www.blogger.com/profile/16578611661340307406noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-56325999281260836782013-04-14T22:55:59.563+05:002013-04-14T22:55:59.563+05:00काफी दिनों बाद आपका कोई ब्लॉग पढ़ने को मिला,मुझे य...काफी दिनों बाद आपका कोई ब्लॉग पढ़ने को मिला,मुझे ये नीले अंत्रदेशीय में लिखे किसी पत्र जैसा लगा.ट्विटर और एफबी से बेहतर अनुभव. लिखते रहिए.. 'thoda sa aasmaan'https://www.blogger.com/profile/12087650083922153503noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-31791358381413885562013-04-14T22:24:52.855+05:002013-04-14T22:24:52.855+05:00Ravish isiliye tum ravish ho..ghaziabad.gazipur au...Ravish isiliye tum ravish ho..ghaziabad.gazipur aur kachre ka dher sab utna hi bharat ka ansh hei jitna tum ho ravish.अखिलhttps://www.blogger.com/profile/14804364985135958038noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-58520891156738789752013-04-14T21:51:08.347+05:002013-04-14T21:51:08.347+05:00आज तो मैं भी रवीश के ब्लॉग पर कमेन्ट लिखूंगा चाहे ...आज तो मैं भी रवीश के ब्लॉग पर कमेन्ट लिखूंगा चाहे कोई मरबई करे.मैं रवीश को तब से जनता हूँ जब वे रिपोर्टर और एंकर नहीं थे.डेस्क पर थे.उनसे मीलों पीछे डेरा डाल चुके जुगाड़ी लोग उनको दया का पात्र समझते थे .हालांकि रवीश ने उन लोगों को हमेशा मजाक का विषय ही समझा क्योंकि उनकी अपने ऊपर हंस सकने की क्षमता लाजवाब है .उस दौर के हिंदी टेलिविज़न के वे सबसे कुशाग्रबुद्धि लोगों में शुमार किये जाते थे .लेकिन उनके पिता जी आई ए एस नहीं थे, हालांकि रवीश ने दिल्ली विश्वविद्यालय के सबसे बेहतरीन शिक्षकों के साथ रहकर पढाई की थी, ज्ञानेद्र पाण्डेय और शाहिद अमीन जैसे आदरणीय लोग रवीश को अपना प्रिय छात्र मानते थे . लेकिन वे उस कालेज में नहीं गए थे जो शेखीबाजों का तीर्थ माना जाता है , जहां जाने के बाद और कोई बात नहीं पूछी जाती.चापलूसी करने के फन में बिलकुल जीरो थे . एक बार मेरी प्रेरणा से चापलूसी करने की कोशिश की भी तो बिलकुल फेल हो गए. लेकिन एन डी टी वी की संस्थापक , राधिका राय ने उनके टैलेंट को पहचान लिया और उनको पहले रिपोर्टर बनाया और बाद में जो हुआ उसे तो हिंदी टेलिविज़न का हर पारखी जानता है . रवीश की इस बात से मैं बिलकुल सहमत हूँ कि जैसे ही टी वी एंकरिंग का काम मिल जाता है बच्चे अपने आपको बहुत महान मानने लगते हैं . दिल्ली में ऐसे हज़ारों युवक युवतियां मिल जाते हैं जो किसी चैनल में एंकर होते हैं .वे उम्मीद करते हैं कि आप उन्हें पहचान लेगें लेकिन ऐसा होता नहीं है . वे यह मानकर कि आपने उनको देखा होगा और पहचान रहे होंगें , आपको ज्ञान देने लगते हैं . इनमें से ही बहुत सारे लोग अपने घर का पता गलत बताते हैं . रवीश कुमार ने अपने आपको इस भीड़ से अलग रखा यह बहुत ही खुशी की बात है . दिल्ली के टेलिविज़न सीन को समझने वाले जानते हैं कि जिया सराय में रहने वाले अपने आपको हौज खास का बताते हैं ,या मदन गीर में रहने वाले सैनिक फ़ार्म का . एक श्रीमान जी के बारे में तो यहाँ तक बताया गया है कि उन्होंने एक बड़े टी वी चैनल में नौकरी मिलने के बाद ईस्ट आफ कैलाश में पुराना घर खरीदा , उसे गिरवाया और एक भव्य मकान बनवाया . इस माहौल में अगर अपना रवीश उन लोगों की तफरीह ले रहा है जो महंगी कालोनी में रहकर आपने को काबिल बताते हैं तो बहुत अच्छा है . आखिर गाज़ियाबाद में भी तो इंसान रहते हैं .शेष नारायण सिंहhttps://www.blogger.com/profile/09904490832143987563noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-86709938440196792162013-04-14T20:57:59.836+05:002013-04-14T20:57:59.836+05:00Bahut hi sundar lekh likha hai appne ravish kumarj...Bahut hi sundar lekh likha hai appne ravish kumarji.jis khubsurti se aur saralta se app samaj ke in pehluo ko uthate hai woh anutha aur kabile taref hai. Shayad adhikansh log aise anubhav apnne roz mara ke jeevan may karte rehte hai.Kaha rehte hai, kaunsi gadi hai, kaunsi brand ke kapde pehente hai kaunsi college ki degree hai kaunsi company may kam karte hai aise tamam chezo se adami ke jevvan ka uski safalta ka aklan karte hai.Insan ke karam nahi uski "Packaging" mehtvapurn hogayi hai. waise sanyog se ravishji mai bhi Ghaziabad ka niwasi hu. isiliye umed karta hu kabhi kisi din tv ke bahar anchor ravish kumar nahi balki is lekh ke lekhak ravish se milana ka muka milega.Ankithttps://www.blogger.com/profile/09622507125288291611noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-28148770171841593152013-04-14T20:20:17.324+05:002013-04-14T20:20:17.324+05:00एक दशक से ज्यादा समय से पूर्वी दिल्ली के भीड़ वाले ...एक दशक से ज्यादा समय से पूर्वी दिल्ली के भीड़ वाले मोहल्ले लक्ष्मी नगर में रह रहा हूँ। कई साल पहले की बात है, तब मुझे सोसाइटी कल्चर की जानकारी नहीं थी। एक दिन अपने एक बड़े पत्रकार मित्र के यहाँ गया और भाभी जी यानि उनकी वाइफ से यह पूछने की गलती कर बैठा की ये कौन सा मोहल्ला है। एक पिछड़े से गाँव से आने वाली भाभी जी ने काफी उपहास के अंदाज में और अकड़ से कहा, ये मोहल्ला नहीं सोसाइटी है। Journalist, Poet, Translatorhttps://www.blogger.com/profile/12781556384522452449noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-49224726492721985682013-04-14T19:57:30.762+05:002013-04-14T19:57:30.762+05:00Ravish Kumar is a good anchor but he should not ha...Ravish Kumar is a good anchor but he should not have a complex and doesn't really have to establish his "down- to-earth" credentials. It is like carrying a chip on the shoulder. Many of us have been leading similar lives by choice and naturally.PJhttps://www.blogger.com/profile/14855156554569322700noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-341390200344053612013-04-14T19:53:06.948+05:002013-04-14T19:53:06.948+05:00कुछ दिन के बाद शायद आप भी वोही करेंगे ,सरस्वती लक्...कुछ दिन के बाद शायद आप भी वोही करेंगे ,सरस्वती लक्ष्मी के साथ बमुश्किल रहती है <br />sumanjihttps://www.blogger.com/profile/06116649907617044366noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-19897174652087556012013-04-14T17:38:52.686+05:002013-04-14T17:38:52.686+05:00रविश सर
आपके ब्लॉग पर पहली बार आया
आपकी एंकरिंग मु...रविश सर<br />आपके ब्लॉग पर पहली बार आया<br />आपकी एंकरिंग मुझे बहुत अच्छी लगती है<br />आपमें एक अच्छे और सच्चे इंसान की छवि दिखती है<br />और आज पता भी चल गया कि आप वाकई जमीन से जुड़े इंसान हैं<br />बस ऐसे ही रहिए .....शिवनाथ कुमारhttps://www.blogger.com/profile/02984719301812684420noreply@blogger.com