tag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post291961329055637101..comments2024-03-22T11:14:13.300+05:00Comments on कस्बा qasba: आश्रम जाम पर उपन्यास- पार्ट टूravish kumarhttp://www.blogger.com/profile/04814587957935118030noreply@blogger.comBlogger11125tag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-41583769752278447632013-02-12T13:25:56.082+05:002013-02-12T13:25:56.082+05:00अभी तक सिर्फ प्राइम टाइम पर देख कर आपको अपने नजरिय...अभी तक सिर्फ प्राइम टाइम पर देख कर आपको अपने नजरिये से तौलता था ! कभी कांग्रेस का दलाल कभी बिकाऊ मीडिया और न जाने कितने दुर्भावनाओ से , तो कभी इस भ्रम का शिकार हो जाता कि आप भी लीक से अलग दिखने के टशन के शिकार है ! सर जी आप वाकई हर विषय, जीवन के हर पहलू को बड़ी बारीक नजर से देखते है !राग दरबारी मैंने भी पढ़ा है ,शुक्ला जी का गवई जीवन और उसकी मानसिकता का व्यंग्यात्मक चित्रण पाठक को बाँध लेता है !"आश्रम जाम " मुझे उससे एक रत्ती कम नहीं लगा ,पढ़कर मजा आ गया ! ajit raihttps://www.blogger.com/profile/11820825377162556414noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-50936668252188321632008-03-28T15:32:00.000+06:002008-03-28T15:32:00.000+06:00बहुत अच्...बहुत अच्छा, मैं भी जाम की इस पीड़ा से गुजर चुकी हू. कहते है न की खग ही जाने खग की भाषा, वैसे रवीश जी वस काफ़ी अच्छा प्रयास किया है जो आम महिला के दर्द को शब्दों मैं उतार दिया है. उन दग्गामार बसों मैं पीठ पर फिरते अंजान हाथो से बचने की कोई मुहीम सफल नही हो पाती. कोई चेहरा घूर रहा है टू कोई गर्दन के नीचे नज़र गडाये सीट पर जमा बैठा है. कोई आगे चिपक रहा है टू कोई पीछे से हाथ मार रहा है. कई बार टू पता ही नही चलता की किसका हाथ बदन पर फिर रहा है. ज्यादा किसी को टोक दिया टू कार मैं चला करो मैडम, जैसे जुमले हवा मैं तैरते है. मैं टू ख़ुद सीट के लालच मैं कंडक्टर से एक अनकहा सा संवाद बनाये रखती हूँ. मेरे बस मैं आने पर अगर कंडक्टर मुस्कुराया टू समझो सीट मिल गयी. हालांकि ये सोच कर मुजे अपने पर गुस्सा भी आता है और अपनी लाचारी पर दुःख भी होता है, लेकिन क्या करे, बस के दुर्यधनो से बचने के लिए ये समजौता फिर भी ठीक है. कभी कभी टू इतनी हद हो जाती है कि घर तक आते आते किसी मस बदन बचाने कि हिम्मत भी नही बचती और मन कहता है , छु लो, अब टू स्टॉप आने वाला है. कई बार भीड़ भरी बस मैं दुपट्टा फस जाता है और कई बार सेंदल रह जाता है. क्या करे. मैं तो दिल्ली कि बसों मैं लडकियो कि दशा पर हिन्दुस्तान मैं लेख लिख चकी हूँ.vineetahttps://www.blogger.com/profile/10454738518371482174noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-80604527114598389552008-03-10T11:52:00.000+06:002008-03-10T11:52:00.000+06:00उपन्यास में जिस तरह से बस यात्रियों और ख़ास तौर पर...उपन्यास में जिस तरह से बस यात्रियों और ख़ास तौर पर महिलाओं की बेहाल हालत को काफी संजीदगी से बयां किया गया है। जाम में चाहे आप कार में हों बस में हों या फिर टूव्हीलर पर होता वही सब ढाक के तीन पात है। <BR/>स्मृतिSmriti Dubeyhttps://www.blogger.com/profile/04397012781856819010noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-29219784989827304032008-03-04T17:02:00.000+06:002008-03-04T17:02:00.000+06:00रवीश भाई मैं थोडी देर से जुडा आपसे लेकिन मैंने आपक...रवीश भाई मैं थोडी देर से जुडा आपसे लेकिन मैंने आपके उपन्यास का पहला और दूसरा दोनों भाग पढा। महानगरीय जाम और उसमें पैदा होने वाले हालात का वाकई बढिया चित्रणा किया है आपने। इंतजार रहेगा इस उपन्यास के अगले भाग का।अबरार अहमदhttps://www.blogger.com/profile/12726552973041941822noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-26132369672781343702008-03-04T11:29:00.000+06:002008-03-04T11:29:00.000+06:00क्या इस उपन्यास में सिर्फ़ दुखी और परेशान हाल लोगो...क्या इस उपन्यास में सिर्फ़ दुखी और परेशान हाल लोगों का ही ज़िक्र हैं। या फिर कुछ मुझ जैसे भी है, जो बहुत जल्दी और बहुत देर तक उदास या झुंझलाए नहीं रह सकते हैं।<BR/>-दीप्ति।Diptihttps://www.blogger.com/profile/18360887128584911771noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-60632460492281388402008-03-04T10:46:00.000+06:002008-03-04T10:46:00.000+06:00aaj subah FM pe bola ja raha tha ki 8th march wome...aaj subah FM pe bola ja raha tha ki 8th march women day aa raha hai "Mahila shashaktikaran" ki baate per apka ye lekh agar us din sare news paper ke front page pe chap jaye to aasliyat samne aa jaye.<BR/><BR/>wo sabhi mahilaye jo aapke jivan se judi hai wo badhai ki patra hai ek purus ki isi saff soch bahut kam dekhne ko milti hai.Dr. sarita sonihttps://www.blogger.com/profile/13263992402640015787noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-11897440205875319072008-03-03T19:13:00.000+06:002008-03-03T19:13:00.000+06:00जितेंद्र जीपत्रकारिता छोड़ देंगे तो रोटी कहां से ख...जितेंद्र जी<BR/>पत्रकारिता छोड़ देंगे तो रोटी कहां से खायेंगे। हौसला बढ़ाने के लिए शुक्रिया। <BR/>जोशिम साहब<BR/>क्या बात है। लगता है कहानी दिल के करीब पहुंच रही है। मैं भी इन दिनों सिद्धार्थ एक्सटेंशन में किराये का घर खोज रहा हूं। ताकि जाम की सरहद पर पहुंच कर सफर खत्म हो जाए।<BR/>अपराजिता जी<BR/>प्रेमचंद की रिश्तेदारी आसान नहीं। न्यौता पूरा करने में ही जान निकल जाएगी।ravish kumarhttps://www.blogger.com/profile/04814587957935118030noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-12797777132964631512008-03-03T18:21:00.000+06:002008-03-03T18:21:00.000+06:00भाई - आप ने सेंटिया दिया - उमर का एक हिस्सा सिद्ध...भाई - आप ने सेंटिया दिया - उमर का एक हिस्सा सिद्धार्थ एक्सटेंशन में गुज़ारा - रोज़ आश्रम चौक पार करना पड़ता था - एक दिन एक ठो एक्सीडेंट भी हुआ - मोटर सायकल तहस नहस हो गई लेकिन जान बची रही - आप सब्जेक्ट मैटर में बहुत न खोइयेगा - लिखते रहें - सादर - मनीष [ वैसे सुधा ले आए - चंदर भी हैं क्या?]Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/08624620626295874696noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-61852893813731636222008-03-03T18:09:00.000+06:002008-03-03T18:09:00.000+06:00प्रेमचंद जी के रिश्तेदार,आपका उपन्यास पढ़ने में मज...प्रेमचंद जी के रिश्तेदार,<BR/>आपका उपन्यास पढ़ने में मजा आ रहा है,अगले पार्ट का इंतजार रहता है। लेकिन एक बात है,उपन्यास के बहाने आप अपने पात्रों में उलझे रहते होंगे और इतनी देर में जाम खुल जाता होगा। फिलहाल तो आपको जाम में होने वाली खीज से मुक्ति मिल गयी है बस इसी बात का दुख हो रहा है......Unknownhttps://www.blogger.com/profile/14544840759196801799noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-38341330248442052562008-03-03T17:43:00.000+06:002008-03-03T17:43:00.000+06:00बहुत अच्छा। बहुत अच्छा चित्रण किए हो। तुम यार पत्र...बहुत अच्छा। बहुत अच्छा चित्रण किए हो। तुम यार पत्रकारिता मे गलती से आ गए हो। उपन्यास लिखो...झकास बिकेंगे।Jitendra Chaudharyhttps://www.blogger.com/profile/09573786385391773022noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-71042305573621104242008-03-03T17:14:00.000+06:002008-03-03T17:14:00.000+06:00बढि़या...बढि़या...bhuvnesh sharmahttps://www.blogger.com/profile/01870958874140680020noreply@blogger.com