tag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post2753671738237613639..comments2024-03-22T11:14:13.300+05:00Comments on कस्बा qasba: वन-रूम सेट का रोमांस- दिल्ली मेरी जान (4)ravish kumarhttp://www.blogger.com/profile/04814587957935118030noreply@blogger.comBlogger24125tag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-40784753583128026452009-12-13T17:45:10.671+05:002009-12-13T17:45:10.671+05:00sir vakai apki ye series padhkar ek bar fir se one...sir vakai apki ye series padhkar ek bar fir se one room set ki jindagi jine ka man kar raha hai main iska ek bhi article nahi chod paya hun....lagta hai ki apne mere samne meri hi kahani kholkar rakh di ho....amit yadavhttps://www.blogger.com/profile/07000514588236388024noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-49916323060031594262009-12-13T11:45:19.387+05:002009-12-13T11:45:19.387+05:00मेरे एक मित्र ने आपके वन रूम सेट के बारे में बताया...मेरे एक मित्र ने आपके वन रूम सेट के बारे में बताया. पढ़ कर बहुत मजा आया. हम तो दिल्ली में नहीं रहे हैं लेकिन हाँ पटना के वन रूम सेट की याद तजा हो गयी. और पोस्टर चिपकाने के कुछ शौक़ीन तो छत के सिल्लिंग में लगाते थे ताकि day dreaming के समय उन्हें निहार सकें. बहुत बढ़िया. <br />-Sarvesh<br />BangaloreSarveshhttps://www.blogger.com/profile/15736299921472395047noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-3344116009710313862009-12-13T10:41:28.471+05:002009-12-13T10:41:28.471+05:00"...उत्तरांचल की एक संभ्रात सी लड़की से स्टाफ..."...उत्तरांचल की एक संभ्रात सी लड़की से स्टाफ बोलना सीख गया..." <br /><br />इस से मुझे याद आता है कि मेरे माता-पिता दोनों उत्तरांचली ही थे, बाबूजी 'ख़ास' अल्मोड़े के और ईजा नागौर, बेड़ीनाग, की जहां मेरा कभी भी जाना बहीं हुआ और अल्मोड़ा (नैनीताल भी) मैं एक परदेसी या विदेशी सैलानी के सामान गया हूँ, कई एक बार...<br />मेरी ईजा शादी के लगभग सात वर्ष बाद दुरागमन द्वारा '३१ में पहली बार शिमला आई थी, और जहां द्वितीय विश्वयुद्ध के आरंभ होने से पहले मेरा जन्म हुआ था...और, जैसा उपेक्षित है, उसे हिंदी बोलनी बिल्कुल नहीं आती थी...<br /><br />और, जैसा कहा जाता है मैंने, दिल्ली में होश सम्हालने के बाद, उनको और बाबूजी को भी बच्चों से हिंदी में ही बोलते सुना, क्यूंकि केंद्रीय सरकार में कर्मचारी होने के कारण उन्होंने 'पहाड़ी' को मान्यता नहीं दी...उन दिनों 'पहाड़ियों' के मन में एक हीन भावना थी क्यूंकि वहां से अधिकतर गरीब लड़के घरेलू कर्मचारी बन शहरों में काम करते थे, और शायद अभी भी करते हैं...मेरी लड़की के कार्यालय में कुछेक वर्ष पहले जब उससे किसी ने मेरा नाम पूछा तो उसने कहा अरे! मेरे 'कुक' का भी बिल्कुल यही नाम है! जब में इंजीनियरिंग पढ़ रहा था तो सन ६०-६१ में एक इतिहास के टीचर के सुझाव पर कम्युनिटी सिंगिंग के कार्यक्रम में मैंने एक ग्रुप के साथ एक पहाड़ी गाना गाया...अगले दिन अपनी मेस में मैं घेर लिया गया क्यूंकि अधिकतर सभी हमारे इलाके के ही थे. जब मैंने कहा मुझे बोलना नहीं आता है यद्यपि मैं समझ सकता हूँ, वो मानने को तैयार नहीं थे :( मैंने छुट्टी के दौरान घर लौट अपनी माँ से शिकायत की उन्होंने क्यूं हमें पहाड़ी बोलना नहीं सिखाया?...उसका जवाब था हमनें सीखने के लिए तुम्हें मना तो नहीं किया था! अब वो भी दिल्ली का पानी पी होशियार हो गयी थी :)<br /> <br />फिर भी पहाड़ी सीधे ही होते हैं. एक 'रौंग नंबर' ने मुझे कहा वो हमीरपुर से बोल रहा था तो मैंने उसे कहा कि मेरा जन्म शिमला में हुआ था जिसके नाते में भी हिमाचली हूँ...उसने अपना पता बताया और निमंत्रण दे डाला :)JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-70721510872384705662009-12-12T03:21:41.812+05:002009-12-12T03:21:41.812+05:00waah ravish sir ji.........
pad kar bus maja aa ga...waah ravish sir ji.........<br />pad kar bus maja aa gaya isko. mai to abhi chatr jivan se gujar raha hu aur delhi me hi hu. ab ghar se itni door rahkar bhi kabhi kabhi ghar jane ka man nahi karta. patrkaarita ka student hu isliye mere rrom par bhi jam kar bahas hoti rahti hai. apka lekh pada to laga jaise apni zindgi hi to jhalak rahi hai isme se..gaurav vidrohihttps://www.blogger.com/profile/00239733346914288287noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-26227113816603108642009-12-12T00:17:34.842+05:002009-12-12T00:17:34.842+05:00apki lekhanshaili kuch aisi hai ki log bandhte cha...apki lekhanshaili kuch aisi hai ki log bandhte chale jate hai. kam se kam itna to pata chala ki bihar se gaye yuvak kaise jindagi ko ji rahe the....prabhat gopalhttps://www.blogger.com/profile/04696566469140492610noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-90788569307253278382009-12-11T21:55:03.268+05:002009-12-11T21:55:03.268+05:00dada khoob bhalo.
thanksdada khoob bhalo.<br />thanksritu rajhttps://www.blogger.com/profile/03597991886714743948noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-52139625864794556822009-12-11T18:50:01.341+05:002009-12-11T18:50:01.341+05:00ऐसा लिख रहे हैं आप कि कमेंट न करो तो अपराध-बोध होन...ऐसा लिख रहे हैं आप कि कमेंट न करो तो अपराध-बोध होने लगता है। कृपया पूरा करकें ही छोड़ें।Sanjay Groverhttps://www.blogger.com/profile/14146082223750059136noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-57894184584448722592009-12-11T17:29:15.538+05:002009-12-11T17:29:15.538+05:00कमाल है मै अभी तक अंतर नहीं कर पा रहा हू की ये आपक...कमाल है मै अभी तक अंतर नहीं कर पा रहा हू की ये आपकी जीवनी है या मेरी समय और जगह बदल दे तो कोई फरक नहीं है. <br />praveensinhaa@gmail.commy great indiahttps://www.blogger.com/profile/04198074945943554362noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-41937867442315096912009-12-11T16:44:57.720+05:002009-12-11T16:44:57.720+05:00आहा ! अति सुन्दर... पहले भी कहा था सबकी कुछ ऐसी ही...आहा ! अति सुन्दर... पहले भी कहा था सबकी कुछ ऐसी ही कहानी होगी... "एक अकेला इस शहर में... रात और दोपहर में..."सागरhttps://www.blogger.com/profile/13742050198890044426noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-59513664728780457932009-12-11T16:38:01.484+05:002009-12-11T16:38:01.484+05:00सच्चाई को ऐसे ही पढने में मज़ा आता है.. बहुत ही अच्...सच्चाई को ऐसे ही पढने में मज़ा आता है.. बहुत ही अच्छा ...<br /><br />आभार<br />प्रतीक माहेश्वरीPratik Maheshwarihttps://www.blogger.com/profile/04115463364309124608noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-52685283704319865062009-12-11T16:32:53.238+05:002009-12-11T16:32:53.238+05:00Ravis Ji
aisa manovaigyanik vishleshan ....ba...Ravis Ji<br /> <br /> aisa manovaigyanik vishleshan ....bahut khoobArchanahttps://www.blogger.com/profile/06461196046708610183noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-48197473730179844702009-12-11T16:27:52.314+05:002009-12-11T16:27:52.314+05:00aap kabhi allahabad ke allapur mohalle me aaiye ya...aap kabhi allahabad ke allapur mohalle me aaiye yahan bhi aapke jaise na jane kitne bhavi IAS aise hi one room set ki life jee rhe hain.any way aap ki post ke bare me 2 line likhna chahta hu <br /> " parinde bhi nhi rhte hain paraye aashiyano me ,<br />apni to umra guzri hai kiraye ke makano me "<br />thanks <br />http://twitter.com/anoopdreamsAnoop Kumar Singhhttps://www.blogger.com/profile/15765590452531813233noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-43035385933554141442009-12-11T15:14:24.416+05:002009-12-11T15:14:24.416+05:00kafi din ho agye hindi padhe likhe, lekin ye aapke...kafi din ho agye hindi padhe likhe, lekin ye aapke blog ka asar hai ki ,mujhe roj ish blog par ek nayi kahani padhne ka intezaar rehta hai..dhanywaad..manojhttps://www.blogger.com/profile/09493285408646426385noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-15494565761674402382009-12-11T15:01:47.169+05:002009-12-11T15:01:47.169+05:00बढ़िया..... रोचक श्रंखला..बढ़िया..... रोचक श्रंखला..योगेन्द्र मौदगिलhttps://www.blogger.com/profile/14778289379036332242noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-4738399852170552562009-12-11T14:44:23.300+05:002009-12-11T14:44:23.300+05:00रवीश जी बहुत दिनों बाद कुछ दिलचस्प पढ़ने को मिल रह...रवीश जी बहुत दिनों बाद कुछ दिलचस्प पढ़ने को मिल रहा है...सच कहू तो इंतजार रहता है..जारी रखिए और कभी खत्म ना करिएगा...ये उपन्यास सरीखा हो रहा हैसुबोधhttps://www.blogger.com/profile/10810549312103326878noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-33457339849951186092009-12-11T13:57:25.540+05:002009-12-11T13:57:25.540+05:00बहुत रोचक श्रृंखला चल रही है। बच्चे माता पिता को न...बहुत रोचक श्रृंखला चल रही है। बच्चे माता पिता को नहीं छलते, माता पिता संवाद न बनाकर स्वयं छले जाने की स्थिति पैदा करते हैं, या फिर कबूतर की तरह बिल्ली के आने पर आँखें मूँदे रखकर सोचते हैं कि खतरा टल गया। प्रत्येक समझदार अभिभावक जानता है कि किशोरावस्था व शुरू की युवावस्था नए प्रयोगों का समय होता है। बस यही कामना करता है कि वे जीवन की इस अग्निपरीक्षा से झुलसे बिना निकल आएँ।<br />घुघूती बासूतीghughutibasutihttps://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-13657519278739701362009-12-11T12:52:52.188+05:002009-12-11T12:52:52.188+05:00आज आपकी वन रूम वाली पूरी सिरीज़ पढ़ गया...याने पहल...आज आपकी वन रूम वाली पूरी सिरीज़ पढ़ गया...याने पहले से आखरी ये वाली भी...सच कहूँ ब्लॉग पर बहुत दिनों बाद कुछ पढने में मज़ा आया...आपकी लेखन शैली अद्भुत है..रोचकता के साथ साथ आप जो छोटे छोटे जुमलों का इसमें छौंक लगते हैं उसका तो जवाब ही नहीं...आप की इस सिरीज़ के साथ बचपन और जवानी की बहुत सी बातें याद आ गयीं..बहुत बहुत शुक्रिया इन यादों को हम से शेयर करने के लिए...<br />नीरजनीरज गोस्वामीhttps://www.blogger.com/profile/07783169049273015154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-66679418016868656032009-12-11T12:32:13.855+05:002009-12-11T12:32:13.855+05:00Ab 5vi kadi ka intajaar hain, Ravish ji aaplog itn...Ab 5vi kadi ka intajaar hain, Ravish ji aaplog itna achha likte hain ki wo aapka niji likhna nahi rah jata hain aisa lagta hain aap hum jaise loogon ki hi samvednao aur samay ko shabd de rahe hain. khair, Dilli jaise mahanagron ko hum Choti jagah se aaye Ladkiya hamesha sukriya kahti hain, hume ye mahanagar hi tamam kism ki space dete rahe hain.मनोरमाhttps://www.blogger.com/profile/16151488354697995623noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-3529356281136404192009-12-11T11:59:29.118+05:002009-12-11T11:59:29.118+05:00पढ़कर हंसी आयी क्यूंकि सन '७१-'७२ की बात ह...पढ़कर हंसी आयी क्यूंकि सन '७१-'७२ की बात है, जब बरसाती में रहते बच्चों को बीवी के मायके छोड़, और वापिस लौट, मैं एक रूम वाले घर में अकेला आ गया...और संयोगवश ४-५ मास बाद ही उनका दिल्ली आना संभव हुआ...इस बीच बंगला देश का भी जन्म हो गया... <br /><br />नई कालोनी में एक दो-कमरे के मकान में रहने वाले मित्र परिवार ने मुझे एक माह तक रात का खाना खिलाया. लंच मित्र कार्यालय ले कर आता था और शेष 'snakes' आदि मैं अपने घर में ही कर लेता था. <br /><br />फिर भाभीजी ने अपने मायके जाने के पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के कारण, पड़ोस में ही एक अन्य हमारे मित्र परिवार को अपने पति सहित मेरी भी जिम्मेदारी सौंप दी - एक माह और कट गया, किन्तु अब दूसरी भाभीजी के अपने मायके जाने की बारी आगई... <br /><br />अब क्यूंकि हम तीनों अकेले रह गए थे - और मुझे पता था कि एक मित्र खाना बनाना जानता है (यद्यपि बीवी के लिए नहीं बनाता था जबकि वो पारंगत था पाक कला में!)- मैंने उन्हें अपने घर डिनर करने का निमंत्रण दे दिया - और रामू का किरदार रवीश जी समान मैंने निभाया :) <br /><br />यह सिलसिला संपन्न हो गया जब मेरा परिवार सुरक्षित लौट आया...जबकि दोस्तों के परिवार पहले ही लौट आये थे...JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-91563582605512323342009-12-11T11:18:31.170+05:002009-12-11T11:18:31.170+05:00रविशजी
" वन रूम सेट का रोमांस - दिल्ली मेरी...रविशजी<br />" वन रूम सेट का रोमांस - दिल्ली मेरी जान " इस सिलसिले को बिना किसी परवाह के जारी रखें. अस्सी और बाद के प्रवासी बिहारी छात्रों <br />के इस मायावी शहर के बेमिसाल अनुभव अभी तक सिर्फ वाचिक परम्परा में हीं कैद /सीमित थे. इन अनुभवों का अब तक शब्द बद्ध न होना <br />अखरता रहा है.. आपके जैसे सामर्थ्यवान हाथों से अब ये कमी पूरी हो रही है. हम सबकी कहानी कतरों- कतरों में इनमें समाहित है.अब इनको पढ़ कर <br />यादों की भूली बिसरी गलियों में जाना कितना आनंद दायक है ,क्या कहूं. दिल्ली मायावी मन-मोहनी नगरी , इस शहर का जादू और <br />जादूगरनियाँ . रविशजी अगर दिल से बात कही जाय तो सच में जान पर बन आ सकती है और हकीकत तो यह है की अभी तक हम सब का मन अतृप्त है.<br />आप लेख की लम्बाई आदि से चिंतित न हों.और आपने इसे अपनी यादों का बोझ कैसे कहा ? भाई , थोड़ी फेर बदल के साथ , तक़रीबन <br />हम सब के ये साझा अनुभव रहे. बेझिझक और बेधड़क इस सिलसिले को बरकरार रखा जाय. हाँ कुछ ऐसा न लिख दीजिएगा की जान पर बन जाय<br />सादरKaushal Kishore , Kharbhaia , Patna : कौशल किशोर ; खरभैया , तोप , पटनाhttps://www.blogger.com/profile/07416678636893602698noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-65445105627679354522009-12-11T11:04:16.154+05:002009-12-11T11:04:16.154+05:00Bhut bhut accha lakh ahi Ravish jeBhut bhut accha lakh ahi Ravish jeAshish Tiwarihttps://www.blogger.com/profile/11793451870495749038noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-86558204425691555902009-12-11T10:42:43.709+05:002009-12-11T10:42:43.709+05:00कभी वन-रुम सेट में रहा नहीं पर पढ़ कर लगा कि ये आस...कभी वन-रुम सेट में रहा नहीं पर पढ़ कर लगा कि ये आस पास के दोस्तों की ही कहानी है...रंजन (Ranjan)https://www.blogger.com/profile/04299961494103397424noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-82372404233820925162009-12-11T10:38:11.842+05:002009-12-11T10:38:11.842+05:00आप यादों का बोझ 'डाल' नहीं रहे हैं, बल्कि ...आप यादों का बोझ 'डाल' नहीं रहे हैं, बल्कि 'साझा' कर रहे हैं। हर एक के अंदर बैठा वन रुम सेटवा जाग गया है बॉस। बता दूं कि सीरीज को पढ़कर मेरे एक दोस्त को रहा नहीं गया और उसने कहा कि "चल दोस्त एक दिन मुखर्जीनगर में से बिताते हैं, बतरा में सिलेमा देखे कई साल गुजर गए यार...।"<br /><br />इसी कारण कहता हूं यादों को यूं ही साझा करते रहिए।<br />शुक्रिया।Girindra Nath Jha/ गिरीन्द्र नाथ झाhttps://www.blogger.com/profile/12599893252831001833noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6145298560011119245.post-65627039636051381522009-12-11T09:46:21.687+05:002009-12-11T09:46:21.687+05:00दोस्तों,
आप लोगों को यह सीरीज पसंद आई। इसके लिए ...दोस्तों,<br /><br /><br />आप लोगों को यह सीरीज पसंद आई। इसके लिए बहुत शुक्रिया। इतना लंबा लेख पढ़ना आसान नहीं।<br /><br />मेरा तो धीरज जवाब दे जाता है। फिर भी आप लोगों ने पढ़ा और सराहा और अपनी यादें भी साझा कीं। फिर से एक चौथा हिस्सा लिखा है। गतांक से आगे टाइप का है। आप पर अपनी यादों का बोझ डालने के लिए माफी चाहूंगा।ravish kumarhttps://www.blogger.com/profile/04814587957935118030noreply@blogger.com