डेढ़ सौ मीटर लंबी क़तार तो होगी ही । इस क़तार में भी लोग आधे घंटे से धूप में खड़े थे । कोई कश्मीर से था तो कोई बिहार से । सोचिये । क़तार में खड़े लोगों की पार्टी भक्ति क्या होगी । हिन्दू मुसलमान की राजनीति को लेकर समझ क्या होगी । लेकिन ये अपनी तकलीफ़ों की भूख बर्दाश्त करना जान गए हैं । इस रास्ते से तेज़ी से मेरी कार गुज़री थी । पल भर में समझ गया कि सबने इसे देखा होगा । शहर के लिए नई बात नहीं है । मैं वापस आ गया । हम जो देख चुके होते हैं उसके प्रति भी ऐसे व्यवहार करते हैं जैसे कभी देखा न हो ।
पंचकुला या कालका के कोई सेठ साहब हैं जो ये लंगर लगाते हैं । रोज़ । खाना एकदम बेहतरीन । ढक्कन हटाकर देखा तो चावल की क्वालिटी बेहतरीन थी । छोले भी अच्छे थे । आप आराम से खा सकते थे । खाना भी पर्याप्त मात्रा में । खाने वालों को प्लेट भी । मैं सोच रहा हूँ यह सेठ कितना अच्छा होगा । ग़लत सही पैसा तो सब कमाते हैं मगर इस सच्चे मन से सेवा कम लोग करते हैं । पता नहीं सेठ साहब किस तरह के सेठ हैं मगर उनका यह काम तो शानदार है भाई । इस तकलीफ़ में जब लोगों को पास दवा के पैसे नहीं हैं कोई खाना खिला जाता है । चुपचाप ।
आपमें से जो नमो फ़ैन्स हैं या रागा फ़ैन्स है किसी एक दिन इस क़तार में लगकर महसूस कीजियेगा और अपने अपने नेताओं से सवाल कीजियेगा कि क्या वे इस सूरत में कोई बदलाव ला सकते हैं ? लाया हो तो उसकी तस्वीर दिखायें और सोच रहे हों तो प्लान बतायें । इस अस्पताल की भीड़ बता रही है कि स्वास्थ्य सेवाओं के मसले पर बात ज़रूरी है । हम सबको जल्दी इस विषय पर अपनी जानकारी बढ़ानी चाहिए ताकि अपने नेताओं से सवाल कर सके ।
14 comments:
sir ji, abhi logon ko development ka matalab samajhne me bahut samay lagega. jo log kevel ek hi sadak ko baar baar dekh use hi development bata detein hain wo jab tak in hahalton se nahin gujrenge tab tak unke liye wo sadak hi development rahegi.
मुंबई के टाटा कैंसर अस्पताल के फुटपाथ पर भी लोगों को देखा ऐसे ही महीनों से रहते हैं। पहली बार जब देखा था तो हैरानी हुई थी कि ये लोग तो फुटपाथ पर रहने वाले नहीं लगते। कपड़े तो ढंग के पहने थे, किसी एंगल से वे लोग फुटपाथ पर गुजर बसर करने लायक नहीं लगते थे। फिर ध्यान दिया तो उनकी प्लास्टिक की थैलियां जिनमें मेडिकल रिपोर्ट रहती है, लोहे की ग्रिल से लटकती रहतीं हैं, उनका सामान प्लास्टिक की शीट में ढंका रहता, हवा से उड़ न जाय इसलिये खाली नारियल रखकर प्लास्टिक शीट दबाई रहती है। एक जगह देखा कि एक मां अपने जवान बेटे को लेकर चादर से छांव कर रही थी। उस समय वहां से गुजरते हुए मन बुझ सा जाता है। उस समय एहसास होता है कि देश की आर्थिक राजधानी अंदर से कितनी खोखली है। लाखों करोड़ों की रोज की आमद वाले सेठों की नगरी लेकिन देश के कोने कोने से आये बीमारों के लिये थोड़ा सा आसरा तक नहीं :-(
"आपमें से जो नमो फ़ैन्स हैं या रागा फ़ैन्स है किसी एक दिन इस क़तार में लगकर महसूस कीजियेगा और अपने अपने नेताओं से सवाल कीजियेगा "
लोगो ने सर लगता है सवाल करना ही छोड़ दिया है , कल घर के पास 1 पोलिटिकल पार्टी की मीटिंग थी , कार्यकर्त के लिए ट्रैनिंग टाइप , जब पूरी हुयी तब उनके लिए पुलिस ने पूरी १५ मिनट तक ट्राफिक रोक कर रखा था ,यहाँ तक की ट्राफिक रोकने के बाद भी कुछ कार्यकर्ता पुलिस को धमाका रहे थे खुले आम ट्रैफिक के लिए . अब जो लोग जितने से पहेले यह सब कर रहे है वोह जितने के बाद तो क्या क्या कर सकते है , पब्लिक बिना कुछ कहे ही १५ मिनट कड़ी रह गयी
मेरे सूरत शहर मे बहुत बडा एक दवाखाना है और वहा हर धरम के लोग इलाज के लिये आते है जो सब शहरो की तरह ही है लेकिन आप ने जो किसी शेठ के बारे मे बताया बढिया किया जो देख कर किसी दुसरे सेठजी को मन करे ,लेकिन मै जो बता रहा हु वो जरा अलग है यहा रोज शाम को ५.४५ से ६.०० के बीच एक ओटो रिकशा आती है ( पहले ये बता दू कि दवाखाना सुरत की साडी के बाजार से नजदीक है ) उसको चला कर ले कर आने वाला ,और वहा प्रतिक्षा कर रहे दुसरे १० लोग जो अपने धनधे से अपना किमती समय निकाल कर आये हुए लोग है,उस ओटो मे रोटी,दाल,चावल,सबजी,और कभी-कभी मिठाई के बडे -बडे बरतन लदे है वोह सारा सामान ,दवाखाने के दुसरी मनजिल पर जाता है और एनाउनस कर मरीज या उनके रिशतेदार जो हो लाइन मे लग कर ( कम से रोज ३०० लोग )पुरा भोजन पाते है और येह पिछले ५ साल से चल रहा है इसका आयोजन डोलरकाका नामक उम्र दराज चाचा है उनकी देखरेख मे होता है,हमारी धरमानदाकारी आपदा के ठेकेदारो को आना चाहिये और देखना चाहिये कि कौन से धरम का कितना ले रहा है और कौन से धरम का कितना दे रहा है,
ऐसै लोग ही धरती पर सही देव है बाकी किसी को कया कहे ,छोडे काम करे हम जिसको जैसे देश चलाना हो चलाये
"Aap mein jo namo fans hai ya raga fans hai kisi ek din is kataar mein lag kar mehsus kijiyega aur apne apne netao se puchiyega kya is surat mein badlav la sakte hai"
Sir ye soye hue wo log hai jo 15-20 hajar ki nokri mil jaye shadi ho jaye aur mast ek kamre mein chaay ka cup liye desh ki rajniti ko koste hai.in logo ko such dikhana ek entertainment ke brabar hai.
भूख और आवश्यकता हर स्थान पर है, जहाँ भी अपना हृदय खोल दें, लोग ग्रहण करने को तैयार हैं।
ये दाग दाग उजाला, ये शब-गजीदा सहर,
वो इंतज़ार था जिसका, ये वो सहर तो नहीं
ये वो सहर तो नहीं जिस की आरजू लेकर
चले थे यार कि मिल जायेगी कहीं न कहीं
फ़लक के दश्त में तारों कि आखरी मंजिल
कहीं तो होगा शब-ऐ-सुस्त मौज का साहिल
कहीं तो जा के रुकेगा सफीना-ऐ-गम-ऐ-दिल
जवां लहू की पुर-असरार शाहराहों से
चले जो यार तो दामन पे कितने हाथ पड़े
दयार-ऐ-हुस्न की बे-सब्र खाब-गाहों से
पुकारती रहीं बाहें, बदन बुलाते रहे
बहुत अज़ीज़ थी लेकिन रुख-ऐ-सहर की लगन
बहुत करीं था हसीना-ऐ-नूर का का दामन
सुबुक सुबुक थी तमन्ना , दबी दबी थी थकन
सुना है हो भी चुका है फिराक-ऐ-जुल्मत-ऐ-नूर
सुना है हो भी चुका है विसाल-ऐ-मंजिल-ओ-गाम
बदल चुका है बहुत अहल-ऐ-दर्द का दस्तूर
निशात-ऐ-वस्ल हलाल-ओ-अजाब-ऐ-हिज़र-ऐ-हराम
जिगर की आग, नज़र की उमंग, दिल की जलन
किसी पे चारा-ऐ-हिज्राँ का कुछ असर ही नहीं
कहाँ से आई निगार-ऐ-सबा , किधर को गई
अभी चिराग-ऐ-सर-ऐ-राह को कुछ ख़बर ही नहीं
अभी गरानी-ऐ-शब में कमी नहीं आई
नजात-ऐ-दीदा-ओ-दिल की घड़ी नहीं आई
चले चलो की वो मंजिल अभी नहीं आई
फैज़
Ravish Bhaiya Pranam,
Ye jo PGI ke bahar ka nazaara hai, aisa nazaara har us sarkaari hospital ke bahar ka hai jahan achche doctors hain jaise Aims, Delhi, LNJP, Delhi, Safdarjang delhi , GTB, Delhi .etc. Aur saare bade shahron mein aise hi anek hospitals ka bhi. In lines mein khade hone wale log wahi hain jinke naam per aajkal logon ne parties bhi bana lee hain, matlab Aam Aadmi. Sach kahen to lagta hai ki ab desh mein do election hone chahiye ek jo aajkal ho raha hai, filmy shooting type, haath jodte aur haath hilaatey neta badi badi stages se, aise lagte hain jaise koi superstar neeche khade extras ko chidha raha hai. Doosre election hone chahiye asli samasyaon ke liye jisme Bhookh, garibee, shiksha, swasthya aur aakhir mein ghar ke mudde hon. In doosre elections mein voting in bechaare aam aadmiyon ko karni chahiye aur filmy elections mein kewal so called sambhrant logon ko jinki income 1 crore per annum se zyada hai. Kyunki is desh mein ab sachmuch do tarah ke log aur do tarah ka samaj hai dono ki samasyaayen aur mudde bilkul alag hain. Aur important baat to ye hai ki dono ka ek doosre ke muddon se koi vaasta nahin. jaise sambhrant logon ke liye bhookh, garibi, swasthya, shiksha etc. ka koi matlab nahin aur aam aadmi ke liye, GDP, Tax planning, Sahre market, FDI, foreign policy etc. ka koi matlab nahin. To dono tarah ke logon ke liye do election aur jo netaji ek election mein khade hon wo doosre mein khade nahin ho sakte, aisa rule hona chahiye. Baki to jo hai so haiye hai.
regards
Insaniyat abhi jinda hai..Nice report Ravish ji
Yuva netaon k sapne pata nahi kiske liye Hain , health , education aour PDS thik kiye bina kaisa vikas ?
Vaise waha Gurudwara Sahib se kuch log aate hai jo roz 1 bje langar ki seva karte hai. Unka kaam bahot sarahaniye hai .
Chandigarh ki iss smasya ko apne blog mein jagah dene ke liya bahot bahot dhanyawaad.
Waha pe mareez sach mein bahot dukhi hai, jo mien roz apni aakhon se dekhta hun :)
Ravish, you present great coverage of the problems facing India. Makes me wonder, is there any hope for improvement. In particular, it will be insightful to see examples of other countries where the situation was this dire and they came out of it. People often give examples from the west, but this is a baseless comparison. I think it is not a fair comparison and without a great stroke of luck, we cannot hope to attain even a fraction of the unified progress seen in the west. Are there other more relevant examples. As an ardent fan of your shows, I look forward to a NDTV Primetime discussion on whether the situation in India can be improved, or is it just wishful thinking.
Sir Isey aapke karyakram mein bhi dekha tha..jo samajh aaya aur jo dikha wo likh kar batanae ki iccha hai.. in tasverron ka apne blog www.siyasat.co.in par istemal karne ki ijjajat chahta hun!!!
hindu muslim ki cheap politics se free ho tab to wo real issues k bare me sochein aur baat karein .... kitna chhota circle hai hmare politicians ki soch ka!
takleef hoti hai ki aise log hme represent krte hain jo itne insensitive hain apne citizens k liye.
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