शहर गाँव क़स्बों से गुज़रते हुए ऐसे मकानों को देख कुछ हो जाता है । मैं इनके वक्त में चला जाता हूँ । जब से बने होंगे । चमकते होंगे । कोई बड़ा आदमी होगा या पहली बार पैसा कमाया होगा । घर की नक़्क़ाशी कराई होगी । बालकनी और बाहरी दीवारों को जालीदार बनाया होगा । एक समय लोग हैरत से इतने बड़े घरों को देखते होंगे । इनमें रहने वालों का अपनी कोई सपना होगा ।
इसी ब्लाग पर आप पन्ने पलटेंगे तो ऐसे मकानों की तस्वीर दिखेंगी । एक दौर में हमारे शहरी होने का अनुभव बेहद कुलीन तरीके से दर्ज है । मुंबई दिल्ली के पुराने मकानों का अध्ययन तो है मगर बाक़ी शहरों का नहीं । अन्य जगहों के नवजात अमीरों या मध्यम वर्ग का कोई क़िस्सा नहीं है ।
हर शहर में कुछ लोग समृद्ध होते हैं कुछ लोग कंगाल । एक शहर में एक सज्जन मिलने आए । सत्तर के दशक में उनके दादा के भाई केंद्र में वित्त राज्य मंत्री और सूचना मंत्रालय में कैबिनेट मंत्री रहे थे । दादा जी संविधान सभा के सदस्य । जिस सड़क पर रहते हैं वो अब दादा जी के नाम पर तो है लोग उन्हें भूल चुके हैं । जनाब अपने दादाजी या परिवार के उस इतिहास को पुराने कंबल की तरह लपेटे हुए लगे । शायद कुछ गर्मी मिलती होगी ।
मैं क्यों लौटता हूँ उस दौर में पता नहीं । पर ये बचे खुचे मकान मुझे रोमांचित करते हैं । घर किसी का सपना होता है और हर सपने का अपना एक वक्त या दौर । कभी कभी लगता है कि जिसने पलायन नहीं किया वो जड़ हो गया । वो अपने दौर में चूक जाता है । हर शहर में पुराने रईसों के मकान जड़ हो गए हैं । कइयों ने तो ढहाकर उस अतीत से छुटकारा पा लिया है मगर कुछ मकान बचे मिल जाते हैं । जिनके लिए मैं अपने फ़ोन का कैमरा तैयार रखता हूँ । गाड़ी से गुज़रते हुए दिखा नहीं कि क्लिक ।
31 comments:
Haan main bhi purane khandharon aur darwajon ko dekh kar usi samay main pahunch jaati hun..
Nice pics
Not certainly for Ravish.
न शर्माइए देख उस सहाफी की तिजारत ,
रंगो-रोशन जब किया एक टूटती ईमारत।
सहाफी- Journalist ,तिजारत-Business (TRP)
More at शेर बगैर रदीफ़ औ काफ़िया
http://atulavach.blogspot.in/
खंडहर बता रहा है कि इमारत बहुत मज़बूत थी !
SIR JI really very thoughtful.After watching these pics i really felt
........
can't define.
Sir ji aapki har tasvir Kuch na Kuch asar chod jati hai.kuch to baat hai aap aur baki patrkaro mein. Adhbhut!
In Haveliyon ka jikra Bangla sahitya me jamkar hua hai"Syahi taak kee batla rahi hai, Is ghar me ujala rah chukka hai"
Taarif ke liye kuch aacha likha chahta hn lekin chanav ki itna ghatiya tv coverage ke beech aapka show ek taaze hawa ke jhonke ki tarah to lagta h par ye bahut kam h sir....
Aaj aapka ek vaakya yaad aa raha h jo media manthan ke prigram mein aapne urmilesh se kaha tha..."darshak kyun ni apne tv ka cinnection band kar deta h...kyn ni wo newspaper faad deta h?"?yakin maaniye is waqt main bhi aisa kuch feel kar raha hn.
Aaj aapki vyatha samajh pa raha hn ki aapne kyon tv dekhna chod diya h....kyun tv ke debates dekhne aapko bekar lagte hain.this whole election looks like a big bullshit....aur hum sab tv aur newspapers ke jariye us bullshit ka hissa ban rahe hain
Ravish Sir, Kabhi Bihar ke puraane ilaakon bhi jaiye...
Aaap champaran ke nil kheti ke kothi me jaaiye,,,, un jamindaaron ke kothi me jaayiye.... aur tab charcha kijiye
क्युकी हर इंसान का एक हिस्सा इतिहास मे जीवित रहता है
Ghar hamare vajud me baitha rehta hai.Waqat ke saath hum aur ghar dono beet rahe hote hai.bas dua kijiye ki ghar me se ghar kabhi gayab na ho.
Ghar hamare vajud me baitha rehta hai.Waqat ke saath hum aur ghar dono beet rahe hote hai.bas dua kijiye ki ghar me se ghar kabhi gayab na ho.
Ghar hamare vajud me baitha rehta hai.Waqat ke saath hum aur ghar dono beet rahe hote hai.bas dua kijiye ki ghar me se ghar kabhi gayab na ho.
क्यों हवेली के उजड़ने का मुझे अफ़सोस हो,
सैंकड़ों बेघर परिंदों के ठिकाने हो गए...!!
aap sochne ko mazbur kar dete ho...
aap sochne ko mazbur kar dete ho...
ऐसे मकान हमारे शहर यानि उज्जैन में भी बहुत से दिखते है जो अब जर्जर हो चुके है उन्हें देख कर मेरे मन में भी यही आता है कि एक वक़्त रहा होगा जब ये मकान देख कर सब रश्क करते होगें।
हम भी बीते हुए को जी लेते हैं. यह सब चलता रहेगा और एक दिन हम नहीं होंगे .
मुंडेरों पे कबूतर नाचते हैं--किवाड़ों पर सियाह ताला पड़ा है
कोई तो घर की शम्माओं को जलाए- दरीचों में अँधेरा हो चला है..
घर में मिलेंगें उतने ही छोटे क़दों के लोग,
दरवाज़े जिस मकान के जितने बुलंद हैं।।
सपनों का तो बिज़नस या किराया में कन्वर्शन हो गया ज्यादातर
लेकीन
कितने सारे इन्सान एक छत के नीचे बिना म्न्दुख के बसतें होंगें और कितनी एकमन ज़िंदगियाँ होगी यह सोचकर अच्छा लगता है जब भी ऐसे old/classic architectures देखूं तो।:)
इतिहास के सच्चे विद्यार्थी में यह ललक होती है। मुझमें भी है।
Ravish bhaiya pranam,
ye chunaav ne to aur kuchch sochne samajhne ki shakti hi khatm kar di hai. Ab to lagta hai ki nipte to chain pade. in purane gharon aur imaaraton mein ek ajeeb si kashish hoti hai jo ab ke naye bane gharon ya flats mein mahsoos nahin hoti. Shayad 50 saal baad inme bhi hone lage. In puraane gharon mein itihaas darj hai. inme ghati ghatnaaon ki rooh yahaan rah jaati hai. Hamaara purana ghar Aligarh mein hai. Ab bhi jab us ghar mein jaata hoon to wahi Dadi aur dadaji ki khushboo aur unki maujoodgi mahsoos hoti hai jo usi ke bagal mein bane naye ghar mein nahin hoti. Ghatnaaen aur log apni chhap chhodte hain jo aapko kheenchti hai basharte aap mahsoos kar saken.
regards
Hrek Mkan me kai kahaniya basis Hui hai
Hrek Mkan me kai kahaniya basis Hui hai
क्या बात है सर, एकदम सही लिखा है। ऐसा सबके साथ होता है। एक दम सटीक वर्णन किया आपने
मेरा भी कुछ-2 ऐसा ही हाल है। आपने बिल्कुल मेरे मन के उद्गार लिख दिए।
मेरा भी कुछ-2 ऐसा ही हाल है। आपने बिल्कुल मेरे मन के उद्गार लिख दिए।
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