भाषणों का मूल्याँकन करें तो राहुल गांधी नरेंद्र मोदी के आगे कहीं नहीं ठहरते । मैं बात दलील की नहीं शैली की कर रहा हूँ । मोदी अपने भाषण और भीड़ को टीवी और दर्शक के रिश्ते में बदल देते हैं । ग़ुस्सा भी होता है, आवाज़ में उतार चढ़ाव होता है, अपनी बात को उस मौक़े तक ले जाने की चतुराई होती है जहाँ लोग या तो सिर्फ हाँ कहें या ना या ताली बजायें । नाटकीयता, भावुकता और गंभीरता सबका मिश्रण । मोदी अपने कमज़ोर पक्ष को भी ताक़त में बदल देते हैं । मुहावरों और क़िस्सों की कलाबाज़ी में माहिर हैं ।
बोलने में मोदी के मुक़ाबले लालू ही ठहरते हैं । मगर लालू अब मीडिया के प्रिय नहीं रहे । लालू का वक्त भी नहीं रहा । मीडिया को मोदी मिल गए हैं । मोदी हँसाते हैं,आँख दिखाते हैं और हमले करते हैं । कई बार झूठ सच सब मिलाकर बोल जाते हैं । मोदी जीतने की अदम्य इच्छाशक्ति से भरे हुए हैं । जिसका असर उनके बोलने में दिखता है । खुद को दावेदार के रूप में इस तरह पेश किया है जिसके कारण ध्यान चला जाता है । इसलिए बोलने में मोदी को बढ़त मिल जाती है । क्या बोलते हैं से ज़्यादा कैसे बोलते हैं महत्वपूर्ण हो जाता है ।
राहुल गांधी बोलते वक्त काफी सोचते हैं कि कहीं भारी न पड़ जाए । इस चक्कर में कई बार बोलते नहीं । 'रेटरिक' नहीं आती है । मोदी जिस तरह सटीक निशाना लगाते हैं राहुल तानते तो सही हैं मगर तीर छोड़ते वक्त धनुष को ढीला कर देते हैं । इसलिए मोदी की तुलना में राहुल की बात पर कम तालियाँ बजती हैं । जैसे ही लगता है कि राहुल हमला करने वाले हैं वे उस बात से उतर कर कुछ और कहने लग जाते हैं । कभी नाम लेते हैं कभी नहीं । इसलिए वे बोलते हुए मनोरंजन कम करते हैं । ज़रूरत से ज़्यादा संजीदा हो जाते हैं । एक अपराधबोध या सतर्कता आ जाती है जिससे उन्हें लगता है कि ये बोलूँगा तो लोग मुझे भी बोलेंगे ।
मोदी कुछ नहीं सोचते । वे बोलते हैं बल्कि कई बार बोलते हैं । जिस तरह से आज राहुल ने मोदी के प्रचार की बात की वो हमला नहीं लगा । ऐसा लगा कि राहुल कह रहे हैं । आक्रमण नहीं कर रहे । मोदी को यही बात कहनी होती तो वे क़िस्सों में बदल देते । कहते कि आपने देखा है नेता जी अभी से तरह तरह के कुर्ते में सज रहे हैं । रोज़ नया कुर्ता । दर्ज़ी परेशान है । कह रहा है कि शहज़ादे हमारे पास रंग तो छोड़ो कपड़ा भी नहीं बचा है । लगता है टू जी के सारे पैसे से कुर्ते ही सिल गए हैं । थोड़ी अकल होती तो शहज़ादे कुर्ते की जगह छोटा मोटा कारख़ाना ही खोल लेते जहाँ दो चार लोगों को काम ही मिल जाता । शहज़ादे का ध्यान बस इसमें लगा होता है कि आज मैडम सोनिया जी कौन सा कुर्ता सिलवा के देंगी । मोदी ने ऐसा मौक़ा कांग्रेस को दिया मगर राहुल इस तरह की बात नहीं कर पाते । संशय दिख जाता है । हालाँकि वे अब मोदी की नाम लेकर या बिना नाम लिये हमले करने लगे हैं मगर उसमें नाटकीयता या समां बाँधने की कला का अभाव है ।
फिर भी राहुल मोदी को निशाने पर ले रहे हैं । पहले वे अपनी बात कहते थे । भाषण छोटा रखते थे । अब लंबा बोलने लगे हैं । मोदी के ग़ुब्बारे के फटने की बात कर रहे हैं । सपाट ही सही थोड़ा हँसाने का प्रयास कर रहे हैं । ग़ुब्बारा गिरा धड़ाम टाइप से । धूम फ़िल्म के तीन संस्करणों का उदाहरण देते हैं । कैसे शाइनिंग इंडिया का ग़ुब्बारा फूट गया और इसी लाइन में कहते हुए निकल जाते हैं कि दो तीन उद्योगपतियों के पैसे से प्रचार कर रहे हैं । इसी बात को उनसे पहले कांग्रेस का कार्यकर्ता ज़्यादा बेहतर आक्रामक शैली में उठा रहा था । पूछ रहा था कि कहाँ से आया पैसा । राहुल यह सोचने लग गए हों कि कहीं लोग यह न कह दें कि उनके प्रचार का पैसा कहाँ से आता है ।
राहुल देर से ही सही संशय से निकलने का प्रयास कर रहे हैं । यह काम उन्हें तीन महीने पहले करना चाहिए था । कानपुर कांग्रेस का गढ़ रहा है । इस लिहाज़ से भीड़ थी और तमाम रैलियों की तरह राहुल के प्रति आकर्षण भी दिखा मगर राहुल ने उसे खाली हाथ लौटा दिया ।
मोदी हाँ या ना में बात करते हैं ताकि भीड़ तुरंत प्रतिक्रिया ज़ाहिर करे । इस शैली में सोचने या सवाल करने की गुज़ाइश कम रहती है । मोदी की तरह आप किसी भी राज्य की भीड़ में जाकर कहिये कि यहाँ मौजूद लोगों में से किसी को नौकरी मिली । जवाब दो । किसी युवा को नौकरी मिली । ऐसे सामूहिक प्रश्नों का जवाब ना में ही आएगा । ऐसा कर मोदी भीड़ में अनुगूँज पैदा करते हैं । कंपन । राहुल की बात निकलकर कहीं खो जाती है । कौन जानता है लोगों को समझ भी आती हो लेकिन जो दिख रहा है उसे लिख रहा हूँ ।
राहुल अनुगूँज पैदा नहीं कर पाते हैं । राहुल को सुनते हुए लोग चुप रहते हैं । तालियाँ कम बजती हैं । कार्यकर्ता भी मोदी मोदी की तरह राहुल राहुल नहीं करते । नारे नहीं लगाते । बल्कि लोग राहुल की बात को सवालों के साथ सुनने लगते हैं । यह एक बेहतर तरीक़ा है भाषण देने का । लेकिन ' रेटरिक' के बिना रैली नहीं लगती । राहुल को मोदी की तरह नारों की शक्ल में बात करना होगा । मोदी के पक्ष में अख़बारों से लेकर टीवी तक में लेख और भाषण दिये जा रहे हैं । राहुल के पक्ष में आपको कोई लेख नहीं मिलेगा । इसका कारण राहुल ही हैं । वे लोगों को बात करने का कम मौक़ा देते हैं ।
चुनाव में भाषण का भी विश्लेषण होना चाहिए । धीरे धीरे राहुल गांधी बेहतर तो हो रहे हैं मगर देर हो चुकी है । उन्हें रैली या महफिल लूटने की कला नहीं आती । सीख रहे हैं पर सीखे नहीं है । ऐसी बात नहीं है कि उनकी बातों में दम नहीं मगर बात दम की ही नहीं होती साख के समय की भी होती है । फिर भी राहुल इस माहौल को बदल सकते थे । आख़िर अन्ना आंदोलन के समय तक भ्रष्टाचार के मामले में बीजेपी गडकरी और येदुरप्पा को लेकर बैकफ़ुट पर हो ही जाती थी लेकिन मोदी ने आक्रामक तरीका अपना कर अपनी कमज़ोरी को ढंक दिया ।
राहुल को मोदी की तरह मंचीय कवि होना होगा । वे किसी गंभीर व संशयपूर्ण साहित्यकार की तरह कविता पढ़ते हैं । मोदी से सीख लेने में कोई हर्ज नहीं है । इस मामले में वे सोनिया गांधी से भी सीख सकते हैं । लेकिन भाषण देने की मोदी की शैली सर्वमान्य होती तो नवीन पटनायक भी मोदी के भाषणों से उड़ जाते । मायावती उड़ जातीं । नीतीश कुमार टिक नहीं पाते । रमण सिंह तो एक रैली नहीं कर पाते । सबका वक्त होता है । ये राहुल का वक्त नहीं लगता । लेकिन अच्छा है कोई अपने सबसे कमज़ोर वक्त में लड़ाई के बीच में लड़ना सीख रहा है । शायद यह सीख मोदी के सामने संसद में विपक्ष के नेता के रूप में काम आ जाये । वैसे तक़दीर में किसके क्या है कौन जानता है । फ़िलहाल भाषण से तो यही झलकता है ।
37 comments:
"मोदी को यही बात कहनी होती तो वे क़िस्सों में बदल देते" - मोदी के पास अनगिनत इनपुट हे माहिती के , १ पूरा सिस्टम है इनपुट्स का , उसके जरिये उनके पास अलग अलग उदहारण पहुँचते है , और उनकी स्क्रूटनी करते है और जो सबसे असरदार हो वह बोलते है , मोदी जो जो सब्द बोलते है उसके पीछे अनगिनत लोगो की महेनत होती है
शायद कांग्रेस फर्स्ट फैमिली के पास कोई जरिया है नहीं और उन्होंने बनाने ही नहीं दिया की जिस के जरिये आम से आम बात जो फोकस करने लायक हो वह पछुत सके
और मोदी ने २००1 पहले बहुत महेनत की है जमीन पे . शायद वही अनुभव से ही उनके भाषण में एक खास कॉन्फिडेंस आता है
कहते कि आपने देखा है नेता जी अभी से तरह तरह के कुर्ते में सज रहे हैं । रोज़ नया कुर्ता । दर्ज़ी परेशान है । कह रहा है कि शहज़ादे हमारे पास रंग तो छोड़ो कपड़ा भी नहीं बचा है । लगता है टू जी के सारे पैसे से कुर्ते ही सिल गए हैं । थोड़ी अकल होती तो शहज़ादे कुर्ते की जगह छोटा मोटा कारख़ाना ही खोल लेते जहाँ दो चार लोगों को काम ही मिल जाता । शहज़ादे का ध्यान बस इसमें लगा होता है कि आज मैडम सोनिया जी कौन सा कुर्ता सिलवा के देंगी
Shayad rahul abhi tak diret attack nahi karna chahte the..Aachar sanhita ko seriously le rahe the aur ye soch ke chal rahe the ki sada aachar sanhita lagi rehti hai... Modi ji ke baut adviser hai..isme koi doubt nahi hai..lekin rahul isme peechhe kyun hai..mujhe lagta hai woh mehnat nahi karna chahte..unme woh jajba nahi hai seekhne ka.apne aapko us star pe laane ka..warna paka pakaya khane ki kala seekhne ke liye 10 saal bahut hote hain...par rahul ne mehnat nahi ki..time waste kiya..ab poora bhar unke kandhon pe aata dikh raha hai..shayad isiliye rigorous training and pain lete dikh rahe hain (bhale ye PR company ka nateeza ho)..chalo achchha hai kam se kam modi ji ko gujrat ki tarah centre mein walk over to nahi milega.
Waise is maamle mein Kejriwal better hai..head on fight... chahe neta kitna bada ho..apne aap mein itni himmat aur kubbat paida kar lete hain ki opponent chhota nahi to barabar lagne lagta hai.. Sheila ko haraya isi jajbe se aur ab Varanasi mein Modi ke khilaaf ladke ek step to cross kar liya hai...varanasi ko battle ground mein convert karne ke liye kafi time hai aur 16 May ko modi ko dool bhi chata hi denge..
इस पोस्ट की चर्चा, शनिवार, दिनांक :- 12/04/2014 को "जंगली धूप" :चर्चा मंच :चर्चा अंक:1580 पर.
Nice
Ravish sir ek bahut purana gana hai."bahut der kar di balam aate aate".
That is all.teer kamaan se nikal chuka hai.
Kya baat hai sir ji modi ki rally mein bade chaaye hue the. Ek dum mast.
Ab aap apne lekho ko hi dekh lijie.. Modi k lekh m kahin jikr bhi tha rahul ka? Wahan arvind fir bhi aa jate hain..
Lekin fir bhi rahul jimmedari to puri lete dikh rahe hain.. Nateeje bhala kuch b ho.. Is baar media wale unhe part-time politician to na hi kehne chahie.. Acha sanket hai desh k rajneetik bhavishya k lie. Apne itihas par garv to karna hi chahie!
Aap b koi pehle din se itne dhaansu to nahi hi rahe honge.. Experience kis chidia ka nam hota warna...???? Waese aap aane wale dino m dilli k aaspas se hi rajneeti samjhaiega ya thoda budget nikalwa k desh ke baki hisso m bhi jayiega?
Its a really nice analysis.
Alok Jain
#OperationLoksabha Par ek debate to banti hai kam se kam aap se, magar kya ndtv aapko allow karega ?
आपका आकलन बिलकुल सही है ! मोदी अपने भाषणों के माध्यम से जिस तरह के अचंभित कर देने वाले शब्द चित्र खींच देने की कला में सिद्धहस्त हैं उस कला में राहुल अभी लकीरें उकेरना भी नहीं सीख पाये हैं ! उनके पास ना तो ज़मीनी स्तर से जुड़ा अनुभव है ना ही समस्या के मूल तक पहुँच कर हासिल की गयी जानकारी ! इसी लिये उनके भाषण जनता पर कोई प्रभाव नहीं छोड़ पाते ! वे सतही तौर पर काम कर रहे हैं और जनता यह बखूबी समझती है !
Even if one is not a Bhakt , one will realize the amount of input that has gone into making of Mr.Modi.
It is clear that he has been trained on Public speaking by professionals.
Rhetoric apart , Is there statesmanship in speeches.
awam ko hai samajh ki ab tahzeeb hai darkinar yakeenan badzabani itni na karte hum khakshar
Not boasting but had posted a crude blog on rhetoric in speeches nearly four months ago.
Rabble Rouse at http://atulavachan.blogspot.in/
कुल या घराना एक मंच तो दे सकता है...किन्तु नौटंकी आपको खुद करनी है...ये बात शायद राहुल भी समझ रहे हैं...जिस माँ ने देश उन्हें विरासत के रूप में दिया हो...उसे विरासत को बचाने के लिए जंग तो करनी होगी...पहले सिर्फ चुनावी नारों से एक पार्टी ने देश पर साठ साल राज कर लिया...आज केजरीवाल भी रातोंरात अपना एजेंडा देश के समक्ष रख सकता है...ये है मिडिया की ताकत...जो इसे भुना पायेगा वही आगे जायेगा...
Ravishji aap ka kahna sach ke najdeek hai aur us par Indra sahib ke comments sachmuch lajwab. Rahul ji ka sakonch implementation me bhi dikhta hai. Aap is samay UP ke tour par hai to Amethi to jayenge via Lucknow, Raebareli. Amethi se Durgapur sadak 26 km hai oosee par mera gaon Bhadar padta hai. Isee road par IIIT ke branch Tikarmafi me hai. Roads kee condition ko Etawah se compare kijiyega. 2005 me Raebareli aur Amethi ke liye Central Road Funds se 150crore aaya tha. Kewal Dalmau(Raebareli) me Gangapul bhi shamil tha. Us paise se bane roads aaj tak sahee nahi ho payee . Us samay SP thee Baad me BSP aayee. Dono se inka 36 ka aankda tha.Ganga pul ko BSP walon ne fita katkar open kar diya. Koi bhi roads sahi haal me nahi hai.Rahulji local Administration me koi prabhav nahi hai. India ke baat to karna hee bekar hai. Naam me Gandhi laga hai to aap Blog likh rahe hai aur main comments varna to jo hai so haiye hai.
बढ़िया विश्लेषण ..
राहुल गाँधी और नरेन्द्र मोदी की मॅंचीय शैली और श्रोताओं को प्रभावित करने के कौशल का बेहतरीन तुलनात्मक विश्लेषण. रवीश कुमार अपना खुद का मुहावरा गढ़ने में भी सिद्धहस्त हैं.
एक अंतर साफ़ दिखाई देता है - जहाँ राहुल गाँधी जनता से संबंध स्थापना विशेषकर आपसी विश्वास या भावनात्मक समन्वय बैठाने में कमज़ोर हैं और वहीं नरेन्द्र मोदी के लिए ये बाँये हाथ का खेल है.
परंतु मोदी जी के भी भाषण मे भी नैसर्गिकता नही है। पूरा बनावटी भाषण लगता है मोदीजी का।
in the lecture of Modi ji, any body can read his commitment and dedication. Other than this Modi ji did hard work from childhood which reflects in his lecture. So we going to select NAMO as a our next PM.
SIR JI thank you for the comparison it was throughly required .
Ravish jee good blog and observation about Modi and Rahul. I watch Ndtv and u regularly. I think a news tv anchor should be a neutral person . What I observed and felt ur personal opinion reflect too strongly in your shows .
Ravish jee good blog and observation about Modi and Rahul. I watch Ndtv and u regularly. I think a news tv anchor should be a neutral person . What I observed and felt ur personal opinion reflect too strongly in your shows .
Modi ko sab kuchh aata hai, yahi unki kami hai... he is too smart to be trusted.
sir
modi jhut bht safayi se bolte hai iska ye mtlb nahi k wo achha bolte hai rahul ji me kam se kam jhut to n bolte n prb rahul ji ki nahi humlogon ko jhut sun kar khus hone ki aadat ho chuki hai jo sach bolta hai usko sun kar hum boor ho jate hai, jo jhut bol kar khud ko shktimaan ban raha log uski wah wah karte hai ye hai humlog modi khud ko samjhte hai one man army wo jo kare sb thk jhut kahe sach hai
Rahul modi ke bhasan ka comparision karke modi badhat dikhana kya sanket hai ...kya ye ground reality hai ..kyuki aap abhi ground pe ghum rhe hain ...aur aapne rahul gandhi ko opposition leader bhi bta diya hai ..
सटीक विश्लेषण किया है रवीश सर आपने !
Sir Tajarba b kuchh hota hai sahi hai,Modi teen bar chunav lad chuka 15drahiyon sal se Stage pe bhashan/vaade de rahen hain...Sir han ye suniye!! Modi ka 2007 me cnn-ibn pe "Dosti bani rahe dostana bna rahe" wala interview aaj youtube pe dekha jisme modi g paani p liyen then,,Sir us time me Modi bolne ki kala me baot pichhe then,Aawaz alag c,Kayi baar haklaayen,kmzor kmzor sa jawab diyen bina ghumaye...
Janta ko Rally me suna k chale jaana aur imandar interview me fark to hai bahot,,,Phir b
Modi ki bolne ki kala me kafi fark aaya hai.
Mujhe b lagta hai Rahul G. achhi raftaar se seekh rahen hain.
अति उत्तम
अति उत्तम
सर,आपने राहुल गाँधी को कहाँ कवर किया..?
कभी अमेठी ,रायबरेली की तरफ भी आइयेगा .....यहाँ के भी हालत दखिये की कैसे सोनिया गाँधी बिना प्रचार किये जीतती हैं और लोग उन्हें आंख मूंदकर वोट देते हैं....और कैसे समाजवादी यहाँ कोई प्रत्याशी नहीं उतारते हैं....बसपा अपना अति कमजोर प्रत्याशी उतारकर इतिश्री कर लेती है
मन्शेष कुमार
०९८०७९२२९७०
रायबरेली
एक तरीका है राहुल साब अगर खाने में नमक मिर्च की मिक़दार बढ़ा के देखें
वैसे analysis बहुत माक़ूल है जनाब का, क़ाबिले तारीफ
INHE ABHINAY AATA,BOLTE KAM BADBOLE JYADA HAI,FAISIONABLE BHI KHUB HAI MODI,TO KYA VASTVIKTA KI DHRATAL KO NA TATOLA JAY,KYA INKE CHALAVE KA PAAN KARNA AAVASHYAK HAI....KADAPI NAHI YE SVAYAM AABHASI HO CHUKE HAI JO JANARDAN KO BHI SWA SAMAJHATE HAI....SACH TO YE HAI KI DESH ME KISI KI LAHER NAHI WO TO BAWANDAR HAI AUR KHUD HI BAH JAYENGE.....KYOKI HIND JINDA HAI....
Bahot hi sahi vishleshan kiya apne, bhasan dene ki shaili ki mahatta ko ujagar kiya hai apne, akramak shaili me kahi gayi jhuthi dalile bhi bhari padne lagti hain, par aisa shrotaon par nirbhar karta hai ki wo kitna sochne ki chamta rakhte hain, wo kitna kisi baat ka khaal nikaal sakte hain, agar hum aise desh,ki pragti ki ummid kar rahe hain jaha ki janta aisi saili ko ho pasand karti hai or us saili ke parde ke piche ki sachhai ko nahi samajhna chahti to aap galat hain, fir bhi us janta ko ek mouka ye to milna chahiye samjhne ke liye ki bhale hi vyavaharik na ho par mahatta to dalilo ki hi hoti hai, to fir kyu na is chunav ko wahi mouka samjha jaye.
सर आपकी तारीफ करनी होगी। समस्याओं की तस्वीर दिखाकर बीच से हट जातें हैं । निर्णायक होने में क्या हर्ज है सच आखिर सच है। कोई भोला है। निर्दोष चित्त भी। कोई है जो बेहद कनिंग हो गया है। रोज एक नए झूठ गढ़ता है फिर उसे चिल्ला चिल्ला कर सच में बदल देने की पुरजोर कोशिश । क्या अब सरल होना भारतीय राजनीति में पिछड़ेपन की पहचान बन जायेगा।मैं जनता हूँ इस सुनामी से यह देश इस बार बचेगा नहीं । क्योंकि इस नक्कारखाने में तूती की आवाज..........
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