खान पान की आदत तो सबकी बदली है । खान पान ही नहीं खाने की शैली भी । घास क़ीमती हो गई है शायद । किसान ने बताया कि घास को गठरी में बाँध देने से चारे की बर्बादी कम होती है । एक पक्ष यह भी होगा कि अब बच्चे स्कूल जा रहे हैं । बकरी चराने या घास लाने के लिए कोई नहीं होगा । ऐसा नहीं है कि बकरियाँ चरती नहीं हैं । आख़िर की तस्वीर अन्य जगह की है । यहाँ बकरियाँ गाय की तरह टोकरी में खा रही हैं ।
3 comments:
Sir Your writting is like Premchand Ji. I am Big fan of you
तो एंकर महोदय बकरियाँ चराने गाँव गए थे !! :) वैसे option healthy है और conventional भी :) side biz भी अच्छा रहेगा :-p :)
दिल पे मत ले लेना-prime time आप से है।
बाल शाखा ही क्यूँ?वैसे शिश्त और अनुशाशन का कोई विकल्प नहीं है,हैन ?
साइकिल पोस्टरों पर ही चलेगी लगता है
कोई वैज्ञानिक अपने वाणी स्वातंत्र्य का उपयोग करें और वह भी गहन प्रदान के बाद तो इसको सलाह और देश दूलार समझकर उनकी सफाई को मान लेना चाहिए :) वैसे बात तो 16आने कही-विज्ञान से ज्यादा राजनीति का योगदान ज्यादा है समाज सुधार मैं :)
विज्ञानं solar panel की तरह साबिती से सुधार लाता है और राजनीति सम्झूती से-गठबंधन सरकारों की तरह :)
लगता है आजकल आप के अपने आप से भी झगडे हो रहे है फिर मैं किस खेत की मूली :) twitter...
यहाँ भी आजकल ऐसा दूध मिलने लगा है, जो उन गायों जो केवल और केवल घाँस खाती हैं। यहाँ वैसे मवेशियों को मक्का आदि, खूब खिलाते हैं। पर यहाँ २-३ ब्रांड्स ये, जो अब केवल घाँस वाला आप्शन भी दे रहे हैं। आर्गेनिक है और केवल घांस खिलाने की ज़रुरत के कारन, तुलना में महँगा है, पर ज़यादा स्वादिष्ट भी होता है ।
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