मैंने एक सपना देखा है । मैं जानता हूँ कि सपने देखने का क्या आनंद होता है । जब लाइफ़ में हो आराम तो आइडिया आता है । लक्स का यह विज्ञापन । बिल्कुल वैसा ही । तो मित्रों पता है मैं सपने क्यों देखता हूँ । ग़रीब आदमी सपने नहीं देखता उसे दिखाया जाता है इसलिए मैं सपने देखता हूँ । आज मैं अपने मुँह से अपनी बात बताता हूँ । सपना वही देखता है जो अमीर होता है । जिसके घर में एसी होता है । कमरे में प्ले स्टेशन होता है । जिनके पास खेलने के मैदान नहीं वो सपने नहीं देखते ।
किसी चीज़ की कोई कमी नहीं थी । साउथ दिल्ली के आनंद लोक में पैदा हुआ था । बचपन से ही बड़ी बड़ी कारें देखी हैं मैंने । मैं जानता हूँ अमीरी क्या चीज़ होती है । जब दोस्तों की मारुति अठ वंजा में घूमता था तब पता चलता था सिम्पल कार का दर्द । मुझे उनके लिए दुख होता था तब मैं उनके लिए सपने देखता था । मेरे पापा के पास छह बीएमडब्ल़्यू कारें थीं । जब मेरे पापा के पास हो सकती हैं तो ग़रीबों के पास क्यों नहीं । मित्रों एक अमीर ही एक ग़रीब का दर्द समझ सकता है । मैं हावर्ड गया । इंडिया की ग़रीबी पर चिंतन करने लगा । विवेकानंद को पढ़ा । मार्क्स को पढ़ा । तब से मैं आपकी भलाई के लिए सपने देख रहा हूँ । जब मैं कम्पनी चलाकर रोज़गार सृजन कर सकता हूँ तो प्रधानमंत्री बनकर कितना करूँगा ज़रा सोचिये ।
मित्रों, मेरा एक विज़न है । स्लम मुक्त भारत । सबको डीपीएस स्कूल मिले । सारे सरकारी अस्पतालों को बारात घर में बदल दे । सरकार प्राइवेट अस्पतालों का ख़र्चा उठाये । पता है मित्रों जब मैं बचपन में शापिंग के लिए सिंगापुर जाता था तो मुझे एक बात का दुख होता था । जब सिंगापुर चमक सकता है तो एक सौ पच्चीस करोड़ का इंडिया क्यों नहीं । मित्रों मैंने कभी किसी चीज़ की कमी महसूस नहीं की । मुझे पता है कि अगर आपकी लाइफ़ से कमी दूर कर दूँ तो कितना आनंद आएगा । आप भी सपने देखने लगोगे । और ये सोच एक अमीर घर में पले बढ़े मेरे जैसे नेता में ही आ सकती है । जो ग़रीब रहा वो क्या जानेगा अमीरी का सुख ।
मित्रों विरोधी मेरा मज़ाक़ उड़ाते हैं । मैं सरकारी स्कूल में नहीं गया । भूख क्या होती है नहीं जानता । ये सही नहीं है । भूख मुझे भी लगती है । क्रेविंग समझते हैं न । डोम्नोज़ पित्ज़ा की क्रेविंग होती थी । पापा अलग अलग दुकानों में कार भेज देते थे । जहाँ से जल्दी मिले वहीं से ले आओ । उसी को देखकर डोम्नोज़ ने थर्टी मिनट में होम डिलिवरी शुरू की । अरबों का कारोबार हो गया । फ्रैंड्स, मैं समझता हूँ आपको साथ क्या गुज़रती होगी । मैं महानगर में पला बढ़ा । क्या भारत महानगर में नहीं है । क्या वोट के लिए विरोधी दल माँ भारती के ऐसे टुकड़े करेंगे । क्या भारत बिना महानगर हुए चीन का मुक़ाबला कर सकता है । क्या सिर्फ स्लम ही भारत है ।
मैं उस पोलिटिक्स के ख़िलाफ़ हूँ जिसमें नेता अपनी ग़रीबी बताते हैं । भई पब्लिक को ये बताओ न कि आपकी ग़रीबी कैसे दूर हुई । कहाँ से पैसे आ रहे हैं महँगी रैलियों के । आइडियाज़ शेयर करने पड़ते हैं लोकतंत्र में । लोकतंत्र चलता है विज़न और आइडियाज़ से । हर नेता को ट्विटर पर युवाओं को बताना चाहिए कि उन्होंने अपनी ग़रीबी कैसे दूर की । यह सही है कि मेरे पास मनीष मल्होत्रा के एक से एक डिज़ाइनर कुर्ते हैं । यहाँ युवा बैठे हैं । आप में से कितने फ़ैशन करते हैं । सब करते हैं । ये जवाब है आज के युवा का । तो मित्रों एक अच्छे नेतृत्व के ज़रूरी है एक अच्छा कुर्ता । जब आप खुद अच्छा नहीं पहनोगे तो दूसरों को क्या पहनने के सपने दिखाओगे ।
फ्रैंड्स ये पहली बार होने जा रहा है । मैं देख रहा हूँ कि भारत में एक अंधड़ चल रही है । पहली बार अमीरी में पैदा हुए, मेट्रो में ऐश की ज़िंदगी जीने वाले एक नेता में लोग अपना भरोसा ज़ाहिर कर रहे हैं । अभी तक इंडिया में सारे लोग अपनी ग़रीबी बेचते रहे हैं । चुनाव आते ही सारे नेता खुद को दे दाता के नाम तुझको अल्ला रक्खे गाने लगते हैं । जनता ने ऐसे नेताओं को नकार दिया है । मैं पूछना चाहता हूँ मेरे ग़रीब नेताओं तुम्हारी ग़रीबी दूर हो गई बाक़ियों की कब होगी । ग़रीबी कौन दूर करता है । ग़रीब या अमीर ? पैसा हमारा और राज तुम्हारा नहीं चलेगा । मैं सभी ऐसे युवाओं से गिल्ट फ़्री पोलिटिक्स में आने की अपील करता हूँ । ये नेता हम जैसे खाते पीते घर वालों को पोलिटिक्स से दूर करना चाहते हैं ।
मित्रों क्या यह मेरा अपराध है कि मेरा बचपन ग़रीबी में नहीं बीता । क्या उद्योगपति का बच्चा होना अपराध है । मैं विरोधी दलों से पूछना चाहता हूँ कि क्या वे उद्योग नहीं खोलेंगे । क्या वो किसी को अमीर नहीं बनने देंगे । क्या अमीर को चुनाव नहीं लड़ने देंगे । हमसे चंदा पर हम नेता नहीं । ये नहीं चलेगा । मुझे कोई गिल्ट नहीं कि मैं खाता पीता घर का हूँ । क्या मेरी कोई राजनीतिक पहचान नहीं । ये जो नेता स्टोरी बेच रहे हैं बहुत हो गया । फाड़ के फेंक दीजिये ऐसी स्टोरी को । मैं भारत का भविष्य हूँ । मुझे और मेरी पार्टी को वोट दीजिये । मेरे दादा जी कहते थे जो कंपनी नहीं चला सकता वो देश क्या चलायेगा । कंपनियाँ ही पीछे से देश चलाती हैं । जिसको दूध बेचना है बेचे पपीता बेचना है बेचे । रिटेल चेन में काम करके महान बन गए और हम जो पोलिटिक्स की असली मैन्यूफ़ैक्चरिंग करते हैं वो राज न करें । रोयें अपने अतीत पर और ये गायें अपनी ग़रीबी पर । नहीं होने देंगे । गर्व से कहो हम अमीर हैं ।
आपका एक ग़ैर ग़रीब बट अमीर उम्मीदवार,
रवीश कुमार'एंकर'
44 comments:
accha vyang bahut badiya bhaiya
सम्यक कटाक्ष..
aap yahan to apni neutrality chhod hi sakte hai . Sidha war kijiye . Hamare bhavi pradhan mantri log kitne ghatiya hai aur kitni ghatiya batein kar rahe hai , inki tikhi aalochna honi chahiye . Aur agar aap nahi karenge to kaun karega . Ya aap bhi market me ghise pite hue hai . Aisa maloom hota hai kehna bahut kuchh chahte hai , keh nahi pate .
Shukriya .
बहुत अच्छा रवीश भाई.. जियो
ये तो मनोहर कहानियाँ जैसा लगा...मजेदार ! ;)
Kaheke le rahe hai sir :D
raveesh bhai
sidha sidha naam lo.darte kyon ho.KYA NAUKRI JANNE KA DARR HAI YAN NDTV KE CEO NARAJ HO JAYENGE.YA CONGRESE KHEME ME SUNAMI AA JAYEGE.
JIYO RAVEESH KUMAR JIYO
पार्टी का नाम - पीपुल्स पिज़्ज़ा पार्टी ।
चुनाव चिन्ह - $ का निशान ।
सर आपका ये कटाक्ष नाथूराम गोडसे द्वारा अदालत में दिये गये उनके भाषण (?) से प्रेरित लग रहा है। शब्दावली का उपयोग व लिखने का सलीका बिल्कुल वैसा ही लग रहा है।
वैसे नाथुराम के अंदाज में राहुल गाँधी का बखान करना अच्छा ही लगा है सर।।।।
क्या बात है! आजकल सबलोग $ से प्रभावित हो रहे है ;)
Goood... kafi dino baad apki ye post acchi lgi
सपने देखने-दिखाने का दौर है...दिखाने वाले भी खुश ...देखने वाले भी खुश..अच्छा है...
मेरे दादा जी कहते थे जो कंपनी नहीं चला सकता वो देश क्या चलायेगा । कंपनियाँ ही पीछे से देश चलाती हैं । wah sir very true line...excellent.......
http://blogs.navbharattimes.indiatimes.com/triptishukla/entry/political-impact-on-public-life
please read this post also... she wrote fab.
भाजपा का एक ओर उन्माद-
http://www.bhaskar.com/article/MAT-HAR-PAN-c-85-402243-NOR.html
मां ने कहा आज तुम अपनी कहानी सुनाओ। इसलिए आज मैं अपनी कहानी सुनाऊंगाः शहजादा
अब आते हैं अंदर की खबर पर। असल मा मइया ता बहुतै डर गई रहैं। जैसे ही शहजादे ने आकर बोला कि मां ये रही कल के भाषण की स्क्रिप्ट, वैसे ही मां का चेहरा पीला पड़ गया और मां ने कहा, देख लाडले, तू कल कुछ भी बोलना बस ये मत बोलना कि मां रोई थी। तू लिखवा के कुछ ले जाता है, और नाम वहां मेरा ले लेता है। तूने मुझे कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा रे पगले। अब तो मेरा नाम ही रोनिया गांधी पड़ गया है। मीटिंग से उठकर वॉशरूम भी चले जाओ तो पार्टी सदस्य सोचने लगते हैं कि क्या मैडम रोने गई हैं।
इसलिए लाडले, तू दादी, पापा, चाचा, मामा, मौसा, नौकर, चाकर, डॉगी, पूसी..किसी का भी नाम ले लियो लेकिन बस मेरा नाम न लियो। और क्या ही अच्छा हो कि तू अपनी ही कहानी सुना दे। मेरी कहानी तो तूने बहुत सुनाई। अब कुछ अपनी भी बता दे। मेरे आंसू तो बहुत निकाले, अब कुछ अपने भी बहा दे। शहजादे के दिमाग की घंटी बज गई और उसको मां की ये बात जम गई। बस, फिर क्या था, उसने आव देखा न ताव और लिखवा डाली महास्क्रिप्ट। एकता कपूर इस बार डबल सकतिया गई हैं। पिछली बार तो शहजादे ने ट्विस्ट एंड टर्न के मामले में एकता को टक्कर दी थी, इस बार तो इमोशंस का वो पनाला बहा दिया कि एकता के सीरियल्स के सारे इमोशन मिलकर भी इस पनाले का मुकाबला न कर पाएं। सुना है कि घबराकर एकता उस इंसान को ढूंढ़ रही हैं जो शहजादे की स्क्रिप्ट लिखता है। अगर वह मान गया तो ठीक नहीं तो एकता अपने लिए कोई साइड बिजनस प्लान कर लेंगी।
अब जैसा कि हमेशा होता है, शहजादे के पास केवल अपने बारे में तो बताने को तो कुछ खास था नहीं, इसलिए स्क्रिप्ट राइटर ने स्क्रिप्ट को दमदार बनाने के लिए इसमें उनके पापा और उनकी दादी नामक पंच डाल दिया। रचनाकार ने भावनाओं के धागे में घटनाओं को पिरोकर शहजादे की कहानी का जो ताना-बाना बुना, उससे तो सबकी आंखें लबलबा आईं। इस लबलबाहट के बीच उन हजारों लोगों की वह बौखलाहट कहीं दब कर रह गई जिन लोगों के अपने शहजादे के अपनों की वजह से अपने अपनों से बहुत दूर चले गए थे। शहजादे की दादी की हत्या हो तो उसका दुखी होना बनता है। शहजादे के पापा की हत्या हो तो भी उसका दुखी होना बनता है। लेकिन वे हजारों लोग क्यों दुखी हों जिनके अपने खुद उस शहजादे के अपनों के दुख की प्रतिक्रियास्वरूप मारे गए थे। भई वे तो छोटे-मोटे झाड़-झंखाड़ हैं न, जिनको किसी बड़े दरख्त के गिरने पर दब ही जाना होता है, मर ही जाना होता है।
और झाड़-झंखाड़ भी क्यों, कीड़े-मकौड़े कहो, जो आपके अपनों के इमोशंस के पनाले में बहकर कहां चले जाते हैं किसी को पता भी नहीं चलता। उनके अपनों को कहां ये डर सताता है कि कल को वे भी मर गए तो? असल में उनके पास इस डर को देने के लिए समय ही कहां है। वे अपनी दो रोटियों के जुगाड़ में इतने व्यस्त रहते हैं कि मौत आती भी है तो उससे ठीक से मिल भी नहीं पाते और मरने के बाद भी जिंदा रह जाते हैं, अपने जैसे ही दूसरे अपनों में, जिनके कंधों पर उनके अपनों की जिम्मेदारी उतर आती है। आपके अपने मरते हैं तो आपको बहुमत की जीत दे जाते हैं। क्योंकि आपके अपने इस देश की जनता को भी इमोशनल कर जाते हैं। आपके अपने की एक मौत, बाकियों के अपनों की हजारों मौतों पर भी भारी पड़ जाती है। आपके अपने की मौत से आपकी राजनीति चमक जाती है। बाकियों की तो पूरी जिंदगी ही उनके अपनों की मौत को जीने में गुजर जाती है।
दूसरी पार्टियां लोगों को आपस में लड़वाती हैं, इसलिए आप उनसे खफा हैं। आपकी पार्टी सही है, लोगों को लड़वाती नहीं, सीधे मरवा देती है। लोगों को इस जीवन से मुक्त करना हो तो आपकी पार्टी के कर्मठ कार्यकर्ता सहर्ष मुक्ति प्रक्रिया की जमीन तैयार करने के लिए पहुंच जाते हैं। फिर इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि यह प्रक्रिया आपकी पार्टी के सिंहासन वाले राज्य में होनी है या किसी और राज्य में। वे कहीं, कोई भेदभाव नहीं करते। और महानता तो देखो, इस मुक्ति का खुद श्रेय भी नहीं लेते, सब दूसरी पार्टी के अपने सहयोगियों में बांट देते हैं।
लोगों की यह मुक्ति उनके जिन अपनों को जीवन भर के लिए बांध जाती है, उनके पास तो जी भर के रोने का भी समय नहीं होता। पता है क्यों? क्योंकि उनको फिकर जो करनी होती है। फिकर अपनी आगे की जिंदगी की, जिसे किसी अपने की मौत से उपजी लड़खड़ाहट के बाद फिर खड़ा करना है। क्योंकि अपनी मौत आने तक कैसे भी करके उन्हें जिंदा जो रहना है। दुख तो आप जैसे मनाते हैं, क्योंकि आपके पास वंश है, आपके पास उपनाम है। आपके पास ही तो दुख-सुख मनाने का काम है
दूसरी पार्टियां लोगों को आपस में लड़वाती हैं, इसलिए आप उनसे खफा हैं। आपकी पार्टी सही है, लोगों को लड़वाती नहीं, सीधे मरवा देती है। लोगों को इस जीवन से मुक्त करना हो तो आपकी पार्टी के कर्मठ कार्यकर्ता सहर्ष मुक्ति प्रक्रिया की जमीन तैयार करने के लिए पहुंच जाते हैं। फिर इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि यह प्रक्रिया आपकी पार्टी के सिंहासन वाले राज्य में होनी है या किसी और राज्य में। वे कहीं, कोई भेदभाव नहीं करते। और महानता तो देखो, इस मुक्ति का खुद श्रेय भी नहीं लेते, सब दूसरी पार्टी के अपने सहयोगियों में बांट देते हैं।
बहुत ही बढ़िया ।
Ravishji ap se achha blog to chandan kumar ne likha he wah bhai apne to Congi dalal ki bolti bandh kar di sale amir to he nahi or dalali ke pesse chat k amir banne chale he dekhona apne mulak me kis prakar ki ghatiya soch vale insan pale he .chandan bhai hum sab apk abhari he ki apne kitni sahibat batai he thanks again.
Ye ghatiya soch vale sudharne vale he ho nahi mgar inka bhi dosh nahi he kyuki kutte ki dumm ko sidha nahi kar dakte isi tarah wo chahe to bhi ghatiya soch badl nahi sakte kyuki jo congi ke dalali ke rupee milane ki ummid me wo apno ko bhi bhul jate he sale bikauo . Biko bhai apka bikne ka time he hame koi paresani nahi he ap niche giroga hume kya? Ban jao amir sale manke bhikhari
chandan singh ji aapne bejorcomment likha hai.
kal ka PT dekhi .aapki dhar kaha chali gai.ab to kebal abhay ji ke vichar sun ne ke liye hi PT dekhati hoo.mere kahne per mere kuchh friend PT dekhne lage the .ab to mujhe hi ulahna sun ne padti hai.
Purvanchal me ek bahubali chunaav me khada tha to maine us ilake ke apne ek friend se puchha tum log usko vote kyu dena chahte ho.to uska jawab tha wo bahubali hai aur sirf ameero ko pareshan karta hai gareebo ka wo badi madad karta hai....... maine kaha bahut sahi mere gareeb dost tum kabhi ameer mat banana...
Ab mujhe apne aap pe garv ho raha tha ki mai ameer hu tabhi bahubaliyo ko vote nahi deta..
ह्रदय विदारक ।। पप्पू गन्धि ने आम आदमी को कीड़े मकोड़े से भी बदतर समझ रखा है।
रविश जी ...हमेशा की तरह ये ब्लॉग भी जबरदस्त...
बहुत गंभीर बात को lightly ऐसे ही कहा जाता हैं..
Chandan ji ने direct satire mara हैं..तारीफ़ के काबिल हैं..
कुछ भी हो पर आपका ये ब्लॉग नेटी घुडसवारों को जबरदस्त लगा होगा,आज तो आपकी तारीफ कर रहे होंगे
कुछ भी हो पर आपका ये ब्लॉग नेटी घुडसवारों को जबरदस्त लगा होगा,आज तो आपकी तारीफ कर रहे होंगे
sir mai aap se ek question puchana chahta hu ki aap ye bataye ki kya aaj apna desh vikalphinta ka shikar hai ? agar hame 100 me kisi ek ko chunana ho aur usme sabhi par aarop ho to aap kya karenge ? ab right to reject ka use mat kariyega .... aap usi ko chunange jo jis aarop kam ho ..... to phir aaj aap apne desh ki rajneeti ko itna saaf kaise dekhte hai ? aap ko to inhi me se chunana hoga .... isliye jiska virodh karte usese accha vikalp aap ke pass kya hai ..... ab aap kahenge arvind ji lekin aane me abhi thoda waqt hai ..philhal 14 ke liye unhi se kam chalaiye jiska aap virodh karte hai ..... aap ke har ek baat me unka ka virodh hota hai...
Kya bolu sir g akjal inhe sunkar aisa lagta hai ki kya humlog itne bebkoof hain?Unki bhasha mein "nonsense" he bhagwan kahin hume v phar k na phek deinn........
एक दम उम्दा लिखा हैं ।
क्या बात है!!
ab yahan kya comment karun sir ji....lgta h aapke blog pe b twitter k hmlawar aa gye h. sb log apna swarth dekh rhe h k meri party ki sarkar aa jaye to apna bhala ho jaye..desh jaye bhaad me.jis din PT me aap congressiyon ko lapet lete ho tb to BJP k supporters aapke fan ho jate h..aur jis din BJP ko lapet lete ho us din to........
Aap ek achhe aur jimmedar anchor ho..aur mere adarsh b. Likhna jari rakhen. Hum aapke sath h.
Anil Nehra
वाह सर, इससे शानदार क्या लिख पायेगा कोई, सांप भी मर जाये लाठी भी ना टूटे,,, उत्कृष्ट
वाह सर, इससे शानदार क्या लिख पायेगा कोई, सांप भी मर जाये लाठी भी ना टूटे,,, उत्कृष्ट
गरिबी तो ............एक मन की अवस्था है........इसलिये गर्व से कहिये की हम अमिर है.......क्योकि ७०% लोग तो गरीब है ही........लेकिन वो गरीब क्यो है .....पता भी है ...इसलिये अपको कहना पेड़गा की.... हम अमिर है ॥
Sir ji kafi kuch smjh nahi aaya but
Kuch aaya
Lekin jo commnt kiya hai is rajneeti par
Bas pure bharat ki vytha samet li
Sir maja aa gaya.
Sir maja aa gaya.
रवीश सर जी,जो सच्चाई के रास्ते पर चलने वाले नेता हैं, उन्हें कोई पसंद नहीं करता। यक़ीन मानिए । क्योंकि न वे खुद पैसा खाते, न खाने देते । गलत काम वे नहीं करेंगे तो आम पब्लिक के काम कैसे होंगे? आजकल तो गाँव के लोग भी पैसा लिए घूमते हैं नौकरी लगने के लिए। ईमानदारी से बताओ कि आपका काम ज़ायज नहीं तो वे पैसे लेने वाले नेता के पास पहुँच जाते हैं । ईमानदारी कायम रखना कोई मज़ाक नहीं, बहुत कठिन कार्य है । आपको, आपके घर के लोग भी पसंद नहीं करेंगे क्योंकि उनको भी अनाप शनाप पैसे कमाने वाला चाहिए । एक अपने पर बीती हुई सच्चाई ।
रवीश सर जी,जो सच्चाई के रास्ते पर चलने वाले नेता हैं, उन्हें कोई पसंद नहीं करता। यक़ीन मानिए । क्योंकि न वे खुद पैसा खाते, न खाने देते । गलत काम वे नहीं करेंगे तो आम पब्लिक के काम कैसे होंगे? आजकल तो गाँव के लोग भी पैसा लिए घूमते हैं नौकरी लगने के लिए। ईमानदारी से बताओ कि आपका काम ज़ायज नहीं तो वे पैसे लेने वाले नेता के पास पहुँच जाते हैं । ईमानदारी कायम रखना कोई मज़ाक नहीं, बहुत कठिन कार्य है । आपको, आपके घर के लोग भी पसंद नहीं करेंगे क्योंकि उनको भी अनाप शनाप पैसे कमाने वाला चाहिए । एक अपने पर बीती हुई सच्चाई ।
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