घुड़सवार काले रंग के लिबास में केसरिया हुआ जा रहा है । रा़यसीना का सीना चीर रहा है । घोड़े के टाप से जंतर मंतर उड़ गया है । इंडिया गेट पर बरस रही बूँदों के बीच दोनों ने एक दूसरे को जकड़ लिया है । हम सत्ता के इस बँटवारे में नहीं बँटेंगे । घुड़सवार हो या पैदल सेना दोनों में भर्ती नहीं होंगे । तुम कहती हो तो आसान होगा । मगर अब जब हर कहना एक झूठ है, सत्य भी एक झूठ है । तुम्हारा सत्य भी घुड़सवार रौंद चुका है । उसे दिल्ली चाहिए । क्या तुम कुछ भी नहीं कर सकते । नहीं । इसलिए नहीं कि असहाय हूँ । इसलिए कि मैं यही चाहता हूँ । देखना चाहता हूँ कि घोड़ा कब तक हिनहिनाता है । कितनों को रौंदता है । उसकी थकान का इंतज़ार कर रहा हूँ । जैसे मैंने तुम्हें जकड़ने के लिए बारिश की बूँदों का इंतज़ार किया है । चलो हमारा करावल नगर ही अच्छा है । वहाँ कम से कम घोड़े नहीं हिनहिनाते हैं । रा़यसीना की तरह गलियों का सीना फटा नहीं है । दलदल है वहाँ । वहाँ ख़ून का पता चलता है न पसीने का । चलो यहाँ से । हम इंडिया गेट कहीं और बना लेंगे ।
(२)
उसने एलान करवा दिया है आज अपने सोशल रेडियो पर । मुझे सत्ता दो । मुझे सत्ता दो । चिल्लाते रेडियो का वोल्यूम तेज़ कर वो गलियों की तरफ़ भागी । रात टीवी की चिल्लाहट ने उसे थका दिया था । बिस्तर के नीचे रखी उसकी डायरी का एक पन्ना हाथ में रह गया । प्रिय प्यारे, तुम्हारे प्रेम में ऐसा क्यों होता है िक दूसरे को देख मेरा ख़ून खेलने लगता है । तुम कौन सा ज़हर घोल देते हो । मैं नफ़रत से भरती जा रही हूँ । क्यों चाहिए किसी का क़त्ल तुम्हारी निष्ठा के लिए । ये हक़ की कौन सी अदा है जो तुम्हारे साथ साथ मुझे भी अहंकारों से लैस करती है । क्या तुम्हें बिल्कुल किसी की मौत का अफ़सोस नहीं होता ? क्या तुम्हें मेरी मौत का भी नहीं होगा ? खत हाथ में लिये वो भागी जा रही थी । हर घर से सोशल रेडियो चिल्ला रहा था । इसे सत्ता दे दो । इसे सत्ता दे दो । यह भूखा है । इसकी आंत में आँच है । सोलर आँच । ख़त का जवाब कैसे मिलेगा । वो तो जल चुका है । मैं क्यों जल रही हूँ तब ।
12 comments:
Samajh aaye ya nahin, zahir yeh kavya hai.
Itna spasht hai ki manch pe chale natak ka anjaam kya hoga bataana na mumkin hai.
इस बार बहुत दिनों बाद लप्रेक आई :) शुक्रिया सर
"लघु प्रेम कथा" ~ A romance of power ! ;)
बड़ी देर बाद....... बड़ी दूर तक...... बहुत ही शानदार कलमकारी...... छोटी कर दीन्ही सबन पिचकारी ............ अद्भुद
न जाने कितनों को देखा है, सत्ता के इन प्रतीकों ने, इन्हें कभी प्रेम को समझना नहीं आया है।
kshama chahungi Ravish sir, abodh hu nadan hu, aapki rachna ko samjhne me nakam hu, Ek to prem namak shabd samajh se pare, uspe aapki uchch shreni ki kalpnikta, apne vichar vyakt karne me akshmta or asahjta ka ehsas kra rhi hai....
Bahut tough likha Sir aapne. Samajh nahi aa raha khas. Shayad hum jaise sadharan logo ko samjh nahi aayega.
Sir aap facebook par ab jyada active nahi rahte hai
Bahut tough likha Sir aapne. Samajh nahi aa raha khas. Shayad hum jaise sadharan logo ko samjh nahi aayega.
आज का या यूँ कहें सदा का सच लिए...
सत्ता का प्रेम ...नफरत से भरा हुया ।
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