कोई गाना पहली बार अच्छा लगता है तो लगता है इसे मैंने क्यों नहीं लिखा, इसे मैंने क्यों नहीं रचा, इसके धुन मुझे ही तैयार करने थे पर मैं था कहां। आज सुबह सुबह एक ऐसा ही गाना कानों के हाथ लग गया। ज़ुबान पर चढ़ गया। इशक्क नाम की कोई फिल्म है। आने वाली है। गाने की शुरूआत कुछ यूं होती है...
"भागन के रेखन की बहंगिया, बहंगी लचकत जाए, भेजो रे काहे बाबा, हमका पीहर से, बिटिया से बन्नी बन कर कहां पहुंचाये, सहा भी न जाए, का करे हाय, कहां खातिर चले रे कहरिया, बहंगी कहां पहुंचाये, "
मालिनी अवस्थी और रघुवीर यादव इस गाने में क्या कर रहे हैं। हैरानी से सुनता चला गया। मालिनी अपनी आवाज़ की बेहतरीन मोड़ पर गाती सुनाई दे रही हैं। जैसे ही बहंगी लचकत जाए सुनाई पड़ता है मन भावुक होने लगता है। ये छठ के गीत गात रही हैं। वाह छठ के गीत को कोई नया मोड़ देने वाली हैं। बिहार और उत्तर प्रदेश का जो तबका छठ से गुज़रा है वो उसके संगीत से भी रगड़ खाया हुआ है। आज भी शारदा सिन्हा का सुगवा के मरले धनुख से...बजा दीजिए,गा दीजिए, जुलाई हो या जनवरी आपके भीतर नवंबर नाचने लगता है। छठ का महीना। हम इस पर्व और इसके गीतों को अपने बिहारीपन में जाने कब से ढोते आ रहे हैं। कैसे आ गया कंधे पर पता नहीं। पर इसी कारण इस गाने की पहली दूसरी लाइन भावुक करने लगी है। आंख डबडबा गया था जी। फिर हैरानी बढ़ती है। ये तो छठ नहीं है। ये तो शादी का गीत है। बन्नी और बिटिया क्या कर रही हैं इसमें। अपने मां बाप से क्यों वेदना प्रकट कर रही है कि मेरी लिए क्यों डोली मगंवाई, क्यों बारात आई है। कितने जतन से बांहों के पलने में तुमने हमको झुलाया था। रघुवीर मालिनी की जगह लेते हैं और म्यूज़िक नेपथ्य में। एक आवाज़ गूंजती है...
"काहे डोली बनवाये अम्मा मड़वा छवाये "
मालिनी की आवाज़ किस कदर निखरती है बता नहीं सकता। लोक गीत के भाव को ऐसे थामे रखती है उनकी आवाज़ कि ऐसा लगता है कि गाज़ीपुर के किसी गांव से टांगा चला आ रहा है। बेटी की विदाई की वेदना को लादे। क्या संतुलन साधा है मालिनी ने। मुझसे रहा नहीं गया। बार बार सुना। मालिनी को संदेश भेजा और फोन आ गया। लेकिन जादू कम ही नहीं हो रहा है। लोकगीत को वो भी एक खास धार्मिक गीत को किस तरह से शादी के गीत में ढाला गया है लाजवाब है। लोक संगीत के एक प्रसंग को दूसरे प्रसंग में ढालना आसान नहीं होता। दोनों प्रसंगों की आत्मा बरकरार है। मालिनी ने बताया कि आरा के हैं निदेशक मनीष तिवारी। स्टीफंस के पढ़े हैं। कस्बा और कास्मोपोलिटन का संतुलन शायद मनीष ने इन्हीं दो दुनिया से सीखा होगा।
"मामा को लूटेगा चाचा खीसीआयेगा। बहनों को ठुमका लगाता लाएगा। काला पीला टेढ़ा मेढ़ा बन्ना ऐसा बाराती लाया रे। का करे हाय । कहां चली जाए। बन्नो शरम से मर मर जाए। "
रघुवीर गा रहे हैं। पीछे से मालिनी चली आ रही हैं अपनी आवाज़ में छठ लिये। कृष्णा ने संगीत दिया है। दक्षिण भारतीय हैं । तीस साल से कम उम्र का यह संगीतकार बिहार के लोकपर्व के धुन को इतने सम्मान और बारीकि से उतारता है कि दिल भारतीय हुआ जाता है। हमीं समझ सकते हैं अपने दक्षिण को और दक्षिण ही समझ सकता है अपने उत्तर को । यह गाना बिल्कुल नया संस्कार रच रहा है। आप शादी के ऐसे धुन और गाने से साक्षात्कर कर रहे हैं जो बिल्कुल नया है। इस गाने को बार बार सुनियेगा। एक बार गाने के बोल के लिए। एक बार मालिनी और रघुवीर की आवाज़ के अंतर्मन को समझने के लिए और एक बार सिर्फ संगीत के लिए। कैसे शहनाई और गिटार संगत करते हैं।
मैं गाने का समीक्षक नहीं हूं। पर गानों को इसी भावुकता से सुनता हूं। हिन्दुस्तान में फिल्म समीक्षक मिलते हैं जो शुक्रवार को आते हैं और शुक्रवार को ही चले जाते हैं। गानों की समीक्षा कोई नहीं करता। प्रकाश के रे और अविनाश ने अपने फेसबुक पर इस गाने को साझा किया था। हमने कई बार सुन लिया है। सबका शुक्रिया। मनीष तिवारी के इस हौसले का और मालिनी की आवाज़ का। शुक्रिया शारदा सिन्हा जी का भी। वो अगर इस बहंगी को नहीं ले आई होती तो मालिनी और मनीष कैसे उसे उठाते। कैसे हमारे पास नए अंदाज़ में लाते।
20 comments:
इतनी लहरावदार मिठास भला कहाँ मिलेगी।
Wahh, kya baat..!! :)
Congrats for venturing into a new genre of writing :- "Song Review"
Vakay hi khoobsoorat rachna hai jis mein lok jeevan ki jhankar hai jo ki filmi duniya mein to kabhi nahin ke baraabar suni hogi....
लोक गीतों की भी समीक्षा होनी चाहिए.
'गाने की समीक्षा' ये बहुत अच्छा रहा,सर :) वैसे इसी फिल्म का एक गाना "झीनी रे झीनी" नीलेश मिश्रा ने लिखा है.
बहंगी लचकत जाए ,के आगे तो जैसे कुछ सुने ही नहीं छठ की खुशबु ने घेर लिया .हाँ विदाई का तांगा और गीत के बोलों से आता दर्द जरूर महसूस हुआ
chhath ki baat hi nirali hai...is tyavhaar ka bada gahara prabhaav rahta hai hamari jeevan par...mano ye tyavhaar nahi ek jeevan ka ansh hai......iski sangeet,iske drishya..iske mausam..iske ritu...sab kuch khaas hai....is dhun ka itna prabhaav hai ki malini ke awaaz sunte hum kho gaye....baar baar sunne ke baad hi dusra arth mastishq jaan payega....
Maliniji ka Avadhi Loksangeet main to koi jawab hee nahi. "Sainya mile larikaiya" to unka sabse lokpriya Lokgeet hai.Pandit Girija Devii jkee shishya rahee hain. Isliye unhone apna ek level maintain kar rakha hai. Aajkal Maliniji UP ke lupt ho chuke Loksangeet kee tamam vidhaion ko dhoodhne aur unko surkshit karne main lagee hue hain.Ravishji apko ek salah hai ki aap Lucknow wale Kamal Khan sahib se AIR LUcknow ke ek purane kalakar rahe hain Niyamat Ali sahib ke gaye CD mangwayeye 100% guarantee hai Mast ho jayeyga. Vaise Maliniji ke sath HUMLOG ka ek episode to ho hee sakta hai.
Kuch gaane kaan ko sukoon dete hai aur kuch dil ko aur kuch gaane hote hai jo aatma ko sukoon dete hai.
Ye gana aatma ko sukoon dene walon mein se tha. Shukriya RavishJi mujhe is gaane se awgat karane ke liye.
वाह मज़ा आ गया। ये भी सुनिएगा, (शायद पहले भी सुना हो) - "हमनी के छोरी के नगरिया ऐ बाबा " http://www.youtube.com/watch?v=-RUUOsQ82O4
बहुत ही खूबसूरत गीत है वाकई |
इस गीत को साझा करने के लिए धन्यवाद रवीश जी|
छठ और नवंबर, दोनों , मेरे अंदर भी कुलबुलाने लगे है. सुनकर ऐसा लगता है जैसे गुड का ठेकुआ छना रहा है कहीं.
काफी 'पगलपन्ति' भरे दिनों के बाद, पैराग्राफ बदल कर पढने में मज़ा आया|
लिखते रहिये।
आज के भ्रष्ट्राचार से मीडिया भी अछुता नहीं है , आपने भले ही आज जनसंचार में PH.D कियों न कर राखी हो लेकिन आज का मीडिया तो उसी फ्रेशर को नौकरी देता है जिसने जनसंचार में डिप्लोमा इनके द्वारा चालए जा रहे संसथान से कर रखा हो .. ऐसे में आप जनसंचार में PH.D करके भले ही कितने resume इनके ऑफिस में जमा कर दीजिये लेकिन आपका resume तो इनके द्वारा कूड़ेदान में ही जायेगा क्यों की आपने इनके संस्थान से जनसंचार में डिप्लोमा जो नहीं किया है ..आखिर मीडिया क्यों दे बाहर वालों को नौकरी ? क्योंकि इन्हें तो आपनी जनसंचार की दुकान खोल कर पैसा जो कमाना है .आज यही कारण है की देश के इलेक्ट्रोनिक मीडिया में योग्य पत्रकारों की कमी है .. केवल चेहरा देकर ही ऐसी -ऐसी महिला न्यूज़ रीडर बैठा दी जाती है जिन्हें हमारे देश के उपराष्ट्रपति के बारे में ये तक नहीं मालूम होता की उस पद के लिए देश में चुनाव कैसे होता है ..? आज इलेक्ट्रोनिक मीडिया के गिरते हुए स्तर पैर प्रेस कौसिल ऑफ़ इंडिया के अध्यक्ष भी काफी कुछ कह चुके है लेकिन ये इलेक्ट्रोनिक मीडिया की सुधरने का नाम ही नहीं लेता ….इलेक्ट्रोनिक मीडिया तो पैसों से खेलने वाला वो बिगड़ा बच्चा बन चुका है जो पैसों के लिए कुछ भी कर सकता है .
धन्यवाद .
राहुल वैश्य ( रैंक अवार्ड विजेता),
एम. ए. जनसंचार
एवम
भारतीय सिविल सेवा के लिए प्रयासरत
I need reply by raveesh ji
मैने भी ये संगीत सुना, एकबारगी तो मुझे भी लगा कि जैसे ये तो छठ का ही गीत है, परंतु जैसे जैसे आगे सुना गया लगा जैसे अपने गांव में पहुंच गया; गांव की गलियां वहां के शादियों में बजने बाले गीतें गुंजने लगी; वाकई मालिनी एवं रघुवीर जी ने अदभुत रूप से अपने स्वरों को पिरोया है;
Ravish ji bahut dhanywad. maine bhi yeh gaana baar baar suna bahut achha laga. roj raat 9 baje badi baichaini se intezaar karta hoon aake primetime ka ndtv. bahut zabadast bolte hai aap...
Ravish ki Report ka besabri se intezaar hai. Jald se use leke aaiye...TV joh ki ab bore marta hai..usme aapka yeh program jaan bhar dega...internet pe video dekhta hoon...puraane Ravish ki Report ki...
Main aur meri wife dono aapke bahut bade fan hai..roz sunte hai aapko primetime me...
sir namaskar, mera naam rubina saifi h, patrkarita k bussiness m nai hu abhi, apka blog lagatar padhti hu, acha b lagta h. mere man ki kai baate apke blog m padhne ko mil jati h, dhanywad
meethas bhara geet hai ye.., aur samiksha bhi behtareen.
अतुलनीय. सुंदर. रूलाने वाला.
आनंद सिंह
अतुलनीय.
अतुलनीय.
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