रोज़ाना जीये रोज़ाना मरे तेरी यादों मे हम । निशब्द का ये गाना बज रहा है । बार बार बज रहा है । आमिर और अक्षय के साथ उसके अभिनय के सीन चलाये जा रहे हैं । चैनल उसके बंद दरवाज़ों को कवर कर रहे हैं । रिपोर्टर बता रहा है कि दरवाज़ा बंद है । हम नाॅक कर रहे हैं मगर खुल नहीं रहा है । लोगों को पता है कि मीडिया को जवाब देना पड़ेगा इसलिए नहीं खोल रहे हैं । एक एंकर कहते हैं कि जिसका नाम जिया हो उसने ही जीने में कर दी आना कानी । निशब्द फ़िल्म थी जिया की इसलिए हर लाइन के बाद स्तब्ध की जगह निशब्द का इस्तमाल हो रहा है ।
हम क्रूर हो गए हैं । जिन पत्रकारों को इस धंधे में रहना है वे मेरी बात से बिल्कुल प्रभावित न हो बल्कि वही करने का इरादा करें जिसकी मैं आलोचना कर रहा हूँ । वे ऐसा ही करें किसी के मरने पर । मुझसे प्रभावित न हो जाएं वर्ना इस पेशे के किस सुरंग में धकेल दिये जायेंगे, पता भी नहीं चलेगा । इस मीडिया को आलोचना से कोई असर नहीं होता इसीलिए मैंने श्रीनिवासन को सपोर्ट किया था कि उसे इस मीडिया से कोई असर नहीं हुआ । पहली बार किसी ने खुलेआम मीडिया की तरह बिहेव यानी बर्ताव किया है ।
खैर । एक मासूम ज़िंदा चेहरा स्क्रीन पर तैर रहा है । उसके मरने की ख़बर हम उसकी चलती फिरती तस्वीरों के साथ देख सुन रहे हैं । दर्शकों की फंतासी में ज़िंदा और सेक्सी जिया को ठेला जा रहा है । कोई आँसू नहीं है । ग़म नहीं है । अजीब त्रासदी है । पचीस साल की मासूम लड़की । क्या ज़िंदगी रही होगी । सचमुच ख़ामोश हो जाने का वक्त है । मगर चैनल आपको नया संस्कार दे रहे हैं । आपके घर में कोई मर जाये तो उनकी वीडियो रिकार्डिंग निकाल कर मेहमानों को दिखाइयेगा और फिर उसके बाद श्मशान जाइयेगा । वीडियो न हो तो अल्बम निकालियेगा ।
ये क्या मीडिया समाज है । कहीं बेहूदा मनोवैज्ञानिक घटिया विश्लेषण दे रहे हैं तो कहीं उनके पुराने निर्देशक । आज सब सफलता को सुसाइड योग्य बता रहे हैं । इन सब बातों के बीच क्लिप चल रही है ।
शिखर को किसी तनाव का बखान हो रहा है ।
जिया मर गई है । काश वो लड़ती । और जीती रहती । हम सब से गुमनाम होकर । उसके बाद अब हम सब मिलकर उसकी बुज़कुशी कर रहे हैं । टीवी के सामने बैठकर अपने भीतर ज़िया का गला घोंट रहे हैं । ब्रेक के बाद ज़िया लौट आई है । बच्चन उसे पाइप से भिंगो रहे है ।
जिया हमें आपके इस तरह जाने का बेहद अफ़सोस है । वैसे
17 comments:
लोगों की संवेदनाए मर गई है... सच मै जीना इतना बहुत कठिन हो गया है...खास कर भयानक प्रोफेनलस और सांसरिक लोगो के बीच...
sab piplee live hai. TRP ke liye andhi daud.
रवीश जी कुछ ही समय से आपका ब्लॉग पढना शुरू किया है. बहुत जल्दी ही एडिक्शन हो गया है.वाकई बहुत खल्लास ढंग का कस्बाई लिखते हो. जलन भी होने लगी है की इतना बिंदास लिख कैसे लेते हो खटा खट. जिया के मरते ही तुरंत पोस्ट कर दिया जैसे कहीं से कट पेस्ट किया हो झटाक से.
Indian electronic media is heartless. It cannot see the tragedy in an incident, only TRPs for their channels.
आप ग़लत जगह पर हैं, रवीश. और ग़लत जगहों पर सही लोगों का होना अनिवार्य हो हो गया है अब.
दुःख. ज़िया के लिए सिर्फ़ दुःख. श्रद्धांजली नहीं. उसे लड़ना था.
Rip
मृत को तो मर्यादा के साथ विदा करें हम। वह इस विश्व में नहीं रहना चाहती थी, इस इच्छा का ही सम्मान करें।
सुना है जब क्राइस्ट सलीब ढो कर ले जा रहे थे बच्चे खेल रहे थे। दुनिया ने किसका रहे फना में दिया है साथ तुम भी चले चलो यूँ ही जब तक चली चले...
मैंने आज सबेरे हे ट्विटर पर लिख दिया था की अब जिया तो न रही पर आज मीडिया जिया के नाम पर खूब सर्कस करेगा। शायद बेचारी जिन्दा रहेती तो कभी ये मीडिया उसकी इतनी चर्चा नहीं करती। बड़ा उपद्रव मच रहे है ये लोग आज कल, पर क्या करे पब्लिक भी वाही देखना चाहती है भारत एक क्रूरता प्रधान देश है, मै अपने अगले ब्लॉग में डिटेल्स में इस बात को लिखूंगा।
सुन्दर आलेख रविश जी, एक २५ - २६ साल की लड़की जो इस मायावी दुनिया का तनाव न सह पाई और आत्महत्या जैसा कठोर कदम उठा लेती है , उसको कम से कम मरने के बाद तो सुकून की सांस लेने दो. आज जब हर बात का उत्सव मनाया जाता है तो क्यों न किसी की मौत का भी तमाशा बनाया जाय..बक्श दो यार उसको .. जीते जी तो उसकी कोई खबर नहीं मरने के बाद उसका सारा इतिहास भूगोल खंगाला जा रहा है .
आपके ब्लॉग की पता है कि क्या बात अच्छी लगती है कि जो आप लिखते हो वो सब कुछ हमारे दिल और दिमाग में घुमड़ता है पर शब्द नहीं दे पाता या कहो टाइम नहीं है शब्द देने का ! आपके ब्लॉग को पड़ने के बाद दिल को सुकून पहुचता है !
खैर जिया कि बात करे तो निशब्द जैसे बोल्ड विषय पर अमिताभ जी जैसे दिग्गज अभिनेता के सामने जिस आत्म विश्वास के साथ अभिनय किया था, वो तारीफ के काबिल था. वो लड़की इस माया नगरी में कुछ और मुकाम पाने कि योग्यता रखती थी पर वो क्या कहते है कि " हर किसी को मुक्कमल जहाँ नहीं मिलता, किसी को ज़मी तो किसी को आसमा नहीं मिलता "
ऊपर वाला जिया कि आत्मा , उसके परिवार, को शांति और संबल प्रदान करे
रविश जी,
आपसे एक अनुरोध है कि एक दिन आप ऐसा स्टोरी कवर करें कि जैसे कल जिया ने आत्म हत्या की, वैसे ही विगत कुछ सालो में नफीसा जोसफ , कुलजीत रंधावा , विवेक बाबाजी आदि कई प्रसिद्ध अभिनेत्रियों और मॉडल्स निराशा के भंवर में फसकर आत्म हत्या जैसा कदम उठाने पर मजबूर हो गई. आखिर इनके साथ ही ऐसा क्यों होता है! आज तक मुझे तो याद नहीं पड़ता की किसी पुरुष मॉडल्स ने या अभिनेता ने इस प्रकार का प्रयास भी किया हो और ताज्जुब की बात है कि दिव्या भारती से लेकर अब तक किसी भी घटना का खुलासा क्यों कर नहीं हुआ..! यह घटनाय एक राज बन कर दफ़न क्यों हो गई..
यह मेरा अनुरोध मात्र है, शायद ये आपको राष्ट्रीय मुद्दा न लगे लेकिन मानवीय मुद्दा तो है ही !!
प्रणाम
गिद्धों का पुनर्जन्म
रविश जी, गीता में कृष्ण ने कहा है - दूनिया में कोई किसी का नहीं है, सब अकेले आये है अकेले जाना है। सबके जीने मरने का दूसरों के लिया इस्तमाल होता है।
रविश जी, गीता में कृष्ण ने कहा है - दूनिया में कोई किसी का नहीं है, सब अकेले आये है अकेले जाना है। सबके जीने मरने का दूसरों के लिया इस्तमाल होता है।
सचमुच . बाजारू मीडिया सबकुछ बेच लेता है ,मौत को भी .
मैंने तो एक भी रिपोर्ट नहीं देखी लेकिन पिछले अनुभवों से आश्वस्त हूँ कि ऐसा ही कुछ चला होगा..सरस सलिल टाइप की मीडिया है ये ।
मीडिया अपने आप को चौथी जागीर बताता हे। क्या यही हे उनकी जागीरदारी की देश में कोई एक घटना घटी तो उसके लिए कुछ दिनों तक एसा हल्ला मचाया जाये की देश की एक मात्र समस्या यही हे फिर कुछ दिन पश्चात कोई नया मुद्दा और पहले वाली बात से किनारा। किसी भी व्यक्ति ने आत्महत्या करने का निर्णय किस हालात में लिया होगा यह भूल कर मीडिया उसे बार बार मारती हे।
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