रघु राय का जादू न होता तो बीस साल के डी रवींद्र रेड्डी अयोध्या नहीं गए होते। वो बस अपने कैमरे में कैद करना चाहते थे कि रघु राय किस तरह से फोटोग्राफी करते हैं। अपने विषय को चुनते हैं। उनमें क्या ख़ास है जो सबसे अलग फोटोग्राफर बनाता है।१९८७ में हैदराबाद से फोटोग्राफी की दीक्षा लेने के बाद रेड्डी अपनी फोटू एजेंसी बना ली थी। रवि प्रेस फोटो एजेंसी। वो दिल्ली से आयोध्या के लिए रवाना हुए तो बस दिमाग़ में यही था कि इतने बड़े जमावड़े को रघु राय कैसे देख रहे होंगे। रवि ने बाबरी मस्जिद के दायरे में जमा कारसेवकों के बीच रघु राय को ढूंढना शुरू कर दिया। रघु राय मिल गए। कहीं बैठकर तस्वीरें लेते हुए तो कहीं भाग भाग कर। उसे रघु राय तो मिल गए मगर रघुकुल के राम के नाम जो मिला उसे आज तक नहीं भूले हैं। कैसे भूल सकते हैं।
लाखों लोगों की भीड़ उतावली हो चुकी थी। साढ़े ग्यारह बज रहे थे। कारसेवकों ने मस्जिद पर धावा बोलना शुरू कर दिया था। सब तीतर-बीतर हो गया। रवि ने सामने से घुसने की कोशिश की लेकिन भीड़ के धक्के से नहीं जा सके। फिर वो पीछे के रास्ते से मस्जिद में घुसने की कोशिश करते रहे। प्रेस रिपोर्टर और फोटोग्राफर पकड़े और पीटे जा रहे थे। लेकिन रवि के पास जो बैग था वो पेशेवर फोटोग्राफर का नहीं था। जब पीछे की ओर से घुसने की कोशिश में रवि को भी कुछ लोग पीटने लगे। तभी एक आवाज़ आई ये तेलुगू बच्चा है। इसे छोड़ दो। कारसेवकों की भीड़ में कोई आंध्र का रहा होगा जो बच्चे से लगने वाले रवि पर रहम खा गया होगा। रवि को बात समझ आ गई। उन्होंने अपना कैमरा जैकेट के भीतर छुपा लिया और अब वहां से निकलने की तैयारी करने लगे।
भीड़ इतनी ज़्यादा दी थी कि निकलना आसान नहीं था। एक घंटे लग गए फैज़ाबाद स्टेशन पहुंचने में। कोई ढाई बजे रहे होंगे जब स्टेशन पर लोग बोलने लगे कि गुंबद गिरा दी गई है। किसी तरह से रवि भाग कर फ़ैज़ाबाद पहुंचे। वहां से लखनऊ और सात दिसंबर की सुबह दिल्ली। इंडिया टुडे के दफ्तर गए। शरद सक्सेना ने कहा कि हमारा फोटोग्राफर भी वहां है। लेकिन किसी को पता नहीं था कि वहां मौजूद लोगों के कैमरे तोड़े गए हैं। वो पहुंच नहीं पाए थे। रवि ने अपनी तस्वीर दे दी। फिर पहुंचे टाइम पत्रिका के दफ्तर। ब्यूरो चीफ ने भी यही जवाब दिया। इस बातचीत का लंबा प्रसंग है। बाद में रवि की ही तस्वीरें इंडिया टुडे और टाइम के कवर पर छपीं। सीबीआई का अफसर पूछ ताछ के लिए रवि के पास गया था। रवि ने कहा कि कैसे पहचान सकता । तस्वीरें हैं, ले जाइये किसी काम आ जाएं तो अच्छा है।
रवि की तस्वीरों को देखकर सोचता रहा जो लोग इन नेताओं के कहने पर आए वे आज चालीस,पैंतालीस,पचास और साठ साल के हो गए होंगे। वो क्या सोचते होंगे। कोई अफसोस या राम के नाम पर झूठा गर्व। सीखना तो पड़ेगा। इस तरह की हर हैवानियत शर्मनाक है। हमारे भीतर की ऐसी हिंसा को समझना होगा, जो मज़हब की नाइंसाफियों के सच झूठ के किस्सों से भड़क जाती है और भड़काने वाला आसानी से भड़के हुए लोगों को रद्दी की टोकरी में डाल अपने सत्ता सुख की चमक में गायब हो जाता है।
डी रवींद्र रेड्डी से आज ही बात की। हमारे सहयोगी और सीनीयर कैमरा मैन नरेंद्र गोडावली ने उनका ज़िक्र किया तो नंबर लेकर बात करने लगा। रवि ने अपनी सारी तस्वीरें भेज दी हैं मगर संवेदनशीलता को देखते हुए कुछ ही लगाईं हैं। ये तस्वीरें देखकर जो उतावले होंगे वो मूर्खता ही करेंगे। यह सब वो दस्तावेज़ हैं जिन्हें देखकर हमें सीखना है कि राजनीति जब भी भावुकता से भरने की कोशिश करे तो कैसे अलग रह जाए। नहीं सीखा तो दस साल बाद गुजरात में हैवान बन गए लोग। इतिहास में नाइंसाफियों की इतनी दास्तानें हैं कि लोग कभी भी किसी की मिसाल देकर भड़का सकते हैं। बाबरी मस्जिद के ध्वंस के बीस साल हो गए हैं। हम अक्सर जब गुजरात दंगों की बात करते हैं तो जवाब आता है चौरासी के दंगों की बात कीजिए। जवाब देने वालों ने चतुराई से अयोध्या में मची इस हैवानियत को गायब कर दिया है। जो लोग नेतृत्व कर रहे थे उनमें से कई आज भी हैं। ज्यादातर उस घटना को शर्मनाक बता चुके हैं। अच्छा ही है कि अयोध्या के ज़ख्मों को भूल जाया जाए,बीस साल का वक्त इसी इंतज़ार में गुज़रा है। लेकिन अयोध्या की जो तारीख़ बन गई है वो छह दिसंबर से ही शुरू होती है और उसी पर खत्म हो जाती है।
और यह तारीख एक फोटोग्राफर के कैमरे में हमेशा के लिए दर्ज हो गई जो उसे अपने रघुराय की तलाश में वहां ले गई थी। वो रघुराम को खोकर लौटा मगर जब लौटा तो खुद ही रघुराय बन चुका था। WWW.dravinderreddy.com
( you can not use these pictures withouth permission of the photographer. he has given only for qasba)
24 comments:
ati sajeev chitran!
आज के दिन की सुपर्ब रिपोर्ट रविशजी!बहुत ही सच्चाई को उजागर करती है...पर देखोना जीसके लिये इतने नादान,लोगों को मरना पडा, कितनों की भावनाओं के साथ खेला गया...आज वही दिन है.. चुनावों की भागादौडी में उस मर्यादा पुरूषोत्तम राम को भी भूल चुके हैं।
read it , word picture!
सजीव चित्रण । धर्म के नाम पर वहाँ जो भी हुआ वह कतई माफी के लायक नहीं है ।
People died for rotten independence thrown away by Britishers tired of feeding and controlling us.I am sure they were fool. If u think that people r fool and had been fooled, u think so. It is self satisfaction which matters. Ravish don't overanalze. If u analyze how many people donated their land and properties for govt building, schools & Colleges and even during wars they must have been fool by Ravish standard of selfish gains.
an awesome report... just got sm new things which were not known to me
sir bas dua yahi hai ki hindustan ko kamzor karne ki shajeesh phir se na ho ..warna hamara apni maa(hindustan) se bharosa uth jaayega..all politicians doing politics on this should be ashamed of them that they betrayed their motherland
Ravish ji kya Karen bhul na hi padega
6 December
2002 february27
Han ek bat ZARUR hai
apni politics kar ne aur
satta hasil karne ka tarika
Galat tha..
Sorry ..
bhul gaya tha nice article"
thanks
घटना का अति सजीव चित्रण..
ऐसी परिस्थिति फिर से न दोहराई जा सके, इसके लिए कुछ ऐसा मज़बूत तंत्र विकसित करना होगा ताकि हम सिर्फ भारतीय होने पर ही गर्व कर सकें, कोई हिन्दू-मुस्लिम नहीं, कोई जात-पात नहीं, कोई मर्द-औरत का भेद नहीं। अगर ऐसा हिंदुस्तान बन सकेगा तो कोई अपनी नफरत की दुकान चलाकर देश व् समाज को बांटने का दुष्कर्म नहीं कर पायेगा। वो सही अर्थों में रामराज्य होगा।
ठीक है जी फ़ोटो यूज़ नहीं करेंगे
very diplomatically written. is this because of 66A?
BABAR AUR AAURANGJEB KE JAMANE ME PHOTOGRAHI NHI THI SHUKR HAI YE SECULER THINKING OMG >>>>>>.........!!!!!!!
राम और रावणों के बीच हमें ही अंतर करना होगा वरना....हमारे लिए कितना मुश्किल होता है ऐसी रिर्पोटिंग करना जो धर्मनिरपेक्ष भी हो और असली अपराधियों को बेनक़ाब भी करती हो....धर्म की आड़ में पापाचार का गढ़ बन चुके मंदिरों के खिलाफ उठती आम आदमी की आवाज़ों को किस तरह कुचला जा रहा है,इसका एक उदाहरण देखिये इस रिपोर्ट मे...आजकल मथुरा में....www.legendnews.in
Two years ago, ahead of the time when Allahabad High Court judgment was expected, I had asked several persons, who had been to Ayodhya in 1992 - then in their 20s - what they felt about it now? Most of them are well settled in life, few in software companies abroad. None of them even replied to my question. I guess, that was answer enough.
ayodhya ka sach bar-bar samne aata rhega etihas se sabak lene ke liye.
I am not agree with your views and we are several times defeated from intruders only due to this mentality and I hope that you will never write anything against the demolition of several temples in Bangladesh, Pakistan and in Afghanistan and you will never raise the voice against the poor conditions of Hindus in Pakistan. Please write against Islamic terrorism too which is a real threat and we are victim since 800 AD.
Please don't support Islamic terrorism in India and it was not Babri Mosque but it was temple and Allahabad high court has already given decision in the favor of temple but you have never mentioned about this decision in your article and i am really fade up with the Anti national mentality. Shame on you. Don't sell your soul for Petro- dollars.
Kal ayodhya tha ..aaj dilli h...parso patna ho jayega...bawaal toh hote hi rahenge...kya pata in hue bawalo ka gunahgaar aur in bawallo ki mang v kabhi samne aane ki gunjaaish rakhti ho..
Kal ayodhya tha ..aaj dilli h...parso patna ho jayega...bawaal toh hote hi rahenge...kya pata in hue bawalo ka gunahgaar aur in bawallo ki mang v kabhi samne aane ki gunjaaish rakhti ho..
Bakwas hai....koi danga wanga nahi hua tha.... us din ayodhya me sirf masjid girri thi...... koi jaan maal ka nuksan nhi hua tha..
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