ब्रह्मेश्वर मुखिया की हत्या पर प्रतिक्रियाओं का समग्र पाठ

आज सुबह ब्रह्मेश्वर मुखिया की हत्या के बाद फेसबुक पर तरह तरह की प्रतिक्रियाएं देखने को मिलीं। सोचा कि ज्यादातर को एक जगह किया जाए और उन्हें फिर से देखा जाए। नायक खलनायक के बीच बहुत सी बातें हुई होंगी जो आज की पीढ़ी को शायद ही पता चलें। इन्हें देखकर आप और जानने को उत्सुक होंगे। एक व्यक्ति की हत्या से कितनी अलग अलग तरह की आवाज़ें आने लगीं हैं।
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Ranjan Rituraj-
ब्रह्मेश्वर मुखिया नहीं रहे ! शहीद हो गए ! आरोप थे उनपर 'नरसंहार' का ! मामला कोर्ट में था ! पर् मुझे नहीं लगता रणवीर सेना राष्ट्र विरोधी थी - यह मेरी व्यक्तिगत राय है !
पर् जिस तरह की प्रतिक्रया फेसबुक पर् दी जा रही है - वो गलत है ! वरिष्ठ पत्रकार जातिगत रंग देकर लोगों की घृणित प्रतिक्रिया का लुफ्त उठा रहे हैं - मै इसकी निन्दा करता हूँ ! मिथिला में बैठा आदमी 'शाहाबाद' की जमीनी हकीकत नहीं समझ सकता... है !
मै उस क्षेत्र से नहीं हूँ जहाँ नक्सलवाद है - पर् पटना में पढ़ने के दौरान मेरे कई साथीओं को गंगा पार ले जाकर निर्मम हत्या कर दी गयी थी क्योंकी वो जहानाबाद के थे - कुछ समझ में नहीं आया - बस बुत की तरह दोस्तों की लाश देखता रह गया था - सबके चेहर मुझे आज भी याद है ! 'बारा' के ५२ लोगों की हत्या एक रात में हुई थी - मुझे याद है ! मै भी एक इंसान हूँ ! फिर 'सेनारी' में हत्याएं हुई ! तत्कालीन मुख्यमंत्री श्रीमती राबड़ी देवी ने जातिगत आधार पर् टिका टिपण्णी की थीं ! हत्याएं दूसरी तरफ से भी की गयीं वो भी घोर निंदनीय है ! पर् हम आप लालू दौर के सभी घटनाओं को जिम्मेदार दो , अन्ने मार्ग में रहने वाले उस राजगुरु को नहीं ठहरा सकते थे जो सुबह होते ही 'जातिगत' विशेष को गाली देते हुए अपने दिन की शुरुआत करता था - अगर यह सच है - फिर बिहार कोई कई और दसक लगेंगे ! दिल्ली / न्यूयार्क / लंदन में बैठ कर भी आप और हम एक दूसरे के लिये इतने नीचे स्तर पर् जा कर जातिगत आधार पर् गाली गलौज देंगे या उसको बढ़ावा देंगे - फिर शर्म आती है !
जहाँ तक वरिष्ठ पत्रकार और बाकी के लोग जातिगत आधार पर् टिका टिपण्णी दे रहे हैं - वो बहुत गलत है ! अगर आपके जातिगत टिका टिपण्णी को उचित मान लिया जाए तो भी - एक भाई के कमज़ोर होने से तत्कालीन तो आपका फायदा होगा - पर् अन्तोगत्वा आप ही कमज़ोर होंगे - इस् बात को याद रखियेगा !
"मै भूखा मर जाउंगा - पर् अपने बच्चों के खून में चीन के चंदे से और माओवाद / नक्सल के भीख से मिले पैसों का नमक नहीं मिलने दूँगा " !
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Rajeev Kumar Jha
आपने किसानों को बचाने के लिए "रणवीर सेना" संगठन बनाया जिसकी खूनी भिड़ंत अक्सर नक्सली संगठनों से हुआ करती थी. लेकिन सरकार ने आपको निजी सेना चलाने वाला उग्रवादी घोषित कर के प्रताड़ित किया. बाड़ा में नक्सली संगठनों ने हमारे 37 लोगों को मारा था जिसके जवाब में आपने बाथे नरसंहार को अंजाम दिया और उनके 58 पिल्लों को मार गिराया. 277 लोगों की हत्या से संबंधित 22 अलग अलग आपराधिक मामलों (नरसंहार) में आप अभियु...क्त बनाये गए जिसमें से 16 मामलों में आपको साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया गया. बाकी 6 मामलों में आप जमानत पर थे. आप पर पांच लाख का ईनाम था और आपने नौ साल जेल में गुज़ारे. आप नपुंसक नक्सलों के नाक में दम करने वाले जाबांज थे. आप जुबां से नहीं, बन्दूक से बोलते थे. बर्मेसर मुखिया, आप तोप थे, बिहार के लाल थे. आपकी आत्मा को शांति तब मिलेगी जब आपकी लडाई आपके जाने के बाद भी जारी रहेगी.
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Prakash K Ray
JD-U leader and MP Shivanand Tiwari calls Mukhiya with respectable 'Ji'. I am reminded of Digvijay Singh calling Osama bin Laden with 'Ji'.
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Shaishwa Kumar
एक भयानक सच्चाई का अंत...रणबीर सेना के ब्रह्मेश्वर मुखिया की हत्या
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Awesh Tiwari
अंततः मार दिया गया मौत का मसीहा ब्रह्मेश्वर मुखिया ! यह वह व्यक्ति था ,जिसने 22 बार दलितों और पिछड़ों को मौत के घाट उतारा। इसके इशारे पर बिहार में दलितों और पिछड़ों की बच्चियों के साथ बलात्कार किया गया। सैंकड़ों मासूमों का गर्दन एक झटके से उड़ा देने वाले रणवीर सेना का मास्टरमाइंड ब्रह्मेश्वर मुखिया खुलेआम कहता था कि दलितों और पिछड़ों के बच्चों को मारकर उसने और उसके साथियों ने कोई गलती नहीं की ,क्योंकि बड़े होने पर वे नक्सली ही बनते।
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Ranjan Rituraj
Shaheed Ko Naman !!!
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Prakash K Ray via Ashutosh Kumar
नरपिशाच बरमेश्वर मुखिया की कहानी.....
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Sushil Jha
जातिगत लड़ाई का एक अध्याय खत्म माना जा सकता है क्या.....
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Kumar Alok
लालू यादव को पानी पीकर कोसने वाले ब्रहेश्वर मुखिया उनके राज में महफूज रहे...उनकी हत्या के बाद हालात को सामान्य बनाने की बडी जिम्मेदारी होगी नीतिश सरकार पर ।
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Prakash K Ray
संजीवना रे संजीवना, तू मुखियवा को काट के दामुल पर काहे नहीं चढ़ा रे संजीवना.. -'दामुल' (प्रकाश झा, 1985) का एक संवाद.
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Abhishek Srivastava
मुखिया तो गयो... आइए इस मौके पर अदम को एक बार फिर याद कर लें...
...हैं कहाँ हिटलर, हलाकू, ज़ार या चंगेज़ ख़ाँ
मिट गये सब, क़ौम की औक़ात को मत छेड़िये...
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Prashant Priyadarshi
उसे ऐसे ही जाना था, वे ऐसे ही गए. कहते हैं तलवार कि धार पर जीने वाले तलवार की धार से ही मरा करते हैं.
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अविनाश दास-
ब्रह्मेश्‍वर मुखिया का मारा जाना हिंसा-अहिंसा की बहसों से ऊपर एक स्‍वाभाविक घटना है। यह न तो कोई चौंकाने वाली खबर है, न ही ब्रेकिंग न्‍यूज। हत्‍यारे मारे जाएंगे। बेबस के हाथों। वंचितों के हाथों।
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Dilip Khan लालू किस तरह ब्रह्मेश्वर की हत्या पर वह लाइन लेंगे जो आप सोच रहे हैं। उसके पास उस दिशा में जाने का कोई हक नही है। लालू बार-बार अपने बयान में ये कहते रहे कि किसानों-मज़दूरों को आपा नहीं खोना चाहिए। ऐसा लग रहा था गोया ब्रह्मेश्वर सिंह (मुखिया) ही किसान-मज़दूरों के प्रतिनिधि हो। लालू जैसे नेता के जमाने में ब्रह्मेश्वर ने सबसे ज़्यादा खून बहाया। लक्ष्मणपुर बाथे राबड़ी के शासन में हुआ (1 दिसंबर 1997) और बथानी टोला (11 जुलाई 1996) लालू के। क्या कर लिया था लालू ने? पूरे मसले पर लालू का बयान सिर्फ़ नीतीश को घेरने तक ही सीमित रहा।
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Sushil Kumar
सैकड़ों हत्याओं एवं नरसंहारों का आरोपी और प्रतिबंधित रणवीर सेना का मुखिया ब्रह्मेश्‍वर सिंह आखिरकार आज तडके मौत के घाट उतार दिया गया | उन चालीस गोलियों की गूंज में क्या कोई सन्देश छिपा है ? कहीं ये "लोक " का "तंत्र" से उठते विस्वास की गूंज तो नहीं ?
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रजनीश के झा
उम्मीद जग रही है, बिहार शायद फिर जलेगा. जाति का घनघोर अँधेरा एक बार फिर बिहार में सर पसार रहा है. मुफ्तखोरों की तादाद बढ रही है और हम अपनी हिफाजत करेंगे. अपनी माटी की हिफाजत खून से करना होगा तो रंग लेंगे अपनी माँ को अपने रक्त से .
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Vijai Pratap
बह्मेश्वर मुखिया को किसी ने नहीं मारा.....अपने हत्यारों का नाम बताने के लिए वह जिंदा नहीं रहा...कोर्ट ने बथानी टोला के फैसले में कहा था कि मौत की असली गवाह तो मरने वाला ही हो सकता है....
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Awesh Tiwari
जिन दिनों एम.एल के नेतृत्व में खेतिहर मजदूरी से सम्बद्ध जातियां राजनीतिक रूप से चेतस हो रही थीं, संगठित हो रही थीं, उन्हीं दिनों बिहार की राजनीति में मध्य जातियों ने सवर्ण वर्चस्व को समाप्त कर दिया था. यह जातीय तनाव का दौर था-सामजिक -आर्थिक और राजनीतिक वर्चस्व को बनाये रखने के लिए सवर्ण जमींदार आक्रोश मिश्रित छटपटाहट में थे . धीरे-धीरे मध्य जातियों ने पूरी तरह सत्ता स्थापित कर ली थी, सवर्ण जमींदार उनसे लम्बे दौर तक टकराने की स्थिति में नहीं थे, इसलिए सारा आक्रोश और अपने को पुनर्जीवित करने का लक्ष्य हाशिये पर जीती जातियां बन गई,
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Manish Kumar Neurosurgeon
क्या रणवीर सेना को सभी अगडे / पिछड़े / दलित बड़े और मंझोले किसान का समर्थन नहीं हासिल था ? अगर आप घोर नक्सल हैं और आपके बच्चे के खून में नक्सल के चंदे का नमक मिला है फिर भी आपका दिल कहेगा - रणवीर सेना राष्ट्र विरोधी नहीं बल्की किसानों का संगठन था -
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Ranjan Rituraj
मैंने देखा नहीं है पर् मुझे बताया गया है की NDTV ने स्क्रोल किया - " Butcher of Bihar Killed " -
आग उगलने के लिये आप स्वतंत्र हैं - आग में घी डालेंगे - बच के ..बाबा ..आग की लपट बड़ी तेज ...धोती गायब कर देगी !
क्या किसी कसाई की हत्या के बाद एक शहर नहीं पूरा क्षेत्र उबल सकता है ? अगर रणवीर सेना किसी एक खास जाति की संगठन... थी फिर उस जाति की संख्या कितनी है - बिहार में ? मात्र तीन प्रतिशत ! दस करोड़ के जनसँख्या में तीस लाख लोग - वो भी पुरे बिहार / भारत में फैले हुए - क्या कोई अल्पसंख्यक जाति किसी पुरे क्षेत्र को अपने कब्ज़े में ले सकती है ? मै किसी चम्पारण वाले से या मिथिला वाले से कुछ नहीं पूछना चाहता - पर् मै शाहाबाद के लोगों से पूछना चाहता हूँ - की क्या रणवीर सेना सिर्फ एक जाति की सेना थी ? क्या रणवीर सेना को सभी अगडे / पिछड़े / दलित बड़े और मंझोले किसान का समर्थन नहीं हासिल था ? अगर आप घोर नक्सल हैं और आपके बच्चे के खून में नक्सल के चंदे का नमक मिला है फिर भी आपका दिल कहेगा - रणवीर सेना राष्ट्र विरोधी नहीं बल्की किसानों का संगठन था - जिसके बैनर के तले भी हिंसा हुई है ..वैसे संगठन पर् प्रतिबन्ध लगाना शासन का काम है !
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Chandan Mishra
Those who are lauding the murder of chief of Ranvir Sena Brahmeshwar Mukhiya I have one thing to say them, ''even the murder of a murderer can not be justified.'' But, Ranvir Sena killed 50 people, during the 1995 state elections. They killed 10 workers in Haibaspur on the 23 March 1997. They wrote the name of the organisation in blood on the village well before they left. On 11 July 1996, 21 Dali...ts were slaughtered by the Ranvir Sena in Bathani Tola, Bhojpur in Bihar. Among the dead were 11 women, six children and three infants. On 1 December 1997, they killed 61 Dalits, which includes - 16 children, 27 women and 18 men with guns. The same night,disfigured and shot to death 5 teenage girls.[2] Ranvir Sena said about the killings: ''We kill children because they will grow up to become Naxalites. We kill women because they will give birth to Naxalites." On 25 January 1999, there was a massacre of 22 dalit men, women and children by Ranvir Sena in the village of Shankarbigha, Jehanabad due to their alleged Naxalite allegiance. There was another massacre two weeks later in the neighbouring village of Narayanpur, where Ranvir Sena killed twelve lower-caste people. And Now In April of 2012, members of the Ranvir Sena were acquited of Bathani Tola massacre in Bihar. Now I have question can all these be justified. My colleagues are saying the fight of Mukhiya and Ranvir sena was the fight of ''Astitava''. People are saying you can not understand the ground reality and the cause of the rise of Ranvir Sena. How Ranvir Sena came into existence it's all before everyone, but making him a ''martyr''. What a nonsense?
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Prakash Singh क्या जिन भूमिहार परिवारों की हत्याएं हुई। हत्या करने वाले उन नक्सलियों और आतंकियों को सजा मिली है। क्या मुखिया जी यूं ही शौक से हत्याएं करने लगे। क्या किसी की जमीन पर कब्जा करना जाएज है। अपनी जमीन को बचाने के लिए लड़ना नाजायज है।........
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vaibhav sinha-
रणवीर सेना के सरगना रहे ब्रह्मेशवर मुखिया की मौत शायद इसी तरह से ही हो सकती थी। हथियार बंद दस्ते के हाथों, क्योंकि वह खुद सबसे बड़ी सामंती अराजकता का प्रतीक था। जब अप्रैल 1997 में लक्ष्मणपुर-बाथे (जहानाबाद) जनसंहार हुआ था, तब कुछ दोस्तों के साथ मैं भी वहां फैक्ट फाइंडिंग टीम के सदस्य की तरह पहुंचा था। सोन नदी के रास्ते से आए हत्यारों ने गांव में कहर बरपाया था.. झोपड़ी की मिट्टी की दीवारों पर हर तर...फ गोलियों के निशान और जमीन पर खून के धब्बे। 58 लोगों की हत्या। उसी समय वहां अटल बिहारी वाजपेयी भी दौरे पर थे। लोग डरा रहे थे कि रणवीर सेना के लोग हमपर निगाह रख रहे हैं, वाजपेयी से सवाल किए तो वे पटना तक पहुंचने नहीं देंगे, रास्ते में ही मारे जाओगे। उस समय भाजपा का पूरा हाथ रणवीर सेना पर था, वाजपेयी हमेशा की तरह घड़ियाली आंसू बहाने पहुंचे थे। सेना के लोग भाजपा से लिए प्रचार करते रहे हैं। पर भाजपा वह दल है जो आज शायद सबसे पहले अपने इस गुर्गे की हत्या पर खुश हुआ होगा।
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If Brahmeshwar Singh is a martyr I can't help it. Of course, all tyrants are martyrs for some people. Is this the reason that we should not celebrate their deaths? Yesterday I met a Bhumihar and he was abusing Maoists and ML. I have no clue how to differentiate between political violence and political struggle.
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Ashok Kumar Pandey
रणबीर सेना के मुखिया की मौत जश्न की खबर हो न हो...मुझे कोई दुःख तो नहीं ही है इसका. बहुत संभव है यह ह्त्या उनके अपने किन्हीं आतंरिक विवाद के कारण हो...लेकिन क़ानून के पंजे (?) से सबूतों के अभाव में बच कर निकल जाने के बावजूद उनकी आपराधिक गतिविधियों के बारे में शायद ही किसी को संदेह हो. वंचित जन के खिलाफ उनका हिंसात्मक आंदोलन आज़ाद भारत के इतिहास के कुछ सबसे भयावह हत्याकांडों का जिम्मेदार रहा है. आज जब कुछ राजनीतिक दलों के लोग उनकी लगभग प्रशस्ति गा रहे हैं, तो समझ लेना चाहिए कि सामाजिक न्याय की बात करते-करते वे किस पाले में पहुँच चुके हैं...
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27 comments:

Anonymous said...

kuch nhi accha nhi tha na to ranveer sena na naksli ....

padkar dukhi hua.

Kulwant Happy said...

meri tarah is baar sab ko samane rakhkar ravish khamosh kyun... kuchh to aap bhi kahiye.. sir...

roshanromani said...

sahir ludhoyanvi ki ek nazm is mauqe per bahut sateek hai......is nazm ko aur is ghatna ko ek bade sandarbh me dekha jana chahiye........


zulm phir zulm hai, baRhta hai to miT jaataa hai
Khoon phir Khoon hai, Tapkega to jam jaayega

Khaak-e-sehra pe jame yaa kaf-e-qaatil pe jame
farq-e-insaaf pe yaa paa-e-salaasal pe jame
teGh-e-bedaad pe yaa laasha-e-bismil pe jame
Khoon phir Khoon hai Tapkega to jam jaayega

laakh baiThe koi chhup chhup ke kameeN gaahoN meiN
Khoon Khud deta hai jalaadoN ke maskan ka suraaGh
saazisheiN laaKh uRaati raheiN zulmat ka naqaab
le ke har booNd nikalti hai hatheli pe chiraaGh

zulm kii qismat-e-nakaarah-o-rusvaa se kaho
jab’r kii hikmat-e-purkaar ke eema se kaho (eema = permission)
mehmal-e-majlis-e-aqwaam kii laila se kaho
Khoon diiwana hai, daaman pe lapak sakta hai
shola-e-tuNd hai, Khirman pe lapak sakta hai

tum ne jis Khoon ko maqtal meiN dabaanaa chaaha
aaj vo kuchaa-o-bazaar meiN aa nikla hai
kahiiN shola kahiiN naarah kahiiN patthar ban ke
Khoon chalta hai to rukta nahiiN sangeeno se
sar jo uThtaa hai to dabtaa nahiiN aaeeno se

zulm ki baat hi kya, zulm ki auqaat hi kya
zulm bas zulm hai, aaGhaaz se anjaam talak
Khoon phir Khoon hai, so shakl badal sakta hai
aisi shakleiN ke miTaaoo to miTaaye na bane
aise shole k bujhaao to bujhaaye na bane
aise naare k dabaao to dabaaye na bane
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Here’s a translation of the nazm by Satish Kumar Shukla Sahib. Enjoy

BLOOD IS BUT BLOOD !

A slain Lumumba is by far mightier than a living Lumumba -Nehru

Repression is sill repression
Rising, it must flop
Blood is sill blood
Spilling it must clot.

Whether it clots on desert sands
Or upon assassin’s hands
On justice’s head or around shackled feet
On injustice’s sword or on the wounded corpse
Blood is still blood
Spilling, it must clot.

However much one lies in ambush
Blood betrays butcher’s hideout
Conspiracies may veil in thousand darkly mask
Each blood drop ventures out with burning lamp on its palm.

Tell oppression’s vain and blemished fate
Tell cruelty’s crafty Imam
Tell the UN Security Council
Blood is crazy
It can leap up to the cloak
It is inferno, it can flare up to burn grain-stock.

The blood you sought to suppress in abattoir
Today that blood moves out into street
Here an ember, there a slogan, there a stone
Once blood comes to flows
Bayonets are no avail
Head, once it is raised
Is not downed by law’s hail.

What is about oppression?
What is with its impression?
Oppression is, all of it, but oppression
From beginning to end
Blood is still blood
Myriad form it can assume
Forms such as are indelible
Embers such as are inextinguishable
Slogans such as are irrepressible.

पंख फैलाओ-आकाश तुम्हारा said...

चाहे हम शहीद कहे या मौत का सौदागर हिंसा का भास तो होता है. मुखिया के मौत पर उठा बवंडर किसी महात्मा के मौत का मातम निश्चित रूप से नहीं है. अन्याय के नाम किया गया कल का नरसंहार न जायज था न आज हत्यारे की हत्या की वकालत की जा सकती है. इन सबसे ज्यादा दुखद तो यह है की आज हम फिर वही अराजकता का वातावरण पैदा करने की कोशिश कर रहे है जो जाति के नाम पर कुछ साल पहले मुखिया ने किया था या आज किसी सिरफिरे ने किया. आज का बिहार बड़ी मुश्किल से वर्ग और जाति संघर्ष से बाहर निकल पा रहा है. प्रदेश हर नागरिक को गंभीर और अनाग्रहपूर्वक सोचने की जरुरत है कि क्या बिहार किसी षड़यंत्र का फिर हिस्सा तो नहीं बनाने जा रहा है.

फ़कीर की झोली से - क़तात said...

सही और गलत की अपनी सीमा होती है. कई बार आपकी 'सही' की सीमा किसी दूसरे की 'सही' की सीमा में घुसपैठ करती है, तब समस्या पैदा होती है. सवाल ये पैदा होता की ब्रह्मेश्वर की हत्या क्यों की गयी? क्या सिर्फ यूँही? क्या वो बहुत बड़े महात्मा थे? बरसों से आपने एक समुदाय विशेष की ज़मीन हड़पी है. उनके बीवी - बच्चियों से दुर्व्यवहार किया है, जानवर बराबर भी नहीं समझा (गाय को माँ माना और उन्हें मलेच्छ... जानवर), अब आप चाहते हैं कि ये जानवर इंसान बन जाए. कैसे बन जाए ये इंसान? और क्यूँ बन जाए ये इंसान? इसलिए कि आप इनका फिर से शोषण करें? आज बराबरी की बात की जाती है, कल कहाँ थी ये बराबरी जब इन्हें कुएं से पानी तक भरने नहीं दिया गया... इन्हें प्यासा मरने पर मजबूर कर दिया गया.... हो सकता है की ब्रह्मेश्वर किसी की नज़र में किसानों के नेता थे, लेकिन कोई उन्हें 'ज़मीन हड़पने वाला ज़ालिम' भी मानता है.... उम्मीद भर कर सकता हूँ कि ये खून - खराबा खत्म हो जाए, लेकिन मुश्किल ये है कि उम्मीद पर भी शंका के बादल मंडरा रहे हैं.

फ़कीर की झोली से - क़तात said...
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Yash said...

Anyone that killes any human is not human for me

Yash said...

Anyone that killes any human is not human for me

anshuman singh said...

Aapko dalito ka narsanhaar yaad hai par yeh yaad nahi ki unhi dalito ne kis tarah savarno ke gaon mein sabhi mardo ki gala retkar hatya ki thi..yeh yaad nahi ki kis tarah swargita jwala singh ji ki hatya unhi ke suputr k saamne ki gayi..ab agar wahi putr us hatya ka badla leta hai toh woh narsanhaar hua aapki nazro mein..agar ranveer sena nahi hoti toh naxalvadiyo ne bihar pe kabza kar liya hota.. Yeh kaum hi aisi hai..bhumihaar zameen k liye sab kuch haar sakta hai..aapko toh yeh bhi yaad nahi hoga ki kis tarah nithalle naxal bihar ke jehanabad, arwal, bhojpur jile ke kisano ki mehnat loot kar le jaate the..mukhiya ji ki shahadat bekaar nahi jaayegi...sena fir uthegi samman ke liye..zameen k liye..agar bhumihaar zameen k luye jaan de sakta hai toh jaan le bhi sakta hai..

फ़कीर की झोली से - क़तात said...
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फ़कीर की झोली से - क़तात said...

आपको इतिहास में जाना है तो ज़रा कायदे से जाइए और आपको समझ में आ जायेगा की पहल कहाँ से हुई थी......

Anonymous said...

इस रास्ते की मंजिल यही है, समझे वो भी जिसने इस रास्ते पर चलते हुए घटना को अंजाम दिया। Well Said- "तलवार कि धार पर जीने वाले तलवार की धार से ही मरा करते हैं|" "...हैं कहाँ हिटलर, हलाकू, ज़ार या चंगेज़ ख़ाँ
मिट गये सब, क़ौम की औक़ात को मत छेड़िये..."

prem said...

KISAN KE HIT KI RAKSHA KE LIYE MUKHIYA JI NE SANGHATAN BANAYA AUR RAKSHA BHI KI , LALU SARKAR AUR MAOIST KO KARARA JAWAB DIYA , NAXLITES PANI MANGNE LAGE , HAR JAGAH RANVIR BABA KI JAY HUI , US SAMAY KOI MUKHIYA JI KE BARE ME GALAT BOLNE KI SOCHTA NAHI THA AUR AAJ HATYA US SAMAY HUI JAB WO KISAN KE LIYE PEACEFULL MOVEMENT CHALANA START KAR DIYE THE , VEER THE WO JINHONE 5000 ACRE BAN LAND KO FREE KARWA KE AAJADI DILAYI MAOIST SE ,SARKAR YE SAMAJH LE AGAR MAOIST KO NAHI ROKOGE TO AISE KITNE BRAMHESHAWAR BABA RANVIR SENA BANAYENGE , BHAGWAN PARSHURAM KI JAY

Umesh Chandra said...

मुखिया जी के हत्या की खबर मिली, समझ में नहीं आता की कैसे प्रतिक्रिया दू ! परन्तु जो भी उन्हें हत्यारा, जुल्मी, आततायी इत्यादि कह रहे है उन्हें मई ये बताना चाहूँगा की आज के दौर में नक्सल के सामने नपुन्सको की तरह डील करने या उनके जुल्मो सितम के आगे घुटने टेकने की बजे उन्होंने प्रतिकार किया था! आई पी ऍफ़ को ख़तम करने का श्रेय अगर किसी को जाता है तो वो मुखिया जी थे. वैसे तो मौत के बदले मौत को कभी भी सही नहीं कहा जा सकता परन्तु अपने किसी की हत्या हो जाय और न्याय देने वाला कोई नहीं हो और डर बना रहे की तुम्हारा कोई अपना फिर मर जायेगा तो वैसे में कायरो की तरह अगली मौत का इन्तेजार करना कहाँ तक जायज है. मुखिया जी ने जो किया था वो एक सिपाही करता है, एक रक्षक करता है, एक वीर करता है.

मेरी नजर में वो वीरगति को प्राप्त हुए है और मई सैलूट करता हु इस सिपाही को, उस दौर में मई वही करना चाहता था जो मुखिया जी ने किया था परन्तु मुझमे इतनी शक्ति और साहस नहीं था इसलिय नहीं कर पाया.

Umesh Chandra said...

When someone from your family killed in front of you then you realize that this philosophy is not going to work for you. Trust me.

Pankaj said...

Who was the gentleman who is killed and getting so much of attention?

पंकज कुमार said...

"An eye for eye make the world blind".. This statement is true. Mukhiya passed away and it is not a big deal. Why the people around us have regret over his death? He killed women, infants, oh my God! And, in defense he said the women killed because they would give birth to naxalists..What a non-sense statement it was... Had Mukhiya's mother been alive she would have said she had given birth to a murderer. One must not call Mukhiya is martyr... HE WAS MURDER...

Reena Satin said...

Is vyaktivishesh ke baare mein to bahut naheen jaantee, apitu Ranvir Sena ka jab bhee naam aaya daliton ke saamoohik narsanhaar ke liye hee aaya. Mukhiya kee hatya kis ne kee aur kyon kee, yeh to gyaat naheen, parantu hinsa ka raasta apnaane waalon ka aksar aisa hee ant hota hai.. - R.Satin.

Dheeraj Mishra said...

ravish ji ap hain kahan....?????????

Dr. Sunil said...

हत्या व्यक्ति की हो सकती है विचारधारा की नहीं ।

anshuman singh said...

Wen your father is killed in front of your eyes den you will see whether d theory applies or not...

anshuman singh said...

Reena ji..ppl knw abt bathe massacare but dun knw abt bara and akbarpur massacare where naxalites killed every bhumihar male in the two villages...bathe massacare was retaliation of this..ranveer sena was not a choice but compulsion...bcoz the very existence of d community was in danger...nd wen ppl were fleeing..it was mukhiyaji who took charge nd forced mcc nd pwg to move out of bihar..they were so useless dat they merged d two outfits bt still cudnt get thru wid d sena...if ranveer sena wasnt there the state of bihar wud have been a naxal pradesh..

anshuman singh said...

Mind your words...if it wud nt have been a virtual world u wud hav had it from me...agar apni zameen..apne samman k liye hatya tak karni pade toh usme hichkichana nahi chahiye..aur aap kaun hote hain sahi galat ka faisla karne wale...

nptHeer said...

Horrible face of politics from years and years only violance wehuman learn from history-i will not blame Bihar-biharies-bihar politics for perticuler case and previous also.but-I have a massage for those ppl who like their bihar state-time like this-must be the right time to set out peaceful atmosfear-bhaybinu priti na hoi-written by goswami tulsidas.agar aisi hinsa bihar ko fir na gher paaye uske liye ek hi insan help kar sakta hai-BIHRI.Think.:)best of luck for peace.

nptHeer said...

Horrible face of politics from years and years only violance wehuman learn from history-i will not blame Bihar-biharies-bihar politics for perticuler case and previous also.but-I have a massage for those ppl who like their bihar state-time like this-must be the right time to set out peaceful atmosfear-bhaybinu priti na hoi-written by goswami tulsidas.agar aisi hinsa bihar ko fir na gher paaye uske liye ek hi insan help kar sakta hai-BIHRI.Think.:)best of luck for peace.

Dr Alok Ranjan said...

जो चूल्हे कभी ठीक से सुलगे नहीं,
उन चूल्हों ने चखा,
बारूद का स्वाद,

पंचायत की पथराई आँखें,
पढ़ती नहीं,
भारतीय दंड संहिता की,
पहेलियाँ,

लक्ष्मणपुर बाथे हो या,
शंकरबीघा,
गिद्धों का झुँड,
उमड़ता है,
हरेक दिशा से|

वे भूखे पेट ही लोरी सुनकर,
सोनेवाले बच्चे थे,
अनपढ़ स्त्रियाँ थीं,
आज़ादी की साजिश के शिकार,
पुरूष थे,
जिन्हें प्रभुओं की सेना ने,
मार डाला|

जहानाबाद आपके मानचित्र पर,
एक काला धब्बा है,
और भूखे नंगे लोगों की,
आँखों में,
आग का गोला|

Rakesh ranjan said...

mout ke din bhi tamasha aaj bhi gas cylender phatne se tamasa !