यह हो सकता है कि एस पी महांतेश नाम के अधिकारी के बारे में आपने नहीं सुना हो। कर्नाटक के चीफ जस्टिस के घर के सामने इस अधिकारी की धारदार हथियारों से मार कर हत्या कर दी गई। जब तक यह अधिकारी अस्पताल में ज़िंदगी और मौत से लड़ता रहा कर्नाटक के मुख्यमंत्री जो उसी विभाग के मंत्री हैं देखने तक नहीं गए। महांतेश कर्नाटक के कापरेटिव ऑडिट महानिदेशालय में उपनिदेशक थे। इनके आते ही कर्नाटक में ढेरों कोपरेटिव घोटालों का पर्दाफाश होने लगा। कई बार मारने और डराने की कोशिशों के बाद भी महांतेश का इरादा कमज़ोर नहीं हुआ। लेकिन अब यह अधिकारी हमारे बीच नहीं है क्योंकि हमारे कल के ईमानदार भविष्य के लिए लड़ते हुए मार दिया गया है। मुझे नहीं मालूम कि आप नीमच,शिवपुरी,बंगलोर,कोलकाता,गंगानगर और अलवर में महांतेश के बारे में पढ़ते हुए क्या सोच रहे होंगे। शायद यही कि सिस्टम से कौन लड़े। कोई नहीं लड़ सकता। गनीमत है कि महांतेश ने हमारी तरह नहीं सोचा। हमारी सहानुभूति की भी परवाह नहीं की। अपनी और अपने परिवार की ज़िंदगी दांव पर लगाकर एक के बाद एक घोटाले का पर्दाफाश करते चले गए।
अप्रैल के महीने में दिल्ली में रवींदर बलवानी की हत्या हो गई। पुलिस दुर्घटना बताती रही है। परिवार के लोग हर दूसरे दिन हाथ में बैनर लिये खड़े रहते हैं कि आर टी आई कार्यकर्ता रवींदर बलवानी की हत्या हुई है। उनकी बेटियां समाज और सरकार से गुहार लगाती फिर रही हैं मगर सौ पांच सौ लोगों के अलावा किसी का कलेजा नहीं पिघलता। जुलाई 2010 में गुजरात हाई कोर्ट के करीब आर टी आई कार्यकर्ता अमित जेठवा की गोली मार कर हत्या कर दी गई। ईमानदार अफसरों के सिस्टम से लड़ने और मारे जाने की घटनाएं 2003 में शैलेंद्र दूबे हत्याकांड और 2005 में एस मंजूनाथ हत्याकांड के बाद से मीडिया में जगह तो पा जाती हैं मगर सरकारों पर असर नहीं पड़ता। ईमानदारी का बिगुल बजाने वाले अफसरों को सुरक्षा देने का कानून अटक-लटक कर ही चल रहा है। अगर हम अपने ईमानदार सिपाहियों के प्रति इतने ही सजग होते तो एक मज़बूत कानून बनने में दस साल न लगते।
संसद में व्हिसिल ब्लोअर विधेयक पड़ा हुआ है। इसमें शिकायत करने वाले को सताए जाने के लिए कोई सज़ा नहीं दी गई है। यहां तक कि बिल में सताने यानी उत्पीड़न को भी विस्तार से नहीं बताया गया है। गुमनाम शिकायत को स्वीकार न करने की बात कही गई है और भ्रष्टाचार के खिलाफ बिगुल बजाने वाले को पीड़ित करने वाले अफसरों के लिए दंड की कोई व्याख्या नहीं की गई है। इस कानून की खामियों पर कई बार सार्वजनिक चर्चा हो चुकी है। दरअसल किसी बिगुल बजाने वाले को सुरक्षा देने के लिए कानून का इंतज़ार करना भी ठीक नहीं है। 2004 में ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कानून बनने से पहले भी सुरक्षा का प्रावधना होना चाहिए। इसके बाद भी एस पी महांतेश को कोई सुरक्षा नहीं दी गई।
यह सबक हमने सीखा है शैलेंद्र दूबे और मंजूनाथ की हत्या के बाद। लोगों के भावनात्मक उबाल का फायदा उठाने के लिए सरकारें उस वक्त तो वायदे कर देती हैं मगर जल्दी ही भूल जाती हैं। उन मामलों का भी पता नहीं चलता जिनके बारे में खुलासा करते हुए ये अफसर जान देते हैं। कुछ मामलों में अपराधियों को पकड़ कर सज़ा तो दे दी जाती है मगर बड़ा ओहदेदार पकड़ा नहीं जाता है। क्या आप जानते हैं कि शैलेंद्र दूबे ने स्वर्णिम चतुर्भुज योजना में तीस हज़ार करोड़ रुपये के घोटाले की बात कही थी। क्या आपको पता है कि उन आरोपों का क्या हुआ? कौन लोग थे जिन्होंने तीस हज़ार करोड़ रुपये का घोटाला किया? क्या शैलेंद्र दूबे की मौत का इंसाफ सिर्फ इसी बात से मिल जाता है कि कुछ लोगों को पकड़ा गया और उन्हें आजीवन कैद की सज़ा दिला दी गई। हमारे सिस्टम ने ऐसा क्या किया जिसके चलते किसी शैलेंद्र दूबे को जान जोखिम में डालने की नौबत ही न आए।वही हाल गुजरात के अमित जेठवा मामले की है। खनन माफियों की कारस्तानियों को उजागर करने वाले उनके आरोपों की जांच पर अभी तक कोई फैसला नहीं आया है। शहेला मसूद का मामला कहां अटका है सबको पता है।
इतना ही नहीं हमारा ध्यान ऐसे लड़ाकों पर तभी जाता है जब वो मार दिये जाते हैं। मैं ऐसे कई लोगों को जानता हूं जिन्होंने बैंक से लेकर कापरेटिव तक के बड़े घोटाले ज़ाहिर किये हैं मगर उनके विभाग ने तरह तरह से प्रताड़ित कर मानसिक रूप से विक्षिप्त कर दिया है। आर टी आई ने बिगुल बजाने वालों को हथियार तो दे दिया मगर भ्रष्टाचार के इस जंग में जान बचाने का कोई सेफगार्ड नहीं दिया। जो भ्रष्ट हैं वो बुलेटप्रूफ जैकेट में चल रहे हैं और जो भ्रष्टाचार से लड़ रहे हैं वो दिन दहाड़े मारे जा रहे हैं। दरअसल अब मान लेना चाहिए कि भ्रष्टाचार को लेकर समाज और सियासत का पक्का गठजोड़ है। जब तक इस गठजोड़ को नहीं तोड़ा जाएगा, महांतेश और मंजूनाथ मारे जाते रहेंगे।
ब्हिसिल ब्लोअर यानी बिगुल बजाने वाला, सचमुच सिस्टम से लड़ना किसी जंग के एलान से कम नहीं है। मध्यप्रदेश में ही लोकायुक्त के ज़रिये ढाई सौ करोड़ से अधिक की संपत्ति ज़ब्त हो चुकी है। जिस स्तर के अधिकारी पकड़े गए हैं उससे पता चलता है कि भ्रष्टाचार की लूट में सिस्टम के कौन कौन लोग शामिल हैं। जब नीचे के स्तर पर यह हाल है तो ऊपर के स्तर पर भ्रष्टाचार का क्या हाल होगा। और एक सवाल खुद से कीजिए। क्या आपको पता नहीं कि यह सब हो रहा है। क्या आप अपने सामाजिक जीवन में ऐसे भ्रष्ट लोगों से नहीं मिलते हैं। आपकी सहनशीलता तब क्यों नहीं टूटती जब ऐसे लोग सामने होते हैं। तब आप सवाल क्यों नहीं करते। तभी क्यों करने का ढोंग करते हैं जब एक युवा आईपीएस अफसर नरेंद्र कुमार कुचल कर मार दिया जाता है क्योंकि वो खनन माफियाओं पर लगाम लगाना चाहता था।
दरअसल हम ईमानदारों के इस जंग में ईमानदारी से शामिल नहीं हैं। यह कैसा समय और समाज है कि नरेंद्र कुमार और महांतेश के मार दिये जाने के बाद कहीं कोई प्रतिक्रिया नहीं है। कोई चित्कार नहीं है। राजनीति भी तो इसी समाज से आती है। तभी तो व्हिसिल ब्लोअर्स को सुरक्षा देने वाला विधेयक लोकसभा में पास हो जाने के बाद राज्य सभा में पेश होने का इंतज़ार ही कर रहा है। जल्दी न राजनीति को है न समाज को। हम अपनी पसंद के दल के भ्रष्टाचार से आंखें मूंद लेते हैं और विरोधी दल पर सवाल करते हैं। अपना बचाकर दूसरे का दिखाने से सवाल का जवाब नहीं मिलता। नरेंद्र कुमार और महांतेश का अपराधी कौन है? समाज या सरकार? अगर समाज नहीं है तो उसने सरकार से जवाब मांगने के लिए क्या किया? हम आईपीएल जैसे तमाशे में पैसा देकर भीड़ बन जाते हैं मगर इन अफसरों के लिए सड़कों पर नहीं निकलते। हमारे इसी दोहरेपन की दुधारी तलवार पर ईमानदार अफसरों की गर्दनें कट रही हैं।
(आज के राजस्थान पत्रिका में छपा है)
17 comments:
दुखद है कि सरकारों को ऐसी घटनाओं से कोई सरोकार नहीं है !
महान्तेश को हार्दिक श्रद्धांजलि
Its not only goverment inface we the "aam aadmi" is not honest towards to nation and our responsibilities. We do not care what is happening around us, all these sad news are just a news for us because we need to think about our next day.not only indian govt infact every one is responsible fot this.
रह रह कर निराश होते हुए मन को आपने फिर झकझोर दिया पर फिर भी और कहीं से आशा की किरण दिखाई नहीं देती .बस एक ही उपाय दिखता है -कम अज़ कम अपने बच्चों को बात बात पर रिश्वत दे कर बेईमानी न सिखाएँ ताकि आने वाला समय तो इमानदारों की गर्दन पर दोधारी तलवार न चलाये ! आमीन
ये सिस्टम ही गलत है सब से पहले हम बदलना होगा तभी हम किसी के ऊपर उगली उठा सकते है
ये सिस्टम ही गलत है सब से पहले हम बदलना होगा तभी हम किसी के ऊपर उगली उठा सकते है
ये सिस्टम ही गलत है सब से पहले हम बदलना होगा तभी हम किसी के ऊपर उगली उठा सकते है
गलती सरकार की ही नहीं हमारी भी है इस कारण यह है की आज कल हम उस के अदि हो गए है हम अपने आप को बदलना ही नहीं चाहते तो सिस्टम गलत नहीं गलत हम है
इस देरी से हिम्मतवालों की हिम्मत ढहने लगेगी।
sir, hamare yaha log cochte hai ki shivaji ka janma hona cahiye magar padosi k ghar main. bas aisa hi haal sab jagah hai.
wahi baat hai ki har koi chahta hai ki Bhagat Singh paida ho, lekin padosi ke ghar mein.
Hum sab log swarthi hai. Bas apne hi baare me sochte hai aur currup logo ka sath dethe hai. Sir aajkal aap prime time me nahi aate hai. f
Manoj uniyal Rishikesh
Bhagwan buddh ke paas ek aurat aai-kahne lagi,mere bete ko gudh khaaneki buri aadat hai.jab dekho gudh maangta hai aur khane ki zid karta hai,bachcha samjhkar diya ab lekin yah kutev 'buri aadat' ban chuki hai----aap isko updesh karo--vah sudhar jayega mujhe shraddha hai----tathagat ne unhe ek mahine baad bulaya--aur bachche ko kaha ab se gudh mat khana,meri baat maanoge-bachcha sahmat hua aur aashirvad se sudhar bhi gaya,
lekhak khud ek achhchhe patrakar aur
Lekhak khud ek achhe patrakar aur jimmedar naagrik hai.jitna khayal,kadar aur naitikata shayad mujh main ho na ho-tathagat ko jab us aurat ne puchha ki agar aap ko yah do baat kahni thi to ussi din kyun nahin kaha-bhagavan ne kaha maine sadantar gudh khana bandh kiya ek mahina.fir meri baat ka asar us baalak par ho paaya---
Naitikta se bhara insan khud prithvi ke jungum tirth kahe gaye hai shashtron main.
jinhone jivan diye unko vandan.
Please have a look at this article..It's based on your article..Credit has been suitably given to you :-)
ईमानदार आदमी का इनाम उसकी उपेक्षा, बदनामी और मौत!
http://wp.me/pTpgO-ol
-Arvind K.Pandey
http://indowaves.wordpress.com/
हम लोग सहूलियत के ईमानदार लोग है . जो अपनी ईमानदारी को सिर्फ एक लाइन तक स्ट्रेच करते है .हमारे लिए बेईमानी तब बेईमानी बनती है जब वो हमारे साथ घटती है .हम इस देश में सब कुछ परफेक्ट चाहते है पर उसमे भागीदारी नहीं करना चाहते
अच्छा लेख है रवीश जी ......
अगर आम जन ऐसी घटनाओँ पर तीव्र प्रतिक्रिया व्यक्त करने लग जाए तो फिर व्यवस्था कों सुधरने में समय ही कितना लगेगा .......लेकिन वर्षों बाद एक समांतर धारा बह निकली है अगर यह निजी स्वार्थो के हाथों में बर्बाद न् हुई तो फिर आने वाला समय परिवर्तन का साक्षी अवश्य ही बनेगा .......वंदेमातरम !!
Post a Comment