1)
मूंग धुली दाल की तरह चमकती दिल्ली और घने-हरे पेड़ों की मस्ती के नीचे लोधी गार्डन में उसने अपने कदम तेज़ कर लिये। बालों को समेट कर शर्मिला टैगोर मार्का जूड़ा बना लिया। साड़ी मुमताज़ जैसी। पीछा करती आवाज़ से बचने के लिए उसने तेज़ी से सड़क पार की और ख़ान मार्केट की दुकानों को निहारते चलने लगी। वो आवाज़ अब भी आ रही थी..हमीं जब न होंगे तो ऐ दिलरुबा..किसे देखकर हाय शर्माओगे...बदन पे सितारे...कहां जा रही हो,पांव ठिठक से गए, दुकान के शीशे पर प्रिंस की तस्वीर,उफ्फ शम्मी,विल मिस यू।(लप्रेक)
2)
अभी-अभी वो शहीद देखकर निकला था। गोलचा सिनेमा से बाहर आते ही डिवाइडर पर खड़े होकर भाषण देने लगा। लानत है यह जवानी जो मुल्क के काम न आए। तोड़ दो बेड़ियों को। वो घबरा गई। अचानक से तुम्हें क्या हो गया। फ़िल्म के असर में इंक़लाब की बातें न करो। अब इंकलाब की इजाज़त नहीं है देश में। कल ही एक मंत्री ने कहा है। मैंने तो पहले ही कहा था कि ज़िंदगी मिलेगी न दोबारा देखते हैं। कभी-कभी तो इस मुल्क पर खुश होना सीखो जानम।( लप्रेक)
3)
अभी-अभी वो शहीद देखकर निकला था। गोलचा सिनेमा से बाहर आते ही डिवाइडर पर खड़े होकर भाषण देने लगा। लानत है यह जवानी जो मुल्क के काम न आए। तोड़ दो बेड़ियों को। वो घबरा गई। अचानक से तुम्हें क्या हो गया। फ़िल्म के असर में इंक़लाब की बातें न करो। अब इंकलाब की इजाज़त नहीं है देश में। कल ही एक मंत्री ने कहा है। मैंने तो पहले ही कहा था कि ज़िंदगी मिलेगी न दोबारा देखते हैं। कभी-कभी तो इस मुल्क पर खुश होना सीखो जानम।( लप्रेक)
4)
मसूर की दाल तो मालवीय नगर में भी मिलती है। लेकिन मुझे शापिंग का अहसास होता ही है ख़ान मार्केट में। वहां मुझे कोई जानता नहीं बट सब अपने जैसे लगते हैं। डार्लिंग सवाल वहां की भीड़ का नहीं है। मसूर की दाल का है। ओफ्फो,तुम्हारा भी न,क्लास नहीं है। ये कार, गोगल्स, डियोड्रेंट तुमने ड्राइंग रूम के लिए ख़रीदे हैं क्या। मुझे जीने दो और जाने दो। और तुम क्यों जाते हो ओबेरॉय में कॉफी पीने? क्या पता ज़िंदगी मिले न दोबारा। फिल्म देखकर आए तो दोनों के झगड़े भी बदल गए।(लप्रेक)
5)
नहीं मैं इस्तीफा नहीं दूंगा। गहरी नींद से अचानक वह जाग गया। क्या हुआ। बगल में जाग रही लाजवंती ने पूछा तो अलबलाने लगा। सपना देख रहा था। क्या? यही कि सीएजी में नाम आ गया है। लोकायुक्त की रिपोर्ट में भी नाम है। लोगों ने मुझे घेर लिया है। इस्तीफा मांग रहे हैं। हां तो ये कौन सा सपना है। जो दिन में देखते हो, वही रात में भी । छोड़ों रिपोर्टिंग। एंकर बन जाओ। सपने नहीं आएंगे। क्या पता तब तुम किसी सपने में टाई में लटके मिलो। न बाबा न। मेरे ख्याल से तुम सपने देखना ही छोड़ दो।( लप्रेक)
6)
दोनों परेशान थे। सीएजी की रिपोर्ट में बारापुला का नाम देखकर। बारापुला पर ही खड़े होकर दोनों ने हुमायूं के मकबरे की पीठ की तरफ अपना सीना कर कसमें खाईं थीं। हमेशा हमेशा के लिए बारापुला पर आकर उसे निहारने का वादा किया था। अखबार में ख़बर देख वो घबराई हुई थी। कहने लगी कि इस पुल के साथ हमारा प्यार भी दाग़दार हो गया है। हमें क्यों न मालूम चल सका कि जिस बारापुला पर खड़े होकर हम एक दूसरे का हाथ थामे रहे, उसकी बुनियाद किसी घोटाले में है। अल्लाह, ये इश्क़ का कौन सा इम्तहान है।( लप्रेक)
7)
चित्तरंजन पार्के के मार्केट वन में कतला पर तरसती उसकी निगाहें जब उठीं तो मछलियों की भीड़ से टैंगड़ा चुनती उसकी कलाई पर टिक गई। ताज़ी मछली को चुन लेना पारखी निगाहों का काम है। कतला छोड़ वो भी टैंगड़ा ढूंढने लगा। कलाइयां टकराने लगीं। बगल में बेसुध पड़ी पाबदा और रोहू का कटा बड़ा सा हिस्सा,ताज़ी मछली ले लो की चिचियाहट,निगाहें जब मिलती हैं तो सूखी ज़मीन पर मछलियों की तरह तड़पने-तैरने लगती हैं। तब तक तड़पती है जब तक कोई काट कर झट से उसे पीस में न बदल दे। (लप्रेक)
8)
11 comments:
चलिए सारे नए लप्रेक एक साथ पढ़ने मिल गए... इसी तरह कुछ कुछ खुराक देते रहिये अपने कस्बा वासियो को..
bhaai waah.....
Bahoot dino baad, achacha laga. laprek ka full form bata dijiyega.
mahendra ji lprek ka ful form hi to heading hai yani ...laghu prem katha
सभी मे अच्छा संदेश है।
likhte raha kariye sir..is baar tea break kuchh zada hi lamba tha
काफी दिनों बाद..
बहुत खूबसूरत
aanandayi
Ravishji Aap Imandar hain. Behtar hota ki Aap 1 Naye vichar ke saath naye show me aate aur Logon ke dimag me danka baja Jate. Prime time me swasth bahs dekhne ko mil rahi hai.
Sir.. muje th padhte samay kuch aisa pratit hua jaise yeh mei khud keh ra hu apni premika ke sath aadi aadi..
kul milake jaan thi lekh mei kaafi aur dum itna ke pata ni laga ke sirf lekh h ya koi film chal ri hai.
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