खेती के विकास के लिए कभी आपने नेताओं की इतन सक्रियता देखी है? ग्रेटर नोएडा से लेकर देश के सैंकड़ों स्थानों पर किसानों की ज़मीन विकास के लिए ली जा रही है। खुद खेती संकट के दौर से गुज़र रही है। अनाजों को रखने के लिए अभी तक गोदाम नहीं बन सके हैं। फल-सब्ज़ियों के उत्पाद को बचाने के लिए वातानुकूलित स्टोरेज की व्यवस्था तक नहीं कर पाये। किसान का कर्ज़ा माफ करके और उस पर कर्ज़ लाद कर उसे वहीं का वहीं रख छोड़ा जा रहा है। किसानों के साथ विकास के नाम पर मज़ाक हो रहा है। गांवों में आप स्कूल,सड़कों और बिजली की हालत देख लीजिए। किसानों के बच्चे किस स्तर की शिक्षा पा रहे हैं। बीबी-बच्चों का अस्पताल जिन सरकारी अस्पतालों में होता है उनकी हालत देख लीजिए। इन सब हालात में सुधार के लिए तो कोई राजनीतिक दल आगे नहीं आता। उनके लिए अब तक कि सबसे बड़ी परियोजना यही सोची जा सकी कि उनकी दिहाड़ी मज़दूरी तय कर देते हैं। एक तरफ उन्हें पिछड़ा बनाए रखो और दूसरी तरफ उन्हें ख़ैरात बांट दो और इस खैरात का भार न पड़े इसलिए रोज़ाना पंद्रह रुपये से अधिक कमाने वाले को ग़रीब से अमीर घोषित कर दो। गांवों और किसानों के विकास के नाम पर बनी तमाम योजनाओं संपादकों के कॉलम में ही ज्यादा बेहतर और नियोजित नज़र आती हैं। ज़मीन की तस्वीर वही है जो बीस साल पहले थी। कुछ सरकार से भावनात्मक आशीर्वाद प्राप्त पत्रकार तो अब यह दलील देने लगे हैं कि देखिये गांवों में लोग टीवी खरीद रहे हैं, डिश टीवी आ रहा है, बाइक की सेल्स बढ़ गईं हैं, वहां कोई गरीबी नहीं हैं। गांवों में पैसा है।
हमारे किसानों और गांवों को बाज़ार में भी बराबरी से उतरने का मौका नहीं दिया जा रहा है। सरकार ने तो उन्हें गैर बराबरी के नीचे दबाये रखने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। ग्रेटर नोएडा से आगरा तक की दूरी सिर्फ पचास किमी कम हो जाए इसके लिए हज़ारों हेक्टेयर उपजाऊ ज़मीन ले ली गई। किसानों को भूमिहीन बना दिया गया। इसी के साथ खेती पर निर्भर तमाम तरह के खेतिहर मज़दूर भी बेकार हो गए। टप्पल से लेकर ग्रेटर नोएडा तक ऐसे कई किसानों से मिला जो पहले ज़मींदार थे। छोटी जोत के। ये सब अब भूमिहीन हो गए हैं। बैंकों में इनके साठ लाख की फिक्स्ड डिपोज़िट ज़रूर होगी मगर ये बेकार हो चुके हैं। दूसरे गांवों में ज़मीन लेना और बसना इतना आसान नहीं होता। पारंपरिक पेशे से उजड़ने और ज़मीन से जुड़ी सामाजिक मर्यादा के नुकसान की भरपाई मुआवज़े की राशि में नहीं होती है। इस बात का तो अध्ययन अभी तक नहीं हुआ है कि ज़मीन से बेदखल होने का गांव के पारंपरिक सामाजिक संबंधों पर क्या असर पड़ता है। राजनीतिक नारेबाज़ियों के बीच टप्पल में ही कई दलित किसानों से मिला। कानूनी अड़चनों के कारण उनकी ज़मीन का बाज़ार भाव कम होता है। दलितों ने बताया कि हमें तो अधिक दाम मिला लेकिन वो पैसा जल्दी ही घर बनाने और शादी ब्याह में खत्म हो गया. हम भी जाटों की तरह ही बेकार और विस्थापित हो गए।
इसी के साथ यह सवाल भी उभरा कि फिर इन किसान आंदोलनों के नेतृत्व या समर्थक के पैमाने पर दलितों की भागीदारी कम या नहीं के बराबर क्यों हैं? टप्पल का विरोध बड़ा नहीं होता अगर चौधरी कहे जाने वाले किसानों की ज़मीन नहीं गई होती। मेरी समझ से यह मौजूदा किसान आंदोलनों का अंतर्विरोध है। फिर भी आप देखेंगे कि किसान आंदोलन अब किसी राजनीतिक दल के मंच से नहीं होते। ग्रेटर नोएडा से लेकर टप्पल तक अलग-अलग किसान संघर्ष समितियां हैं। वक्त पड़ने पर इनके बीच साझा ज़रूर हो जाता है मगर इनका चरित्र स्थानीय है। आगरा के भूमि बचाव संघर्ष समिति के नेता ने कहा कि मुआवज़े की लड़ाई ही नहीं हैं। हम तो ज़मीन ही नहीं देना चाहते हैं। सरकार हमें पांच सौ रुपये प्रति वर्ग मीटर( अनुमानित राशि) देती है जबकि बिल्डर को देती है दो से तीन हज़ार वर्ग मीटर के दर से। यानी पहला मुनाफा तो सरकार ने ही बनाया। फिर बिल्डर उस ज़मीन को पंद्रह से बीस हज़ार प्रति वर्ग मीटर के रेट से बेच रहा है। अगर आप इस इलाके की ज़मीन का औसत मूल्य के आधार पर भी हिसाब लगाए तो यह घोटाला तीस लाख करोड़ रुपये से ज़्यादा का है। सवाल है कि सरकार क्यों नहीं किसानों को सीधे बाज़ार में उतरने दे रही है। वो उनसे ज़मीन लेकर बिल्डरों को क्यों बेच रही है। जो सरकार को मुनाफा हो रहा है वो किसानों को क्यों नहीं मिल रहा है।
दूसरी बात क्या कोई साबित कर सकता है कि बीस साल के उदारीकरण में जो विकास हुआ उसमें किसानों की भी हिस्सेदारी रही। भागीदारी तो नहीं रही उनकी। फिर किस हक से उनकी ज़मीन हड़प ली जा रही है। बुनियादी ढांचे के विकास की इतनी बेताबी है तो खेती में बुनियादी ढांचे के विकास की बात क्यों नहीं हो रही है। कितनी सिंचाई परियोजनाएं आपने इस दौरान बनती देखी है। कितनी ऐसी योजनाएं आपने देखी हैं, मधुमक्खी पालन के अलावा, जिनसे खेती का उद्योगिकरण हो रहा है।
मीडिया तो राहुल गांधी को कवरेज देगी ही। लेकिन जो सवाल है तीस लाख करोड़ रुपये के घोटाले का,उसकी कोई तहकीकात नहीं करेगा। क्योंकि ये सवाल उसे मायावती तक ले जाने से पहले प्रायोजकों के दरवाजे पर ले जायेंगे। इसलिए आप किसानों के इस आंदोलन की कवरेज में पीपली लाइव का तमाशा देखिये। ऐसा फालतू दर्शक समाज मैंने कहीं नहीं देखा और पालतू मीडिया। किसान मुआवज़े की राशि लेकर देसी शराब के ठेके पर नहीं जायेगा तो क्या करेगा। उसे क्या हमने ऐसी तालीम दी है कि वह अपना उद्योग धंधा कायम कर सके। आखिर मुआवज़े से विकास होता तो आप ग्रेटर नोएडा और गुड़गांव के किसानों का अध्य्यन तो कीजिए और पता तो लगाइये कि इतनी बड़ी राशि आने के बाद कितने किसानों ने उद्यमिता का मार्ग अपनाया। हां कुछ किसानों की शानो शौकत की खबरें आप अखबारों में ज़रूर पढ़ते रहे होंगे। ये वो कुछ किसान हैं जिनके पास बेहिसाब ज़मीन थी और राजनीतिक सत्ता से संबंध जिनके बूते इन्होंने अपने पैसा का तानाबाना बुन लिया। बाकी किसान पव्वा और अध्धा में ही व्यस्त रह गए। टेंपो ड्राइवर बन गए।
भाई साहब,किसी नेता से पूछिये तो वो किसी बिल्डर के बारे में क्यों नहीं बोल रहे। कमीशन तो उन्हें भी मिलता रहा है बिल्डरों से। माफ कीजिएगा। ये आज कल डेवलपर कहलाने लगे हैं। विकास आज के समय का सबसे बड़ा डाकू है।
38 comments:
such such hota hai. kisan aaj bhi kisan hai aur use kisan hi rahna chhahiye.
pramod gupta
bildar aaj devloper ho gaye, devlopment hi aaj ke daur ka sabse bada dakait hai. bahut sahi\
ravishankar upadhyay
जनता तो मूक-बघिर बन्दर कि तरह है और सरकार मदारी. आज जो तमाशबीन बने हैं, कल वो भी तमाशे के केन्द्र मे होंगे.
देश के 70% आबादी गांव में है जंहा ना शिक्षा, स्वास्थ गरीबी के दर्द से बेहाल है, उन पर भी सरकार उनकी जमीन की दलाली कर के विकाश नहीं बिनाश कर रही है
desh ka vikas karne se lekar vikseet banane me jitne bhi kisano or chote logo ki bali chadti hai so chade. . .
Ye iss desh ka 'ajenda for development' hai. . . . .
Jisme sabhi(aap aur hum) chupi thame rehte hai. . .
Aur ek din apna gussa dikhate hai jantar-mantar par dharna de kar. . . . .
Iski lambi chodi process hai kami hum sab me hai. . . . . . . .
"विकास आज के समय का सबसे बड़ा डाकू है" .......क्या लिखा है रवीश भाई आपने. नेहरु ने कहा था कि सबकुछ इंतज़ार कर सकता है पर कृषि नही....पर आज जैतापुर से ग्रेटर नोयडा तक.....कृषि सबकुछ का इंतज़ार कर रही है. पता नही ये इंतज़ार खत्म होगा कि नही. पर एक बात है कि कृषि खत्म हो जायगा और फिर धीरे धीरे हम आप सब भी..... मृणाल.
पोस्ट का शीर्षक ही सब बयान कर देता है, वैसे ही जेसे लिफाफे को देखकर खत का मजमून भांप लिया जाये। यह वाकई विचारणीय है कि हम अपने आपको गर्व से क़ृषि प्रधान देश कहते हैं लेकिन कृषि के लिये कुछ नहीं करते। किसानों से ही उनकी जमीन लेकर विकास करते हैं और विकास होने के बाद किसान की कोई सुध नहीं लेते।
यही तो अफसोसजनक सत्य है कि इस देश में विकास के लिए किसानों की जमीनें औने पौने दामों में ली जाती हैं और उस पर होने वाले निर्माण का फायदा ताउम्र निजी कंपनियां उठाती हैं। सड़कों को ही लीजिए, किसानों से जमीनें खरीदकर उसमें एक्सप्रेस हाईवे का निर्माण निजी कंपनियां करती हैं और टोल के रूप में पैसे वसूलती हैं, पर क्या जो राशि किसानों को उनकी जमीन के बदले मिली है, वो भी इतने सालों तक चलेगी। मुझे लगता है कि अगर जमीन छीनने के बजाय उनको प्रोजेक्ट का हिस्सेदार बना दिया जाए, तो जमीन मालिकों का भी फायदा होगा और विकास भी अपनी गति से चलता रहेगा।
"ऐसा फालतू दर्शक समाज मैंने कहीं नहीं देखा और पालतू मीडिया।"
जमीन इस देश में काले धन का स्विसबैंक है . और नौकरशाह , राजनेता , और डेवलपर इसे चला रहें हैं . तभी तो इस वस्तु का कोई माप नहीं है . उत्पादन ५०० का होता है बिकता १००० है . बाकी ५०० की मिलावट हवा से होती है . घर सपना जो है , सपने बेचे जाते हैं. इसके उपभोक्ता की सुरक्षा का कोई कानून नहीं है . और इस में insider trading सबसे ज्यादा है . नेता , नौकरशाह पहले हड़प लेते हैं . इसका न कोई सेबी है , न बेबी . और दलाली तो पुराना पेशा है . इसमें लागत नहीं है जो . तभी तो सब ब्रोकर बन बैठे हैं - २ प्रतिशत वाले . सच कहें रोना नहीं , हंसी आती है . जमीन तो बहाना है . असली खेल तो रियल एस्टेट का है . पुणे में किसानों ने खुद डेवेलपर हो कर राह दिखाई थी , किसान वैसा क्योँ नहीं करते ?
ACBs , CBIs, EDs क्या सो रहे हैं ? क्या इनको इन बिल्डर्स और politician का nexus नहीं दीखता ? बेशरम हो गए हैं सब के सब .. गरीब के सर पर तलवार लटकाकर कब तक ये नेता लोग करोडपति बनते रहेंगे. कब तक ऐसे ही छुट्टे घुमते रहेंगे .. क्या इनको रोकने वाला कोई नहीं है ?
बल्कुल जायज़ सवाल उठाया है आपने लेकिन दरअसल हम इतने मजबूर क्यों हैं कि सिर्फ़ सवाल उठाने के अलावा कुछ कर पाने अपने आप को असमर्थ पाते है? लोकतंत्र का मतलब फिर क्या रह जाता है जब जनता को ही सरकारों के दया पर जिंदा रहना पड़े? सिंगुर नंदीग्राम से जैतापुर नोएडा तक आम आदमी सड़कों पर उतर कर सरकारी गोलियों का शिकार होते रहते हैं और दावा विकास का किया जाता है| आंकड़ों को झुठलाकर कर विकास के पैमाने दिखाए जाते हैं| आश्चर्य है कि मीडिया में राहुल गाँधी की ख़बरें इतनी प्रमुखता से आ रही हैं जितनी किसान आंदोलन की भी नहीं आई| अख़बारों के संपादकों की मानसिकता समझ में नहीं आती| जनसेवा को अपना धर्म ये संपादक सिर्फ़ सेमिनारों में बोलते नजर आते हैं, जब इन्हें अमल में लाना होता है सांप की तरह बिल में घुस जाते हैं| ऐसे में किसान भूख से मरे या गोली खाकर क्या फर्क पड़ता है?
iss desh main iss samay sabse badi samsya yah hai ki public ko, ya netaao ki bhasa mai kahe ki aam aadami ko mahengai aurr baki nayi upbhokta wadi sanskriti jo udarikarn k baa aayi hai usmae phasa diya gaya hai aam aadami na aaj kch soch pata hai na msjh ...kissan jink liye kabhi annsata aur jai kissan kaha jata tha aaj vo vikaas virodhi ho gaye rato rath inhe DEVLOPERO k aaage tuch prani ghosit kar diya gaya gr noida main jo kissan mare gye unk liye koi muvaja kyu nhi mila... kyuki vo kissan they yahi unka gunaah hai .. kya desh main aam aadami aur kissan ab apne ghar aur jamin par bhi nhi rh sakta hai??
builder devloper ho agye lekin kissan kisaan hi hai... usk liye koi naya shabd nhi bana haan ye jaroor hi ki jab vo apni jamin bcahane k liye ladega toh NAXLI ban jaega aur satta ka dusman no ek hoga ...,unhe khtm kar diya jayega,sawaal ye hai ki 4 mnths se kissano ka aandolan chal rha lekin koi political party aage nhi aayi jab violence ho gaya kissan and police wale mare gaye and up k elcetion hone laga tab ye neta apne ac bunglow se bahar nilkale kyuki ab vote ki fasal dikhnae lagi na
rahul gandhi gr noida gaye achi baat hai lekin kya vo jaitpura bhi gaye ????? abhi tak land acqusition law kyu nhi pass hua ?
ye bhi bataye
Lal bahadur shastri ne Nara diya tha Jai kisan, Jai jawan, par lagta hai kisan ko vikas ne iss tarah lachar aur vivash kiya hai ki jo kudh jameen se anaaj paida karta tha, wo us jameen aur anaaj ke liye taras jayega.
Aur ye saab hamari Vikassheel se vikset hone ki galat planning ka natija hai.
इतिहास गवाह है की जब भी देश के सत्ताधारी शासकों ने जनता के हित की अनदेखी की है तो इसके दूरगामी परिणाम घातक रहें हैं... आज हमारे नेताओं का ख़ुदग़र्ज़ और स्वार्थ सारी जनता के सामने है, किंतु कहीं भी विद्रोह का स्वर नही है... न्यूज़ पेपर में भी राहुल के त्याग और बलिदान (कैसे वो दिन भर धूप में बैठे रहे, और क्या खाया) का ही जिर्क है.. नेताओं और बिल्डर्स के नेक्सस पर कोई चर्चा नही हो रही!! मैं आप का शुक्रगुज़ार हूँ की आपने ये महत्वपूर्ण पहलू जनता के सामने निर्भीक तरीके से रखा!!!!
desh ke aanndaata ki roti chinne me lagii hui hai aaj ki rajnitik partiya.
muge ni lagta kuch comment krne ki jarurat hai jisne bhi likha hai ultimate likha h thanx him a lot
एक फ्लैट लिया था मैंने पिछले साल नॉएडा में. अब थोड़ी शर्म सी आ रही है, उसका भाव बढ़ता देख कर.
किसान संघर्ष की इका दुक्का खबरें तो पहले भी सुनता था, पर मीडिया का ध्यान कम ही था, पर लगता था की उनको बाजार के अनुसार मुआवजा मिला है. पर अब राजनैतिक मुद्दा बन गया है तो हर जगह फ्रोंत्लिने पर है. नैक्सस तो है बिल्डर और नेता का, पर मीडिया भी बराबर का हिस्सेदार लगता है... जब मालिक बोलेंगे तभी शोर मचाएंगे...
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी आज के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
विकास के नाम पर लूट और खोखले होते दावे और देश.......
30lakh caror ka ghotala. bus sir ab ye na batao. abhi abhi soch ke hatha tha ki 1 lakh 76 hajar caror kitna hota hoga........ aur mere paas hota to me kya karta.........?
i am so tired of this psuedo developement that i will not even name my son vikas.
thode kisan to sharabi banengey aur baki dakait.kya vikas kar rahi ho aap?
विकास का ये फार्मूला किसी को भी समझ नहीं आता .. भगवान बचाए ऐसे नीति निर्धारकों से !!
विकास आज के समय का सबसे बड़ा डाकू है।
और ये भी सच है सर की आज के डेवलपर और नेता लोग जो विकास के बीज बोये जा रहें हैं वो न चाहते हुए भी डाकुओ को पैदा करेंगे.
s.g. chaudhari, ahd.
बहुत खूब लिखा एक पंक्ति में सब कुछ
ऐसा फालतू दर्शक समाज मैंने कहीं नहीं देखा और पालतू मीडिया।
मैं भी किसानो से हमदर्दी रखता हु, एक किसान का बेटा हु, पर हमने भी greater noida में प्लाट ले रखा है, डरता हु यदि किसान सफल हो जाये तो जिन्दगी भर का जमा किया हुआ builder को दिया है उसका क्या होगा. हम में से बहुत लोग है जो नॉएडा और गुडगाँव में फ्लैट में रहते है जो कभी किसान का जमीन हुआ करता था.
अभी तक नहीं समझ पा रहा हु, काल तक किसान के लिए खुश था, खबर मीडिया में आ गया है, राहुल गाँधी भी चले गए है, अब तो किसान के साथ इंसाफ होगा .....
तभी .... एक खबर आये कोर्ट ने नॉएडा में एक अल्लोत्मेंट रद्द कर दिया .. . . .. . दिल थम गया कंही हमारा वाले developer का न हो .....
सोचता हु कंही कोर्ट या सरकार ने किसानो को जमीन वापस कर दी हमारे प्लाट का क्या होगा जो २०००० के रेट से लिया है ..
इसलिए में ग्रेअटर नॉएडा के किसानो से माफ़ी चाहता हु ... . ..
गौरव सिंह
विकास के डेवलपर बिल्डर - क्या खूब
दलित वाली बात सही कही आपने (रवीश की रिपोर्ट में भी एक बार कहा था) असल ये जो जाति है ना, ये हमारे समाज या कहे ही हमारी चीज में है! बस जरुरत है तो इसे थोडा सा ध्यान से रुक कर देखने की! राहुल गाँधी के जाने से पता नही कितना फायदा होगा किसानो का पर जमीन के ये पढ़े लिखे विकसित लुटेरे हर जगह मोजूद है! और थोड़े बहुत रुकावट के बावजूद ये जारी रहेगा क्योंकि ये एक पार्टी, एक राज्य की बात नही है पुरी नीति नीयत ही ख़राब है
रमेश
वाकई में आज किसानो का कोई सुनने वाला नहीं है. ये हाल पुरे देश का है. किसान ठगे जा रहे हैं और सर्कार विकास का खोखला दावा hi kar rahi है.
भारत महान है - प्राचीन है और इसकी समस्याएं भी महान हैं...
अनंत काल से वस्त्र समान चली आ रही प्राचीन सभ्यता है,,, जिस कारण यह आज अनेक पैबंद लगे वस्त्र समान प्रतीत होती है - अभी एक सिलाई पूरी की नहीं कि किसी अन्य स्थान पर सिलाई की आवश्यकता प्रतीत होने लगती है... तभी तो शायर कह गया, "हम लोग तो उकता गए/ अपनी सुना आवारगी" :)
इस तरह के विकास के नाम पर तो नेता और भूमाफिया (बिल्डर) अपना ही विकास करने लगे है | किसान का विकास तो यही होगा कि जमीन छीन जाने के बाद वह बेकार हो जायेगा ,मुआवजे में मिली रकम थोड़े दिनों में ख़त्म हो जाएगी | वह भी शराब व महंगी गाड़ियाँ खरीदने के बदले वापस पूंजीपतियों के यहाँ चली जाएगी ,और किसान के बेरोजगार बेटे बदमाशी गुंडागर्दी करेंगे | हो गया बेचारे किसान का विकास !!
एक तरफ कर्ज माफ करो दूसरी तरफ फिर से लाद दो मगर बेचारे किसान को कभी भी पनपने मत दो। सरकार की मंशा को आपने बहुत अच्छे से प्रस्तुत किया..........सादर
सर मै प्रवीण परमार माखनलाल चतुर्वेदी पतकारिता विस्वविद्यालय का भूतपूव छात्र हूँ मध्य प्रदेश मै अपने आप को किसान पुत्र कहने वाले शिवराज सिंह की सर्कार है उसी पदश में किसान फसल बेचने को मोहताज है फसल बेचने के लिए जुगाड़ करना पड़रहा है मै आपसे चाहता हूँ की इस पर आप एक खबर करने के बारे में जरुर सोचे |
namaste sir, sochta hu me kabhi kabhi ki kash me andha hota to kuch dekh hi nahi pata kam se kam is dhokhe me rahta ki dunia bahut khubsurat hogi, kash me pada-likha nahi hota to kuch pad hi nahi pata aur padhe-likho ko bhagwan samjhta,
kaisa bhi hota par sab kuch dekhte samajhte hue bhi kuch nahi kar pane ki bewsi aur lachari se to bach pata.
सही मे ताज्जुब होत है इस केन्द्र सरकार पर एक तरफ तो अपने को गरीबो का हमदर्द कहती है और वही दुसरी तरफ उनहे लुतने मे भी कोइ कसर नही
छोडती है.
आज उत्तर प्रदेश में में कांग्रेस की सरकार बन जायेगी आपकी लेखनी किसानों की बात करमा बंद कर देगी। आपको तब किसान कहीं नजर नहीं आयेंगें।
रविश जी सही मानिए मैंने किसी को भी मीडिया की शिकारी कुत्तों जैसी आदत को सराहते नहीं सुना। पर फिर भी ना जाने क्यूँ मीडिया ऐसी ही चीजों को बढ़ावा देता है। मैं ऑफिस से आने के बाद संक्षेप में खबरें देखना चाहता हूँ पर वहाँ खबरों के अलावा सब कुछ होता है। किसी घटना को इस कदर खीच कर लंबा और उबाऊ बना दिया जाता है की दुबारा उस चैनल की ओर आने का मन नहीं करता तो सवाल यह है की आखिर किस लिए मीडिया पीपली लाइव चलता है। ना चलये तो? लेकिन हाँ तब बिज़नस कैसे चलेगा? मुन्नी शीला और सनसनी ही तो बिकते हैं। बाज़ार चालू है और हर चीज़ अब बाजारू है। मीडिया भी और खबरें भी।
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