भागलपुर की खंडहर होती धर्मशालाएं





घूमते-टहलते एक धर्मशाला में पहुंच गया। दल्लू बाबू का धर्मशाला। बीसवीं सदी के चार साल हुए थे तब खेमका परिवार के लोगों ने इस धर्मशाला को बनवाया था। अब मुकदमेबाज़ी में फंस गया है। बत्तीस कमरे हैं। बड़ा सा आंगन। एक चापाकल। रखरखाव एकदम खराब। रंगाई-पुताई इक्कीसवीं सदी में तो नहीं ही हुई है। बरामदे में कुछ यात्रियों को देखकर पूछने लगा कि यहां कौन लोग ठहरते हैं। मैनेजर बासुदेव घोष ने बताया कि यहां गरीब लोग ठहरते हैं। गांव से जब शहर में आते हैं, तो उनके लिए होटल मुश्किल है। बरामदे का किराया तीन रुपये है। रूम का तीस रूपये। जिसमें से दस रूपये बासुदेव बाबू अपनी सुविधा सप्लाई और वेतन के लिए रख लेते हैं। सुविधा में दो रुपये की बोरी की चट्टी मिलती है। बस। बाथरूम नरक से भी बेहतर था। गंध से एनिस्थिसिया का असर पैदा हो रहा था।



अब कोई धर्मशालाएं नहीं बनवाता। पुण्य के नए इदारे बन गए हैं। ये सारी धर्मशालाएं गंदगी का अंबार बन गई हैं। बासुदेव घोष ने बताया कि किशोर कुनाल इन सब मामलों के कर्ता-धर्ता हैं। उनके पास समय की कमी है वैसे वे नेक काम कर रहे हैं। घोष बंगाली हैं मगर शारीरिक हाव-भाव से बंगालीपन लुप्तप्राय हो चुका है। एक किस्सा बताया कि लालू के राज में जब यहां के डीएम गोरेलाल यादव ने खटाल खोलने की बात की तो उन्होंने कब्ज़ा होने के डर से धर्मशाला के पीछे की जमीन को कूड़ेदानी में बदल दिया। कब्जे से बचाने के लिए यहां कूड़ा फेंकवाने लगे।





यह एक और धर्मशाला है। यहां भी एक सज्जन ने कहा कि देखिये। ये खींचीये न। पीछे के हिस्से में कूड़े की छंटाई हो रही थी और सामने खंडहर। यहां ट्रांसपोर्ट यूनियन का दफ्तर चलता है। भागलपुर के पत्रकारों और ब्लागरों को धर्मशालाओं के इतिहास, योगदान और स्थिति पर लिखना चाहिए। ट्रस्ट की यह ज़मीन समाज के काम आ सकती है।


7 comments:

amitesh said...

अर्थशाला के दौर में धर्मशाला को कौन पूछता है.

प्रवीण पाण्डेय said...

बाजार हावी है।

sanjay said...

रविश सर, भागलपुर की ही बात नहीं है। ये सवाल सभी जगह का है। एक समय था जब पर्यटकों को ठहरने के लिए धर्मशाला के अलावा कुछ विकल्प नहीं था। धर्मशालाएं ही एक मात्र अपना ठिकाना रहता था। आज ये स्थान होटलों ने ले लिया है।
सवजी चौधरी, अहमदाबाद, ९९९८० ४३२३८.

नताशा said...

समूचा भागलपुर !!! भाषा में भक्रमण बड़ा भास्तविक है मगर कहने की जुर्रत मत कीजियेगा वरना वो भी कहेंगे की आप भागलपुर काहे कहते हैं ? वागलपुर कहिये तो समझें ......बाजते छि त हारलू कोना????

suraj singh said...

बहुत ही बेहतरीन ब्लॉग

स्थानीयता और छोटे शहरों के ग्लामर को देखना समझाना हो तो इस ब्लॉग को जरूर पढ़े

रविश जी वैसे आपकी रिपोर्ट की तरह ब्लॉग भी अकर्श्षित करती है

ajit rai said...

सर जी .आपके खोजी पत्रकारिता के स्वभाव ने भागलपुर का पोस्टमार्टम कर दिया ! जिस ओर सबकी निगाह पडती है पर विषय नहीं बन पाता वह मुद्दा भी आपके परखी नजर से नहीं बच सकता ! फोटो और विश्लेषण दोनों कमाल का है

ajit rai said...

सर जी .आपके खोजी पत्रकारिता के स्वभाव ने भागलपुर का पोस्टमार्टम कर दिया ! जिस ओर सबकी निगाह पडती है पर विषय नहीं बन पाता वह मुद्दा भी आपके परखी नजर से नहीं बच सकता ! फोटो और विश्लेषण दोनों कमाल का है