भागलपुर गया था। अंगिका डेवलपमेंट सोसायटी के बुलावे पर। डॉ राजेंद्र प्रसाद बिहार गौरव पुरस्कार लेने के लिए। उत्तरायणी गंगा के तट पर डी पी एस भागलपुर बना है। अभी बनने की प्रक्रिया में है। भागलपुर के भारतीय जनता पार्टी के सांसद शाहनवाज़ हुसैन मुख्य अतिथि थे। उनके ही हाथों यह पुरस्कार प्राप्त हुआ। स्कूली बच्चों के बीच जाना अच्छा लगता है। संयोग से पिछले कुछ महीनों में कई तरह के स्कूलों में जाना हुआ है। कस्बा में उनके अनुभव दर्ज हैं। डी पी एस भागलपुर लगभग चौबीस एकड़ एरिया में फैला है। राजेश श्रीवास्तव कहते ही रहे कि क्या आज के सिस्टम के अनुसार पेशेवर बनाने से ज़्यादा सामाजिक रूप से ज़िम्मेदार बच्चे बनाये जा सकते हैं? वो खुद एक प्राइवेट कंपनी के बड़े पद पर रहे हैं। बच्चों को बेहतर शिक्षा देने का मतलब है सामाजिक सरोकारों में बेहतर कौशल भी देना। डॉ राजेंद्र प्रसाद सम्मान सामाजिक क्षेत्र के लिए काम करने वाले लोगों को ही दिया जाएगा। पहले दो साल यह पुरस्कार राजनीतिक हस्तियों को दिए गए थे। लेकिन फिर सोच बदल गई। सोसायटी को लगा कि इससे वो लोग छूट जायेंगे जो बिना किसी राजनीतिक सपोर्ट के काम कर रहे हैं। अब मैं इस लायक हूं या नहीं,ये उनका फैसला था। हां जिस आदर के साथ मुझे भागलपुर रखा गया,उससे थोड़ा भावुक तो हो ही गया था।
स्कूल का एनुअल डे था। पांच साल ही हुए हैं इस स्कूल को। एरिया बड़ा होने के बाद भी ग्लोबल स्कूल जैसी बेकार की भव्यता नहीं थी। एयरकंडीशन का आतंक नहीं था और न ही स्कूल को तरह तरह के रंगों से रंग कर म्यूज़ियम बनाया गया है। ज्यादातर बच्चे पहली पीढ़ी के शिक्षार्थीं हैं। अंग्रेज़ी बोलने के साथ भारतीय भाषाओं में इनके कौशल का विकास किया जाना है। राजेश जी यही भरोसा जताते रहे और मुझसे भी पाने की कोशिश करते रहे कि क्या यह स्कूल एक श्रेष्ठ स्कूल बन सकता है? हमारे बच्चे कैसे दूसरे बच्चों से अलग होंगे? मेरे ख्याल से शुरूआत सोच से होती है और अंत प्रयास से। नतीजे को भूल जाना चाहिए।
मंच पर टैगोर की रचना चंडालिका का जिस कदर बेहतरीन तरीके से मंचन हुआ,गंगा के किनारे आठ-नौ साल के लड़के-लड़कियां इस नाटक को जिस भव्यता और दक्षता के साथ कर रहे हैं,उसके भाव इनकी सामाजिक चेतना का हिस्सा बनेंगे ही। एक अछूत लड़की की कहानी है चंडालिका। दही बेचने वाला उसे देने से मना कर देता है। वह धर्म और जीवन दोनों से बागी हो जाती है। बौद्ध भिक्षुक जब उससे पानी मांगते हैं तो वह मना करती है। कहती है वह तो अछूत है। भिक्षुक कहते हैं कि मैं भी मानव,तू भी मानव। हिन्दी में यह गाना रवींद्र संगीत के टोन में गाया गया था। बहुत अच्छा लगा। जिस लड़की ने चंडालिका का अभिनय किया था,उम्र के हिसाब से काफी प्रभावी था।
भागलपुर से कई सारी तस्वीरें लेकर लौटा हूं। जल्दी पोस्ट करूंगा। भागलपुर के पत्रकारों और छायाकारों ने मेरे साथ तस्वीर भी खिंचाई। थोड़ा भाव मिल गया। ऐसे टाइम में जब पत्रकार बताते ही पांच रुपया रेट घट जाता है। भथुआ के साग से भी सस्ता मान लिया जाता है। पत्रकारिता के इस खेसारीकरण के काल में मुझे चने का साग जैसा भाव मिला। खेसारी का साग कम खाया जाना चाहिए। बचपन में तो यही पढ़ते थे। फिर भी लोग खाते हैं। वैसे ही हिन्दी चैनल कम देखा जाना चाहिए,फिर भी लोग देखते हैं। सभी का आभार।
13 comments:
रवीश भैया, पहले तो आपको अवार्ड की बधाई...
काफी अच्छा लगा संस्मरण... समस्या यह है कि बिहार में कई बढ़िया स्कूल शुरू तो अच्छी सोच के साथ होते हैं पर बाद में व्यावसायिकता की भेंट चढ जाते हैं.. काश इस स्कूल के साथ ऐसा न हो..
बाकी फोटू जल्दी लगाइए, खासकर नाटक वाला....
और कहीं हो न हो बिहार में तो आज भी खेसारी वाला साग ही ज्यादा लोकप्रिय है.. :)
रवीश जी,
पोस्ट मस्त लगी।
जब साग की बात चली है तो अक्सर लोगों को पंजाबी स्टाईल में कहते सुनता हूं कि मक्के दी रोटी ते सरसों दे साग दा जवाब नहीं।
इस बार जब गाँव गया तो बथुआ दिखा। सरसों और मक्के के काम्बीनेशन की बात करने पर एक परिचित ने कहा कि सरसों का साग निराल सरसों के ही नहीं जमता. उसमें बथुआ मिलाओ तो देखो मक्के के साथ उसका स्वाद।
किसी किसी ओर देखा कि सरसों के साग में जौ या गेहूं का आटा भी हल्का सा डाला जाता था।
खैर, अपन तो वैसे भी भैंस के मोटे दूध और मक्के की गर्मागर्म रोटी को सान कर खाने वालों में से हैं :)
देशज, सब चलता है :)
इंतजार है फोटूदार पोस्ट का।
चित्र देखकर बोनस ले लेंगे। पोस्ट में तो पूरा आनन्द आ गया।
बहुत बधाईयाँ रवीश भैया. You deserve every bit of the award!
आज के समाज को नए राह और नई सड़क पर लाने के लिए सबसे आवश्यक शिक्षा में सुधार ही है. पढ़ लिख कर इन्जिनिएर डॉक्टर बने लोग जब समाज को नुक्सान पहुचाते हैं तब शिक्षा कि सार्थकता पर सवालिया निशान लग जाता है. एलेक्ट्रोन प्रोटोन का सामाजिक सरोकारों से सम्बन्ध पर मैं हमेशा से चिंता में रहा हूँ. हम इस अंधकारमय ज्ञान के सहारे कितने संघर्ष शील बन सकते हैं, ये सोचने वाली बात है.
आपको पुरस्कार की और संस्था के शिक्षकों को चंडालिका मचन कराने की बधाई.
इतने कम समय में ग्लोबल स्कूल से भागलपुर स्कूल तक की दौड़ एक पत्रकार ही लगा सकता है. चित्र बिना पोस्ट अधूरी है. पोस्ट पूरी होने का इंतजार हैं.
रविश जी बधाई कबूल करें.
पिछले कुछ दिनो से रोज सोचता हु आपका ब्लॉग नहीं पढूं, पर फिर भी एक बार जरूर देख लेता हू. जब से नीरा राडिया प्रकरण हुआ है न्यूज़ को संदेह से देखता हू. बरखा दत्त, राजदीप, प्रभु .. इन सब के लिए वो इज्ज़त नहीं रही दिल में.
सोचा आप कुछ लिखेंगे पर निराशा हुई. बाद में समझ आया नौकरी भी कोई चीज होती है तब और जब EMI चल रहा हो.
gaurav
आदरणीय रविश सर,
सबसे पहले तो सामाजिक क्षेत्र के लिए काम करने वाले लोगों को ही दिया जाने वाला 'डॉ. राजेंद्र प्रसाद बिहार गौरव पुरस्कार' के लिए बधाई स्वीकार करें। आप इसके लायक है ही।
वैसे आपकी हर स्टोरी सामाजिक सरोकार से जुडी होती है। इस बात की गवाही आपका ब्लॉग भी दे रहा है।
गौरव जी @- खामखा संशय मत कीजिए. किस किसके चहेरे पर कमीनापन देखा है आपने? जरा सोचिए...
सवजी चौधरी, अहमदाबाद, ९९९८० ४३२३८.
मुबारक हो रविश जी
आप हैं तो पत्रकार मगर आप की रेपोर्टिंग में ऐसा लगता है आप वाकई में आप जनता के लिए ही रेपोर्टिंग कर रहें है। रविश की रिपोर्ट बड़ी अच्छी पेशकश है.
ravish ji badhayi ho..aap deserve karte hain...
ravish ji purskar milne par hardik badai.
नमस्कार!
पुरस्कार के लिए बधाई
प्रारम्भ सोच से अंत प्रयास से लेकिन वांछित परिणाम के बिना सब बेकार.
थोड़ी बात विनायक सेन पर
अभी गनीमत है कि हम जान रहे हैं की विनायक कौन हैं क्या करते थे.
अभी गनीमत है कि कुछ लोग कहने वाले हैं कि फैसला हाई कर्ट जाएगा.
.अभी गनीमत है कि एनकाउन्टर से बचे हुए हैं
Ravish Bhaiya Namaskar,
Aapke is post ke liye deri se comment kar raha hu kyunki deri se ise dekha hai. Aab me aapki har blog padne ki kosish kar raha hu, kyunki mujhe aapke blog me hi ek complete india or hindustan dikhta hai. Me pahle Star news or Aaj tak ko hi dekh ta tha. NDTV ko kabhi nahi par jab ki me NDTV dekhne laga hu tu me pure viswaas se kah sakta hu ki NDTV india or Dusre News Channel me Aantar Hai jisse kuch hum aur aap jaise log hi mahsosh kar sakte hai.Ab aapse ek apanapan lagta hai, halaki me media se joda hua nahi hu par mujhe media ne hamesha akarshit kiya hai. Abhi me apna computer printing ka kaam karta hu par is soch ku(Jajba) ko pura samay dena ka prayass karta hu.
Ek bar phir se aap ko badai
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