तुम कैसे सो जाते हो
तुम कैसे सो जाते हो
नंगे तन फूटपाथों पर
तोहमत लेके माथों पर
पत्थर जैसे हाथों पर
तुम कैसे सो जाते हो
गर्म अँधेरी रातों में
अशकों की बरसातों में
बर्फ से ठंडी बातों में
तुम कैसे सो जाते हो
पतली सी दीवारों पर
दो धारी तलवारों पर
उर्दू के अख़बारों पर
तुम कैसे सो जाते हो
पुलिस कार के शौर के बीच
लूट मार के ज़ोर के बीच
अप्राधिक घंघौर के बीच
तुम कैसे सो जाते हो
मैं क्यों जागता रहता हूँ
मैं क्यों जागता रहता हूँ
आलीशान मकानों में
दौलत के ऐवानों में
अंग्रेज़ी मैख़ानों में
मैं क्यों जागता रहता हूँ
ख़ुद जैसे बीमारों में
फ़िल्मी से किरदारों में
जिस्मों के बाज़ारों में
मैं क्यों जागता रहता हूँ
दोस्त नुमा अईयारों में
अमरीकी तईयारों में
मसनूई सईयारों में
मैं क्यों जागता रहता हूँ
हुस्न की दिलकश बाहों में
हवस से बोझल आहों में
बरबादी की राहों में
मैं क्यों जागता रहता हूँ
तुम कैसे सो जाते हो
सपनों में खो जाते हो
मुर्दा से हो जाते हो
और में ज़िन्दा रहकर भी
हर पल मरता रहता हूँ
ख़ुद से पूछा करता हूँ
तुम कैसे सो जाते हो
मैं क्यों जागता रहता हूँ
तुम कैसे सो जाते हो
ऊफ़ ......तुम कैसे सो जाते हो
मैं क्यों जागता रहता हूँ
मैं क्यों जागता रहता हूँ
क्यों........
तुम.......
क्यों......
ऊफ़........
26 comments:
संवेदनशील तथ्य, न समझ में आने वाले, स्वयं को झुठलाने वाले।
बेहद ही मार्मिक दृश्य प्रस्तुत किया हैं अपने.
आपकी हमे जगाने की कोशिश बहुत खुबसूरत है|
बहुत सुंदर कविता!
'जल ही जीवन है', और पानी का, जीवन के लिए आवश्यक, हवा से बना बुलबुला क्षणभंगुर जीवन का सत्य दर्शाता है:
केवल अकेले ही, शून्य काल और स्थान से जुड़े, फकीर समान, निर्गुण और निराकार ब्रह्म की अनंत 'मायावी' ब्रह्माण्ड में उपस्तिथि,,,(अनन्त मायावी भौतिक प्राणीयों में केवल मानवी शरीरों के भीतर ही बसी अपनी 'तीसरी आँख' का आभास होते हुए भी लगभग सुप्त होने और, इस कारण, भौतिक चक्षुओं से दिखने वाले भ्रम अथवा धोखे के कारण प्राकृतिक विविधता का अहसास होने के रहस्य का केवल उसी को पता है, 'आम आदमी' की समझ के बाहर ही उसने रखा है...योगी भी अटकल लगाते आये हैं और उसे अजन्मा और अमृत घोषित कर चले गए)!
ravish bhai bahut khoob...
सोया कोई नहीं है ... लोग आँख बंद कर नाटक कर रहे हैं, अपनी जिम्मेदारियों से बचने के लिए...
4 stars out of five
पुलिस कार के शौर के बीच
लूट मार के ज़ोर के बीच
अप्राधिक घंघौर के बीच
तुम कैसे सो जाते हो
मैं क्यों जागता रहता हूँ
....बड़ा संवेदनशील सवाल उठाया है...साधुवाद स्वीकारें.
_________________
'शब्द-शिखर' पर पढ़िए भारत की प्रथम महिला बैरिस्टर के बारे में...
sundar abhivyakti
तहसीन मुनव्वर की खूबसूरत रचना ने प्रेरित किया...इसके आगे...ये भी...
तुम कैसे सो जाते हो...
खूनी खबरों को लपेटे
टीवी के भन्नाते दृश्यों को समेटे
हर तरफ चीखती खबरों के बीच
बाज़ार में उलझे रहबरों के बीच
तुम कैसे सो जाते हो...
तुम कैसे सो जाते हो...
सर्द चेहरों के साथ
गूंगे बहरों के साथ
सीलन से गंधाते बदन के बीच
आवारा कुत्तों के रूदन के बीच
तुम कैसे सो जाते हो...
bahut bahut sundar rachna..rakesh ji aapne bhi khoob likha hai
रवीश जी, इधर काफ़ी दिनों बाद कस्बे में आया---लेकिन बहुत ही सामयिक और सार्थक रचना पढ़ने को मिली। इतनी सशक्त रचना हम तक पहुंचाने के लिये आभार।
अदभुत...........
में भी पहले सो जाता था.
गीत बेफिक्री के गाता था,
तब मेरे पास सोने के लिए बिस्तर नहीं था.और अब सब कुछ है पर नींद नहीं है, और जब नींद होती है तो तब समय नहीं होता.
tahseen saab ko salam, aapko to mahaguru pahle se maante hai sir.
sir aapne bataya nahi. debang sir jo pahle muqabala me aate the, kaha hai aajkal?
सलमान खान को नींद नहीं आती थी?
तभी पहुंचा दिया चिरनिद्रा में उसने
फुटपाथ पर ऐसे ही कुछ सोने वालों को?
Awesome lines.
daddu jabardadst... ameeri or gareebi ke beech haqikat jo paish ki hai aap ne wo lajawab hai
तहसीन मुनव्वर : शुक्रिया..दोस्तों
आप को यह नज़्म पसंद आई तो हमारा जागना कामयाब है.
राकेश पाठक जी आप ने इस कविता को आगे बढ़ा कर हमारे ही मिशन को आगे बढाया है....शुक्रिया.......
आकांक्षा जी....आप का भी धन्यवाद
आनूप जी आप ने भी सुंदर लिखा है.......
जे सी सलमान वाले का जवाब नहीं है भाई...
आप सभी का धन्यवाद....
तहसीन मुनव्वर
रवीश जी, आपके ब्लाग में नये नये विषय पर आलेख होते हैं, जो रुचिकर होते हैं-दिलीप तेतरवे
जो जगते हैं वो केवल सपनों में सोते हैं,जो सोते हैं वो सपनों में जगते हैं....यही उत्तर है इस कविता का !
@त्रिवेदी जी
(गीता के अनुसार) प्राचीन ज्ञानियों ने जाना कि अस्थायी शरीर के माध्यम से विभिन्न स्तर को प्राप्त आत्माएं क्षण-प्रतिक्षण कार्यरत रहती हैं,,,जबकि आराम और नींद, हलकी अथवा गहरी, आदि का आभास उनको केवल शरीर के माध्यम से ही मिलता है,,,और प्राणियों की अनंत द्वैत लीला ('माया') का आनंद आत्माएं ही (यानि परमात्मा के विभिन्न स्वरुप ही) ले पाती हैं क्यूंकि केवल परमात्मा ही काल से परे हैं, यानी वे शून्य काल और स्थान से जुडी हैं और इस कारण परम ज्ञानी, अजन्मी, और अनंत मानी गयी हैं...
सचमुच संवेदनशील
ye chhoti si gustakhi maine bahut hi himmat ssnjokr kiya hun .......apse jabab talab ki koi mansha nhi hai meri.
pranam ......
aapke shubha aashish ki kamna krta hun....
mai soya tha wahan, dunia ke andhkar ko dekhar, jahan loot thi, koot thi, aur tha chhal! mai sota tha kyonki, mai ub gya tha duniya ke vishailepan se ...
tum jagte ho jab aadhunik suvidhon ke rahte, mujhe aati hai daya,log karte hai hya,pr na khara hai koi tumhe dekhne ko!
tum khare ho jao logon ko0 dekhne ko.....
fir soyenge hum (dono) apne khaobon me , banayenge insan ko anupam si kriti ! fir soyenge chain se .......
sachmuch hilakar rakh diya. ajadi ke 63 saalo ke baad bhi hame chain se sone ke liye, sayad hum thik se jage nahi...Magar ek din ayega, jab hum sabhi jagenge, chain se sone ke liye...salute !!
Shukriya sabhi ka kavita ko pasandeedgi ki nigah se dekhne ke liye....lijye hamen bhi neend aayi jaati hai...
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