बीस से पचीस रुपये की इन सीडी के टाइटल आपको अच्छे न लगें, लेकिन करोड़ों घरों में मौजूद हैं। रेट बोल जवानी के, किस देबू का हो से लेकर धाकड़ छोरा। हरियाणा में लड़के अपने मोबाइल में रागिनी अपलोड कर सुन रहे हैं। दिल्ली के कापसहेड़ा में काम करने वाले प्रवासी मजदूर के मोबाइल में किसी भोजपुरी फिल्म का वीडियो क्लिप अपलोड था। हर शादी-ब्याह में अब लोकल सिनेमा के गाने बजने लगे हैं। इनके कलाकारों के पास पैसा भले इफरात में न आया हो, लेकिन शोहरत आ गयी है, जो बता रहा है कि हिंदी सिनेमा के बाहर दर्शकों का एक समाज तो बन ही गया है।
Read More...
7 comments:
soch hamari nahi meri Maa ka hi badal chuki hai.
hame bhojpuri gane sunane hani diya jata tha,hollybood ki adat pari,ab Maa ko ek bhojpuri film pahale dikhao tab hollybood lagao.
Mitti ki khusbo kahi se aaye,ahsas to hona hai
opsingh
hmm..
kya bolbo..........hum ab
सही कहा आपने...आसार ऐसे ही नजर आ रहे है!...सार्थक जानकारी!
लुक बदल कर अच्छा किया...बहुत दिनों से वही एक लुक...
जहाँ तक क्षेत्रीय सिनेमा की बात है तो कभी पंजाबी में बहुत स्तरीय काम हुआ करता था . बंगाली और मलयालम ,तेलुगु में अब भी होता है . 'धाकड़ छोरा' एक सशक्त क्षेत्रीय फिल्म है जिसमें पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा की अद्भुत प्रतिभा दिखाई देती है . बहुत कम बजट में तैयार इस फिल्म के लीड हीरो से मुख्य धारा के हीरो काफी कुछ सीख सकते हैं . संभव हो तो आप इसे ज़रूर देखें लेकिन इसका आनंद लेने के लिए ये ज़ुरूरी हो जाता है कि पेय पदार्थ के साथ रोस्टेड काजू की जगह कुछ देसी भुनी मूंगफली ही रखी जाए . निस्संदेह मल्टी-मीडिया क्रांति नयी-नयी प्रतिभाओं को मौका दे रही है मगर देहात, कसबे के कई ज़मींदारों के कपूत इन फिल्मों और वीदीओज़ के चक्कर में बापू का घर बार तक नीलाम कराने पे भी अमादा हैं .
ब्रेकिंग न्यूज़ का लाल आतंक सबको खदेड़ देता है
bahut badhiya ..........
Post a Comment