वातानुकूलित माता की चौकी
मैं जिस अपार्टमेंट में रहता हूं उसके नीचले हिस्से में काफी खाली जगह है। जहां बच्चे आये दिन स्केटिंग से लेकर जूडो का अभ्यास करते रहते हैं। लेकिन अब इस जगह को दो घंटे की माता की चौकी के लिए एयरकंडीशन हॉल में बदल दिया गया है। आज ही सुबह यह जगह खाली थी। लेकिन करियर ब्रांड एसी के कई बडे-बड़े यूनिट लगाकर इसे इतना ठंडा कर दिया गया है कि पूछिये मत। जिस लकड़ी की मेज़ पर बाराती खाते हैं उसके सहारे मोटी से दीवार बना दी गई है ताकि आवाज़ बाहर न जा सके और किसी को परेशानी न हो। बेरी दम्पत्ति ने अपने दोस्तों के अलावा सोसायटी के सभी सदस्यों को सार्वजनिक निमंत्रण दिया है।
तस्वीरों के माध्यम से आप माता की चौकी के आयोजन की भव्यता का अंदाज़ा लगा सकते हैं। शीशे का दरवाजा बना दिया गया है ताकि एयरकंडीशन काम कर सके। मसनद और गद्दे बिछा दिए गए हैं ताकि आप आराम से भजन-भक्ति का विलास कर सकें। देवी-देवताओं को भी ऐसे सजाया गया है मानो इस जगह पर कई साल से कोई मंदिर हो। पूरे अपार्टमेंट को बत्तियों की झालर से चमका दिया गया है। बहुत ही खूबसूरत लग रहा है। पैसे का रोना मैं क्यों रोऊं। कोई हिन्दी दिवस के सेमिनार से थोड़े न लौटा हूं। सरदार जी ने अपने बैंड के साथ लोगों का खूब मनोरंजन किया है। माता की चौकी भगवती जागरण का संक्षिप्त रूप है। दिल्ली में जागरण सिमट रहे हैं। अब वक्त कम है इसलिए रात भर के जागरण की जगह दो घंटे वाली माता की चौकी लोकप्रिय हो रही है। साईं जागरण ने तो भगवती जागरण की दुकान बंद करा दी है। दुर्गा के हिसाब से तो लाइसेंस राज ही अच्छा था यहां तो उदार धनव्यवस्था का राज आते ही साईं जी बीच मैदान में आ गए और सारी महफिल लूट रहे हैं। शनि जागरण भी नया आइटम है। काफी दिनों से मैं इन विषयों पर लिखता रहा हूं लेकिन आज वातानुकूलित भजन-कक्ष देखकर मन गदगद हो गया है। बेरी साहब को बधाई। काश मैं भी मसनद पर गाल टिकाकर भक्ति रस का आनंद ले पाता।
पुरूषोत्तम अग्रवाल ने अपनी नई और प्रभावशाली किताब ‘अकथ कहानी प्रेम की’ में सही कहा है कि ब्राह्मण-सर्वोच्चता की शाश्वतता ऐतिहासिक सत्य नहीं है। ब्राह्मणों की फैंटेसी है। जागरण और शनि-साई द्वय के उदय और बदलाव में पांडे-मिश्रा वालों का योगदान कम है। आहूजा चड्ढा और बेरी साहबों का ज्यादा है। पुरूषोत्तम अग्रवाल की यह दलील बिल्कुल साफ-साफ किसी भी प्रसंग में प्रासंगिक मालूम पड़ती है। पिछली बार इसी जगह पर साईं जागरण हुआ था तब साई भजन गाने वाले एक स्कूल टीचर से बात हुई थी। मास्टर साहब ने भोजपुरी, हिन्दी, गुजराती और पंजाबी में कई देवी-देवताओं के जागरण में विशारद हासिल कर ली थी। उनके लिए अलग भाषा और प्रांत के लोग महज़ एक क्लाएंट से ज्यादा कुछ नहीं थे।
काश मैं पत्रकार की बजाए किसी अर्काइव का दस्तावेज़ बाबू होता। दिन भर जहां-तहां से चीज़ों का संग्रह करके लौटता और उन्हें आने वाली पीढ़ियों के लिए श्रेणियों में बांट कर रखता। तीन नंबर की पत्रकारिता से दिल इतना भर गया है कि हर दूसरा काम अच्छा लगता है। अपना मूल काम नहीं।
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29 comments:
तीन नंबर की पत्रकारिता से दिल इतना भर गया है कि हर दूसरा काम अच्छा लगता है।
एकदम सही बात.
आपका पोस्ट सराहनीय है. हिंदी दिवस की बधाई
zindagi tez raftaar se bhaagti hai aajkal. Mata ki bhakti kaise araam se karen?
बाबूजी....क़स्बा भी तो अर्काइव ही है. कितने दूर दराज से लोग इसे देखने आते हैं. एकदम किसी संग्रहालय सा वातावरण रहता है यहाँ भी. फरक इतना है कि आपका अर्काइव रोज ही कुछ नया संग्रह संजोता है.
मानव जीवन में विविधता बनाये रखने का काम 'नवग्रह' को सौंपा गया है (सूर्य से 'सूर्यपुत्र' शनि तक),,,भटका रहे हैं जो सभी को, एक देवता से दूसरे देवता तक - सत्य तक न पहुँचने देने को :)
3 number ki patrakarita se apka kya matlab hai ravish ji
sir ab ham to kasba or prasoon ji ko hi padte hai poora ab aap hi chale jaoge to ham kya karenge sir?
sir ..jisko hum aksar enjoy karte hai vo permananet nahi hota aur jo permananet hai vo boring hi hota hai..yahi life hai :)
रबीश जी
बहुत सही कहा आपने। (पैसे का रोना मैं क्यों रोऊं। कोई हिन्दी दिवस के सेमिनार से थोड़े न लौटा हूं।)
इस देश में सबसे अमीर अगर कोई है तो वो है भगवान, जिनके करोडों के आसन , तो करोडों चढावा व करोंडो लोगों द्वारा करोडो खर्चा करने का जुनून।
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उपेन्द्र (14 सित. को हिन्दी दिवस । समारोह की एक झलकी:- http://srijanshikhar.blogspot.com )
रविश महोदय, अपनी नजर में बेरी साहब ने सिर्फ माता की चौकी लगवाई उन्होंने माता के नाम पर कोई भीषण तपस्या करने का मन में शायद कोई विचार नहीं रखा होगा। बेरी साहब दिन रात एसी में रहने के आदी होंगे अतः उन्होंने इस आयोजन में भी एसी का प्रबंध करवाया होगा। अब पूजा हम क्यों करते हैं मन की शांति के लिए ही न और हमारा मन तो तभी शांत हो पायेगा जब हमारा तन सुखमय अवस्था में होगा जो की शायद बेरी साहब के लिए बिना एसी संभव न हो पाता हो। धनवानों के प्रति कोई पूर्वाग्रह मन में न रखें। एसी में माता की भक्ति का आनंद लें।
ravishji, aap to fir bhi is teen number ki patrakarita mein bhi kuchh achchha kar lete hain yhan to pta nahi kounse number ki pat..karita mein hum jaise anek khap rahe hain...
ऐसा कस्बा पर ही होता है कि सबकुछ देखने को मिलता है ... तीन नंबर की पत्रकारिता.. हा हा हा
i can write here in hindi due to some of technical problem, it may be that i could express more effectively in hind. Well let me try...Raveesh jee you are also wheel spoke of society, spoke support to the ring so it can be move strongly...and face to rigidity of the roads, like this becomes you and your society (Wises). Feel keenly the changes next gen would have no time to think about AC Hall Hymens.
मानव जीवन के दो पहलू हैं: एक आध्यात्मिक, जिसके विषय में सही ज्ञान किसी को नहीं है, और सभी बस अटकलें लगाते रहते हैं, क्यूंकि जीवन का उद्देश्य क्या है यह किसी को नहीं मालूम,,, दूसरा भौतिक, जो पृथ्वी पर उबलब्ध वस्तुओं से सम्बंधित है और जिसके बारे में सबको थोडा बहुत ज्ञान अवश्य होता है - किसी को कम तो किसी को थोडा अधिक, किन्तु सम्पूर्ण किसी को भी नह्नीं... :)
" माता की चौकी भगवती जागरण का संक्षिप्त रूप है। दिल्ली में जागरण सिमट रहे हैं। अब वक्त कम है इसलिए रात भर के जागरण की जगह दो घंटे वाली माता की चौकी लोकप्रिय हो रही है। साईं जागरण ने तो भगवती जागरण की दुकान बंद करा दी है। "
एकदम सही बात पहले हम भगवान का अनुसरण करते थे पर हमारी हरकतों से भगवान भी अब भ्रम में रहते हैं उन्हें ये समझ नहीं आता की अनुसरण करें या करवाएँ सो उन्होंने हम लोगों का अनुसरण शुरू किया है इसका जीता जागता प्रमाण है दो घंटे की बारिश मात्र १५ मिनट में.उनके पास भी समय कहाँ हैं दो दो घंटे वाले जागरण ऐ सी वाले नॉन ऐ सी वाले सभी के यहाँ फ़्लाइंग विज़िट जो देनी है
what is " तीन नंबर की पत्रकारिता "???
what is " तीन नंबर की पत्रकारिता "???
"तीन नंबर की पत्रकारिता से दिल इतना भर गया है कि हर दूसरा काम अच्छा लगता है।"
ये लाइन पुरे पोस्ट में सबसे कमाल था. क्या खूब लिखा है. बधाई
गौरव
रवीश जी यह तो उपभोगतावाद है। लोग भगवान का नाम भी अाराम से लेनाा चाहते है अापने इन्जवााय कियाा कि नहीं।
deepikaa
nahee..main sirf photo click karke aa gayaa. teen number ki patrkaarita ke baare mien sawaal aaye hain.iska matlab third class journalism hota hai.
"सच्चाई छुप नहीं सकती कभी बनावट के असूलों से, कि खुशबू आ नहीं सकती कभी कागज़ के फूलों से"...
वातानुकूलित पर्यावरण प्राकृतिक तौर पर हिमालय में ही मिल सकता है जिसमें रह जोगी सत्य को पा सके - तपस्या के पश्चात...
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आज भगवान भी हाई फाई हो गये हैं। अपने दरबार मे हिजिरी के लिये उन्होंने भी ये फंडा अपना लिया है। धन्यवाद इस जानकारी के लिये।
जो हम भगवान से मांग रहे हैं वही या उस जैसा ही कुछ उसे देने का भाव स्वाभाविक भी है. बेरी साहिब की भावनों को समझें.
यह तीन नंबर की पत्रकारिता क्या है?
और हाँ एक नबंर भी स्पष्ट करें कृप्या ("दो नंबर" तो समझ आता है, खैर!)
भला हो आप कॉमेंटर का कि 3rd क्लास पत्रकारिता क्या होता है पुछ लिया, तो स्वयं रविशजी महाराज को कमेन्ट बॉक्स में प्रकट होना पड़ा जवाब देने के लिए...वरना हम तो पूछने ही वाले थे कि क्या भाई जी अपनी बोल के निकल लेते है और हम ऐसे ही यहाँ बक बक करत्ते रह जाते है :)
Hi Ravish,
It has been more than a month that I have been trying to watch the videos of your programme "Ravish Ki Report" on NDTV's website. Earlier the videos were available, but, lately they have been either removed or just not uploaded. Could you please make them available for us to watch?
Thanks!
Kaas har mandir maszid aur church ko garibo ke rehene ke liye space me tabdil kar diya jaata aur aap bas us samay mandir ki baat kar rehe hote ki mandir me kaam late chal raha hai... i am totally agreed, Dharam is poison, ye baat aap samja chuke hai lekin aap ke sabhi experiment bas kaas logo ke liye hota hai...uske baad aap Secular ban jaate hai...Mata ka chauki A.C ban gaya to fikr hai ki junta ka kya hoga but kabhi us junta ka socha hai jinka paisa makka ke liye yaa CWG me kharcha ho jaata hai... NDTV aap ko accha paisa deti hogi so aap A.C room me baith ke (Deity)ke baar me likh rehe hai...Lekin kal aap saayd ek old woman ko bhi paisa naa de kyoki iske liye NDTV salary nahi deti...
अरे सर आपकी पत्रकारिता तो कई लोगों के लिए दीये का काम कर रही है आपके चलते तो हम जैसे लोग टीवी पर पत्रकारिता को शुक्रवार 9:30 बजे खोजते है। थर्ड क्लास जर्नलिज़म तो इस रनडाउन के अलावा होता है। पोस्ट के लिए बधाई।
सर,
आपकी पत्रकारिता तो हमारा मार्गदर्शन करती है आप कहां से थर्ड क्लास पत्रकार हो गए। थर्ड क्लास तो वे लोग है जो फ़र्जी है। जो पत्रकारिता कम और बकैती ज्यादा करते है...
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