RJB, राम जन्मभूमि का कैट या शॉट फार्म में अब यही पुकार नाम है। अयोध्या में लोग इतने ऊब गए हैं कि विवादित क्षेत्र को आरजेबी कहने लगे हैं। ज़ुबान का वक्त बचाने के लिए। फैज़ाबाद के शाने-अवध होटल में आकर लेट गया था। थोड़ी देर बाद वरिष्ठ कैमरामैन नरेंद्र गोडावली ने एक ज़िद कर दी। विवादित क्षेत्र चलते हैं देखने के लिए। आदतन नरेंद्र गोडावली ने आदेश और उपदेश देना शुरू कर दिया कि एक आइडिया होना चाहिए। हम चल पड़े। पांच बजने वाले थे तभी प्रमोद श्रीवास्तव ने कहा कि छह बजे तक दर्शन कर सकते हैं। नरेंद्र गोडावली ने ड्राइवर से कहा कि इस रास्ते चलो। पांच दिसंबर १९९२ को मैं यहीं था। वो दूसरी बार जा रहे थे। मैं पहली बार। इलाके की निर्जनता मन में किसी तरह की उत्सुकता पैदा नहीं कर रही थी। नरेंद्र बार-बार कह रहे थे कि देख ही लेते हैं कि उस जगह की हालत क्या है। हमारी गाड़ी आरजेबी का पता पूछते हुए एक गली में मुड़ती है। पुलिस चेक पोस्ट लगे हुए हैं। पुलिस नहीं है। एक-दो लोग आ जा रहे हैं। सभी घरों में मंदिर है। मंदिर के बाहर एक-दो लोग बैठे हैं। लेकिन टी प्वाइंट पर पहुंचते ही हथियारबंद पुलिसकर्मी तैनात दिखाई देते हैं। अहसास हो जाता है कि हम विवादित क्षेत्र के करीब है।
जवान आदेश देता है कि कैमरा,बेल्ट,मोबाइल,कलम,नुकीली चीज़ उतार दें। सिर्फ पैसा लेकर जा सकते हैं। नोटिस बोर्ड पर भी यही लिखा था। नगद,आभूषण और पारदर्शी प्रसाद लेकर दर्शन के लिए जा सकते हैं। हमारी करीब चार जगहों पर सघन चेकिंग की गई। चेकिंग के दूसरे पड़ाव पर खूब सारे तंबाकू और गुटका के ढेर नज़र आए। इन्हें जेब की तलाशी से निकाला गया था। एक दर्शनार्थी की जेब से ताबीज निकलती है। पंडितनुमा सिपाही ने रंग देखकर ही बता ही दिया कि राहु को काउंटर करने के लिए है ताबीज। हम अंदर चले जाते हैं। सारे सिपाही एक अजीब से भक्तिरस में डूबे दिखे।
पूरे विवादित क्षेत्र में लोहे की संकरी गली बनी हुई है। मोटे मोटे छड़ों के ऊपर से लेकर नीचे तक जाली लगा दी गई है। चिड़िया भी भीतर नहीं आ सकती। हाथ फैलाने की कोशिश की तो हाथ जाली से टकराने लगे। दर्शन की जगह दहशत का भाव उभरने लगता है। एक अजीब सी निर्जनता भीतर बनने लगती है। फिर से चेकिंग का पड़ाव आता है। यादव जी मिले। अरे रवीश जी नमस्कार। अरे जल्दी चेक कर इनका। इनकी रिपोर्ट नहीं देखी तुमने। यादव जी कहने लगे कि सुरक्षा के नियमों में कोई लापरवाही नहीं होती। आइये आप यहां से मुड़ जाइये। वहां से यादव जी लौट गए। आगे फिर वही बख्तरबंद संकरी गली। कुछ कदम और चलते हैं। महिला हथियारबंद टुकड़ी। उनके बीच उमा भारती को लेकर बातचीत हो रही है। वो बतिया रही हैं कि तब उमा भारती बीजेपी में थी। तब का मतलब समझ आ गया था।
तभी मेरी नज़र जगह जगह लगे नल पर पड़ती है। स्टेट बैंक,यूनियन बैंक,पंजाब नेशनल बैंक और बैंक ऑफ बड़ौदा के प्रायोजित प्याऊ। हर प्याऊ पर बैंक के नाम लिखे हैं। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की तरफ से पानी का मोटर भी लगाया गया है। सुरक्षा में तैनात सैंकड़ों जवानों और आने वाले हज़ारों दर्शनार्थियों के लिए पानी तो जरूरी है। लगभग पौने दो किली मीटर की घुमावदार संकरी गली से गुज़रने पर प्यास तो लगेगी ही। राष्ट्रीय बैंकों की भक्ति पर अलग से क्या कहें अब।
इसके बाद हम पहुंचते हैं जहां पालने में राम लक्ष्मण और सीता की प्रतिमा है। बगल में हनुमान की मूर्ति भी हैं। पंडित तिवारी भी देखकर खुश हो गए। बोले रिपोर्ट बनाने आए हैं। एक सिपाही से कहते हैं देखते नहीं हैं इनको। टीवी में आते हैं। सिपाही ने कोई प्रतिक्रिया ज़ाहिर नहीं की। अच्छा है सारे लोग टीवी नहीं देखते। मैंने तिवारीजी से पूछा कि यहां हर दिन कितने लोग आते हैं। बोलने लगे हर दिन पांच हज़ार। संख्या को लेकर कोई भी कुछ भी दावा कर देता है। सवाल करने पर गरम होकर बोले कि मेले के टाइम में तो लाखों लोग आते हैं। लोग दर्शन के बाद चढ़ावा भी देते हैं। इसके लिए दानपेटी रखी है। पंडित जी ने कहा कि रामलाला के नाम से अकाउंट है। उसी में जमा हो जाता है। मैंने पूछा कि कितना जमा हो गया होगा अबतक। बोले कि कोई गिनती है जी। प्रभु राम तो लक्ष्मीपति हैं। कौन गिनेगा। सारी दुनिया तो इन्हीं की है। पुजारी सबको पारदर्शी प्रसाद देते हैं। प्लास्टिक की थैली में लाल धागा और छोटे-छोटे मिश्री के दाने। लोग इन धागों को लोहे की जाली में बांध कर चले जाते हैं। कोई मन्नत छोड़ जाते होंगे।
पंडित जी से फारिग होकर मुड़ते ही एक आवाज़ सुनाई दी। एक सिपाही से कुछ दर्शनार्थी बात कर रहे थे। स्थानीय थे। बोल रहे थे कि सिपाही जी आपका लड़का बीटेक करने गया है। कितना भी पैसा खर्च हो,कीजिएगा। सिपाही जी अपने बेटे के भविष्य की चिन्ता में खोए थे। थोड़ी दूर पर एक दो सिपाही बात कर रहे थे। आदेश आ गया है। चार सौ रुपया ही बढ़ेगा। ३० बटालियन पीएसी गोण्डा के ये जवान। अपनी दैनिक चिन्ताओं में डूबे हुए हैं।
अट्ठासी एकड़ के करीब है विवादित भूमि। चारों तरफ कंटीले तार। लोहे के मोटे-मोटे खंभे। बाहर निकलते ही प्रसाद की दुकानें। जैसा कि हर तीर्थ में होता है। प्रसाद की एक दुकान में विवाह का गाना बज रहा था। शाहिद कपूर को लोग बड़े चाव से देख रहे थे। एक दुकान पर सरगम फिल्म के गाने डफली वाले पर भक्ति संगीत का कलेवर चढ़ा दिया है। जया प्रदा की जगह कोई और नाच रही है।
तभी छोटे-छोटे लड़के हमें घेर लेते हैं। कारसेवा की तस्वीर ले लीजिएगा। पांच रुपये की है। श्रीरामजन्मभूमि का रक्तरंजित इतिहास ले लीजिए। इनकी बिक्री पर कोई रोक नहीं है। ये कौन सा खतरनाक इतिहास बांट रहे हैं। किसकी इजाज़त से ये घर-घर पहुंच रहे हैं। कारसेवा की सीडी भी बेची जा रही है। सस्ते दामों में ये सामग्री न जाने कब से और कितने घरों में पहुंची होगी।
हम फिर वहीं पहुंच रहे हैं जहां पहली बार चेकिंग हुई थी। नज़र पड़ती दो दुकानों पर। एक का नाम है श्रीराम मोबाइल सेंटर और श्रीराम प्रेमजी हेयर ड्रेसर। मोबाइल सेंटर में तरह-तरह के मोबाइल फोन बिक रहे हैं। श्रीरामजन्मभूमि सेवा ट्रस्ट का बोर्ड लगा है। आस-पास की गलियां एकदम शांत है। इक्का दुक्का लोग आते जाते हैं। छह बज चुके थे। बाहर निकलते ही एक मंदिर पर एक कलाकार इंतज़ार कर रहा था। काग भुशुण्डी मंदिर। पखावज लेकर आ गया और कहने लगा कि हम बहुत अच्छा बजाते हैं। मैंने कहा तो बजाओ। बहुत ही घटिया पखावज बजाया उसने।
मैं अपनी बातों का सार नहीं कहना चाहता। विवादित क्षेत्र पर चौबीस सितंबर को फैसला आ जाएगा। बस चिन्ता हुई कि देश एक बार फिर दोराहे पर खड़ा है। डर भी लगा कि कौन सा सिरफिरा कहां क्या कर देगा। किस मंच से कौन किसको ललकार देगा। फिर भरोसा हुआ कि ऐसी मुश्किल घड़ी पचासों बार इस मुल्क के इतिहास में आईं हैं। कुछ नहीं होगा। इतना तो भरोसा है। यही फैसला इस विवाद को हमेशा के लिए शान्त करने का साहस और रास्ता दिखा देगा। उम्मीद है चौबीस सितंबर की दोपहर आने वाला फैसला इस विवाद को हमेशा के लिए शांत कर देगा। जिनको हिन्दुस्तान में यकीन है उन्हें ये सपना देखना ही चाहिए।
गाड़ी में बैठने से पहले पीछे मुड़कर देखता हूं। रामजन्मभूमि विवादित क्षेत्र के आस पास के मकानों की रौनक चली गई है। मंदिरों का सन्नाटा बता रहा है कि ये किसी की ग़लती की सज़ा भुगत रहे हैं। आखिर क्यों आरजेबी के आस-पास की गलियों में मायूसी पसरी नज़र आई। बहुत कोशिश की लेकिन जगह से रिश्ता नहीं बन पाया। ये विवाद को वो रास्ता है जहां पहुंचने के लिए न जाने ख़ून की कितनी नदियां बहा दी गई इस देश में। कितने घर उजड़ गए। ग़लती किसने की है,ये तय अब अदालत का फैसला करेगा। इतिहास तो कर चुका है।
44 comments:
... saarthak post !!!
सुन्दर प्रस्तुति।
निरपेक्ष का अलाप करने वाले इसका प्रयोग सिर्फ "अपने मतलब के लिए ही" करते हैं.
कोर्ट कुछ भी फैसला करे.... विहिप आदि के लिए तो काफी होगा... मैं तो बार बार आनंद पटवर्धन की फिल्म "राम के नाम" देखता हूँ. खुद को यह याद दिलाते रहने के लिए कि रामलला को खून से भिगोने का काम कैसे अंजाम दिया गया. खैर आगे आगे देखिये होता है क्या. अभी तो लगता है सत्ता की लड़ाई में जात ने धर्म को हरा दिया है. पता नहीं कब लोग इंसान को जिताएंगे.. मैं निराशावादी नहीं हूँ और न ही दुनिया कोगाली देकर आत्मगौरव महसूस करने वाला. लेकिन वही हालत है कि "मर के भी चैन न आये तो किधर जाएँगे" - बहरहाल अच्छी और सामयिक पोस्ट है... बधाइयों के तांते में मेरी भी स्वीकारिये....
आरे जे बी का प्रयोग सचमुच आह्लादक है.. :)
Itihaas ki galti ki saja vartmaan hi bhugatata hai. Dekhen 24 Sep ko kya hota hai.
अयोध्या में लोग इतने ऊब गए हैं कि विवादित क्षेत्र को आरजेबी कहने लगे हैं।
बिना लाग लपेट के काफ़ी कुछ कहती बेहतर रिपोर्ट...
अयोध्या के बर्तमान हालातों पर बढ़िया रपट ....
लोग जितने अयोध्या में ऊब चुके हैं, उस से कहीं ज्यादा हमारा देश इस मुद्दे से ऊब चूका है| इलाहाबाद कोर्ट का जो भी निर्णय हो अबकी वैसी गलती नही होने पाएगी| और राजनीतिक पार्टियों का हित भी इसीमें है कि वो RJB से ऊपर उठें|
अपने ब्लॉग का लिंक भेज रहा हूँ| http://talk2anupamsingh.blogspot.com/ एक नज़र दे दीजिये भैया|
faisla bhi etihasik hi hoga..jiski hum sabko kavayad hai..!
"अयोध्या मामले से लोग इतने ऊब गये हैं…"
कोई कह रहा है "हमारा देश इस मुद्दे से ऊब चुका है…"
ऊबिये भाई ऊबिये… जमकर ऊबिये…
कुछ साल और अफ़ज़ल को फ़ाँसी नहीं होगी तब भारत की जनता उस मुद्दे से भी ऊब जायेगी… कि छोड़ो यार जाने दो… ऊब गये
फ़िर कुछ साल और कसाब पर पैसा खर्च करते रहेंगे और जनता फ़िर ऊब जायेगी… कि छोड़ो यार जाने दो… ऊब गये
कश्मीर में हिंसा जारी रहेगी, किसी दिन वह पूरा हाथ से निकल जायेगा (आधा तो पहले ही निकल चुका)… हम फ़िर ऊब जायेंगे कि छोड़ो यार जाने दो… ऊब गये
हर मामले को 25-30 साल तक रगड़ते रहो और फ़िर ऊब जाओ… ऐसे ही तो महान बना है भाई मेरा भारत… :)
ऊबिये भाई, जमकर ऊबिये… :) :)
रवीश जी, आज आपने अच्छी रिपोर्टिंग की. वैचारिक रूप से आप कहीं भी खड़े नज़र नहीं आये. अत हम भी कोई भी वैचारिक टिपण्णी देने से कट रहे हैं.
एक और पीपली लाईव का आगाज करने के लिए अ- साधुवाद -:)फैसला १७ को है न की २४ को -चौबीस वाली जानकारी का स्रोत क्या है ?
kuchh aise hi bhav jage the ayodhya yatra ke daouran
http://shobhanaonline.blogspot.com/2010_04_01_archive.html
achchhi post. aapko to padhana hi apne main ek anubhav hota hai.
पंडित जी ने कहा कि रामलाल के नाम से अकाउंट है।
ise zara dekh len ki ram lal hoga ya ramlala
.
.
.
" मैं अपनी बातों का सार नहीं कहना चाहता। विवादित क्षेत्र पर चौबीस सितंबर को फैसला आ जाएगा। बस चिन्ता हुई कि देश एक बार फिर दोराहे पर खड़ा है। डर भी लगा कि कौन सा सिरफिरा कहां क्या कर देगा। किस मंच से कौन किसको ललकार देगा। फिर भरोसा हुआ कि ऐसी मुश्किल घड़ी पचासों बार इस मुल्क के इतिहास में आईं हैं। कुछ नहीं होगा। इतना तो भरोसा है। यही फैसला इस विवाद को हमेशा के लिए शान्त करने का साहस और रास्ता दिखा देगा। उम्मीद है चौबीस सितंबर की दोपहर आने वाला फैसला इस विवाद को हमेशा के लिए शांत कर देगा। जिनको हिन्दुस्तान में यकीन है उन्हें ये सपना देखना ही चाहिए। "
हाँ मैं देख रहा हूँ यह सपना...सच भी होगा यह!
आभार!
...
सर,
जबरदस्त लिखा है आपने बिना देखे आँखों के सामने तस्वीर उभर आती है और सवाल खड़ा करती है ....?
last one month or so, I had the opportuinity to read as well as view some of your poetry. Yes you read it rcorrectly, poetry.
In today's media world where tagging the political bosses and gaining favour from that, there are still some people who express their heart out. What shoul I say, thanks or congratulations or ... I do not know.
Ravish ji, sahi kah rahe hain. Ab sab log ub chuke hain.
Ab iska hal hona hi chahiye.
Main to kahta hun ki Vivadit jagah par Parliyament bana diya jay.... jis se sare neta wanhi par baith kar ke ladte rahen.
भैया मैं बिहार के पूर्णिया जिले का रहने वाला हूँ और अभी आईआईएमसी में पढ़ रहा हूँ .पिछले दिनों आनंद प्रधान सर के ब्लॉग पर आपके रिपोर्टिंग के विषय और संवेदना की तारीफ पढ़ी जिसमें आपके दलित लोगों की समस्या पर प्रस्तुत की गई रिपोर्ट को सराहा गया है.और इनके बीच किसी रविश पैदा नहीं लेने पर दुख जताया है. आज जब आप रूटीन खबरों से हटकर ऐसी रिपोर्टिंग
करते हैं तो आपको क्या लगता हैं ,मीडिया में निम्न वर्गों के उचित प्रतिनिधित्व के बिना इनसे जुडी खबरों के साथ पूरा न्याय हो पता और इनकी
सही भागीदारी नहीं होने के लिए मीडिया कहाँ तक जिम्मेदार है ?
आपका अनुज
दिवाकर
रवीश जी जबतक लोग अपनी जान की परवाह किये वगैर लोभी,स्वार्थी और सत्य तथा न्याय को अप्रत्यक्ष रूप से दवाने वाले भ्रष्ट मंत्रियों के खिलाप देश के हर गांव और कस्बों में आवाज नहीं उठाएंगे इस देश में सत्य और न्याय को इसी तरह सालों विवादित रखकर बेचा और अपने स्वार्थ के लिए प्रयोग किया जाता रहेगा ,अब तो देश के प्रधानमंत्री भी सर्वोच्च न्यायलय के बचे खुचे इमानदार न्यायाधीशों को धमकी भरे अंदाज में तथाकथित दलालों की सरकार के नीतिगत मामलों से दूर रहने की धमकी देते हैं ,और ऐसा वो इसलिए कर पाते हैं क्योकि उनको पता है की शरद पवार जैसा भ्रष्टाचारी हमारी रक्षा में तैनात है और इस देश की जनता बेजान और अब तो जनता के अन्दर खून भी नहीं बचा है दो वक्त की रोटी लूट जाने की वजह से ,जरा सोचिये और अपनी अंतरात्मा से पूछिए की क्या मनमोहन सिंह जी ऐसी धमकी सर्वोच्च न्यायलय के जनहित में बेहद उपयोगी फैसले के बाद देने की साहस कर पाते अगर इस देश की जनता उनको और उनके शरद पवार जैसे रक्षकों को कान पकड़कर ऐसे बयानों के लिए और बेशर्मी भरे निकम्मेपन के लिए कुर्सी से उतारने के लिए सड़कों पे उतर आती | देश के राष्ट्रपति के पद पर तो करोड़ों रुपया बर्बाद किया जा रहा है ,जिसकी कोई उपयोगिता है ही नहीं ...मिडिया घरानों का इस लूट में 25 % हिस्सा पाकर चुप रहना भी इस देश की कुव्यवस्था को बढ़ने का कम कर रहा है ...हर कोई लूट में हिस्सेदार बनना ज्यादा फायदे मंद मान रहा है इस लूट के खिलाप आवाज उठाने की जोखिम भरे प्रयास से ...
सारी समस्याओं के जड़ में हमारी जीने की मजबूरी और ऐसे लोगों को सरे आम लूट को अंजाम देते देखते हुए भी अपना मुंह और दिमाग को बंद रखने की लाचारी है | लाचारी भरी जिन्दगी ही अब इस देश की नियति है क्योकि भारत सरकार भी लूटेरों के लिए दलाल बन चुकी है निकम्मे लोगों के नेतृत्व की वजह से | हो सके तो इस दिशा में कुछ सार्थक और ठोस प्रयास कीजिये ...पत्रकार भी इंसान है जिसे भी जीने की मजबूरी है ,लेकिन उसके पास समाज को झकझोरने का सशक्त साधन मौजूद है ...
सर चमन में अमन लाने की सबकी चाहत है, पर ये इतना असम्भव है कि कोई अगर भगवान राम के नाम से भी तप करने बैठ जाए और भगवान आकर पूछे 'वत्स तुम्हें क्या वरदान चाहिए' और वरदान में कहा जाए हे!राम आप के नाम पर होने वाले विवाद को बन्द करो तो भगवान उसे इन्द्र की कुर्सी पर बैठा देंगे पर ये वरदान नहीं दे पायेंगे।
जिस तरह नेता के नाम पर कार्यकर्ता नेता से ज्यादा ऊंची कुलांचे मारता है, वैसे ही इनसे जुड़े लोग है, भगवान राम की रामायण और उनकी शिक्षा और उपदेश एक किनारे यह भगवान राम के सच्चे भक्त बन कर खुश हैं।
1995 की अपनी अयोध्या यात्रा याद हो आई..सबकुछ वैसा ही है बदला तो सिर्फ इतना की पहले वो जालियां नहीं लगी थी गलियां तो तब भी वैसी ही थी..बंदर प्रसाद छीन लेते थे...ये जालियां बंदरों के डर से हैं या किसी और के ...सोचकर भी क्या होगा..सहमत हूं मै जो हिंदुस्तन में यकीन रखते हैं सपना देखेंगे..लेकिन अगर यकीन ही हिलने लगे तो क्या करें...कौन सा सपना देखें, सपना भी वही आता है जो पूरा हो सकता है जो पूरा ही नहीं हो सकता वो ख्वाब भी कभी नहीं आता ...
बेहतरीन। अच्छा रहा कि आप वहां हो आए। मैं तो गोंडा का रहने वाला हूं, कई बार अयोध्या होकर गुजरा, लेकिन जा नहीं पाया। पिताजी की पोस्टिंग वहां ८५ में थी। वे बताते हैं कि पहले कोई पहरा नहीं था।
चलिए देखते हैं, फैसला क्या आता है। फैसला आता भी है या नहीं।
--आपके ब्लॉक में गाढ़े नीले रंग पर काले अक्षर पढ़ने में बहुत दिक्कत हुई। कृपया अक्षरों को काला ही रखें लेकिन उसका बैकग्राउंड सफेद कर दें। लेआउट खराब भी रहे तो कोई बात नहीं, पढ़ने में तो आंख नहीं फोड़नी पड़ेगी!!
रवीश जी आप पहली बार अयोध्या गए थे क्या
रवीश जी, लौट आये ? चलो अच्छा है | अब आप की रिपोर्ट का इंतज़ार रहेगा |
मै भी जन्मभूमि गया था १९८८ में | शाम के आठ बजे पहुंचा था | बिलकुल सुनसान सा माहौल था | चार पांच लोग दर्शन के लिए खड़े थे | पुजारी जी से बहुत देर तक बात होती रही थी |
तब से कितना कुछ बदल गया है |
वैसे कितने मुकदमे पहले भी चले हैं इस केस में - नवाबी पीरियड में , अंगरेजी पीरियड में और कई बार फैसले भी हुए , कई बार जजों ने धार्मिक मामला होने से फैसला देने से इनकार भी किया | अब हाईकोर्ट का फैसला समस्या का समाधान कर देगा ? आशावादी होना ही चाहिए | आखिर हम सब सामान्य जन और कर ही क्या सकते हैं |
बाकी आपकी रिपोर्ट देखने के बाद |
आपने अंतिम पंक्ति में लिखा " ये तय अब अदालत का फैसला करेगा। इतिहास तो कर चुका है। " समझ में नहीं आया , कौन से इतिहास के फैसेle की ओर इशारा कर रहे हैं
आपने इतना अच्छा लिखा है की लगा आपके साथ यात्रा कर रहा हूँ.
DHARM mere APNE ke liye DIKHAWE ke liye NAHI ..... Aur jahan sabhi DHARMON aur SAMUDAYE se Badkar DESH-HIT ki baat ho to me yehi kehta hoon aur yahi kahoonga , to sunon ''DHARAM NA JANU , JAAT NA PEHCHANU ME TO SIRF INSAN AUR INSANIYAT KO PEHCHANU '' jai-hind , jai-bharat
अच्छी पोस्ट... आपकी रिपोर्ट का इंतज़ार है।
satta pane aur uska labh uthane k liye sab sahi hai .sabko apna matlab sidh karna hai koi kisi halat mein jiye bahut badia report
ham bas shanti chahte hain...khud mein, family mein, society mein aur desh mein...aur zyada tamanna nahi hai hamari....kya karna hamein vivaad se .....by the way blogging ka time kaise nikaalte hain aap ?
प्रिया जी आपको शांति जरूर मिलेगी...पहले पहल शांति मक्का मदीना मैं आई थी उसके बाद अब शांति सब जगह देख सकते हैं अफगानिस्तान मैं भी....शांति शांति रटते रटते एक दिन आप तक भी आ ही जायेगी.....
brilliant narration..love it
कल रपट देखी हमने टेलिविजन पर! अच्छी लगी। अलग टाइप की। बधाई!
देखिये मुझे लेखक अशोक वाजपेई का बहुत पहले का लिखा गया एक लेख याद आता है जिसमें वह कहते हैं कि राम के रूप में एक बहुत बड़ा लोकप्रतीक जो शताब्दियों से मिथकों में सुरक्षित रहा आया था वह आज एक ऐतिहासिक देशकाल में निर्वासित हो गया है. यानी वह लोकप्रतीक जिससे भारतीय जनता एक अलौकिक आध्यात्मिक भावभूमि पर जाकर मिलती थी,संवाद करती थी और उससे अनुप्राणित होती थी; आज वह ईंट-गारे के एक ढांचे में निर्वासित है. यह कहीं-न-कहीं हमारी आधुनिक इतिहास चेतना का प्रतिफल है जिसने बाकी सारे सन्दर्भों को अनैतिहासिक कर दिया है. एक तरफ इसने जहाँ राजनीति को यह मौका दिया कि वह अपने उद्देश्यों के लिए सारी चीजों को 'डेटेड' करे, वहीँ इसने एक ऐसी रिक्तता भी बनाई जिसे आशाराम बापू और दूसरे तथाकथित संत आसानी से भर सकें. गाँधी की बहुत साफ़ दृष्टि थी कि भारतीय मनुष्य का एक पैर हमेशा ही इतिहास के बाहर रहा है;तब भी जबकि वह आधुनिक अर्थ में 'शिक्षित' नहीं था.
'अयोध्या' आधुनिक सभ्यता की कुछेक ऐसी उलझनों का प्रतीक-सन्दर्भ है जिसको सुलझाकर वह अपनी ना-कामियों पर पर्दा डाल सकता है. चुनौती शायद बहुत बड़ी है!!
Ayodhya ka Sajiv Chitran..
Aisi Prastuti ke Lie Bhadhai.
namaskar sir, kaafi samay se aapko padhta raha hun par kabhi tippani nahi ki. Aap par tippani karun is laayak khud ko nhi paata hun..
Par aaj keval apna anubhav rakhna chahta hun..
Main faizabad ka hun.isliye ye sab roz dekhta aaya hun..RJB dard hum faizabadiyon se kabhi poonche. Is par bhi ek report kare ki hum ayodhya vaasi hum faizabadi kya chaahte hai.. Main apne ek mitra ke yahaan aaj hi sewain par gaya tha.uska ghar bilkul RJb ke paas hi hai. Hum dono hi aur shayad har faizabadi chahta hai ki faisala na aaye.kyunki faisala jiske bhi haq me ho jalte hai hum faizabadi hi. Hume mandir masjid nahi chahiye wo to hamare paas hai hi. Kaash koi VHP ya BABRI MASJID COMMETI YAHAN EK DHANG KA COLLEGE ya HOSPITAL banane ke liye ladta. Kabhi hum par bhi koi report karen sir. Kripaya mujhe uttar avashya de email dwara. Asha hai ki aap mere liye itna samay zaroor nikal payenge. Apki ye report satya to thi kintu poorn nahi.
Any visitor of Ayodhya (Ram Janm Bhoomi,with open eyes ) must agree with your report and views. Today, I watched your report on NDTV.It was really touching as usual.
welldone ravish ji..aap aise shabdo ko apni report me upyog karte hai ki unke sath bhavanao ka samavesh ho jata hai...riport bahut acchi thi....!
Kabhi m.p. Ke REWA city me aaiye vaha aap ke report ki aas hai hume
kafi lambe time se sunte aa raha hu ram janm bhumi ka mudda, ab to sach me tabiyat ub gai hai is vivad ko sunkar to kan bhi pak gye hai, hamare sesh ke ministers bhi is vivad ko election ka ek mudda bana cuke hai, mandir bane ya masjid koi fark nahi padne wala. sawal is baat ka hai khun kharaba nahi hona chahiye, really nice reporting.
sir aap mahan ho aap ka bolne ka tarika sabse alag hai.
sir aap mahan ho aap ka bolne ka tarika sabse alag hai.
Aaderniya Rveesh ji,
jahan tak sambhav ho pata hai aapki her report dekhne/padhne ki kosish karta hoon.Ise aap apni tareef na samjhiyga bulki ye ek waisa hi kadua sach hai jaisa aapki report aadi me hota hai.Achhe-2 Sahityakar/Vyangakar ke pass aap jaisi bhashi nahin rahin KABEER ki yaad bhi aati hai.Kya marmik aour aam janta ki samasyaon ko aap subject banate hai koi is teraf sonchta bhi nahin. shabdo ka chayan aour unko bolne ka tareeka laazawab hai.
Himmat to nahin pad rahi lekin agar aap izazat de to kuch subject mai bhi batana chata hoon jin per aapki khoj ho jaye to kripa hogi.
Post a Comment