आपमें से कई लोगों ने हबीबगंज एक्सप्रेस में सफ़र किया होगा। निज़ामुद्दीन से चलकर भोपाल और हबीबगंज जाने वाली ट्रेन। इसकी सफाई मुझे हमेशा से आकर्षित करती रही है। गज़ब का अनुशासन दिखता है इस ट्रेन। रेल यात्रा का जितना अनुभव रहा है उसके आधार पर कह सकता हूं कि हबीबगंज किसी के बेडरूम से भी बेहतर साफ सुथरी और सुसज्जित ट्रेन है।
आप इस ट्रेन की फर्श को देखिये। चकाचक। जो चादरें मिलती हैं वो पटना कोलकाता राजधानी में दी जाने वाली चादरों से बेहतर और साफ सुथरीं। बाथरूम का फर्श भी चमकता है। लगता है कि मिनट मिनट पर कोई साफ करता रहता है। एक यात्री ने कहा कि जब आप सो जायेंगे तो अटेंडेंट पर्दा ठीक से लॉक कर जाता है ताकि रोशनी से परेशानी न हो और आप ठीक से सो सकें। पूरे सफर के दौरान नंगे पांव इस ट्रेन में चलता रहा। सफाई को महसूस करने के लिए।
रेल मंत्री ममता बनर्जी को अगर अपने काम से बेहतर छवि बनानी है तो हर ट्रेन को हबीबगंज एक्सप्रेस बना दें। तय कर दें कि रेलवे का हर अफसर एक बार हबीबगंज में सफर करेगा और देखेगा कि किसी ट्रेन को कैसे घर से भी ज्यादा साफ रखा जा सकता है। रेल मंत्री को भी एक बार इसमें सफर करना चाहिए।
यात्रियों से बातें होने लगीं तो किसी ने कहा कि इस ट्रेन में भोपाल के आईएएस अफसर चलते हैं इसलिए साफ है। लेकिन पटना राजधानी में भी तो आईएएस जाते होंगे। इसी महीने नई दिल्ली राजेंद्रनगर राजधानी से पटना गया। समय से पहले तो पहुंच गई लेकिन इतनी बदसूरत और गंदी थी कि पूछिए मत। वही हाल वापसी में संपूर्णक्रांति का रहा।
मगध एक्सप्रेस के दूसरे दर्जे में तो आप झांक नहीं सकते। लेकिन अगर आप हबीबगंज एक्सप्रेस के दूसरे दर्जे में जायेंगे तो हैरान रह जायेंगे। भारत के किसी भी ट्रेन का दूसरा दर्जा इतना साफ सुथरा नहीं होगा। कुछ साल पहले भोपाल गया था। पत्नी के साथ लौट रहा था। सोचा कि दूसरे दर्जे में तो काफी भीड़ होगी। लेकिन जब अंदर गया तो सीट से ज्यादा एक भी यात्री फालतू नहीं। सफाई देखकर दोनों हैरान थे। पटना की ट्रेनों का अनुभव था। इसलिए डरे भी हुए थे कि दूसरे दर्जे में सामान लेकर कैसे घुसेंगे,क्या करेंगे। लेकिन थोड़ी देर में लगा कि ये ट्रेन इतनी साफ सुथरी क्यों हैं। बस हम सब हबीबगंज के बारे में बात करने लगे। एक यात्री ने कहा कि भारत की अकेली ट्रेन है जिसके दूसरे दर्जे में सफर कर आपको एयरकंडीशन कोच से बेहतर लगेगा।
भोपाल में हिन्दुस्तान टाइम्स के संपादक ने बताया कि कर्मचारियों को बड़ा गर्व होता है कि उनकी ट्रेन साफ सुथरी है। किसी ने कहा कि भोपाल से कम ट्रेन है। जब भी नई बोगी आती है,हबीबगंज में लग जाती है। तरह-तरह की बातें। लेकिन सही जवाब नहीं मिला। कुछ तो सिस्टम होगा। कोई तो अफसर होगा। कुछ तो परंपरा होगी। जो इस ट्रेन को चकाचक रखती है।
मुझे तो इस ट्रेन पर किताब लिखने का मन कर रहा है। शोध किया जाना चाहिए और रेलवे के विशालकाय नेटवर्क के सामने हबीबगंज की कहानी पेश की जानी चाहिए कि आखिर कैसे ये ट्रेन साफ सुथरी रहती है। किस तरह से इस ट्रेन में घुसते ही यात्रियों का चरित्र बदल जाता है। रिन से भी ज्यादा सफेद-हबीबगंज भोपाल एक्सप्रेस। ये नारा कैसा रहेगा। यात्रियों को मिलकर इस ट्रेन से जुड़े सभी कर्मचारियों अफसरों,ड्राइवरों को इनाम देना चाहिए।
54 comments:
Ravisji
aapke blog par pehali baar kisi post par sabse pehala comment likhne ka mouka mil raha hai.
Khair,
Aap apne iss post ko apne special report mein dikhaiye, shayad kai aur routon ke railway officer ise dekhkar motivate ho aur apni train ko isi tarah saaf suthra rakhe taaki ek din woh bhi Ravish Kumar ki nazar mein aa jayein aur poora desh unhe dekhega.
अर्चना जी
शुक्रिया। सुझाव अच्छा है। कोशिश करता हूं।
आपके द्वारा हबीबगंज - भोपाल एक्सप्रेस की प्रशंसा पढ़कर एक बार उस ट्रेन का सफ़र करने का दिल करने लग गया है. आपने जो भी लिखा है उसपर मुझे रत्तीभर भी शक नहीं है.लेकिन क्या कारण है कि जगह तथा रेलों के बदलने के साथ साथ रेल के कर्मचरियों तथा अधिकारियों का चरित्र भी बदल जाता है? मै खुद भी रेल से जुडा हुआ हूं, रेल अधिकारी हूं लेकिन यह अंतर अभी तक पूरी तरह समझ नहीं पाया. मुझे कभी कभी लगता है कि यह स्थानिय चरित्र से जुडा हुआ है. आपका क्या ख्याल है?
आम तौर पर ट्रेनों की लेट लतीफी इसमें गन्दगी से हम अनजान नहीं है ऐसे में आप के द्वारा हबीबगंज एप्रेस के बारे में चर्चा करना वाकई में सुखद लगा.रेलवे तो एक है फिर हर ट्रनो में ऐसा अंतर क्यों .इस पर भी लिखे इन्जार रहेगा .
Sir!
Informative & eyes opening blog plz make a documentary on this train VARNA MAIN TO ZAROOR BANAONGA AUR CURTSEY ME AAP KA NAAM DE DENGEY…
Both Habibganj Station and Habibganj Express are first ISO 9000:2001 certified in India in their categories.
That may be the reason they have to follow certain minimum standards.
http://en.wikipedia.org/wiki/Habibganj
रेल मंत्री ममता बनर्जी को अगर अपने काम से बेहतर छवि बनानी है तो हर ट्रेन को हबीबगंज एक्सप्रेस बना दें।
bilkul sahi.
आपसे सहमत हूँ, एक रेलगाड़ी पर किताब मत लिखें, किताब के लिए और बहुत विषय हैं। किसानों पर लिखें, अलहदा रोचक तरीके से लिखें, आँकड़ों का जाल न बुनते हुए।
mauka mila to habibganj kee yatra jaroor karoonga...!!
मई 2005 में मैंने भी भोपाल हबीबगंज के लिए एक पोस्ट - 'पूरे देश को चाहिए आईएसओ 9002 प्रमाण पत्र' लिखा था. लिंक यह है -
http://raviratlami.blogspot.com/2006/01/05_113661857659916145.html
वहाँ पर और भी बहुत कुछ है, तब का एक चित्र भी. यह भारत का पहला आईएसओ स्टेशन है.
फिर भी, सुविधा के लिए पूरा पाठ यहाँ दे देता हूं -
पिछले दिनों भोपाल यात्रा के दौरान हबीबगंज रेल्वे स्टेशन पर उतरना हुआ. यह भारत का एकमात्र ऐसा रेल्वे स्टेशन है जिसने आईएसओ 9002 प्रमाणपत्र हासिल किया था.
मैंने देखा कि समूचा रेल्वे स्टेशन साफ सुथरा था. जगह-जगह कचरा-पेटियाँ लगी हुई थीं. हर दस कदम पर साफ-सुथरी कचरा पेटियाँ आग्रह कर रही थीं कि मेरा उपयोग कीजिए. नतीजतन स्टेशन साफ सुथरा ही लग रहा था. यही नहीं, सफाई कर्मचारी जो अन्य स्टेशनों में नजर नहीं आते हैं, अमूमन साफ स्टेशन को और भी साफ कर रहे थे. कुछ कचरा पेटियाँ प्लास्टिक की थीं, तो कुछ स्टेनलेस स्टील की थीं. जगह-जगह फ़्लाई कैचर लगे थे, जो मक्खियों-मच्छरों की संख्या को नियंत्रित कर रहे थे. नीचे पटरियाँ भी साफ़ सुथरी थीं और उनमें कीटनाशक पाउडर छिड़का हुआ था. आमतौर पर भारतीय प्लेटफ़ॉर्म में आने वाली बदबू वहाँ नहीं आ रही थी.
प्लेटफ़ॉर्म और सीढ़ियाँ ख़ासे चौड़े थे, जिससे भीड़ बढ़ने की समस्या ही नहीं थी. अन्य स्टेशनों की तुलना में सीढ़ियाँ तीन गुना ज्यादा चौड़ी थीं. स्टेशन भवन का फ्रन्टल लुक डिज़ाइनर था, जो बढ़िया लीपा-पोता गया था. स्टेशन पर लगे एलसीडी डिस्प्ले से हर तरह की जानकारियाँ प्राप्त हो रही थीं...
आमतौर पर अन्य सभी भारतीय रेल्वे स्टेशनों में इसके विपरीत नज़ारे देखने को मिलते हैं. हर तरफ भीड़, गंदगी, बदबू का नज़ारा ही देखने को मिलता है. मुझे पिछले वर्ष की गई हरिद्वार की यात्रा याद है. हरिद्वार में प्राय गाहे बगाहे भीड़ जुटती रहती है – चाहे वह पूर्णिमा हो या कुंभ मेला. वहाँ का रेल्वे स्टेशन और सीढ़ियाँ अत्यंत तंग हैं लिहाजा हमें भीड़ के साथ साथ कचरे और बदबू का सामना करना पड़ा था. ट्रेन के इंतजार में वहाँ खड़ा रहना भी मुश्किल हो रहा था. नाक में रूमाल रखने के बावजूद मारे बदबू के उल्टियों का सेंशेसन हो रहा था. पूरे स्टेशन पर मख्खियाँ भिनभिना रहीं थीं सो अलग.
काश भारत का हर रेल्वे स्टेशन हबीबगंज की तरह होता. और काश पूरे भारत के हर नगर, हर शहर, हर गाँव के पास आईएसओ 9002 प्रमाणपत्र होता.
और, एक बात कहना भूल गया - इस ट्रेन को भी आईएसओ 9002 सर्टिफ़िकेशन प्राप्त है!
'Ummid ek zinda shabd hai'
Habeebganj-Bhopal express hamein nirasha ke ek daur se nikalta hai. Log kehte hain itna bada system hai, itne log hain, sabko theek se chalana mumkin nahi. Sablog (yatri, railway staff,sarkar) apni zimmedari samjhein to ye mumkin hai. Saaf jagah me gandagi failate huye kuchh to sharam aa hi jaati hai, chahe hum kitne hi besharam hon.
Aap se gujarish hai ek bif fir train mein Camera ke sath safar karein aur NDTV pe hamein bhi ye safai dikhayein, kyunki yahin nahi ho raha.
आप इतनी तारीफ़ कर रहें हैं तो मान लेता हूँ....खैर... सुखद आश्चर्य.......
मगध .... :( ..... दक्षिण भारत के भी कई ट्रेन साफ़ सुथरे होते हैं ! पर एक बात स्पेशल है - बिहार की ट्रेन में - चुनाव के दौरान वहाँ हर कम्पार्टमेंट में हर कोई 'पोलिटिक्स' पर चर्चा करता नज़र आएगा :)
किताब लिख दिज्ये रवीश जी !!!!!!!
सुशीला जी
सोच तो रहा हूं। इरादा भी है।
अच्छा याद दिलाया आपने... जब मैं फरीदाबाद में रहा करता था तो हर महीने इसी ट्रेन से भोपाल आना जाना होता था. उस जमाने में पहली बार इसी ट्रेन में मोबाइल के लिए चार्जिंग पॉइंट देखा था.... और हबीबगंज स्टेशन पर ही तो पहली बार टच स्क्रीन पर PNR स्टेटस चेक किया था :)
....ये ट्रेन भारत की पहली और शायद अब तक अकेली ISO 9002 सर्टिफाइड है. और हबीबजंग स्टेशन भी..
main aap se puri tarah se shamat nahi hon . jahan tak tarain ke saaf rehne ka swal hain uska karan yeh hain ki is train ka route kafi chota matlab sirf 10 ghanto ka hi hain aur voh bhi yeh ek over night train jisme adhiktar yatri so kar safar krana jyada pasand karte hai . agar iska route aur gadiyon jitna lamba matlab 24 ghanto yaaa uske aas paas ka ho to aap ise bhi dusri traino ki tarah hi treat karenge meri baat par gaur karke dekhiyega.
आखिर ये ट्रेन साफ़ कैसे रहती है ? यह तो सचमुच शोध का विषय है।
samay lage to padhiyega. abhi shaishav awastha me hai
http://sameer-ankahee.blogspot.com
sarakari mulajim hoon. gale me tie lagata hoon. ho sakta hai ki awaaz rundhi hui lage. par itna to zarur hai ki ghuti hui nahin hai.
भोपाल तो फिलहाल जाना नहीं है। हां मौका लगा तो निजामउद्दीन जाकर इस पर थोड़ी देर चढ़कर उतर आएंगे। कोई टोक-टाक करेगा तो बोल देगें कि रवीश बोल रहे थे कि रिन से भी ज्यादा सफेदी इस ट्रेन में है,वही देखने आए हैं।..
Ravish ji...
i agree with archna ji..
ispe ek special report ho jaye..
बिल्कुल सर इस पर एक स्पेशल रिपोर्ट तो होनी ही चाहिए....नकारात्मक रिपोर्ट या सभी कठघरे में खड़ा तो हरकोई करता है कभी इनका मनोबल बढ़ाने वाल खबरे आनी चाहिए..........
इसमें कोई दो शक नहीं कि हबीबगंज-भोपाल एक्सप्रेस साफ सुथरी ट्रेन है..ये लोगों पर बहुत हद तक निर्भर करता है..कि वो किस तरह के माहौल को पसंद करते हैं..अगर आप अपनी आदत से अच्छे हैं तो अच्छा जरूर करेंगे...हबीबगंज एक्सप्रेस साफ सुथरी ट्रेन है तो इसके पीछे साफ रहने और साफ सोचने की मानसिकता है
साबित हो गया न कि हम भारतीयों के लिए सफाई और तमीज़ आश्चर्य की वस्तु हो गई है। रवीश भाई ऐसे सुखद आश्चर्यों को विशेष खबर बनाना कब सीखेगा हमारा मीडिया। वो रेल कर्मचारी कब बनेंगे इंडियन ऑफ द इयर।
यह तो प्रकृति का नियम है कि हर क्षेत्र में द्वैतवाद; 'अच्छा / बुरा', 'खट्टा' / 'मीठा' आदि, और विविधता के कारण शून्य से अनंत (जीव में - काल के अनुसार - 'सर्वोत्तम') तक दीखना स्वाभाविक है,,,और विविधता के कारण ही हरेक के दृष्टिकोण से 'सर्वोत्तम' भी भिन्न हो सकता है,,,जिस कारण 'पञ्च' (पंचतत्व अथवा पंचभूत की पौराणिक मान्यता के आधार पर) या 'समय द्वारा प्रमाणित' पांच व्यक्तियों में से पाँचों अथवा केवल तीन ('थ्री ईदिअत', या 'त्रेयम्बकेश्वर' समान - जिसकी झलक हमनें राज्यसभा में हाल में ही देखी - रूकावट के लिए बिना खेद के?) भी यदि किसी को किसी भी काल का 'सर्वोत्तम' मान लें तो वो सबको मान्य जाना गया है, 'भारत' में अनादि काल से...
रवीशजी, आप सूर्य पुत्र शनि को जानने के लिए उत्सुक हैं, ऐसा आपने कहा था,,,
प्राचीन हिन्दुओं ने शनि को मानव शरीर में 'नर्वस सिस्टम', धातु में लोहा (पृथ्वी के गर्भ में प्राप्त), और रंग में (नभ समान) नीले से जुडा पाया (गहराई में जा कर),,,और, नर्वस सिस्टम का काम 'मूलाधार' से मस्तिष्क में स्तिथ 'सहस्रार' तक 'आठों चक्रों' ('अष्ट-चक्र') यानि मानव शरीर की बनावट में काम में लाये गए आठ 'ग्रहों' के सार और उनमें प्राप्त सूचना और शक्ति को पहुंचाना जाना,,,उसी समान मानव प्रणाली में सब से अधिक संख्या में जनता को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाने का काम करने वाली, सूर्य समान शक्तिशाली इंजन द्वारा चालित, 'लोहे की पटरी' पर चलने वाली, श्रंखला युक्त लोहे के डब्बों से बनी रेल गाडी को प्रकृति के स्वाभाव को सौर मंडल के ९ सदस्यों के अपने अपने विभिन्न गुणानुसार प्रतिबिंबित करते पाया...इस ज्ञान को प्राप्त करने के लिए प्राचीन ज्ञानी हिमालय की गुफा में, एकांत में, वर्षों बिताये, (या यूं कहिये काल के प्रभाव से ले जाए गए किसी अदृश्य शक्ति द्वारा)...
और आधुनिक भारतीय खगोलशास्त्री माने या न माने पश्चिमी वैज्ञानिक भी आज उनका 'लोहा मानते हैं' कि जिसके लिए उन्हें लोहे से बने कंप्यूटर का उपयोग आवश्यक है उस ज्ञान को जंगली, 'गुफा मानव', ने पूर्व में कैसे पा लिया :)
यह ट्रेन मेरे शहर की ट्रेन है. मुझे इसमें बहुत अच्छा लगता है.
इसका सही नाम है 'हबीबगंज-निजामुद्दीन' (भोपाल एक्सप्रेस). यह भोपाल के स्टेशन हबीबगंज से रात ९ बजे चलकर सुबह ८ बजे निजामुद्दीन और पुनः रात को ९ बजे निजामुद्दीन से चलकर सुबह ७ बजे भोपाल (या हबीबगंज) पहुँचती है.
हम भी बधाई देते हैं, ऐसे कर्मचारियों को। इस बार भोपाल गए तो इस ट्रेन की सवारी अवश्य करेंगे। ऐसी सकारात्मक जानकारी देने के लिए बधाई।
नारा थोड़ा बदलिए, रिन की सफेदी से भी सफेद, हबीबगंज एक्सप्रेस।
मुझे भी बहुत आश्चर्य हुआ था देख कर
रवीश भाई,
भोपाल से पत्रकारिता की प़ढ़ाई कर रहे थे हम लोग....विद्यार्थी थे....कोर्स जब समाप्ति की ओर था....तो अक्सर इंटर्नशिप और नौकरी के साक्षात्कार के लिए दिल्ली आना होता था...और इसी ट्रेन से आते थे....चूंकि पढ़ाई कर रहे थे और बार बार आने जाने के लिए आरक्षण का खर्च उठाने से बचते थे....तो इसी रेल की साधारण बोगी में चढ़ जाते थे....और जिस आनंद से सफर कटता था....कई सारे दोस्त...एक साथ....और एक सानदार ट्रेन जिसका जनरल डब्बा भी बेहद साफ सुथरा और सुरक्षित था...भीड़ भी ज़्यादा नहीं....उसके बाद से भोपाल जाना बहुत ज़्यादा नहीं हुआ....पर जब भी गया इसी ट्रेन से गया....और आज आपने फिर इस ट्रेन से जुड़ी पुरानी यादें छेड़ दीं....नाइट क्वीन कहते हैं इसे वैसे.....औऱ भोपाल शहर भी कोई कम खूबसूरत नहीं हैं.....
अब आपकी पोस्ट के बाद लग रहा है एक पोस्ट भोपाल पर लिखनी ही पड़ेगी....यादें जो सताएंगी....
"शुक्रिया जनाब हमारी ट्रेन की तारीफ करने के लिये..
प्रणव सक्सैना amitraghat.blogspot.com
बेहद प्रेरक पोस्ट .
इस ट्रेन को और हबीबगंज स्टेशन को अध्ययन का विषय बनाया जाना चाहिए. भारतीय प्रबंध संस्थान,इंदौर के निदेशक को पत्र लिख कर अनुरोध किया जाना चाहिए कि किसी विद्यार्थी को इसकी ’केस स्टडी’ के लिये कहें . ताकि इसे एक मानक के रूप में बाकी जगह भी लागू किया जा सके .
आपका ससुराल कही भोपाल तो नहीं?
मेरा इस ट्रेन से लगभग हर महीने वास्ता पड़ता है। पहली बात इस ट्रेन का नाम भोपाल एक्सप्रेस है जोकि निज़ामुद्दीन- हबीबगंज एक्सप्रेस भी कहलाती है। सो, ये हबीबगंज-भोपाल एक्सप्रेस लिखना ग़लत होगा। साल में 30 से 35 बार इस ट्रेन से यात्रा करने के बाद भी इसकी सफाई पर कमेन्ट इसलिए नहीं क्योंकि किसी और ट्रेन में अब तक इतना लंबा सफर किया ही नहीं है। खैर, इस यात्रा में जो मुझे सबसे ज़्यादा अखरता है वो है दिल्ली आते ही इसका नज़रअंदाज़ होना। ट्रेन निज़ामुद्दीन से नौ पांच पर चलकर सुबह सात के क़रीब हबीबगंज पहुंच जाती है लेकिन, भोपाल से चलकर निज़ामुद्दीन दस में से एक बार सही वक़्त पर पहुंचती हैं। शायद उसके सारे बेहतरी के प्रमाणपत्र भोपाल तक ही सीमित है। इतना इसलिए लिख दिया क्योंकि ये गाड़ी मुझे घर से जोड़नीवली एक अहम कड़ी है।
इस ट्रेन या स्टेशन से वास्ता तो नही पडा, पर आपकी पोस्ट और रवी रतलामी जी की टिप्पणी पढकर सच में गर्व होता है कि चलो हमारे देश मे भी आखिर एक ट्रेन और एक स्टेशन तो गर्व करने लायक है. इस ट्रेन और स्टेशन से संबंधित हर सख्श को बधाई.
रामराम.
रविश जी, प्रणाम्
वो लोग जो इस ट्रेन की सफाई के आरोपी हैं। चकाचक रखने के हिमायती हैं। उनकी शिनाख्त की जाए। उन्हें पेश किया जाए कि आखिर जब साउथ के कुछ स्टेशनों को छोड़कर देश के बाकि शहरों के स्टेशनों की हालत खस्ता है और वहां से चलनी वाली ट्रेनों की भी ऐसे में इसे मेंटेन करने के लिए पैसे कहां से आए। जांच कमेटी बैठाई जाए। अधिकारियों के आय स्त्रोतों को भी खंगाला जाए। और हां, हो सके तो आम जनता से... जो इसमें सफर करती है पूछा जाए कि आखिर ये इस ट्रेन को साफ कैसे रख सकते हैं। आखिर उनके भारत के आम नागरिक की तरह व्यवहार करने में कमी कैसे रह गई। मुझे शक है कि इसमें राज्य सरकार की भी मिलीभगत है। कहीं शिवराज सरकार साफ-सफाई का ध्यान रखकर लोगों को दिग्भ्रमित तो नहीं कर रही। और हां, एक बात और जांच के दायरे में आपको भी लिया जाएगा...कि आखिर शान-ए- भोपाल की इतनी तारीफ क्यों कर दी आपने। ममता दीदी खास कमीशन बनाएंगी। इस बात की खासतौर से जांच करवाएंगी। और हां एक सलाह भी, भूल कर भी इस खबर को टीवी पर मत दिखाइएगा। क्योंकि ये तो डेवेलपमेंट की सकारात्मक खबर हो जाएगी। मीडिया पचा नहीं पाएगा। और लोग भी, उन्हे भी आदत पड़ चुकी है नकारात्मक खबरों की। अरे हां एक खास बात, भोपाल की खूबसूरती की तारीफ तो भूल कर भी नहीं करिएगा...ओफ्फ ओ भूल गए क्या? अरे वहां सरकार तो बीजेपी की है न। कांग्रेसी और वामपंथी तो आपको चउचक घेर लेंगे। सब प्रायोजित होने का आरोप लग जाएगा फिर मत कहिएगा किसी अपने ने आपको बताया ही नहीं।
जिस ट्रेन कि चर्चा आप कर रहे है उस ट्रेन से में भी सफर कर चुका हूँ |लेकिन ये सारी व्यवस्था ए सी में होती है और ए सी से पूरी ट्रेन कि स्थिति को नहीं भांपा जा सकता है कभी मौका मिले तो जनरल या स्लीपर में सफर करके देख्नेकि इनमे क्या मजा है |
IS TRAIN KO "MODEL TRAIN" KI TARAH PESH KAR BAHUT SAREE TRAINO KO IS TARAH SE PRERIT KIYAA SAKTA HAI.
KUCHH AWARD SCHEME BHI CHALAYE JA SAKTE HAIN, HAR ZONE MEN.
SHAYAD KUCHH SUDHREGA.
ravish sir
aapko bata doon ki bhopal exp. ko iso 9002 certification prapt hai aur jab bhopal div.pashchim madhya railway ke antargat nahi aaya tha yaani central railway mein tha tab se habibganj station safai aur saundaryikaran mein no.1 statin ka darza prapt karta raha hai...bhopalwaalon ko badhai diya hi jana chahiye ..railway ki paramparaagat chavi ke ekdam ulat ..
आपके द्वारा हबीबगंज - भोपाल एक्सप्रेस की प्रशंसा पढ़कर एक बार उस ट्रेन का सफ़र करने का दिल करने लग गया है,ऐसे कर्मचारियों को बधाई।
एक बात और रबीश जी , आप इस पर अवश्य लिखिए किताब, क्योंकि स्लॅम की गंदगी को उजागर करने वाले हमारे फिल्मकार को जब इस बात का पता चलेगा , तो शायद दाँतों से उंगली ही न काट ले , यदि आँखों में पानी बचा होगा तब ! शुक्रिया रबीश जी , शुक्रिया रवि रतलामी जी आपका भी इस जानकारी के लिए !
अक्सर इस ट्रेन से सफ़र लिया है, और इसकी सफाई वाकई काबिले गौर है. हालाँकि आजकल हर ऐरे गैरेनाथू खैरे को आई एस ओ ९००१ प्रमाणपत्र देने का जो चलन निकला है उस पर संदेह होता है, कि कैसे मिल जाता है. यहाँ यह भी गौर करें कि इस ट्रेन का सफ़र सिर्फ ११ घंटे का होता है, और स्लीपर में भीड़ नहीं होने कि वजह है कि इस ट्रेन में आम तौर पर वेटिंग क्लिअर हो जाती है.
खैर सब ट्रेनें भोपाल एक्सप्रेस जैसी बनें ये तमन्ना तो सबके दिल में है....
Dear Ravish
Rail ki tareef padh ker accha laga...Logon ke comments bhi khaas lage...Hum koshish karienge ki isse dastavaizi roop mien aala adhikariyon taK ponhCha dien...
Yeh accha laga ke aksar log sirf burai hi kiya kerte hain aur apne acchai per bhi nigah rakhi aur iss train se jude logon ka hosla badhaya....
Kitaab ka intezaar rahega....
Tehseen Munawer
ek social networking website par logo se unke ya unke padhe hindi blogs ka link likhne dene ko kh rha tha , to socha khud bhi to koi link dena padhega sochne laga to aapka blog yaad aaya aur uska link dal diya. phir socha aapka blog kholkr dekh lu bhut din se dekha nhi. khola to Habibganj Express ka article dikha to pdh liya. Itne sare blogs h unhe samjhne mein he dimag ghum jata h, par aapki Kalam bhut saral hai maza aa gaya.
रविश जी अब क्या कहें, लेकिन आप पहले आदमी है जो भारतीय रेलवे की सफाई की वजह से तारीफ कर रहा है। चलो अच्छा है किसी ट्रेन में तो सफाई रहती है,
बेशक आप साधुवाद के पात्र तो हैं ही । अच्छी बातों की प्रशंसा न हो तो बुरी बातों की आलोचना करने का किसी के पास क्या औचित्य है ? दूसरी ट्रेनों में ऐसी सुविधाएँ क्यों नहीं हैं -- इसके मूल कारणों की पड़ताल होनी चाहिए । जहाँ तक आई० एस० ओ० कम्पनी के द्वारा सर्टिफिकेशन प्राप्ति को इसकी वजह समझने की अटकलबाजी लगाई जा रही है तो एक तरफ जहाँ इसे सिरे से खारिज करने की कोई जरूरत नहीं, वहीं दूसरी तरफ मेरे जैसे अल्प ज्ञान रखने वाले लोगों के लिए यह भी बतायें -- कृपापूर्वक - कि यह आई० एस० ओ० कम्पनी और इसका सर्टिफिकेशन कौन-सी बलाएँ हैं ? मेरे जैसे लोग तो सिर्फ इतना जानते हैं कि यह सम्भवतः एक ऐसी संस्था - सरकारी अथवा गैर-सरकारी - है जो व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को इस बात का प्रमाण-पत्र देती है कि उसके सामान अथवा उसकी सेवाएँ उत्कृष्ठ हैं । क्या इसके दायरे में रेलवे स्टेशन, ट्रेन और रेलवे भी आ सकता है ? कृपया मेरे नादानी-भरे प्रश्न को नज़रअन्दाज़ न करें और पूरी जानकारी देने का कष्ट करें ।
Zahid Mukherjee at http://www.z-mukherjeespeaks.blogspot.com
कैसे बच गई यह ट्रेन? अभी रेलवे विभाग की खबर लेता हूँ।
- आनंद
Ravish ji apke sasmraN mein Railway ka vrtant pad kar achha laga aur ashcharya bhi hua ki hamare desh ki rail kanhi saf safai bh rakhati hai. Mamta baerji ko ish disha me kam karna hoga, thoda thoda karke safai mein sudhar kiya ja sakta hai. Iske liye dept mke karmachaiyon ko natik adhar par apne kam behtar kar dikhane honge.
ab to mujhe bhi is train mei safar karne ki ichchha ho rahi hai....
SIR JI KISI JAMNAE ME NIZAMUDDIN SE CHALKAR GWALIOR JANE WALI TAJ EXPRESSES BHI ISO CETIFIED THI MAGAR JAB SE US TRAIN KO JHANSI TAK EXTEND KIYA GAYA USKI TO ROOP REKHA KI BADAL GAI HAI .......BAAT YAHAN EK COMMITMENT KI HAI TAJ KO GWALIOR KI SHAAN MAANKAR USKA KHYAL RAKHA JATA THA MAGAR AAJ USKI HAALAT BADTAAR HO GAI HAI ....AB RAIL MANTRALAY SIRF PAISA KAMANA CHAHTA HAI CHAE ISKE LIYE UNHE KURKURE EXPRESS CHALANI PADE YA TICKET PE VIGYAPAN CHAPWANE PADE ....KHAYAL KISI KO BHI SUVIDHAON MAIN SUDHAR KA NAHI HAI .....BAAT COMMITMENT KI HAI ...OR AGAR RAIL VIBHAG IS OR DHYAN DE TO HER TRIAN HABIBGANJ EXP HO JAEGI ........OR HER STATION HABIBGANJ STATION
Official name of this train is:
Shaan-e-Bhopal Express and is commonly called Bhopal Express.
Ravish ji ko TV par pehale dekha tha. Phir kabhi kabhi blog padhne laga. Phir soch hum bhi likhen. Aur shabdaurarth.blogspot.com shuru kiya.
Ravish ji ki hindi patrakarita us tarah ki lagi - jaise koi nadi apni nai parampara banane ki koshis me hai.
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