असहमतियों के अमिताभ

ब्लॉग की एक ताकत है। सख़्त से सख़्त असहमतियों के प्रति सहज होने का अभ्यास कराता है। सहज का मतलब बेपरवाह होने से नहीं है बल्कि असहमतियों को पहचानने और स्वीकार करने से है। हम जो लिखते हैं उसकी प्रतिक्रिया उसी के नीचे और उसी वक्त होती है। वो भी लिखित रूप में। जब ब्लॉगिंग शुरू की थी तब असहमतियों से घबराहट होती थी, उसमें इरादे खोजता था। अब ऐसा नहीं है। उत्तर भारतीय मंझोले किस्म के सामंती परिवेश से आने के कारण ख़ुद को लोकतांत्रिक बनाने की प्रक्रिया में ये असहमतियां बहुत सहायक हो रही हैं। हम जो लिखते हैं, फ़ैसला नहीं है। वो सोच है जो हमारी समझदारी की सीमा में घटती बनती रहती है,उसी को लिखकर आज़माते हैं। अमिताभ बच्चन पर लिखे लेख से जो त्वरित और सख़्त प्रतिक्रियाएं आईं हैं,उससे मेरे भीतर सहनशीलता की मात्रा बढ़ी है।

मेरी कोई सफाई नहीं है। जिस तरह से सहमतियों के विशेषण होते हैं,उसी तरह से असहमतियों के भी होते हैं। महानायक और महानालायक,किसी भी शब्दहीन व्यक्ति के लिए आसान से समानार्थी विशेषण हैं। मेरा इरादा अमिताभ के समर्थकों को ठेस पहुंचाने का कत्तई नहीं था। समर्थक भी अमिताभ की फिल्में खारिज करते रहते हैं। फिल्मों में उनके योगदान को आलोचना-प्रशंसा के दायरे में देखा ही जाना चाहिए। मैंने भी उनकी अदाकारी की तारीफ की है लेकिन मैं नहीं मानता कि अमिताभ की आलोचना नहीं हो सकती। नरेंद्र मोदी की आलोचना नहीं हो सकती। इसका मतलब यह नहीं कि चौरासी के दंगों में कांग्रेस की भूमिका की आलोचना नहीं की है। इसी ब्लॉग पर जब पत्रकार साथी जरनैल ने चौरासी पर किताब लिखी तो उसकी समीक्षा की थी। इसी ब्लॉग पर कई बार कांग्रेस की सांप्रदायिकता की आलोचना की है। मैं किसी भी किस्म की(कांग्रेसी,बीजेपी,हिन्दू-मुस्लिम) सांप्रदायिकता का विरोधी हूं और रहूंगा। अगर कोई नेता अच्छी सड़के बनवाता है, उद्योग लगवाता है लेकिन उस पर सांप्रदायिक साज़िशों में शामिल होने का आरोप लगता है तो मैं अपने वैचारिक रूझान से उसके सांप्रदायिक पक्ष को ही देखूंगा। मैं गुजरात के दंगों को कभी नहीं भूल सकता। ये वो दर्द हैं जो अहमदाबाद में फ्लाईओवर बनवा कर दूर नहीं हो सकते। सांप्रदायिकता के प्रति अपने लिखने में सख्त रहूंगा। मेरा काम चुनाव में जाकर किसी को हराना नहीं है। लेकिन अपने दायरे में जहां भी मौका लगेगा मैं इसका विरोध करूंगा।

अमिताभ बच्चन क्यों आलोचनाओं से परे किये जाएं? क्या पत्रकारिता कैसी हो,इसे लेकर आप सख्त नहीं होते? क्या आपकी राय नहीं होती? क्या आप हमारी तमाम ग़लतियों को इसलिए स्वीकार करते चलेंगे कि हम पत्रकार हैं। जो सार्वजनिक जीवन में है वो हर तरह की प्रतिक्रिया का भागी होगा। उसकी आलोचना होगी। आज का अर्जुन,जादूगर,मर्द,मृत्युदाता का अमिताभ फटीचर था। ब्लैक,दीवार,सिलसिला और पा का अमिताभ श्रेष्ठ था। दोनों पहलू हैं लेकिन आलोचना का मतलब यह नहीं कि हम फिल्मों में उनके काम को नज़रअंदाज़ कर रहे हैं। ये तो किया ही नहीं। मैंने तो बस उनके सार्वजनिक जीवन की कुछ राजनीतिक हरकतों को लेकर लिखा है।

मैं तो पत्रकारिता के गुज़र रहे इस काल को भी फटीचर काल कहता हूं। महानालायक विशेषण का इस्तमाल अपनी बात को प्रभावी तरीके से करने के लिए किया। इस पर आपत्ति भी समझ सकता हूं मगर आशय इतना ही था कि आखिर अमिताभ पर्दे से उतर कर इस कदर क्यों हो जाते हैं जहां उनका काम बिना राजनीतिक सत्ता के नहीं चलता। बाला साहब ठाकरे को रण फिल्म दिखाने गए हैं। उसी बाला साहब ठाकरे की राजनीति का शाहरूख़ खा़न विरोध कर रहे हैं। कहा कि माफी नहीं मांगूगा लेकिन उसी वक्त में अमिताभ बाला साहब ठाकरे के पास जाते हैं। इसीलिए इनके बारे में मेरी राय नहीं बदली है।

दोबारा इसलिए लिख रहा हूं कि आप सबकी प्रतिक्रया को यूं ही खारिज नहीं किया जा सकता। उन पर राय तो देनी ही पड़ेगी। आप सबके बीच में ही रहना है लेकिन क्या मजा कि अपनी राय पर कायम ही न हुए। चुप रहना आपकी असहमतियों का अनादर मानता हूं। इसलिए अपनी बात कह रहा हूं। मैं यह बिल्कुल नहीं मानता कि जो लिखता हूं वो अंतिम सत्य है। उसमें बदलाव भी करता हूं। कई बार प्रतिक्रियाओं के बाद बदलाव करता हूं। लेकिन कुछ बुनियादी सोच को आसानी से बदलना मुश्किल है। मुझे नहीं लगता कि महानालायक से अभद्रता प्रकट हुई है। लेकिन हां इस विशेषण की एक नाकामी स्वीकार करता हूं। वो ये कि इसने आपका ध्यान तो खींचा लेकिन लिखने का आशय नहीं प्रकट कर पाया और आपकी अहसमतियों का केंद्र बन गया। कई लोग विशेषण से आहत हैं तो कुछ अमिताभ के प्रशंसक होने के नाते। मैं भी लिखते वक्त आहत था। मैं भी प्रशंसक हूं अमिताभ का। लेकिन जैसा कि कुछ असहमतियों में दर्ज है कि घमंड से लिखा है, ऐसा नहीं है। न ही टीआरपी बटोरने के इरादे से इस विशेषण का चयन किया है। घमंड किस बात का। कस्बा पर आने के लिए और आते रहने के लिए आप सबका धन्यवाद। जिन लोगों ने सहमति प्रकट की है आशा है वो इस तरह की बहसों में बेबाक होकर सामने आयेंगे। उनका भी शुक्रिया। छद्म ही सही..धर्मनिरपेक्ष माहौल में जीने की खुशफहमी सांप्रदायिक होने के खतरे से ज्यादा भाती है। लेकिन जब दुनिया धर्मनिरपेक्ष हो सकती है तो छद्म भी क्यों स्वीकार करें। आते रहियेगा। आप सभी से ये गुज़ारिश हमेशा रहेगी। असहमतियों को जानना सबसे ज़रूरी है।

50 comments:

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

अमिताभ अच्छा विषय है ब्लोग ट्रेफ़िक बडाने का . लगे रहिये आप को तो लाईसेंस मिला है किसी को भी बेइज़्ज़्त करने का आखिर पत्रकार है आप .

चन्दन said...

अमिताभ को लेकर आपका स्टेंड सही है। असहमतियाँ तो होगी ही। पर जितने भी ऐसे लोग हैं जिनकी बातों का समाज पर असर होता है उन्हे समाज के बारे में सोचते हुए कोई कदम उठाना चाहिये। गुजरात में विकास विकास का शोर ऐसे मचा हुआ है जैसे वो पहली बार विकसित हुआ है। यह सबको मालूम होना चाहिये कि भारत में सबसे ज्यादा उद्योगपति गुजरात से आते हैं और वो भी पिछले आठ दस सालों से नही, आजादी के समय से। बचपन से सुनते आये कि अमूल आदि कम्पनियों ने सौ पचास गावों के विकास का जिम्मा ले रखा है। सबसे ज्यादा एन.आर.आई. गुजरात में है। और सबसे ज्यादा अमीर राज्य है गुजरात। वहाँ विकास तो शर्तिया होना है। अब कोई सरकार पंजाब को विकसित करने का दावा करे तो उसकी मूर्खता पर हंसा जा सकता है। पंजाब या गुजरात में इतना पैसा है कि वहाँ विकास पहले से ही हो रखा है। इसमें आज की राज्य सरकार का रोल इतना ही है कि इसने धर्म विशेष के लोगो के लोन लेने के नियम भी कठिन कर दिये!!!

याद आता है, जब उत्तर प्रदेश में अपराध अपने चरमोत्कर्ष पर था तब अमिताभ बता रहे थे: यू.पी. में है दम, क्योंकि यहाँ है अपराध कम।

आप जरा उनकी भी खबर लें/दें जो फिल्म रीलिज होने के समय समाज के खैर ख्वाह बन जाते हैं और हफ्ते भर बाद जाने कहाँ बिला जाते हैं।

Harshvardhan said...

रवीश जी अमिताभ बचन पर आपने पिछली पोस्ट पर सटीक लिखा है....अब अगर उनके प्रशंसक उनको दी गयी महानालायक की पदवी को नहीं पचा पा रहे है तो मत पचाए.....|आपका अमिताभ की छवि ख़राब करने का कोई इरादा नहीं था....|भई मेरा तो मानना है हर किसी को अपने विचारो को व्यक्त करने की पूरी आज़ादी है ... फिर पत्रकार को तो अपनी ड्यूटी निभानी चाहिए...|आपने कुछ भी गलत नहीं लिखा.... जितनी साफगोई से आप अपनी बात कसबे में रखते है वैसी बात कोई नहीं कह सकता.....बेबाक होकर लिखते रहिये....भई अपना क़स्बा है कुछ कहने का मन तो कहता है..........

शशांक शुक्ला said...

सर पत्रकारिता का मतलब ये कतई नहीं है कि आप किसी को अभद्र भाषा में दोषी करार दे। जिस तरह से आपने आलोचना में हदें तोड़ी है उसे देखकर कोई भी आप पर उंगली उठा सकता है। अमिताभ जैसे महानायक को आप समानार्थी बना कर महानालायक पेश कर रहे है वो कहां तक सही है। आपकी आलोचना आपके अमिताभ आलोचक होने पर नहीं हुई बल्कि आपके शब्द चयन और अभद्र भाषा के कारण हुई है। जिस तरह आपने महानायक को महानालयक कह कर पेश किया ठीक उसी तरह हर किसी को कहने का हक है कि रविश....वॉट रबिश....

Sanjay Grover said...

व्‍यवहारिक बुद्धि
……………………………………

किसी शक्तिशाली की मूर्खता पर मत हंसो
हो सके तो प्रशंसा करो उसकी मुर्खता की
वह किसी भी समय आ सकता है काम

किसी अतातायी से मत करो प्रश्‍न
क्‍या ठिकाना
वही तुम्‍हारा भाग्‍यनियंता बने किसी दिन

जीवन बडा कठिन है
इसलिए भावुकता से मत लो काम
समझाता है एक भावुक कवि
एक युवा कवि को

उस चर्चित भावुक कवि ने
जीवन में कभी कोई फैसला नहीं किया
भावुक होकर

जो सफल है
वह सफल है
चाहे वह जैसे भी सफल है
उसकी सफलता का सम्‍मान करो
हो सके तो रोज उसे फोन करो

एक युवा कवि
एक दिन अपना घर फूंकने पर आमादा हो गया
वह ज्‍योंही लुकाठी लेकर बाहर निकला
उसे घेरकर खडे हो गये
प्रतिष्ठित कविगण, विद्वान
समझाया कि घर मत फूंको
घर रहेगा तभी कुर्सी होगी, टेबूल होगी
कागज होगा कविता होगी
कविता होगी तभी कवि कहलाओगे

जाओ कविता में लौट जाओ
यही व्‍यवहारिक बुद्धि है ।
– संजय कुंदन (आलोचना, अंक-8)

Sanjay Grover said...

एक पोस्ट लिखिए: '‘बिहार के महानालायक नेता लालूप्रसाद'’ या ‘'भ्रष्टाचारी गुण्डों की निकम्मी सरदारनी मायावती’’। देखें कितना शोर मचता है अभद्र भाषा को लेकर ?

संदीप कुमार said...

दोष अमिताभ का नहीं है। दोष उनसे ऐसी उम्मीदें पाले बैठे हम जैसे लोगों का है। अमिताभ के लिए गुजरात या उत्तर प्रदेष का ब्रांड एंबेसडर बनना उसी तरह है जैसे कैडबरी के बाद नवरत्न का प्रचार करना क्योंकि उन्हें इसका बाकायदा भुगतान होगा। फिर गलती किसकी। अपेक्षाएं दुख का कारण होती हैं रवीश जी। बहुत बार अपने एक दोस्त से सुना है. गुजरात में जो हुआ वह त्रासद था लेकिन वह ने देश में पहली बार हुआ और न ही आखिरी बार हुआ है. असहमत होना आपका अधिकार है इसलिए आप हुए। अमिताभ ने कब कहा कि उन्हें राष्ट्र नायक का दर्जा दिया जाए। राजेंद्र यादव से लेकर आप तक हर कोई उसी शख्स से परम शुचिता और बौद्धिकता की उम्मीद क्यों करता है भई। ये अच्छा है कि उन्हें अपने अखाड़े में लाकर रगेद दिया जाए। नाचने गाने वाले आदमी हैं वह, और अपने अभिनय से लोगों का मन बहलाते हैं। इससे बड़ा बनने का दावा उन्होंने शायद ही कभी किया हो। अगर किया है तो मैं उन्हें झूठा करार देता हूं। रही बात आइडियोलाजी की तो उसपर किसी का विशेषाधिकार तो है नहीं। उनका अपना सोचने का तरीका है और आपका असहमति जताने का लेकिन एक जिम्मेदार पब्लिक फिगर होने के नाते आपसे भाषाई संयम की उम्मीद तो की ही जा सकती है।

Unknown said...

भाई रवीश जी,
आपके असहमतियों के अमिताभ ने काफी प्रभावित किया। दरअसल देखा जाए तो असहमतियों के अमिताभ से निकल कर कहीं असहमतियों के रवीश खड़े हो गए। वो रवीश जो अक्सर अपनी बातों से और तर्कों से सहमत होने को मजबूर कर देते थे। खैर...आप ने लिखा है कि उस ‘विशेषण’ के मर्म को आशय को समझने की ज़रूरत है। मैं उसी आशय में एक बार फिर से उतर रहा हूं। मैं जानना चाहता हूं कि आज की पत्रकारिता इतनी ‘पैनिक’ क्यों होती जा रही है। क्यूं आपको नहीं लगता कि जिस विशेषण का प्रयोग आपने अमिताभ के लिए (जिस किसी भी आशय के साथ) किया है वो गलत है। आज का पत्रकार क्यों ये मानने को तैयार नहीं है कि शब्द के पैनेपन का इस्तेमाल कैसे भी करने के लिए वो स्वतंत्र है आपके ही ब्लॉग पर कितने लोगों ने जो बुद्धिजीवी हैं(या हो सकते हैं) कितनी फूहड़ और आक्रमक शब्दों का प्रयोग कर रहे हैं चाहे आपके लिए या फिर अमिताभ के लिए। मैं समझ नहीं पा रहा अगर अमिताभ के लिए जो हमारे देश के महान नहीं तो सम्मानित कलाकार हैं उनके लिए इस तरह के (महानालायक) शब्द का प्रयोग करना और फिर उसपर कहना कि आशय समझिए क्यों ज़रूरी हो गया है। आखिर इतना छोटे छोटे से अहम क्यों हो गए हैं हमारे जो हमें इतना पैनिक कर देते हैं। आपसे जानना चाहूंगा कि अगर अमिताभ से बड़ा कोई आपके हिसाब से खलनायक मिले तो आप उसे क्या लिखेंगे। बात और बहस, शब्द और भाषा के प्रयोग की है। दूसरे इस व्यक्ति के प्रोफेशन की। अगर कोई व्यक्ति देश का जानामाना कलाकार है तो क्या उसे अपने लिहाज़ से अपनी उन्नति के बारे में भी हमसे पूछ कर काम की मांग करनी भई यही उसका प्रोफेशन है और उसे अपना काम करने दीजिए न। दिक्कत क्या है। हां भाषा आपत्तिजनक है, आलोचना करिए अच्छे से करिए ये आपका अधिकार है। पर ये ज़रूर ध्यान रखिए की अगर आज की पत्रकारिता में ‘आलोचना’ की भाषा ऐसी है तो आनेवाले समय में और क्या हो जाएगी। वैसे भी कुछ चैनलों ने तो भाषा की दुर्गति कर ही रखी है। वैसे आप खुद ही खासे गंभीर है संतुलित हैं।

Kulwant Happy said...

अमिताभ बच्चन की पोस्ट को लेकर विवाद इतना हुआ है कि कल मेरे दो घंटे निकल गए। तर्क उनके भी सही थे, लेकिन तर्क अपने भी सही थे।

बातों से बात निक्ल आई कि आप गुजरात और मोदी को पसंद नहीं करते, इसलिए अमिताभ पर इतनी बड़ी पोस्ट लिख डाली। मुझे आपकी पोस्ट से इतराज नहीं था, क्योंकि मैं भी दो पोस्टें लिख चुका हूँ, लेकिन..........आप ने उस बात पर खुद मोहर लगा दी कि शायद नीचे वाले कथन के कारण आपकी कलम कुछ ज्यादा नकीली हो गई।
मैं गुजरात के दंगों को कभी नहीं भूल सकता। ये वो दर्द हैं जो अहमदाबाद में फ्लाईओवर बनवा कर दूर नहीं हो सकते। सांप्रदायिकता के प्रति अपने लिखने में सख्त रहूंगा। मेरा काम चुनाव में जाकर किसी को हराना नहीं है। लेकिन अपने दायरे में जहां भी मौका लगेगा मैं इसका विरोध करूंगा।

मैं पहले वाली पोस्ट से सहमत था, भले 100 लोग सहमत न हुए हों।

Kulwant Happy said...

@संदीप पांडे का कहना कुछ हद तक सही हो सकता है, लेकिन जब देश की जनता एक आम व्यक्ति को प्यार स्नेह देकर इतने बड़े रुतबे तक पहुंचा देती है, क्या उस का फर्ज नहीं वो आने वाली पीढ़ी का मार्गदर्शन, लोगों के प्यार का मोल चुकाए। भले ही अमिताभ ने वो रुतबा अभिनय में पाया हो, लेकिन जब उसको रुतबा मिल गया, उस रुतबा इस्तेमाल लोक भलाई में किया जा सकता है, यह नियम सब पर लागू होता है।

Nikhil Srivastava said...

...लेकिन विश्वास था कि आप आयेंगे जरूर. बाकी तो सह'मति' और असह'मति' का खेल है. आप सोच रहे होंगे कि अब तो बहस समाप्त हो जानी चाहिए पर एक बात कहने का मन है क्यूंकि इस पोस्ट में भी अमिताभ से शुरू हुई आग खत्म नहीं हुई है..चिंगारी तो अभी भी है. नेहरु हो, जिन्नाह हो, मोदी हो, सज्जन कुमार हो, जगदीश टाइटलर हो या कोई भी जिसकी वजह से मास किलिंग हुई, माफ़ नहीं किया जा सकता. और यहाँ किसी का अपराध कम या ज्यादा नहीं है. इन्हें कोई माफ़ नहीं करेगा.
आपने सबकी बातों पर गौर किया और सबको शालीनता से जवाब दिया, यह बहुत अच्छा लगा. इसीलिए आपको लोग इस पतित, फटीचर काल में भी बड़ी आशा से देखते हैं. आपकी बातों पर युद्ध होने लगते हैं. ये प्रेम ही है जी कि आपने प्रशंशक होने के बावजूद अमिताभ की आलोचना की. हम भी बहुत प्रेम करते हैं आपसे.

वैसे संदीप भाई की बात काफी हद तक सही है. कुलवंत जी भी. लेकिन ये ध्यान रखना होगा की हम फिर ऐसे किसी को न बख्शें जो ऐसी ही हरकत रोज करते हैं. इस पर काफी लम्बी बहस की जा सकती है पर ये बहस व्यक्तिगत सोच समझकर हमें यहीं समाप्त कर देनी चाहिए.

एक सवाल उठ रहा है कि क्या वाकई हम इमोशनल फूल हैं?

मनोरमा said...

रविश जी, बहुत सही स्टेंड है आपका, एक कलाकार का समाज़ मे सा्र्थक हस्तक्छेप होना ही चाहिये, अमिताभ ने ऐसा नही किया है, महानायक का कद यही आकर बौना हो जाता है,

Kirtish Bhatt said...

रवीश कुमार को अपनी बात प्रभावी तरीके से कहने के लिये 'महानालायक' जैसे शब्दों तक उतरना पड़ा !!!
वाकई "ये पत्रकारिता का फटीचर काल है."
...आपकी स्वीकारोक्ति को सलाम!!

Rangnath Singh said...

हमारे लिए आपत्तिजनक यह था कि आपने नितांत व्यक्तिवादी होकर मैन टु मैन मोरल पोलिसिंग के अंदाज में लिखा है। जो आम तौर पर भाजपाई,शिव सैनिक टाइप लोग करते हैं।

व्यक्तिवादी ढंग से संवाद में अप्रस्तुत व्यक्ति के खिलाफ अशोभनीय भाषा में लिखना जिम्मेदार लेखकों को शोभा नहीं देता। आप का ऐसा लिखना तभी सहनीय ठहराया जा सकता था जब खुद अमिताभ आमने-सामने बहस में होते। या फिर अमिताभ किसी सार्वजनिक पद पर होते तो आप की आलोचना उचित होती। वो न तो किसी जिले के डीएम हैं न किसी मंत्री-प्रधानमंत्री। न वो कोई मार्क्स या लोहिया जैसे विचारक हैं। वो एक फिल्मी कलाकार मात्र हैं। उनकी छोटी-छोटी बातों को तवज्जो देना कहाँ तक सही है ?

लोग कहते हैं कि अमिताभ पैसे लेकर कोई भी विज्ञापन कर सकते हैं। और इसे उनकी कमजोरी बताते हैं। जबकि यही अमिताभ का पेशा है। और वो अपने पेशे में बेहतरीन हैं यह कहने की बात नहीं है। इस देश में बहुत कम लोग हैं जो अपने पेशे के प्रति पूर्णतः ईमानदार हैं। और उसमें अमिताभ सरीखी गुणवत्ता बनाए रखते हैं। किसकी राजनीति क्या है यह एक पक्ष है लेकिन अपने-अपने पेशे से बेईमानी भी एक जरूरी पक्ष है।

अपने पेशे में बेईमान पत्रकार,अध्यापक,बुद्धिजीवी,वकील,जज,नेता,डाक्टर,पुलिस इत्यादि की राजनीति चाहे कितनी भी सही हो अमिताभ उनसे एक मामले में बेहतर है कि वो जिस कर्म से जीवन चलाता है उसमें बेईमान नहीं है।

गुजरात दंगो और सिक्ख दंगों में पुलिस वालों ने जिस तरह से अपने पेशे से धोखा किया ये सभी जानते हैं। काश कि वो अपने पेशे में ईमानदार रहे होते और नागरिकों की रक्षा की होती और दंगाईयों को पीटा होता। पत्रकार क्या कर रहे हैं इस पर आप खुद लिखते रहे हैं।

अपने रोजी-रोटी के लिए हमार कामरेडों को भाजपाई ग्रुपों या टाइम्स ग्रुप जैसे घनघोर पूंजीवादी ग्रुप में मोटी तनख्वाह पर काम करने की आजादी है लेकिन अमिताभ को अपना हुनर बेचने के लिए राजनीति का ध्यान रखना जरूर बताया जाता रहा है ! वो भी तब जब अमिताभ ने कभी भी किसी तरह की राजनीतिक प्रतिबद्धता का दावा नहीं किया।

Rangnath Singh said...

आपने अमिताभ के महानायकत्व को लेकर आलोचनात्मक होने की बात की है। कोई मतांध ही अमिताभ को हिन्दी सिनेमा का सबसे बड़ा अभिनेता कहेगा। वो हमारे देश के बेहतरीन अभिनेताओं में से एक हैं। बस इतनी सी बात है। महानायक या महानालायक तो मीडिया की उपज है। यह बात हम सबके सामने साफ है।

आपने मंतव्य और गलत संदेश की बात की है। यदि आपने फिल्मी सितारों के सामाजिक दायित्व को विषय बनाया होता है और उसे अमिताभ एवं अन्य के उदाहरण पुष्ट करते तो वह एक सुसंगत और समीचीन आलोचना होती। किसी घटना या व्यक्ति के कारण आए विचार का सामान्यीकरण करके ही लेखक लिखते हैं। व्यक्तिवाचक ढंग से कलम रगेद देना तो अ-लेखकों के लिए है।

कुछ लोगों ने आपके खिलाफ टुच्ची भाषा का प्रयोग किया है। ऐसी भाषा की जितनी निंदा की जाय कम है। आप अपने तईं सदैव ईमानदार रहते हैं इसमें हमें कोई शक नहीं है।

अपने विचारों पर पुनर्विचार करने के लिए अप्रतिम साहस चाहिए। जो आपमें है। आपके इस पहलू से हम सब प्रभावित रहते हैं। फिर से कहँुगा कि इस दलदल में रहकर आप जितना कर पा रहें हैं उसके लिए हम आपके प्रशंसक हैं।

अंत में यही कहुँगा कि मुखर आलोचना और अभिव्यकित की स्वतंत्रता लोकतंत्र की जान है। भद्र और विवेकवान होना आलोचना की जान है। लोकतंत्र और आलोचना दोनों की जान बचाए रखना लेखकों की पेशेगत जिम्मेदारी है।

सहसपुरिया said...

आप मैं और हम मैं यही फ़र्क़ है कि जो बात दिल और दिमाग़ मैं है मगर लफ्ज़ नही मिल पाते आप उसे लफ़ज़ो का जामा पहना देते है फिर वो आप की कही ना होकर सब के दिल की आवाज़ हो जाती है, सबसे अच्छी बात ये कि आपके ब्लॉग पर इक सार्थक बहस चलती है, आप लगे रहिए सबको खुश करना बहुत मुश्किल है अभी तो बहुत से 'महानायक' बाक़ी हैं जिनका हिसाब होना है.
Thanks, keep bloging

JC said...

'भारत' एक 'महान' देश है - यहाँ यदि राम हुए तो रावण भी पैदा हुए; दुर्योधन हुए तो युधिस्ठिर भी...द्वापर युग में भी सत्यवादी, जो महाभारत युद्ध में 'स्थिर' रहे...और, गीता में भी 'कृष्ण' का 'अर्जुन' को दिया उपदेश भी यही है कि 'हर एक व्यक्ति को हर काल में स्तिथप्रग्य रहना चाहिए - न दुःख में अधिक दुखी न सुख में अधिक सुखी, आदि आदि...और यह भी कि आदमी गलतियों का पुतला है क्यूंकि काल, यानि युग कि तुलना में क्षणिक आयु, के प्रभाव से वो दसों दिशाओं का सीमित ज्ञान ही अर्जित कर पाता है...इसलिए जीवन का केवल सार जानना ही संभव है और उसका उद्देश्य केवल यही होना आवश्यक है...और इस कार्य में वो (अदृश्य महापुरुष अथवा खलनायक) गुरु बनने को तैयार तो हैं किन्तु विद्यार्थी ही कटी पतंग समान डोर उनके हाथ में देना ही नहीं चाहता - केवल अज्ञानता के कारण उपजे अविश्वास वश :)

यद्यपि हर कोई इसे जानता है, ओशो भी कह गए कि सत्य को शब्दों द्वारा बखान नहीं किया जा सकता, किन्तु यदि जिस किसी को भी सत्य का (बुद्ध समान) बोध किसी भी काल में हो गया तो उसे सर्वजन हेतु मजबूरन शब्दों का ही प्रयोग करना पड़ता है (या फिर वो मौन रहे, मुनि बन जाए)...

जय 'भारत माता' क़ी! महाभारत चालू आहे!

prakashmehta said...

you are doing like what thakre people are doing . they only do there politics opposing cricket film actor . cricket tv films are eay topic to read ad discussed .everyone can comment and analyse on these. i think people want more serious discussion. if you say anythings fatichar that is not improving your status. try to discuss some serious topic .many are there search and write .but this is difficult to do.
when i was small child if i recite some poem my dadi used to say that how intelligent i was. this is with you people. you cant be so much intellecual discussing this brand ambassdor issue . and comments wale dadi ya dada kya jata hai .intelligent bolne me. but where is seriousness .

Ashish Tiwari said...

Chaliye sarkar itne der baad kuch to kaha aap ne, aap ko kafi dino se padh raha hoon aur dekh bhi raha hoon lekin pehle baar aap ke itne zada aalochna hue hai. Yeh bhi sach hai Ravish babu jab tarif hote hai to aalochana bhi hoge he. Bhadas4Media padhyae Dayananad Pandey ji ne aap ke tarif me bhut accha likha hai aur haan jaise ke aap se kai logo ne phale bhi kaha hoga use trah unhone bhi aap se Special Report dubra karne ke baat bhi ke hai."स्पेशल रिपोर्ट ले कर आइएगा ज़रूर। हम भी देखेंगे घर में अपने रजाई ओढ कर अगर बिजली आती रही तो" yeh unhe ka lika hua hai. Haan hum to aate he rahenge aap bas likhte reahyae, "Delhi ka romance" ke agali kadi kab la rahe hain intazar hai.

Archana said...

SAHMATI AUR ASAHMATI AYE TO SIKKE KE D0 PAHLU HAI...PER AMITABH KO BHI SOCHNA CHAHIYE KI JIN LOGO NE UNHE MAHANAYAK BANAYA UNKI...UN LOGO KI BHAWNAYO KO THHES NA PAHUCHE....PER EK KE BAAD EK ...PAHLE THAKRE SE MAAFI FIR...MODI KE LIYE KAAM...AUR AB THAKRE KE GHAR JA KAR UNHE FILM DIKHLANA.....
KYUN BHAI LOGO IS PER AAPKI KYA PRATIKRIYA HAI...
KYA AYE EK MAHANAYAK KE LIYE SAHI HAI....
SOCHO........

Apanatva said...

lekhan kisee bhee poorvagrah se thoor , achoota rahe to ye pathakon ke hit me hoga .........

JC said...

हर व्यक्ति अपने निजी अनुभवों, निजी आवश्यकताओं, और अपनी और अपने करीबी लोगों की बुद्धि से काम लेता है...मुझे तो आज तक उनसे मिलने का या पास से देखने का भी सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ...यद्यपि उनके पिताजी को अपने कॉलेज के स्टेज पर दो बार देखा (सन '६०-'६१ में शायद). पहली बार उनकी 'मधुशाला' का आनंद सभी विद्यार्थीगण ने लिया...किन्तु दूसरी बार कविता पाठ में विघ्न पड़ गया और सभा समाप्त हो गयी, क्यूंकि किसी 'शैतान' लड़के ने उनकी नक़ल कर पंक्ति के अंत में उनके स्टाइल में "आँ आँ आँ आँ" कह दिया...:)

डॉ .अनुराग said...

कोई भी व्यक्ति आलोचना से परे नहीं होता ओर एक अभिनेता तो कतई नहीं ....सच पूछिए तो "महानायक "का ख़िताब भी मीडिया का दिया हुआ है ...मीडिया ओर अमिताभ दोनों एक दुसरे की जरूरते है .ओर दोनों ही चतुराई से इसका इस्तेमाल करते है ...परवेज मुशर्रफ ने भी बड़ी चतुराई से भारतीय मीडिया का इस्तेमाल आगरा मीट में किया था .सारे फ़िल्मी सितारे ओर मीडिया इस "म्यूचल -इन्वेस्टमेंट" को गाहे बगाहे इस्तेमाल करते है ...आमिर ओर शाहरुख़ इसका बहुत अच्छा उदारहण है ........मेरे जैसे बहुतेरे लोग न मोदी के फेन है न मुलायम के ....अमिताभ के भी बतोर अभिनेता फेन है ...बतोर व्यक्ति नहीं .....इसलिए आपकी प्रतिक्रिया "यू पी में है दम" के वक़्त आती तो अच्छा लगता ...यूँ भी उनके एड के बावजूद मुलायम सत्ता में नहीं आये थे ......फिर ये तो आप भी मानेगे की असहमतियो की भाषा भी शिष्ट होनी चाहिए ....आपका शीर्षक ठीक नहीं था ....
मुझे तो लगता है जैसे वे च्वंप्र्काश ओर डाबर का लाल तेल बेचते है वैसे ही ये एड कर रहे है ....हाँ अगर आप एड वर्ल्ड में नैतिकता की बहस चलाना चाहते है तो वाजिब है आखिर फेयर एंड लवली का टर्न ओवर करोडो का है .....

Anita said...

big b ko thacrey aur modi ke taluye chaatne ke jaroorat apne swarth se pad rahi hai..'raah pakad tu ek chalachal pa jayega madhushala' wo ye staze par gate jaroor hai par niji jeevan me jaha phayada dikha us raah ko pakad lete hai ...darpok itne ke purani raah ,rekha wo kisi ko nahi pehchante.....raveesh tumne theek likha hai harivansh rai bachachan ji jeevit hote to wo bhi unhe nalayak he kehte...

Anita said...
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Unknown said...

Main Rangnath Singhji se sahmat hoon.

Amitabh koi krantikari nahin hain... Na hin unhone samaj parivartan ka jimma le rakha hai. Kalakar hain.. Paise mile to acting karenge... chahe wo Nayak hon.. khalnayak hon ya koi Brand ka Promotion ho. Unki Company AB CORP ko paisa chahiye... agli film prodece karne ke liye.

Mahanayak to wo khud ko mante hain ya nahin kabhi unse puchha ja sakta hai.

Sawal morality ka hai ki kya unhe Narendra Modi aur Bal Thakre ke saath hona chahiye ya nahin??

Abhi haal hin men Radio Mirchi per Amitabh ne kaha ke Big Boss ko host karna bhi ek compromise tha.... AB Corp ko Pisa chahiye.

Main ise sirf buseness ke angle se dekhta hoon.

Ashok Kumar pandey said...

अमिताभ निश्चित तौर पर महानायक वगैरह नहीं बल्कि एक महान अवसरवादी हैं। नायकों की तलाश में मीडिया ने उन्हें और उन जैसे तमाम लोगों को प्रतिष्ठित किया है जो बाज़ार के लिये मुफ़ीद हैं। इस रूप में वह व्यक्ति से ज़्यादा ब्राण्ड और प्रतीक हैं। इसीलिये मुझे उनकी आलोचना व्यक्तिगत नहीं लगी।

मैं आपसे सहमत हूं।

Parul kanani said...
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Parul kanani said...

अमिताभ बच्चन क्यों आलोचनाओं से परे किये जाएं? जो सार्वजनिक जीवन में है वो हर तरह की प्रतिक्रिया का भागी होगा। उसकी आलोचना होगी।
ravish ji kya khoob keha aapne...
100% agree with you!! :)
ashok ji ki baat bhi ekdam sahi hai..

Sanjay Grover said...

ये -तियों के रेले
दुनिया में कम न होंगे
अफ़सोस हम भी होंगे

इक दिन पड़ेगा रोना
कुछ धोना कुछ भिगोना
फ़िर भी न माफ़ होगे
रह जाओगे थकेले

ये -तियों के रेले

-तिया से मिलके -तिया
अंजाम ये कि -तिया
तुम जितना मर्ज़ी जोड़ो
घटके मिलेगा -तिया

होंगे वही तबेले......

ये -तियों के रेले
दुनिया में कम न होंगे
अफ़सोस हम भी होंगे

रवीश जी, कभी एकाध घंटे के लिए मुझसे मिलें और कुछ-न-होने का लुत्फ़ उटाएं। सी यू।

Anonymous said...

जय हो रवीश जी मैं अमिताभ की प्रशंसक नहीं हूँ लेकिन जिस बेशर्मी से आप अमिताभ को गरिया रहै हैं उसी अमिताभ के बेटे की शादी का 24 घण्टे का लाइव कवरेज दिखा कर टी.आर.पी बटोरते हैं उसी अमिताभ को अपने चैनल पर बुलाकर विभिन्न विशेषणों से संबोधित करते हैं । जय हो आपकी अपने व्लॉग को लोकप्रिय बनाने का अच्छा शॉर्ट-कट ढूंढा है आपने । उम्मीद करती हूँ आप जबाव देंगे इसलिये mail id smita.miranda@gmail.com दे रही हूँ।

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

sanjaygrover said...
एक पोस्ट लिखिए: '‘बिहार के महानालायक नेता लालूप्रसाद'’ या ‘'भ्रष्टाचारी गुण्डों की निकम्मी सरदारनी मायावती’’। देखें कितना शोर मचता है अभद्र भाषा को लेकर ?


THODAA SAA IS PAR BHEE GAUR PHARMAAIYEGAA !

JC said...

कल रात आई एस बी एन चैनल में श्री आशुतोष और मुंबई, लोखंड (लोहे का टुकड़ा?) निवासी, गायक श्री अभिजीत का मुकाबले का वाकयुद्ध सुनने को मिला ("हाथी से हाथी जूझ पड़े/ तलवार लड़ी तलवारों से..." समान)...काल के कारण अनंत का अंत बिना किसी निर्णय के हो गया...आशुतोष जी कुछ खिसियाए से दिखे और अभिजीत विजयी से...:)

'सत्य' यही है कि कलियुग में सीमित काल के भीतर कथन, "जिसकी लाठी/ उसकी भैंस," सार्थक होता दिखाई पड़ता है...और लोकप्रिय कहानियों के अनुसार शिव-पार्वती के प्रथम सुपुत्र, कार्तिकेय, "स्कंध", शारीरिक बल के लिए प्रसिद्द था, जबकि छोटा बेटा गणेश रिद्धि और सिद्धि दोनों के लिए...और काल सतयुग से (घोर) कलियुग कि ओर अग्रसर दिखने के कारण, गणेश, यानी बुद्धि का हरण पहले होता दीखता है और केवल शारीरिक बल का ही उत्तरोत्तर विकास होता, जिसकी झलक फिल्मों के हीरो में भी दिखाई पड़ती है (हर काल के अंत में भी सत्य कि झलक मिलती है - जैसे रावन की बुद्धि भी हर गयी थी जो '(बुद्धि की द्योतक) सीता माता का अपहरण कर' उसे 'सोने की लंका' उठा ले गया :)
जय सीता माता की!

Unknown said...

namaskaar

bahas hotii rahanii chaahiye.

namaskaar

रूपम गुप्ता said...

sir aapne mere man ki bat kah di...yahi ek bada sach he sadi ke mahanayak ka...afsos to ye he in abhinetao ko bhi ham hi banate he aur netao ko bhi....

Rajnish Bharti said...

Ravish Ji,
Aapko safaai dene ki koi jarurat nahin thi. Lekin is blog ke reply mein kuchh logon ne Amitabh ke sarvajanik jeevan ki tulna netaon se ki hai . Ek MP election larkar public ki seva karne jata hai. Aur jab woh delhi pahunchkar Loksabha mein question poochhne ke liye paise leta hai, 5 star hotels mein rasleela manata hai toh woh jyaada jimmedar hai na ki Amitabh ya Sachin aur koi jo apni kala ke dum pe wahan tak pahunche hain. I will be waiting for your blog on the Biggest 'Mahanalayak' of India, Mr. Lalu Prasad Yadav...

anand said...

Breaking News: Ram Gopal Verma ne apni hit film 'Company' ka sequel banane ka ailaan kia hai....Lead role ke liye Amitabh Bachchan ko sign kiya hai...Supporting actors honge Amar Singh, Narendra Modi, Bal aur Uddhav Thackeray...Film ka title hoga: Bad Company

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

भारत का इतिहास इसी तरह के
विभाजन और आपसी लड़ाई झगड़ों की दास्ताँ लिए हुए है
२०१० का समय भी ये धर्म,
क्षेत्रीयतावाद ,
जात पांत के भेद भावों को मिटा न पाया
उसका
बहुत अफ़सोस है -
:-(((
-- हर देश भक्त को नमन --
भारतीय जनता कब संगठित होगी ? बातें करने का समय कब का बीत चूका है ...
अब तो , कायरता का त्याग करो ...
नेता क्या करेंगें ?
सिर्फ टेक्स लेंगें आपसे ..
जनता जनार्दन कब जागेगी ?
- लावण्या

Sanjay Grover said...

हैंइ
..............................
देवियो और सज्जनो, मैं भगवान बच्चन इस ब्लाॅग पर भी आपका स्वागत करता हूं। आप तो जानते ही हैं मैं अत्यंत सभ्य और भद्र एक्टर हूं। इंसान भी हूं।
‘कौन बनेगा ख्रोरपाती’ भी मैं ऐसे पेश करता था जैसे क्लास ले रहा होंऊ । हांलांकि मैं सबको सर-सर कहता था पर प्रतिभागी और दर्शक बच्चों की तरह डरे-डरे अनुशासित पड़े बैठे रहते थे।
अभिनय वह है जिसमें भगवान बच्चन, भगवान बच्चन लगे और फ़िलिप कुमार, फ़िलिप कुमार। मुझे बहुत अजीब लगता है जब पंकज काफ़ूर ‘मीन का पेड़’ में बुधैया लगने लगते हैं और ‘करमूचंद’ में करमूचंद। मोम पुरी मोम की तरह पिघल कर रोल में घुस जाते हैं। अरे, वो क्या एक्टर हुआ जिसका कोई स्टाइल ही न हो ! ऐक्टिंग तो सभी कर लेते हैं। पर मेरी ख़ासियत यह है कि आप मुझे कुली का रोल दे दो चाहे बहादुर शाह जफ़र का, मैं हर रोल में भगवान बच्चन ही लगता हूं। मुझे मिर्ज़ा ग़ालिब बनाओ चाहे बाबा लंगड़दीन। मैंने एक कंधा टेढ़ा रखना है तो रखना है। अरे, वो एक्टर ही क्या जो चरित्र निभाने के चक्कर में अपना वजूद खो दे ! स्टाइल छोड़ दे ! फ़िल्म और विज्ञापन निर्माता पैसे मुझे स्टाइल के देते हैं या एक्टिंग के ! चलिए आप ही बताईए आप मुझे स्टाइल की वजह से पसंद करते हैं या एक्टिंग की ! ज़्यादा मत सोचना ! गड़बड़ होगी और पचनौला खाना पड़ेगा। हैंइ। (बताईए स्टाइल है या एक्टिंग)
हीरोइनें मेरी फ़िल्मों में गेंद या बिगड़ी घोड़ी की तरह आती-जातीं हैं। मैं या तो उन्हें बल्ले की तरह बाउंड्री के पार पहुंचाता रहा हूं या ट्रेनर की तरह सुधारता-सिखाता रहा हूं। हांलांकि एंग्री-युवा-छवि-मैन रहा और पीट-पीठकर लोगों को और सिस्टम को सुधारता रहा हूं मगर फ़िर भी हिरोइन को हाथ कम ही लगाया। लगाया भी तो उसी की भलाई के लिए। तालियां। अपने लिए मैंने कभी कुछ नहीं किया। वैसे भी हमारे यहां सभी सब कुछ समाज के लिए करते हैं। इत्ती मात्रा में सामाजिक प्राणी होने पर भी हमारे समाज की हालत खस्ता ही रहती है। न जाने क्यूं !? इस पर भी तालियां।
बुरा हो संजय पीला धंसवाली और पाजी पापाजी जैसों का कि बुढ़ापे मे एक्टिंग-वेक्टिंग के लफ़ड़े में फंसा दिया। अच्छा-खासा बूम में झूम रहा था। भले चीनी को थोड़ा कम चूम रहा था। पर निशब्द ही सही, शोर के आस-पास तो घूम रहा था। कुछ फ़िल्में स्त्री-स्वातंत्रय की समर्थक होते हुए भी पुरुषों का ही स्कोप बनाती हैं। और बुड्ढे की जान लोगे क्या !?
इधर गरम पाजी से लेकर काफ़ूर खानदान तक की लड़कियां परंपराएं तोड़-फ़ोड़ कर एक्टिंग में हाथ-पैर आज़मा रहीं हैं। मगर सभ्यता-संस्कृति पर मेरी देसी पकड़ देखिए कि मेरी पत्नी-बेटी-बहू में से भी कुछ फ़िल्मों में हुआ करती थीं। अब वे हैं भी और नहीं भी हैं। आए भी वो गए भी वो। राजेंद्र वैधव की पत्नी एकदम सामाजिक मुद्दा है मगर मेरी एकदम व्यक्तिगत। इत्ते दर्शक ऐसे ही थोड़े मुझपर मरते है। जानता हूं कि हमारे लोग हाथी-दांत प्रगतिशीलता ही पसंद करते हैं।
परंपराएं मैंने भी कुछ कम नहीं तोड़ी। मनोरंजन और पापुलैरिटी के लिए ‘आ वारिस’ में हिजड़े के रोल में भी नाचा हूं। हां, अगर हिजड़ों की समस्या पर फ़िल्म बनानी हो तो उसके लिए दूजा भट्ट वगैरह हैं ना।
तो देवियो और सज्जनो, मैं हूं भगवान बच्चन। मुझपर कंकर भी फेंकना हो तो मेरी तरह सभ्य भाषा में लपेटकर फेंको। नही तो मेरे भक्तगण आपको कच्चा चबा जाएंगे।
हैंइ।

-संजय ग्रोवर

http://www.samwaadghar.blogspot.com

Unknown said...

this is height of oppurtunism..whn Ravish wrote cirticising Amitabh there were very few in his support...majority of ppl behaved like voters of Amitabh..but now i see 39 comments in Ravish's support. What is this?

Unknown said...

aap mahan hain. isssliye nahi ki aap accha likhte hain balki isssliye ki aapne amitabh ji ke bare me kafi bura likha. ye aapki prasansa nahi hai. Apne andar ke insan ko sangidgi se samajhne ki kosis karen. sabko gali dene ki bebaki dikahte hain. cong,bjp sab party ki lanat-malanat karte hain. lekin cpm,cpi, forward block etc ka daman ekdam saf kaise hai? iss bare me kabhi socha hai?
Rajiv Mandal.

कुलदीप मिश्र said...

ख़ुशी है कि आपने उत्तर दिया...आपके साहस को सलाम..!!!

pragya said...

दूसरों के व्यक्तित्व को जिस बेबाकी से विश्लेषित करते हैं उसी बेबाकी से कभी अपने व्यक्तित्व का भी विश्लेषण करने का साहस करें आप रिपोर्टर्स तो आपका साहस प्रशंसनीय होगा..और इसे 'मीडिया में रहने की मजबूरी' का नाम न दीजिएगा क्योंकि मजबूरी तो हर किसी के पास होती है और अमिताभ भी उनमें से एक हो सकते हैं, क्यों!!!

PD said...

हम तो यहाँ ज्ञान प्राप्त करने आये थे और खूब ज्ञान लेकर जा रहे हैं.. महानलायक से लेकर फटीचर काल तक का ज्ञान मिल गया है..
जहाँ तक मेरा प्रश्न है तो मुझे अमिताभ सिल्वर स्क्रीन के अलावा कभी पसंद नहीं आये हैं.. कारण आपने ऊपर गिना ही दिया है.. यहाँ मोदी को केंद्र में रख कर बात नहीं की जा रही है, सो उस पर कुछ नहीं कहूँगा.. मगर यह बात तो जरूर आश्चर्य में डालता है की जितना हल्ला मिडिया में मोदी को लेकर मचा है कभी मैंने कांग्रेस को लेकर मचते नहीं देखा.. मैं यहाँ मोदी से सहमत नहीं हो रहा हूँ.. मैं यहाँ मिडिया पर प्रश्न चिन्ह लगा रहा हूँ..
और भाषाई बातों पर क्या कहूँ? इस हमाम में तो सभी नंगे ही मुझे दिखते हैं..

अविज्ञात परमहंस said...

सहज होने की व्याख्या आपने की है। Identifying and accepting agreements and disagreements. सहमतियों एवं असहमतियों को पहचानना और उन्हे स्वीकार करना। जहांसे आपको यह विचार आया है उस स्रोत का लाख-लाख शुक्रिया। कोई इन्सान न ही भगवान होता है न ही शैतान। लेकिन मार्केट मे टीआरपी रेटिंग पर भाव तय होता है। और कुछ मिडियाकर्मी पैसे की लालचमे भला बुरा कुछ भी लिखने के लिये तयार रहते है। मुझे यह सोचना जरूरी है कि मै अपने आपसे कितना वफादार होते हुये अपनी कलम चला रहा हूं।

संतोष त्रिवेदी said...

अमिताभ की कारगुजारी केवल यह सिद्ध करती है कि वे महज़ रील-लाइफ के हीरो हैं, न कि रियल-लाइफ के. यह तो हम भारतीयों कि कमजोरी है जो अपने आदर्श फंतासी की दुनिया में ढूंढते हैं !

V. singh said...

I do agree with ur words & very beautifully u have described ur own critics for those people who could get ur point.Any sound person will understand that if something is wrong then every one should oppose.
Amitabh is a hero only on screen & i applaud for his great performances like PAA.But as a public figure he has nothing done for society.I praise Amir khan for his social messages send through either films or advertisements,personal life may be his personal but socially he is doing what a celebrity should.
Some days back Amitabh was saying he is a samajvadi kissan in UP & captured land,now he has become brand Ambassadar of gujrat to make movie ticket tax free with Modi(responsible for gujrat riots),When majority in bollywood were supporting SRK against Sena then he went to thackery to show his flim Rann,Recently Shocked to listen for 40 crore tax scandal.

All the way he is breaking his own image among his fans.Try to think beyond money you will be more loved.

Indian Hindu Voice said...

see... Raveesh is approving only comments how are in matching to his point of view.. I have sent many comments without live... so, this is going to be a Qasba (village of people like Qasab) of frustated NDTV reporters...

Indian Hindu Voice said...

Can you say same to Shahrukh Khan, Left Parties or Congress Party you communist MahaNalayak?

neeraj` said...

रवीशजी, सबसे पहले तो मैं आपका बहुत बहुत सुक्रिया करना चाहता हूँ आपने जो बात कही है वो बिलकुल सही बात है इसमें किसी बात का दोराय नहीं है, अपने जो अमिताभ बच्चन के बारे मैं लिखा है मुझे पता था की ये बात आप ही लिख सकते हैं, और वो आपने वो कर दिया, मुझे बेहद ख़ुशी है, आपने जो अमिताभ बच्चन के उपरे जो लिखा है, मैंने देखा है की कुछ लोगों गलत ने प्रतिक्रियाएँ जाहिर की हैं, उनकी परवाह ना करते हुए निडर होकर लिखते रहो. रवीश जी मैं अक्सर आपका प्रोग्राम अक्सर देखता हूँ NDTV पर स्पेशल रिपोर्ट.मैं चाहता हूँ की आप हमेशा इस तरह के लेख लिखते रहें. मेरा भी जल्दी ही एक ब्लॉग आने वाला है आशा करता हूँ की आपको बहुत बहुत पसंद आएगा.