क्रिकेट का गणतंत्र





अमीरी और ग़रीबी पर जितना लिखा गया है,उसकी रद्दी बेच दी जाए तो लाखों लोगों की ग़रीबी दूर हो जाए। दिल्ली के सीमान्त पर बसे वैशाली मोहल्ले के एक पार्क की यह दोनों तस्वीर है। एक ही समय में ली गई है। क्रिकेट के मोहल्ला प्लेयर अब सुविधाओं से लैस हो रहे हैं। अब से तात्पर्य है पिछले कुछ सालों में। उनके कंधे पर बल्ले को इस तरह से लटका देखा तो एक अनुशासन का बोध हुआ। लगा कि ये क्रिकेट खेलने से पहले क्रिकेट कैसे खेले वाली पांच रुपये की किताब पढ़ कर आ रहे हैं। दूसरी तस्वीर में ये चार बालक हाथों में ईंट लिये हुए हैं जो धरती पर रखे जाते ही अहिल्या की तरह विकेट में बदल जायेंगे। इन्हें देख कर लगा कि ये खेलने आये हैं। बस क्रिकेट को खेलना जानते हैं।

जब दूसरी तस्वीर को ब्लैकबेरी से क्लिक कर रहा था तो मेरे द्वारा पंद्रह बार देखी जा चुकी ग़ुलामी का डायलॉग याद आ गया। देख रहा हूं जगत की मां के सर पर फूल है और मेरी मां के सर पर जूते। ये संवाद मुझे तुम मुझे खून दो,मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा से भी ज्यादा प्रभावशाली लगा था। लड़कपन की उम्र में जोश से भर गया। कोई शक। अच्छा संवाद तो था ही। क्रिकेट बाज़ारू हो गया लेकिन इसकी औलादें अभी बाज़ारू नहीं हुई हैं। वो जोड़-जाड़ कर खेल रही हैं और मज़े ले रही हैं।

19 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

एक अच्छी, सचित्र और प्रभावी रिपोर्ट!

Kulwant Happy said...

गणतंत्र दिवस की अबधाई हो।
रविश और मोबायल अपडेट

रविश दी ग्रेट

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

100 करोड़ लोगों के लिए 542 (ऐसे) लोग, 60 साल में कोई करिश्मा कर बैठेंगे, ऐसी उम्मीद रखनी भी नहीं चाहिये. अलबत्ता कल सुबह होगी, उजास देख सकते हैं आज हम.

Sanjay Grover said...

"देख रहा हूं जगत की मां के सर पर फूल है और मेरी मां के सर पर जूते।"
Ek din aayega jab GHULAMI sirf ek film ka nam rah jayega. Aayega kya?

डॉ टी एस दराल said...

क्रिकेट बाज़ारू हो गया लेकिन इसकी औलादें अभी बाज़ारू नहीं हुई हैं। वो जोड़-जाड़ कर खेल रही हैं और मज़े ले रही हैं।

सत्य वचन।
बच्चे तो बच्चे हैं, वो अमीर हों या गरीब।
खेल को तो दोनों एक जैसा एन्जॉय करते हैं।

अनिल कान्त said...

"देख रहा हूं जगत की मां के सर पर फूल है और मेरी मां के सर पर जूते।"

गुलामी को जिस उद्देश्य से बनाया था...दर्शकों ने उसमें वो न देखकर कुछ और ही देखने की कोशिश की थी. जिसमें वो गाना याद रखते हैं "सुनाई देती है जिसकी धड़कन, तुम्हारा दिल या हमारा दिल है"....

Aadarsh Rathore said...

मैं भी तीन मैच खेलकर ऑफिस पहुंचा हूं...
;)

मधुकर राजपूत said...

अच्छी रोचक रिपोर्ट और उतनी रोचक कुछ लाइनें। मज़ा आ गया। बाज़ारू क्रिकेट की हाशिए पर पड़ी संतानें हैं ये।

azdak said...

"धरती पर रखे जाते ही अहिल्या की तरह विकेट में बदल जायेंगे।"

"जब दूसरी तस्वीर को ब्लैकबेरी से क्लिक कर रहा था तो मेरे द्वारा पंद्रह बार देखी जा चुकी ग़ुलामी का डॉयलॉग याद आ गया। देख रहा हूं जगत की मां के सर पर फूल है और मेरी मां के सर पर जूते।"

इसके आगे रवीश एंथ्रॉपॉलॉजी कहां चहुंपती है, बहुतै जल्‍दी स्‍टम्पिन हो गया.

prabhatdixit said...

good report sir. apki age kya hai ho sake to batana plz. aur haa aap journalism mein kab se hai ye bhi batana.apke sense of humor ka mureed hoo mein.
ek request agar manein to kripa hogi aapki.....ORKUT par bhi ek bar aa jaeiye hum jase alpgyanio ka bhi bhala ho jayega.bahut mudde hai aap se batiyane ko.

umar said...

sir aap ko pata hi hai ki aaj cricket ko khel ki najar se kam aur vyapaar ki najae se jyada dekha jata hai. agar aaj hum sab cricket k bajaye dusre khel pae bhi dhyan re to humare yaha annya khel ki ye surdaca nahoti.

शशांक शुक्ला said...

जो डायलाग आपने लिखा है वो देखा तो नहीं है पर सत्य यही है जो सिर्फ उपर देखते है उनकी मां के सर पर फूल ही होते है और जिनके सिर कभी उठने ही नहीं पाये उनकी मां के सर पर जूते थे

Archana said...

Amir Aour Garib Ka Cricket......
Sahi Hai

Anurag Sharma said...

अरे सर ipl के बाद अब गली क्रिकेट भी मशहुर होने लगा है...टी 10 गली क्रिकेट में संजय दत्त ने भी अपने नाम एक टीम कर ली है...

JC said...

क्रिकेट की दो तस्वीरों में अपने विभिन्न काल के प्रतिबिम्ब से देखे: जब हम छोटे बच्चे कपड़ों की पिटाई में काम आने वाले 'बल्ले', रबर की गेंद, और ईंटों की विकेट से खेलते थे और खुद को विजय हजारे, विजय मर्चंट, आदि से कम नहीं समझते थे ;) और दूसरा जब बड़े हो असली बल्ले, लाल गेंद, असली विकेट और बेल्स, आदि के साथ खेलने का थोडा बहुत मौका मिला...

timeforchange said...

bahut hi achhaa likha hai ravees ji , par ek saval hai , ki ye saval to hum sab ke jahan mein hai , par javab hai kisi ke pass ?

timeforchange said...

ravees ji iss blog se kuch kahne ki kosis ki hai , agar samay mile to jaroor padhiyega .
http://mutinity.blogspot.com/2010/01/blog-post_29.html

Unknown said...

sachhi photu aschhi photu ,, dekhne ke kuch der baad ghar ke chat par gaya to samne wale baundri waal ki gayab hui eintoon ko dekh kar ye photo ko yaad karne laga ....humlogon ne wicket bana kar puri baundrywaal saaaf kar di hai....yaadein taaja ho gayi thankssss.

Unknown said...
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