नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर १३ के एक बुक स्टॉल पर यह किताब दिखी। भगवान राम कंपनी चलाने के काम आ सकते हैं सोचा नहीं था। मंदिर बनाते बनाते भाई लोग अब मैनेजमेंट का स्कूल खोल देंगे। मैनेजमेंट गुरु बना दिये हैं रामजी को। राम राम। राम का काम है राजधर्म का पालन करना। सभी का कल्याण करना। कंपनी के हित के नाम पर कुछ लोगों की दुकान चलाना नहीं। बख्श दो प्रभु राम को। आराधना सिर्फ आध्यात्म के लिए करो। सकल उत्पाद के लिए नहीं।
30 comments:
बेचने का धंधा ऐसा ही है। क्या और किस के नाम पर नहीं बेचा है इन्होंने।
socha Na tha Aam ki tarah Ram bikenge...shayad Ram ne bhi nahin soch hoga..!!
लोगो ने तो अपना ज़मीर , ईमान धरम बेच दिया,बस अब तक भगवान बचे थे सो अब वो भी.... खैर अगर सेल लगी तो हम भी खरीदने की सोचेंगे, अभी तो जेब इजाज़त नही दे रही
एक खास पार्टी ने भी तो राम को अपना ब्रांड बना लिया है। ज्ञानमार्ग की राह में रामचरित अगर सहायक हो सके तो कोई बुराई नहीं। गंदे राजनेताओं से राम को बचाया जाना ज्यादा ज़रूरी है। ईमान से...
kam se kam RAM ko to maaf kro..............
nice
"गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु, गुरु देवो महेश्वराय, गुरु साक्षात् परमब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नमः"
[यह मैंने हाल ही में अपने ढाई साल के धोते (नाती) के प्ले स्कूल की नर्सरी राईम की किताब में फिर से पढ़ा :-]
गुरु, इसीसे शायद आपकी भी बाल सुलभ जिज्ञासा का आभास होता है - जो रंगीन तितलियों के पीछे भागता है और सतही ज्ञान अर्जित करता है जैसे आपने लिफाफा देख कर मजमून भांपने का प्रयास किया...जो सही हो सकता है समय के प्रभाव के कारण - और हो सकता है इस पुस्तक को पढने के बाद आपका विचार बदल जाता (मोती गहरे पानी में पैठ मिलते हैं :)
अफ़सोस !!
हम अपनी राय कायम कर लेते हैं केवल एक क्लिक से?
अगर राम को किसी ने हथियार बना लिया तो क्या हम राम या हनुमान से कुछ सीख नहीं सकते? क्या राम इतने त्याज्य हो गए ?
मुझे तो याद पड़ता है की ऐसी ही एक किताब हनुमान के ऊपर भी है .......शायद मनेजमेंट गुरु बनाने के ही लिए !!
किस रूप में हम देखते हैं राम को ?...यह हमारे आपके ऊपर निर्भर है | किसी ने दुरूपयोग किया ...और किसी ने दुरूपयोग ?
मेनेजमेंट गुरु के सहारे ही हम राम का पुनर्मूल्यांकन कर पा रहे हैं इसमें क्या हर्ज? शायाद हम सब कुछ वाद .....प्रणेता होने का ढोंग तो नहीं कर रहे?
राम को राजनीति से दूर पूजा तक सीमित रखने का यह प्रयास कहीं किसी और बी=वजह से तो नहीं?
रवीश जी !
मुझे लगता है की आप मोबाइल फोटो ब्लॉग्गिंग को जल्द चस्पा करने की जल्दी में रहते हैं .......?
भगवान!! अरे राम!!! करे यह मेरा पूर्वानुमान गलत हो?
रवीश सर.. जो लोग अपने ज़मीर और अपने बच्चों का सौदा कर सकते हैं, उनके लिए भगवान को बेचना कितनी बड़ी बात है... और अबतक भगवान को बेचकर ही तो नेताओं ने सियासत की कुर्सी पर कब्ज़ा किया है... फर्क इतना था, कि उसके बदले में नोट के बदले वोट लिये गये थे...
त्रिवेदी जी ने भी सही कहा! हमने बचपन में 'थ्री इन वन' अइस क्रीम खाते समय सोचा नहीं था कि मुझे मुंबई में, नाती के साथ रहते, नाशिक में 'थ्री इन वन' भगवान् यानि 'त्रेयम्बकेश्वर' मंदिर देखने का कभी मौका मिलेगा - जो अचानक इसी वर्ष के आरंभ में हुआ!...
माना जाता है कि वो द्योतक हैं ब्रह्मा-विष्णु-महेश, 'त्रिमूर्ती' के...और चौथे ('चतुर्वेदी') सिखों के 'एक ओंकार सतनाम श्री वाहे गुरु' में छिपे हुए शबद, यानि शब्द (ॐ) में हैं, जो राम के सामान 'म' में अंत होता है...सचमुच हमारे पूर्वज पहुंचे हुए 'गुरु' थे :)
भूल गया कहने में कि यह भी माना जाता है कि राम ने केवल त्रेता में ही कुछ राक्षशों को ही मोक्ष दिलाया...जबकि उनके नाम ने अनंत लोगों को उसके बाद मोक्ष दिलाया! और थोडा सोचें तो, यदि समय हो तो, जो कहता है कि वो राम को नहीं मानता है वो भी अनजाने में राम का नाम ले ही लेता है - और लाभ उठा सकता है शायद कभी अगले जन्म में :)
ट्रेलर तो देख लिया। फिल्म कब दिखाओगे। मतलब किताब के बीच क्या लिखा है। वो भी तो आपको बताना होगा। राम का नाम है कि नहीं।
अरे मंदिरों और श्रीराम को मैनेज़ करके एक पार्टी सत्ता मे पहुंच गयी और आप अब तक कन्फ़ुजियाये हैं।
भाई सबसे पुराना धंधा है तो इसे नये रंगरोगन में पेश करना ही होगा न!
"बचपन के दिन भी क्या दिने थे/ उड़ते फिरते तितली बन के..."
आज तो किन्तु यह हाल है, (माफ़ करना), शायद मीडिया के कारण, कि "बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी...
या "यूं तो हर शाम उम्मीदों में गुजर जाती थी/ जाने क्या बात है कि शाम पे रोना आया...(बाबरी मस्जिद पर चर्चा किसी चैनल पर सुनके)"
क्या मजा था, बचपन में हम अपने भगवान् पर भी 'जोक' मार लिया करते थे - जैसे तब मजा लिया था इस चुटकुले का (नोट: पहले हिन्दू अपने बेटों के नाम राम पर अधिक रखते थे, और मुंबई में आज भी नौकरों को रामू ही पुकारा जाता है :) :
स्कूल-इंस्पेक्टर ने मुआयने के दौरान रामू से पूछा 'बताओ शिव का धनुष किसने तोडा?' रामू डरते हुए बोला साहिब मैंने नहीं तोडा :) और यह सिलसिला चलता रहा जब तक अंतिम विद्यार्थी ने भी यही उत्तर नहीं दोहराया...
नाराज़ हो उसने क्लास-टीचर से कहा यह क्या हाल बना रखा है? किसी को यह पता ही नहीं किसने शिव का धनुष तोडा!
मास्टरजी हाथ जोड़ कर बोले कृपया माफ़ कर दीजिये बच्चों से तो गलतियां हो ही जाती हैं, हम दूसरा दिलवा देंगे :)
ऐसा ही एक और था जिसमें इंस्पेक्टर ने बोर्ड पर लिखा N A T U R E (जिसकी आज कल बहुत चर्चा है) और रामू से कहा पढने को तो रामू ने तपाक से कहा 'नटूरे', और बाकी सबने भी ये ही दोहराया...नाराजगी जताने पर क्लास-टीचर बोला साहिब माफ़ कर दीजिये ये अभी 'मटूरे' नहीं है और यह उनके 'फटूरे' का सवाल है :)
"भूल चूक माफ़ लेनी देनी"
देखो ओ दिवानों ये काम न करो....
राम का नाम बदनाम न करो.....
मित्र रवीश, यह मेहनत किताब की नहीं बाजार की है। वो राम के नाम के सहारे किताब को बहाना बनाकर हम सबको आस्तिक करना चाहता है।
Ram ji to sayad is management volume ki suruaat hai, iske bad bari aur devi devta ki anewali hai.
रवीश जी, किताब के अन्दर क्या है, ये तो खोलने के बाद ही पता चलेगा। ऐसा भी तो हो सकता है की भगवान् और श्रीराम नाम के दो बन्दे मनेजमेंट का इंस्टीच्यूट चला रहे हों। आजकल सब कुछ सम्भव है।
राम का काम है राजधर्म का पालन करना।...
और राजधर्म में समाहित है, राज्य की मशीनरी की सुचारू व्यवस्था...
सत्ता और वित्त का प्रबंधन...
अंग्रेजी में management ...
क्या खूब उलटबासी है...
जो भी इस हेतु उचित है...कर ड़ालो...
जिसे चाहे बेच ड़ालो....
बेहतर दृष्टि...
राम नाम की लूट है, लूट सके तो लूट...
कोई राजनीति के लिए जपे राम,
कोई कूटनीति के लिए जपे राम,
शासन में भी राम,
प्रशासन में भी राम...
ऐग्रीमेंट से लेकर,
मैनेंजमेंट तक में एक ही नाम,
राम राम राम...
लूट लो भाई!
राम नाम की लूट है, लूट सके तो लूट?
ये तो रामजी को भी पता ना था,
कि राम आऐंगे इतनें काम?
"राम का काम है राजधर्म का पालन करना।" सुनने में अच्छा लगता है, किन्तु राज बनाना किसके अंतर्गत आता है ?
इशारे देखने होंगे, जैसे शिव के मूल निवास स्थान वाराणसी के गंगा किनारे के 'दशाश्व्मेध घाट' से - जो इंगित करता है 'सूर्यवंशी', अथवा राम के पूर्वज 'रघुवंशी' राजाओं के सूर्य समान अपने राज्य का विस्तार करना, तथाकथित अस्वमेध यज्ञ द्वारा...और मनोरंजक कहानियों के द्वारा दशानन रावन, यानि अनियंत्रित मन की तुलना में राम के पिता का नाम दशरथ द्वारा जो इशारा करता है उनके दस घोड़ों द्वारा खींचे जाने मन रुपी रथ को सदैव नियंत्रण में रखते हुए 'प्राण जायें पर वचन न जाई' मान्यता को शिरोधार्य कर 'transparent' राज धर्म को निभाना - यद्यपि धर्म निभाते हुए राम को बन भेजना उनकी मौत का कारण ही क्यूँ न बन गया!
क्या आज, कहीं के भी 'राजा' से यह उपेक्षा की जा सकती है ! इसी लिए इस काल को कलियुग कहा जाता है शायद :)
में एक 'वैज्ञानिक' हूँ जो ऐसे ही कोई कथन को तब तक सही नहीं मान लेते हैं जब तक वे उसको दसों दिशां से नहीं देख लेते ("ए भाई! जरा देख के चलो/ आगे ही नहीं पीछे भी/ उपर ही नहीं नीचे भी/ दांयें ही नहीं बांयें भी...")...और एक 'आधुनिक भारतीय' भाग्यवान है 'पश्चिम' की तुलना में, शकुंतला पुत्र भरत की संतान समान जो 'जंगल के राजा', शेर, के साथ बचपन से खेला...और जिस नाम से कृष्ण ने राम समान तीरंदाज़ यानि धनुर्धर अर्जुन को भी द्वापर में संबोधित किया था...और त्रेता में राम के भाई का नाम भी भरत ही था जिसने अयोध्या पर राज्य 'राम की चरण पादुका' रख कर किया - यानि तीर समान जीवन-दायिनी सूर्यकिरण जो पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के घेरे/ ओज़ोन तल को भी 'शिव के धनुष' समान तोड़ हमको ही नहीं अन्य ग्रहों को भी ऊर्जा प्रदान करती है... : )
अरे भाई रस्तोगी जी माफ़ करना 'हवा में तीर' केवल 'ग्रह' चलाते हैं जो उन्होंने सूर्य से 'प्राकृतिक रूप' से प्राप्त ऊर्जा को ग्रहण करने से उनके पास होते हैं...आस्था उत्पन्न अपने आप हो जाती है किसी न किसी में तभी तो सनातन धर्म के अतिरिक्त कई अन्य 'धर्म' भी आज 'लूट' रहे हैं आपको और हमको (प्राचीन ग्यानी कह गए की संसार एक 'झूठा बाज़ार' है :)...'नास्तिक' की भी आस्था, आज 'पश्चिम' से प्राप्त कलियुगी विचारों को ग्रहण करने के कारण, 'पश्चिम दिशा' को कह सकते हैं जिसका राजा शनि ग्रह को माना प्राचीन ज्ञानियों ने और उन्होंने उसे 'शैतान' कहा, जिसने अदम को सेब खिला बुद्धि भ्रष्ट कर दिया और जिस फल का रस आज भी मानव को मिल रहा है और जिस कारण हम सब दुखी हैं...और 'कृष्ण' कहते हैं फल देना उनका, नटखट या शैतान नंदलाल का, काम है...और 'कृष्ण' कहते हैं फल देना उनका, नटखट या शैतान नंदलाल का, काम है...और यह भी कि अज्ञानता ही गलत कामों का कारण है...
भाई ये वही लोग हैं जिन्होंने कृष्ण को 'लव गुरू' की तरह स्थापित कर दिया है. राम का उपयोग तो राजनीति में ही ज्यादा हुआ, बाजार की नजर तो अब उसपर पड़ी है.
विष्ाय को लेकर आपकी पोस्ट और गंभीर भी हो सकती थी. बहरहाल बधाई...
- प्रदीप जिलवाने, खरगोन म.प्र.
धर्म और आस्था की दुकान तो बहुत दिनों से चली आ रही है..कोई सीरियल बनाता है, कोई माला बेचकर रोज़ी कमाता है। कोई राम की तरफ से कोई राम के विरोध में लेख लिख कर रुपया पीटता है। किसी ने किताब लिख डाली तो क्या हर्ज़? राम नाम की लूट है लूट सके तो लूट...
धंधे में ही उतरना था तो कम से कम राम का नाम तो घर पर छोड़ कर आते... तब पता चलता मैनेजमेंट की दुकानदारी क्या है... ये तो कल फिल्म भी बनायेंगे तो DVD को हिंदी में डब कर देंगे. नज़र रखिये रविश जी.... अब असली लड़ाई मिथकों और प्रतीकों की ही होने वाली है... हजारो हज़ार देवता उठ खड़े होंगे....
कोशिश अच्छी है
क्यों भाई रविशजी ,ये राम का क्या मामला है भाई/
क्यों भाई रविशजी ,ये राम का क्या मामला है भाई/ ?जाकी रही भावना जैसी ,हरी मूरत देखि तिन तैसी |ये चौपाई शायद आपने सुनी होगी |तुलसीदास ने राम के बारे में ही कहा है शायद |तो भाई किसी को राम में मैनेजमेंट दीखता है तो क्या दिक्कत है भाई ?
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