कार की साइड मिरर से
झांका था कोई
दांते निकालते हुए बेदम
चल बढ़ा गाड़ी एक कदम
बैक मिरर में कोई बैठी थी चुप
झुंझलाते ड्राइवर को सहते हुए
मेरी ड्राइविंग पर तरसते हुए
उसकी असहमति ने मुझे
एक हौसला दिया रूके रहने का
ट्रैफिक में ठेले जाने के खिलाफ
ब्रेक दबाकर पांव पर खड़े रहने का
बगल वाली कार में बैठा वो अधेड़
झाड़ता रहा राख कार से बाहर
जाम की बेचैनियों से दूर खोया रहा
काम के तनावों में हर कश के साथ
सामने सरकती कार के पीछे रखे टेड्डी बीयर
यातना कैंप के रास्ते से भागने का रास्ता
पूछ रहे थे मुझसे बार-बार,मिन्नतें हज़ार
फिर नज़र झांकती है साइड मिरर में एक बार
बकते,गरियाते और लतियाती उसकी नज़रें
लाल-लाल होकर खाक करने का फाइनल एलान
बगल की सीट पर बैठी उसकी क्या लगती होगी
जिसकी असहमतियों ने मेरा हौसला बढ़ा दिया
ऐसे ही गुज़रना होगा तुमको सबको इस जाम से
गुस्से को संभालते हुए थोड़ा रोमाटिंक होते हुए
रास्ते अब वही हैं,थोड़े से और संकरे से
मंज़िल पर पहुंचने की रफ्तार तो कम होगी ही
जब सबका सपना एक जैसा होगा
जब सबका रास्ता एक जैसा होगा
घर-नौकरी-घर का ही फासला होगा
5 comments:
कार की गति की तरह कविता में भी रवानी है बधाई ।
badhiya
रवीश जी ! कमाल है......आप कविता में कहाँ कहाँ तक सफ़र कर लेते हैं ?
बहुत बढिया रचना! बधाई।
कलिकाल में जाम अपारा
सोहिं मुनि जाम को जिसने मारा
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