खेलगढ़ वाले राजकुमार ग्वालानी कहते हैं कि गली मोहल्लों के क्रिकेट से ही टी-२० का आइडिया लिया गया है। जहां कभी पचास ओवर के मैच होते ही नहीं थे। दस से लेकर पचीस ओवर के मैच हुआ करते थे। इस तस्वीर में गली के लड़के छक्का मारने के बाद कोलकाता दूरदर्शन के अहाते में सीढ़ी लगाकर उतरने की कोशिश कर रहे हैं। स्कोर में रन जुड़ जाए और गेंद गायब हो जाए तो इससे बड़ा घाटा कुछ नहीं हो सकता। इसिलए इस तस्वीर में खेल रोक दिया गया है और गेंद की तलाश में पक्ष-विपक्ष की टीम जी जान से जुटी है।
23 comments:
सौभाग्य से गली की 20-20 खेलते हुए हमने भी इसी तरह अपनी प्यारी गेंद की खूब तलाश की है....धन्यवाद ....पुराने दिन याद दिलाने के लिए.........
धौनी का हश्र भी जो होने वाला है वह टी-20 की देन ही कही जाएगी। इंतजार कीजिए, विरोध शुरु हो चुका है।
prastut karne ka najariya acha laga.
kya kahe
waaah!!
भारत में यह मशहूर हैं कि एक गेंद यमुना में भी गिरी थी जो 'कालिया नाग' की मौत का कारण बनी...और यूँ, अंततोगत्वा, अपने ही अवतारों के माध्यम से विष्णु भगवान के लिए संभव हो पाया आराम से 'शेषनाग रुपी शैय्या' पर - 'क्षीरसागर' के मध्य में लेट 'शेषनाग' के फन पर धरती को अनंत काल से टीवी सामान रखे - 'योगनिद्रा' में अपनी ही अनंत रचना का आनंद उठा पाना जो 'कलियुग' में संभव नहीं था...:)
भारत महान यूँ ही नहीं कहलाया गया, कृष्ण 'नटखट नन्दलाल', और सब प्राणियों को धरती का ही परिवार, 'वसुधैव कुटुम्बकम'...:)
बहुत सारी यादें है गली के क्रिकेट की.....कहीं भी मैदान बन जाता था और बिना किट के ही बस गेंद और बल्ले से मैच शुरू हो जाता था। गेंद की तलाश में हम सबने कई बार दीवारें फांदी, तो कभी छत पर चढ़े। कई बार तो बड़ों से गालियां भी खानी पड़ीं, कई बार घरवालों की नाराज़गी झेली। लेकिन, इस खेल का रोमांच कम नहीं हुआ। कमाल ये भी है कि दिन-रात खेलने के बावजूद जब हार जाते थे तो कभी ऐसा नहीं लगा कि ज्यादा खेलने से होने वाली थकान की वजह से हारे हैं।
हम तो ५-५ भी खेलते है.. समय के हिसाब से तय होता है कितने ऑवर का मैच होना है..
एक बॉल २० रुपये कि आती है.. गुम जाये तो मुश्किल है.. वैसे अगर अन्तराष्ट्रीय मैचे में भी ये लागु कर दें तो.. बॉल गुमाने पर दुसरा ्नहीं मिलेगा.. सोचो हरभजन और साइमण्ड्स साथ साथ बॉल ढुढ रहे है.. कितना प्यार बढ़ेगा..
गली गली में गेंद का चक्कर और दीवारें फांदते गलीबाज सुपरमैन
बढ़िया पोस्ट है। गेंट का खो जाना सबसे बड़ा झटका होता था। मैं और मेरा भाई जब घर की छत पर क्रिकेट खेलते थे तो शॉट कोई भी मारे गेंद के नीचे जाने पर उसे लेने मुझे ही जाना पड़ता था। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कम से कम इतना तो है कि छक्का मारने के बाद बेट्समैन को गेंद खोजने नहीं जाना पड़ता हैं...
bhai mujhe is chakkar me kutta bhi kaat chuka hai.gend ki talash me jo diwar kuda to bhairav devta ka prasad ban gaya
क्रिकेट के २०-२० खेल में दस खिलाडी आउट हो जायें, या २० ओवर समाप्त हो जायें तो एक इनिंग्स समाप्त हो जाती है. और फिर विपक्षी टीम को मौका मिलता है २० ओवर के अंदर पहली टीम के बनाये रनों से एक रन अधिक बनाने का प्रयास करना - बन गए तो जीत गए, और न बने तो हार गए :(
और यह सिलसिला विभिन्न स्थान पर विभिन्न समय पर 'आजकल' अथवा 'वर्तमान' में, दिखाई पड़ता है - 'दूरदर्शन' द्वारा उबलब्ध सुविधा की कृपा से...और इसे आश्चर्यजनक ही कहना होगा कि महाभारत के 'भूतकाल' में भी अंधे राजा ध्रितराष्ट्र को संजय की कृपा से कुरुक्षेत्र के लडाई के मैदान में हस्तिनापुर में बैठे बैठे टीवी समान संपूर्ण विवरण हासिल होना और 'खोई गेंदों' समान अपने सुपुत्रों का एक के बाद एक खोते जाने का समाचार प्राप्त होना - ६ प्रवीण खिलाडी - पांच पांडवों और कृष्ण - के द्वारा मारे गए छक्कों (पृथ्वी से परलोक की यात्रा) समान :)
chhoti si par khubsurti ke sath likhi post...
bahoot shaandaar hai. mujhe yaad aata hai ki plastic ki gendh aati thi uski keemat 5 rupaye thi uske liye bhi hum chanda karta the. aap orkut par hai kya. mera e mail id pankajplmishra@gmail.com hai.
रवीश जी,
खेलगढ़ को इतना प्यार और स्नेह देने के लिए हम आपके आभारी हैं।
क्या बात कही है ! और चित्र ? सब कुछ कह गया .....!!
बहुत अच्छी पोस्ट है... तस्वीर बिना बताये ही बहुत कुछ कहती है.....
ekdum mast....per yeh match gali me hi nahi tha. balki kuch club leval ke match bhi hua karte tehy ..(shyad ab bhi hote ho....)....kher gali ki baat ekdum mast thi..11 hi player hote they to 1st 2nd done ke saath aa sabki parri aa jaati thi..... islye popular to hona hi thaaa...20-20...lenkin rajnesh bhai khud khlne ka jo maja tha gali me ...kia kahne us khusi ke.....chun chun ke un gharo ko nishana baante they jismen koi chidchdia uncle aunty hote tehy yaa phirr.............khbusurat kanyaa.....
rohit
एक गेंद, जो दिखाई तो देती है पर शायद आज आदमी की पहुँच के बाहर है. यह गेंद कभी पृथ्वी ने ही खो दी थी. जिसकी याद में मुहम्मद रफी ने भी किसी शायर की पंक्ति गायी थी, "खोया खोया चाँद, खुला असमान, आँखों में सारी रात जायेगी, तुमको भी कैसे नींद आयेगी...?" शर्तिया! नींद कैसे आ सकती है जब गेंद खो जाये और खेल समाप्त हो जाये? भारतीय खिलाडी अब टूटे फूटे (सीपीएम और बीजेपी सामान) और थक गए लगते हैं - आराम की आवश्यकता तो ब्रह्मा को भी पड़ती है उनके दिन की समाप्ति पर, कह गए ज्ञानी :)
सर जी, अब तो खेल मे बचपन ही गुम होता दिखता है .....................
जब गेंद आकाश की ओर फेंकी, या बल्ले से मारी जाती है, तो वो किसी एक बिंदु पर पहुँच लगभग अनंत शून्य में ही ठहर जाती है और फिर उसकी दिशा में परिवर्तन आ जाता है - वो फिर से धरती की ओर तीव्रतर गति से अग्रसर होती दिखाई देने लगती है...
क्या यह केवल संयोग मात्र है कि मानव जीवन में भी, किसी भी काल में, शून्य से आरंभ कर हर बच्चा बड़ा आदमी बनता है और फिर एक दिन बुढापे के दिन व्यतीत कर शून्य में ही विलीन हो जाता है?
'गेंद' के माध्यम से अनेक प्रकृति के संकेत समझने में सुविधा हो सकती है. उदहारणतया बालगोपाल के हाथ में लड्डू शायद द्योतक हो उनके, या स्वयं मानव के, हाथ में पृथ्वी/ ब्रह्माण्ड का होना...
ये जिस महाशय ने कहा है bilkul सत्य कहा है | वो बचपन की यादें अबी भी एकाएक ताजा हो जाती है ना जाने कितने २०-२० के साथ साथ ५-५ क्रिकेट भी खेला और साथ ही न जाने कितनी अनगिनत बोल खोयी कोई अनुमान ही नहीं| सपना था एक क्रिकेट खिलाडी बनने का पर बन गये एक मीडियाकर्मी | शायद इश्वर को यही मंजूर था|
bAHOT KHOOB..dil ko chhoo gayi yeh tasweer
dear Ravish ji aap bahut accha news padte hai , lekin ek baat samaj me nahi aati , app ek hi tone me kiyon bolte hai , aur aapki body itni akadi kiyon rahti hai , chahera bhi aisa lagta hai ki dusron ko hikarat ki nazro se dekh rahe hai , aisa kiyon
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