एक इनोवा कार के पीछे यह विज्ञापन छपा था। जिस तरह स्कूटर की स्टेपनी को कंपनियों ने बिलबोर्ड की तरह इस्तमाल किया उसी तरह कार के पिछले शीशे का भी होता है। बीजेपी हिंदुत्व को लेकर कंफ्यूज़ है। मानने के लिए तैयार ही नहीं कि सेकुलर हुए बिना काम नहीं चलेगा। सावरकर टाइम्स कंफ्यूज़ नहीं लगता। पता नहीं कहां से छपती है। लेकिन एलान देखकर तो लगता है कि इसका बड़ा भौकाल होगा।
36 comments:
सही है.. पुरी भाजपा को पढ़ना चाहिये हिन्दु्त्व को लेकर कन्फुजन दूर हो जायेगा...
रवीस जी, क्या आप सेकुलर का सही अर्थ बता सकते हैं, और यकीं मानिये जिस दिन इसका सही अर्थ आप जान गए तो आप ही नहीं आप जैसे सभी बुद्धिमान अपने पर ही हँसने लगेंगे, एक शब्द को जिसे पकड़ कर ये ढोंगी नेता चलते हैं आपसे मेरा ये नम्र अनुरोध है की आप उनके जैसा बिलकुल मत बनिए, मुझे लगता है कि आप उन कुछ पत्रकारों में से है जिन्हें अपनी जिम्मेदारी का एहसास है, लेकिन अगर इस तरह का वाक्य अगर आप प्रयोग करेंगे तो संभव है कि यही लगेगा कि आप भी केवल पैसा कमाने आये हैं.
चित्रहार चित्रहार बहुत खेल रहे हो आजकल रवीश जी। अच्छा है। नसीहत देख लो पैसा मत कमाना। हर आदमी पत्रकार से यही उम्मीद करता है कि सूखे टिक्कड़ चबा के दांत तोड़ ले, चमड़ी और जेब की दमड़ी दोनों जनसेवा में झोंक दे। अरे यार कर तो रहे हैं। बेईमानी से तो नहीं कमा रहे। पैसे के बिना भी कैसे जनसेवा होगी जी? पहले पेट में तो जाए। आप भला तो जग भला।
ओहो हो हो हो
जुबां पे सच दिल में इंडिया
एनडीटीवी इंडिया ही सबसे सेकुलर है
मैं तो भूल ही गई थी
आजकल के ये उभरते हुए पत्रकार कुछ ज्यादा ही बुद्धिमान हैं खासकर के मधुकर जी, मैंने पैसे कमाने के लिए मना नहीं किया है किन्तु आप जैसे पत्रकार इतने बुद्धिमान हैं की असल बात को छोड़कर वह शब्द पकड़ते हैं जिसका वास्तविकता से सम्बन्ध कम व मार्केटिंग से ज्यादा होता है, आखिर पैसे का खेल है भाई और जल्दी आगे भी तो बढ़ना है, मै साझ सकता हूँ, और आज के ज़माने में सबसे जयादा पैसा पत्रकार ही कमाते हैं उसमे कितनी ईमानदारी होती है ये बताने जरुरत नहीं है, आप तो बुद्धिमान हैं मधुकर जी ,
Aajkal Hindu shabd ya Hindu dharm ko BJP se jod kar dekha jaa raha hai. Bahut Hindu apne aapko Hindu kahlane se katrane lage hain ki kahin BJP ka Thappa naa lag jaye.
Jai Ho!
लो जी ये तो स्कैनिंग कर रहे हैं कमेंट देने के बाद। बहस मंच बना दो कस्बा को रवीश जी को दो सलाह मैंने तो उनके लिए ही कहा था। आप तो मुझ पर ही सीधे हो लिये आर्य साहब। आपने तो एक ही शब्द से मेरी बुद्धि लब्धि परख ली। सिगमण्ड फ्रॉयड को पीछे छोड़ दिया साहब। बड़ी मंझे हुए खिलाड़ी हो मनोविज्ञान के।
अब होगा "सच" का सामना -- क्या इससे पहले ऐसा नहीं होता था? सबसे भयावह सच है रोटी, जिससे करोड़ों लोग दशकों से आज तक वंचित है। पहले उसके लिए चिन्ता और प्रयास हो।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.
ऐसे हजारों दावा करने वाले मिल जाएंगे। इंदौर में तो आटो वाले भी लिखकर घूमते हैं। चौथा संसार।
एक फिल्म आई थी - त्रिकोण का चौथा कोण, फिल्म में उस कोण को ढँढने की कोशिश चल रही थी, इधर भाजपा है कि हिंदुत्व - हिंदुत्व का राग अलापते त्रिकोण का पांचवां कोण ढूँढ रही है और संघी-कंघी हैं कि छटे सातवें कोण तक ढूँढ लेने का दावा कर रहे हैं....ये इस तरह के पत्र-फत्र भी उसी तथाकथित हिंदूत्व के कोण ढूँढ-ढाँढ करने का हिस्सा है :)
हिंदूत्व क्या है ये अगर असलियत में जान जायें और उसी के अनुसार आचरण करने लगें तो यकिन मानिये, मैं इस भाजपा को पहले प्रेफरेंस दूँगा लेकिन मौजूदा रूप और चरित्र जिसमें राम का नाम लेकर चलने का ढकोसला है तो सीधा सरल उत्तर है .....ना। ऐसी भाजपा से दूर रहना ही ठीक है।
पता नहीं कौन से सच की बात हो रही है. हमने तो केवल "सत्यम शिवम् सुंदरम" सुना है बचपन से..."शिव ही सत्य है और केवल वो ही सुंदर भी हैं"...(श में इ की मात्रा जमा 'व' यानि 'शिव' - व में इ की मात्रा जमा 'श' यानि 'विष' के विपरीत, अर्थात 'अमृत', अजन्मा और अनंत प्रभु, यानि जो 'भू' यानि पृथ्वी के पहले से विद्यमान था, शक्ति रूप में, शायद पृथ्वी के केंद्र अर्थात शिव के हृदय में जहां माँ काली का निवास माना गया है )...
जब हम छोटे बच्चे होते थे तो नयी दिल्ली में तालकटोरा गार्डन से रामकृष्ण मिशन तक लम्बी सड़क के दोनों ओर सरकारी घर होते थे. अधिकतर हम बच्चे, जब स्कूल नहीं गए होते थे, घरों के सामने मैदानों में खेलते थे (क्यूंकि उन दिनों का सत्य यह था कि हर घर में लगभग ६-६ बच्चे पाए जाते थे, और कुछ बिरले ही होते थे जिनके केवल २-३ ही होते थे)...
कभी-कभी हम सड़क पर देखते थे लोगों की भीड़, चार आदमी कंधे पर किसी की अर्थी उठाये. श्मशान गृह की ओर पैदल जाते और मुंह से कहते जाते, "राम नाम सत्य है...' और कुछ शैतान बच्चे दूर खड़े हल्के से केवल हमारे सुनने के लिए उसमें जोड़ देते थे, "मुर्दा बेटा मस्त है", क्यूंकि बचपन में ये जीवन-मरण के सत्य का बच्चों को क्या ज्ञान? और शायद बड़ों को भी कभी नहीं! हाँ! मोक्ष और निर्वाण अदि का चर्चा कुछ आधुनिक ज्ञानी अवश्य कर लेते हैं यदा कदा...
शायद ग़ालिब मियाँ कह गए, "हमने देखी है जन्नत की हकीकत/ दिल को बहलाने को ग़ालिब यह ख्याल अच्छा है..."
टोएटा एनोवा पर पोस्टर है,मजाक बूझ लिए हैं क्या ?
पता लगाने के लिए गाड़ी तलाशें।
बिना पढे ही फैसला मत करें।
SACHIN KUMAR
.................
What is Secularism and who is secular? First India is a secular country by constitution.
The word secular was put into the Preamble by the 42nd amendment in 1976. That is emergency period. It gives equality of all religions. Every person has the right to preach, practice the religion they choose.Govt must treat all religions with equal respect and so as every single individual. This is secularism and one who follows this is secular. And this is what hinduism is. And now put this and check Bjp where it stands. They have Pilibhit type hindutva or Modi type. I am hindu, I follow my religion and at the same time I enjoy going on my Muslim friends, love to take part in their festivals donot disturb or see as hatred his religion or my Sikh friends or any one.That means I am secular and be sure if you have to live in India you must be secular.My all blogger friends. Thanks and enjoy sunday.
भाजपा भ्रम का शिकार रही है.नहीं तो अर्मूत अवधारणाओं की बैसाखी पर नहीं चलती. वो बैसाखी अब पुरानी पड़ चुकी है..घुन लगी बैसाखी खोखली हो चुकी है...बाज आओ.छोटा किंतु बड़ा सत्य छिपा है इस पोस्ट में.
इस तरीके से मजाक बनाने का आपको कोइ हक नहीं है। आरम्भ सबका ऐसे ही होता है। आप इसी रूप में जन्मे थे क्या।
सेकुलर हुए बिना काम नहीं चलेगा। ....
जी हां आपके हिसाब से तो बिल्कुल ही नहीं चलेगा....आपकी छाती को ठंडक तो तभी मिलेगी जब लालकिले पर चांद तारे वाला हरा झंड़ा दिखाई देगा....समझ सकता हूं आपकी पेशेगत मजबूरी....वैसे भी अपने आपको ज्यादा बड़ा पत्रकार दिखाने के लिए सेक्युलरवाद का बाजा बजाना ही पड़ता है....
सेक्युलरवाद का बाजा बजाकर तरक्की, नाम या शोहरत पाना क्या पेशे कि मजबूरी है, रविशजी कभी मौका मिले तो उसपर भी कुछ लिखिए
असत्य को बार-बार दोहराने से सत्य, यानि 'परम सत्य', बदला नहीं जा सकता - और वो शब्दों से परे है...
शब्द केवल एक माध्यम हैं किसी के हृदय के उद्गारों को अन्य व्यक्तियों के सम्मुख प्रस्तुत करने हेतु, और वो अक्षम हैं निराकार का - वह अनदेखा अनजाना जो सब के भीतर भी समाया हुआ है - विवरण कर पाने में उसी प्रकार जैसे मैंने पहले भी रवीशजी से प्रार्थना की थी कि वो मुझे केले की और आम की मिठास का अंतर शब्दों में समझा दें तो सेकुलर का सही अर्थ सब मायावी प्राणी/ संसार को सही समझ आ जाये :)
जय माता की!!! जो मानव माथा घुमाने में ('मानस मंथन' में) व्यस्त है उसी प्रकार जैसे कृष्ण ने विष्णु, नादबिन्दू, के बाल-स्वरुप में गोकुल के ग्वाल-बाल को नाच नचाया था और माखन - दूध का सत्व अर्थात सत्य यानि सच - बनाने के लिए प्रेरित किया :)
विज्ञापन ही तो है ना!?
धुआं है तो आग भी कहीं सुलग ही रही होगी!
रवीश भाई, आपनें केवल एक फोटो लगाई और चार लाइन का लिख दी, बवाल हो गया, सेकुलरिजम पर बहस चल पड़ी, खैर ये शब्द आप अपनें पिटारे से न निकाला करो, दोस्तों को अच्छा नहीं लगता,मुझे इतना तो यकीन है कि यदि भगवा ब्रिगेड की सरकार आ गई तो इस शब्द सेकुलरिजम(धर्मनिरपेक्षता) को शब्दकोषों से या हो सका तो भारतीय संविधान ले निकलवा देंगी। क्योंकि अब इन लोगों से इस शब्द को सुनतें ही चिढ़ होने लगी है, जैसे इस शब्द को बोलकर किसी नें मधुमक्खी के छत्ते में हाथ ड़ाल दिया हो, "कैसे बोला ये शब्द"। मेरे बड़े भाई अनिल यादव जी तो ये तक कह गए कि हम इस शब्द का प्रयोग करके अपनें पड़ोसी देश को अपनें यहां सत्ता पर बिठाना चाहते हैं, अरे भाई साहब आपको अपनें तथाकथित राष्ट्रवाद पर भरोसा नहीं क्या? चिंता क्या करते हो भाई
नवीन भाई अपने राष्ट्रवाद पर तो पूरा यकीन है....
लेकिन क्या करें इतिहास भी तो जयचंदों के कारनामों से भरा पड़ा है....
वैसे भी मधुकर राजपूत नाम के प्राणी की मानसिकता बड़ी अजीब है। जिस भी ब्लॉग पर मैंने इनके कमेंट्स पढ़ें हैं, कभी सकारात्मक नहीं हुए। मीन-मेख निकालना और खुद को ज्ञानी बनाने की ख़ास आदत है इन्हें। मैं हमेशा देखती हूं कि ये कभी किसी के लिखे को नहीं सराहते। इनकी मानसिकता जाने कैसी है...
अनिल जी अब हम संवैधानिक देश में इतिहास के उदारहणों पर चलेंगे तो, पीनें-खानें और नित्य क्रिया के लिए भी इतिहास के पन्नों को खंगालना पड़ेगा। अरे दोस्त जो लोग 60 साल पुरानी किताब को याद नहीं रख सकते वो इतिहास के दम पर क्या राजनीतिक सोच बना पाएंगे...।
भाई रणवीर आप भी गदहों (माफ़ी चाहूँगा लेकिन अनिल जी की तस्वीर देख यही तो कहूँगा न) से राष्ट्रभक्ति और धर्मनिरपेक्षता का सर्टिफिकेट पाना चाहते है. क्या है की इन्होने समय पर "मिन्टोस" नहीं खाया इसलिए कई सौ बरस पीछे चल रहे है. गलती इनकी नहीं है.
भाई नवीन जी इतिहास हमें सबक सिखाने के लिए ही होते है....और अगर हम इतिहास से मुंह चुराएंगे तो शायद फिर उन्हीं पुराने हालातों को न्यौता देंगे....इस भोथरी धर्मनिरपेक्षता ने इस देश का जितना नुकसान किया है उतना शायद ही किसी और चीज ने किया हो....कब तक हम धर्मनिरपेक्षता के नाम पर इनका तुष्टिकरण करते रहेंगे....धर्मनिरपेक्षता के नाम पर हर कुर्बानी हम ही क्यों दें....
मानव द्वारा रचित इतिहास की कमजोरी है कि यह आपको काल की अधिक गहराई तक नहीं जाने देता...घडी भी आवश्यक है काल के मापने के लिए, तो कैलेंडर भी आवश्यक है और पंचांग भी...
हिंदुत्व की श्रेष्ठतम् पृष्ठभूमि का अवलोकन करने हेतु आवश्यक होगा स्वयं भगवान के नहीं तो कम से कम हमारे ज्ञानी पूर्वजों के मष्तिष्क को पढने का प्रयास करना...
इस प्रकार हम देख सकते हैं कि हमारे पूर्वज अनंत काल का ध्यान रखते हुए गहराई में जा काल को चार भाग में बाँट दिए और उन्हें नाम दिए सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग, और कलियुग...और भौतिक रूपों में केवल तीन प्रकार के स्वरुप और उनसे संलग्न शक्तियों को ही मान्यता दिए और उनको नाम दिए ब्रह्मा, विष्णु और महेश/ सरस्वती, लक्ष्मी और पार्वती...इनके कार्य क्षेत्र भी अलग अलग जाने गए: ब्रह्मा का काम श्रृष्टि करना; विष्णु का हर रूप को उसके निर्धारित काल तक चलाना; और महेश का हर रूप के साथ संलग्न शक्ति अथवा आत्मा को अनंत काल-चक्र में चलायेमान रखना...सत्य को भी वो दो भाग में जाने - परम सत्य अर्थात निराकार शक्ति स्वरुप जो शून्य काल से जुडा है, और विभिन्न कार्य क्षेत्रों के विभिन्न सत्य...
जैसा इसके नाम से पता चल सकता है, कलियुग में गहराई में जा पाना संभव नहीं जाना गया होगा जिस कारण ज्ञानी कह गए "हरी अनंत हरी कथा अनंत", यानि एक ही छोटे से छोटे विषय पर भी विभिन्न विचार पाना प्राकृतिक है, किन्तु वे केवल तीन ही मुख्य श्रेणी में विभाजित किये जा सकते हैं: #१ विचार से सहमत, #२ असहमत, या #३ दोनों में से कोई भी नहीं ('नेति नेति'), जो बुद्ध द्वारा 'मध्य-मार्ग' कहा गया और सही माना गया...लेकिन "पसंद अपनी-अपनी, ख्याल अपना-अपना"...गंगा. यमुना, ब्रह्मपुत्र नदियाँ, तीनों, समुद्र (बंगाल की खाडी) में मिलने से पहले - पद्म के नाम से (ब्रह्मा की कमल रुपी कुर्सी!) - पहले अलग अलग मार्ग में भी चलती हैं जिसे प्रकृति का संकेत भी माना जा सकता है की 'अंत भले का भला'...
देश में जितने धर्मनिरपेक्ष दल है मेरी नजर में वे भाजपा से कम साम्प्रदायिक कोई नहीं है |
रतन जी की टिप्पणी को हमारा भी सुर
"देश में जितने धर्मनिरपेक्ष दल है मेरी नजर में वे भाजपा से कम साम्प्रदायिक कोई नहीं है |"
SACHIN KUMAR
"देश में जितने धर्मनिरपेक्ष दल है मेरी नज़र में वे भाजपा से कम साम्प्रदायिक नहीं है |" कई लोग ऐसा कह रहे है। सही है...कोई भी सेकुलर नहीं है...लेकिन ये भी सही है भाजपा का सेकुलरवाद अलग है....वोट की खातिर सब इससे(धर्मनिरपेक्षता के नाम पर) अमृत लेते है लेकिन बीजेपी की बात कुछ और है वो इसमें जहर घोलकर अमृत पाना चाहती है....बहस चल रही है लेकिन वो बात नही आ पा रही......
सबने शायद कहावत सुनी हो, "उगते सूरज को सब नमस्कार करते हैं. डूबते सूरज को नहीं."
मुझे लगता है यह कन्फयूजन चलता रहना चाहिए, वर्ना उसका भला नहीं हो जाएगा।
ह ह हा।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
अगर देखा जाये तो दुनिया में सभी धर्म अपने प्रचार में लगे हुए है...चाहे वो इसाई हो या मुस्लमान ....
अगर कोई धर्म बर्बादी की कगार पर है तो वो हिन्दू ही है...जिसका कोई अद्धिकार नहीं है.
अगर वो कुछ बोलता या सोचता है तो उस पर भाजपा या आर एस एस का ठप्पा लग ही जाता है...
भले ही वो कोई धार्मिक व्यक्ति क्यों न हो ....ऐसा किसी मुस्लमान या इसाई के लिए क्यों नहीं है....रविश जी कुछ प्रकाश डालें तो अच्छा होगा...
आज मॉरिशस और पाकिस्तान के हिन्दू हमें गलियां देते है की अकेला हिन्दू रास्त्र होने के बाद भी हमने आज तक उनके लिए कोई साहित्य या सांस्कृतिक मदद नहीं भेजी .....क्या दुनिया के दुसरे देशों में जीवित इन हिन्दुओं की कोई धार्मिक सोच नहीं है...क्या उनके धर्म का उद्गम स्थल ही सबसे नीच है....जो कभी उनके लिए कुछ नहीं करता..
अनेक भारतियों को इसी बात का मलाल है की विदेश में उनकी धार्मिक स्वतंत्रता के लिए कोई नहीं बोलता...यहाँ के नेताओं को तो सेचुलार्ता के दस्त लगे रहते हैं वे कभी कुछ नहीं बोलते जो अधिकारी है वे भी कोई मांग नहीं उठाते ...
आज किसी देश में जाकर देख लो मुसलमानों के लिए अलग कानून है अलग धार्मिक आजादी है पर हिन्दुओं के लिए कितने देशों में ऐसा है...कृपया बतये तो अच्छा रहेगा...
अब बात करें भारत की यहाँ के हिन्दुओं का कोई अधिकार नहीं है जो भी योजना बनती है वो सिर्फ देश के सेकुलर वर्ग के लिए ही बनती है कभी हिन्दू समाज के लिए सर्कार ने कोई योजना बने हो तो बताएं...
सरे सेकुलर नेता जो कभी किसी मंदिर में नहीं जाते है मुसलमानों को धोखा देने के लिए...
क्या अपने धर्म को छोड़कर सिर्फ दिखावे के लिए आप मुसलमानों का दिल जीत सकते है...पासवान का हस्र देख लें..
हम हिन्दुओं को सामाजिक और रास्ट्रीय स्वतंत्रता चाहिए...कब और कौन दिलाएगा ये समय ही बताएगा....आज हम चाह कर भी किसी दूसरी पार्टी को वोट नहीं दे सकते क्योंकि ऐसा करने पर हमरी सवतंत्रता और कम हो जायेगी .....
उत्तर प्रदेश के अनेक मुस्लिम कस्बों में सार्वजानिक रूप से शंख बजाने पर माइक लगा कर पूजा करने पर दंगे हो जाते हैं...लेकिन कितने मुहर्रम के जुलूसों में हिन्दू विरोध करते है जरा ये भी बता दे....
सिर्फ मुलायम कांग्रेस जैसे सेकुलरों की शाह पर आज हिन्दू अपने ही देश में गुलामी की कगार पर है...
आखिर क्यों दुसरे धर्मों को हमेसा हमारे सर पर चढ़ कर जुतियाने की अनुमति दी जाती है....कारन सिर्फ सेकुलरवाद ही है...
अगर यही दशा रही तो जल्द ही हिन्दुओं का स्वाभिमान तो दूर वो अपना धर्म भी भूल जायेगा....
क्षमा प्रार्थी हूँ कहने में कि गीता पढिये श्रीमान! शायद कुछ लाभ हो!...योगियों ने नटखट नन्दलाल कृष्ण के माध्यम से कहा कि वो हर वस्तु और प्राणी में आत्मा के रूप में विद्यमान है भले ही वो भौतिक हो या अध्यात्मिक, (अथवा हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई इत्यादि)...इस प्रकार शरीर की तुलना में आत्मा को श्रेष्ट स्थान दिया गया और हर गलती का कारण अज्ञानता को ठहराया गया है...मानवों में कृष्ण ने बताया कि वो 'राजा' हैं...और मीराबाई के माध्यम से दर्शाया कैसे राजा मूर्खों की श्रेणी में आते हैं...
सत्य को जान, जन्म से 'हिन्दू' विस्वामित्र भी राजा था, किन्तु वे अथक तपस्या के बाद ही महर्षि बन पाए सतयुग में...और आज घोर कलियुग में, जब काल उल्टा चल कलियुग के अंत के निकट पहुँच गया माना जाता है, काल के प्रभाव से, जन्म से हर 'हिन्दू' बिना तपस्या के महर्षि का पद चाहता है, योगियों सामान सिद्धि प्राप्त किये बिना, बिना 'कुण्डलिनी जागृत किये' - यानि भीतर के अंधकार को बिना भगाए :)
रविश जी आदाब,आज के हिंदुस्तान संस्करण में अपने ब्लॉग(www.comic-guy.blogspot.com)के बारे में आपके विचार पढ़े,शुक्रिया इन अकीदत भरे ख्यालातों के लिए.अखबारी लिंक के ज़रिये आपके ब्लॉग से तार्रुफ़ हुआ,बहुत पसंद आया,खासतौर से आपकी सरल लेखन शैली.
नाजिया हसन पर आपके ख्यालात पढ़े,ऐसा लगा के आपने हमारे मन की बात अपनी ज़बान में लिख दी.अच्छा है,लिखते रहिये यूँ ही,हम भी आते रहेंगे ऐसे ही.
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